हौंसलों की उड़ान: जन्म से नहीं थे हाथ, तो पैरों से लिखना सीखा; पास की 10वीं बोर्ड परीक्षा
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हौंसलों की उड़ान: जन्म से नहीं थे हाथ, तो पैरों से लिखना सीखा; पास की 10वीं बोर्ड परीक्षा

रहनुमा हिंदी, इंग्लिश के अलावा उर्दू और फारसी भाषा भी लिखना और पढ़ना जानती हैं. इतना ही नहीं, चंडीगढ़ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली रहनुमा पैरों से पेंटिंग भी ऐसी कमाल की बनाती है कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं.

रहनुमा का फोटो।

चंडीगढ़: ''कुछ कर गुजरने की चाह और बुलंद हौंसले हर नामुमकिन काम को मुमकिन कर सकते हैं'', हरियाणा (Haryana) के पंचकूला की राजीव कालोनी में रहने वाली रहनुमा ने इस कहावत को सच कर दिखाया है. रहनुमा के दोनों हाथ और एक टांग से दिव्यांग है. लेकिन फिर भी पढ़ाई के जुनून के चलते उन्होंने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में 72 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं.

इलाके की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली रहनुमा को पढ़ने का बहुत शौक है. शरीर से असहाय होने के बावजूद उन्हें पढ़ाई करने का जज्बा कम नहीं हुआ और उन्होंने अपने पैरो की मदद से लिखना और अन्य कार्य करना सीख लिया और आज बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए हैं. रहनुमा हिंदी, इंग्लिश के अलावा उर्दू और फारसी भाषा भी लिखना और पढ़ना जानती हैं. इतना ही नहीं, चंडीगढ़ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली रहनुमा पैरों से पेंटिंग भी ऐसी कमाल की बनाती है कि देखने वाले दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं.

फाइन आर्ट्स में कैरियर बनाने की चाह रखने वाली रहनुमा की पढ़ाई लिखाई में घर की गरीबी बड़ी बाधा बन रही है. रहनुमा की मां गुलनाज बानो ने बताया कि रहनुमा जन्म से ही शरीर से दिव्यांग है. लेकिन उसने कभी भी इसे अपनी कमजोरी नहीं समझा. बता दें कि रहनुमा एक कच्चे घर में अपनी तीन बहनों और तीन भाइयों के साथ रहती है. उनके बीमार पिता शफीक अहमद मजदूरी करके जो कमा पाते हैं उसी कमाई में मुश्किल से परिवार का पेट भर पाता है. 

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