DNA Analysis: डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने से चिंता, लेकिन इस गिरावट में भी छिपे हैं देश की तरक्की के ये राज
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DNA Analysis: डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने से चिंता, लेकिन इस गिरावट में भी छिपे हैं देश की तरक्की के ये राज

Disadvantages and benefits of Depreciation of Rupee: क्या डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने में केवल नुकसान ही छिपे हैं या इसमें कोई फायदा भी है. आज आपको इस बारे में काम की ये जानकारी जाननी चाहिए. 

DNA Analysis: डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने से चिंता, लेकिन इस गिरावट में भी छिपे हैं देश की तरक्की के ये राज

Disadvantages and benefits of Depreciation of Rupee: आजकल आप रुपये के बारे में काफी खबरें सुन और पढ़ रहे होंगे. ऐसा इसलिए हो रहा है कि क्योंकि इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 80 के भी पार चल गया है. सरल और आसान शब्दों में कहें तो आज की तारीख में एक डॉलर भारत के 80 रुपये 2 पैसे के बराबर है. अब इसके बाद लगातार ये सवाल सवाल उठ रहे हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए क्या संदेश देता हैं? इसलिए आज हम रुपये का पूरा अर्थशास्त्र आपको बताते हैं कि आखिर रुपये गिरता क्यों है? 

रुपये के कमजोर होने का क्या है मतलब?

रुपये के कमजोर होने (Depreciation of Rupee) का क्या मतलब है? क्या कमजोर रुपया भारत को आर्थिक मोर्चे पर भी कमजोर कर रहा है? क्या रुपये में आई ये ऐतिहासिक गिरावट महंगाई का बड़ा विस्फोट करने वाली है. अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी विषय बहुत जटिल होते हैं. लेकिन आज हम आपको रुपये का गणित इतनी सरल भाषा में समझाएंगे कि आप भी इस विषय के मास्टर बन जाएंगे.

सबसे पहले आप ये समझिए कि जब रुपया कमजोर (Depreciation of Rupee) होता है तो इसका मतलब क्या होता है? दरअसल, जब भी आप ये सुनते हैं कि रुपये डॉलर की तुलना में कमज़ोर हो गया है तो इसका अर्थ ये होता है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की Purchasing Power कम हो गई है. इसे ऐसे समझिए कि पहले 70 रुपये एक डॉलर के बराबर थे. अब उसी एक डॉलर के लिए आपको 80 रुपये तक देने होंगे. जब आप बाज़ार में कोई सामान या कोई सेवा खरीदने जाते हैं तो इसका पूरा लेन-देन भारतीय करेंसी में होता है. यानी रुपये में होता है. लेकिन जब एक देश के तौर पर भारत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में व्यापार करता है तो यही लेन-देन विदेशी मुद्रा में होता है. अभी हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिकतर व्यापार यानी लेन-देन डॉलर में करता है, जो अमेरिका की करेंसी है.

भारत का विदेशी भुगतान डॉलर में

उदाहरण के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से जितना भी कच्चा तेल खरीदता है, उसका पूरा भुगतान डॉलर में ही होता है. अब मान लीजिए भारत के 70 रुपये एक डॉलर के बराबर हैं और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर है तो एक बैरल कच्चे तेल के लिए भारत को 700 रुपये का भुगतान करना होगा. लेकिन अगर यही रुपया डॉलर की तुलना में और कमजोर हो जाता है और उसकी कीमत 80 रुपये के पार चली जाती है तो इसी एक बैरल कच्चे तेल के लिए भारत को 800 रुपये देने होंगे. यानी कच्चे तेल की कीमतें तो नहीं बदली लेकिन रुपया कमजोर होने से भारत का कच्चे तेल के आयात पर खर्च बढ़ गया. नटशेल में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर (Depreciation of Rupee) होने का मतलब है, भारत का आयात बिल महंगा होना.

अब आयात पर भारत पहले से ज्यादा खर्च करेगा तो इससे उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें भी घरेलू बाज़ार में बढ़ जाएंगी, जो दूसरे देशों से आती हैं. जैसे अभी पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़े हुए हैं. या जो Mobile Phones और गाड़ियां इम्पोर्ट होती हैं, वो महंगी हो गई हैं. अंग्रेज़ी में इस प्रक्रिया को Currency Depreciation भी कहते हैं. यानी जब डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य मुद्रा का मूल्य घटे तो इसे उस मुद्रा का गिरना, टूटना और कमजोर होना कहते हैं. अब आपके मन में ये सवाल होगा कि भारत का रुपया गिर क्यों रहा है?

