CAA : नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यक लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इस कानून का लाभ उन्हीं लोगों को मिलेगा जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए होंगे.
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Citizenship Amendment Act: देश में आखिरकार चार साल बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 लागू हो गया. 10 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद भी इसे लागू करने में इतना समय क्यों लग गया. 2019 में असम, त्रिपुरा, दिल्ली समेत कई राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. ये चर्चा काफी पहले से चल रही थी कि आम चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से पहले सीएए कानून लाया जा सकता है, लेकिन इसकी आधिकारिक घोषणा आखिर सोमवार को ही क्यों की गई, ये मोदी सरकार की जबर्दस्त रणनीति हो सकती है.
कोविड महामारी आने के बाद हुए थे प्रदर्शनकारी शांत
दरअसल पिछली बार दिल्ली के शाहीनबाग में हुए सीएए कानून का जबर्दस्त विरोध हुआ था. देश-दुनिया में इस खबर ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. उस समय विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों ने शाहीनबाग पहुंचकर खुद को प्रदर्शनकारियों का रहनुमा साबित करने की कोशिश की थी. इस बीच सरकार के नुमाइंदे ये लगातार समझने की कोशिश करते रहे कि इस कानून के आने के बाद किसी की मौजूदा नागरिकता नहीं जाएगी, लेकिन लोग नहीं मानें. वे कुछ रास्तों पर जाम लगाकर बैठ गए. हालांकि इस बीच कोविड महामारी आ गई और देखते ही देखते सडकों पर हो रहा प्रदर्शन शांत हो गया और रास्ते सूने. अब जाकर ठीक लोकसभा चुनाव से पहले सोमवार को अचानक सीएए कानून पास कर दिया गया.
चुनाव के समय छवि बनाने की रहेगी कोशिश
माना जा रहा है कि मंगलवार से रमजान शुरू हो रहे हैं. ऐसे में एक विशेष समुदाय के लोग इबादत में व्यस्त हो जाएंगे और अराजक तत्वों को सांप्रदायिक तनाव फैलाने का बहाना नहीं मिलेगा. रमजान खत्म होने के बाद विभिन्न पार्टियां बिना किसी पचड़े में फंसते हुए अपनी इमेज बिल्डिंग में जुटी होंगी और चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से निपट जाएंगे. नतीजे कुछ भी हों, लेकिन पहले अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन और अब सीएए कानून को लागू कर मोदी सरकार ने एक बार फिर वोटर्स पर जादू चलाने का सारा साजोसामान तैयार कर लिया है.
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अब जान लेते हैं कि Citizenship Amendment Act (CAA) के व्यापक विरोध की वजह क्या थी
2016 में पहली बार लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पास हुआ था, लेकिन राज्यसभा से सरकार इसे पारित नहीं करा पाई थी. उस समय इसे संसदीय समिति के पास भेज दिया गया. इसके बाद मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान इस बिल को दिसंबर 2019 में लोकसभा और फिर राजयसभा में पेश किया है. इस बार ये बिल दोनों जगह से पास हो गया. जनवरी 2020 में इसे राष्टपति ने भी मंजूरी दे दी. इसके बाद कुछ गलतफहमी और राजनीतिक उकसावे के बाद लोगों ने बड़े पैमाने पर इसका विरोध शुरू कर दिया. दरअसल लोगों के बीच एक अफवाह तेजी से फैली कि इस कानून के आने के बाद देश में रह रहे लोगों की नागरिकता छीन ली जाएगी.
क्यों किया गया था नागरिकता कानून में संशोधन?
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यक लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इस कानून का लाभ उन्हीं लोगों को मिलेगा जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए होंगे. नए कानून के मुताबिक अगर पड़ोसी देशों के अल्संख्यक यदि 5 साल से भारत में रह रहे हैं तो वे भारत की नागरिकता ले सकते हैं. पहले नागरिकता प्राप्त करने के लिए देश में 11 साल रहना अनिवार्य था.