इन कारणों से घट रही रुपये की वैल्यू

इसके कई कारण हैं. इनमें पहला कारण है, महंगाई. भारत जिन चीज़ों का आयात करता है या जो चीज़ें हम दूसरे देशों से खरीदते हैं, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उन सबकी कीमतों में वृद्धि हुई है. जिनमें कच्चा तेल सबसे अहम है. यूक्रेन और रशिया के बीच जारी युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर हुई है और इनमें बढ़ोतरी जारी है. जिससे भारत का Import Bill बढ़ गया है.

अब जब कोई देश आयात पर ज्यादा पैसा खर्च करता है. यानी दूसरे देशों से सामान खरीदने पर ज्यादा पैसा खर्च करता है और इसकी तुलना में निर्यात कम होता है तो इससे Current Account Deficit बढ़ जाता है. मान लीजिए, भारत ने 100 रुपये का सामान दूसरे देशों से खरीदा और सिर्फ़ 60 रुपये का सामान अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेचा. तो ये जो 40 रुपये का अंतर है, ये हमारा Current Account Deficit होगा. यानी आयात और निर्यात के इस असंतुलन से भारत को लगातार नुकसान होगा. अनुमान है कि इस साल भारत का Current Account Deficit 105 Billion Dollar यानी भारतीय रुपयों में 8 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपये हो सकता है. यानी आयात और निर्यात के बीच जो अंतर है, वो 8 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है.

विदेशी निवेशकों ने निकाले 30 बिलियन डॉल

रुपये के कमज़ोर (Depreciation of Rupee) होने का एक और मुख्य कारण है, विदेशी निवेशकों का भरोसा टूटना. सिर्फ इसी साल में विदेशी निवेशक भारत के शेयर बाजार से 30 Billion Dollar यानी भारतीय रुपयों में 2 लाख 40 हजार करोड़ रुपये का विदेशी निवेश वापस निकाल चुके हैं. जिससे रुपया कमज़ोर हुआ है.

इसके अलावा रुपये के कमज़ोर होने के कुछ और कारण हैं. जैसे, रशिया और यूक्रेन का युद्ध. कोविड से प्रभावित हुईं ग्लोबल सप्लाई Chains और बढ़ती हुई महंगाई. इन वजहों से भी डॉलर की तुलना में रुपया कमजोर हुआ है. हालांकि रुपये का कमजोर होना अब कोई ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है. आप पिछले कई वर्षों से इसके आदी हो चुके हैं क्योंकि हर दौर में और हर सरकार में ये गिरावट इसी तरह जारी रही है. कभी रुपया डॉलर के मुकाबले 50 रुपये के स्तर पर पहुंचा, फिर इसने 60 रुपये के स्तर को छुआ, फिर ये 70 पर आया और अब 80 के पार चला गया है.

इसलिए बड़ा सवाल ये है कि रुपये में आई ये गिरावट (Depreciation of Rupee) कितनी चिंताजनक है? यानी आपको इसके बारे में कितना चिंतित होना चाहिए. इसे आप इस ग्राफ से समझ सकते हैं. इस ग्राफ से आप ये समझेंगे कि रुपये में जो गिरावट अभी देखी जा रही है, वो ज्यादा परेशान करने वाली नहीं है. 2008 से 2022 के बीच रुपया लगभग एक ही रफ्तार से कमजोर हुआ है. साल 2008 में भारत के 43 रुपये एक डॉलर के बराबर थे. 2014 में इसने 64 रुपये के स्तर को छुआ और अब ये 80 रुपये के पार चला गया है. 2014 से 2022 के बीच डॉलर की तुलना में रुपया 25 प्रतिशत गिरा है.

रुपये की कीमत घटने के नुकसान

अब आप जल्दी से ये नोट कर लीजिए कि रुपये के कमज़ोर होने के नुकसान क्या हैं और क्या फायदे हैं? पहले आपको नुकसान बताते हैं. इससे आयात पर भारत का खर्च बढ़ जाएगा. विदेश से आने वाली चीजें जैसे महंगे Phones, Electrical Items और गाड़ियां महंगी हो जाएंगी. विदेशों में छुट्टियां मनाना महंगा हो जाएगा. इसके अलावा अगर आप अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ने के लिए भेजना चाहते हैं तो पढ़ाई का ये खर्च भी बढ़ जाएगा. इसके अलावा इससे विदेशों से कर्ज लेना भी महंगा हो जाएगा. हालांकि रुपये के गिरने के कुछ फायदे भी हैं.

जैसे, भारत सरकार और भारत की जो कम्पनियां दूसरे देशों में अपना सामात निर्यात करती हैं, उन्हें पहले की तुलना में ज्यादा पैसे मिलेंगे. इसे ऐसे समझिए कि पहले जब रुपया 70 रुपये का था. और कश्मीर से निर्यात होने वाले एक कालीन की कीमत 10 डॉलर थी तो उस व्यापारी को 700 रुपये मिलते थे. लेकिन अब उसी कालीन के उसे 800 रुपये मिल जाएंगे. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि रुपये पिछले कुछ वर्षों में 70 से 80 रुपये के स्तर पर पहुंच गया.

RBI ने शुरू किया रुपये का रेस्क्यू ऑपरेशन

यानी कालीन की कीमत नहीं बढ़ी बल्कि रुपये के कमज़ोर (Depreciation of Rupee) होने से उस व्यापारी को निर्यात पर ये फायदा हुआ. भारतीय मूल के जो लोग विदेशों में रहते हैं और वहां से विदेशी मुद्रा भारत में भेजते हैं, उन्हें अब ज्यादा फायदा होगा. यानी इसके कुछ फायदे भी हैं. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि रुपये का गिरना चिंताजनक नहीं है. ये चिंताजनक है. और यही कारण है कि भारत का केन्द्रीय बैंक.. यानी Reserve Bank of India रुपये के रेस्क्यू ऑपरेशन में जुट गया है. रुपये के इस रेस्क्यू ऑपरेशन को आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.

RBI ने रुपये की Value को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर को बेचना शुरू कर दिया है. RBI अब तक 32 Billion Dollar यानी लगभग ढाई लाख करोड़ रुपये के डॉलर अपने Foreign Reserves से बेच चुका है. अभी भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 580 Billion Dollar यानी 46 लाख 40 हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बची है.

फॉरेन रिजर्व से डॉलर बेचने का काम शुरू

बहुत सारे लोगों के मन में ये सवाल होता है कि आखिर Foreign Reserves से डॉलर बेचकर रुपये को कैसे रेस्क्यू किया जा सकता है. तो इसकी भी एक प्रक्रिया होता है. दरअसल, जब RBI अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचता है तो उसे इसके बदले में रुपये मिलते हैं और इससे रुपये की मांग अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ जाती है. जब किसी करेंसी की मांग बढ़ती है तो उस करेंसी का टूटना या कमजोर होना रुक जाता है.

इसलिए ऐसी ख़बरें हैं कि आने वाले समय में RBI रुपये को मजबूत करने के लिए और उसकी मांग बढ़ाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से और डॉलर बेच सकता है. हालांकि ये एक अस्थाई समाधान है और कुछ अर्थशास्त्री ये भी मानते हैं कि RBI को रुपये के गिरने में ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए.

आज जब रुपये की बात हो रही है तो आपको ये भी जान लेना चाहिए कि दूसरे देशों की Currency का क्या हाल है?. भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर (Depreciation of Rupee) जरूर हुआ है. लेकिन अगर आप इसकी तुलना दूसरे देशों की Currency से करेंगे तो आपको पता चलेगा कि इन देशों की मुद्राओं में और भी ज्यादा गिरावट आई है.कुछ आंकड़ों से इसे समझिए. 

दूसरे देशों के मुकाबले मजबूत है रुपया

2022 में डॉलर के मुकाबले रुपये में 7 प्रतिशत की गिरावट आई है. जबकि जापान की करंसी, Yen, ब्रिटेन का पाउंड, यूरोप का यूरो और स्वीडन का Krona. इन सभी विदेशी मुद्राओं में डॉलर के मुकाबले इस साल 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है. यही नहीं आज अगर रुपये की तुलना इन विदेशी मुद्राओं से की जाए तो रुपया इनके मुकाबले मजबूत हुआ है. इन देशों की Currency के मुकाबले भारत का रुपया इस साल 13 प्रतिशत मजबूत हुआ है. सही मायनों में कहें तो ये कहानी रुपये की गिरने की कम बल्कि डॉलर के मजबूत होने की ज्यादा है. इस समय डॉलर हर Currency की तुलना में मजबूत हुआ है. जबकि रुपया डॉलर की तुलना में तो कमज़ोर हुआ है. लेकिन दूसरे देशों की करेंसी के मुकाबले रुपया पहले से और भी ज्यादा मजबूत है. इसलिए राजनीति से अलग.. मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़ से अलग.. रुपये का गिरना इतना भी चिंताजनक नहीं है.

(ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)

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