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नई दिल्ली: भारत में हर घंटे 27 हजार विवाह (Marriage) होते हैं, हर महीने 8 लाख से ज्यादा लोग शादी के बंधन में बंधते हैं और हर साल एक करोड़ लोग नए वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं. विवाह को परिवार का स्तंभ माना जाता है, लेकिन क्या अब ये स्तंभ दरकने लगा है? अमेरिका में हुई स्टडी तो इसी तरह इशारा करती है. तो क्या पूरी दुनिया में विवाह के प्रति लोगों का मोह भंग हो रहा है और क्या अब महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पुरुष हमेशा के लिए अविवाहित रहना चाहते हैं?
क्या खराब आर्थिक स्थिति, रिश्तों का दबाव ना झेल पाने का डर और सही जीवन साथी की तलाश पूरी ना होने का गम लोगों को अब आजीवन अकेले रहने पर मजबूर कर रहा है? और क्या पुरुष इस अकेलेपन का सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं?
पेव रिसर्च (Pew Research) ने साल 2019 के अमेरिकन कम्युनिटी सर्वे (American Community Survey) को आधार बनाकर ये दावा किया है कि अब अमेरिका में ज्यादा से ज्यादा पुरुष विवाह करना ही नहीं चाहते. अमेरिका में इस समय 25 से 54 वर्ष के 38 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं, जो अविवाहित हैं और शादी करना भी नहीं चाहते. इनमें 40 से 54 वर्ष के 20 प्रतिशत पुरुष ऐसे हैं, जो ना सिर्फ अविवाहित हैं, बल्कि अपने माता पिता के साथ रहते हैं. इसकी तुलना में 1990 में अमेरिका में अविवाहित पुरुषों की संख्या 29 प्रतिशत थी. इतना ही नहीं पिछले 30 वर्षों में विवाह ना करने वाले पुरुषों की संख्या, विवाह ना करने वाली महिलाओं की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ी है.
साल 2020 में ऐसा ही एक सर्वे भारत में भी हुआ था, जिसमें 26 से 40 वर्ष की उम्र के 42 प्रतिशत युवाओं ने कहा था कि वो ना तो शादी करना चाहते हैं और ना ही बच्चे चाहते हैं. भारत में ऐसा सोचने वाले पुरुषों और महिलाओं की संख्या लगभग बराबर है.
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आपको लग रहा होगा कि शायद दुनिया भर के युवाओं की विवाह के प्रति सोच बदल गई है और उन्हें अब ये गैरजरूरी लगने लगा है, लेकिन ऐसा नहीं है. इसके पीछे इन युवाओं के आर्थिक हालात जिम्मेदार हैं. अमेरिका में हुआ सर्वे बताता है कि ज्यादातर वो पुरुष अविवाहित रहते हैं, जिनके पास कॉलेज डिग्री नहीं होती, जो छोटी मोटी नौकरियां करते हैं और जिनकी आर्थिक स्थिति ऐसी होती ही नहीं कि वो विवाह कर सकें. अमेरिका में अब ज्यादातर वहीं पुरुष विवाह कर रहे हैं, जिनके पास अच्छी नौकरियां और अच्छी आमदनी है.
ऐसी ही स्थिति भारत में भी है. भारत में हर महीने 10 हजार रुपये या उससे कम कमाने वाले 39 प्रतिशत युवा शादी करने के इच्छुक नहीं है, जबकि जिनकी आमदनी 60 हजार रुपये या उससे अधिक हैं. उनमें से सिर्फ 21 प्रतिशत युवा ऐसे हैं, जो शादी नहीं करना चाहते. भारत में भी कम आमदनी की वजह से विवाह ना करने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं के मुकाबले ज्यादा है.
अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में समाज में जो बदलाव आता है, वो कई वर्षों और दशकों के बाद ही सही, लेकिन भारत जैसे देशों में भी दिखाई देने लगता है. आज भी भले ही भारत में हर साल करोड़ों लोग शादियां करते हों, लेकिन धीरे-धीरे बहुत सारे लोग अब शादी की डगर पर या तो जाना ही नहीं चाहते या हर कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहते हैं. जिस समाज का आधार ही शादी को माना जाता है. उस समाज का ढांचा धीरे-धीरे बदल रहा है. पहले संयुक्त परिवार एकल परिवारों में बदले, फिर महिला और पुरुषों ने अकेले ही बच्चों की जिम्मेदारी उठाना शुरू कर दिया और अब बहुत सारे युवा शादी और बच्चे दोनों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते.
कुछ दशक पहले तक महिलाओं को ज्यादा अधिकार हासिल नहीं थे. वो पढ़ाई लिखाई भी पूरी नहीं कर पाती थीं, लेकिन अब महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं. पढ़ी-लिखी और पुरुषों के बराबर पैसा कमाने वाली महिलाएं अब ऐसा जीवन साथी चाहती हैं जो आर्थिक रूप से सशक्त हो, लेकिन बहुत सारे पुरुष इस रेस में पीछे छूट जाते हैं. लेकिन ये लड़ाई महिलाओं और पुरुषों की नहीं है. बल्कि जीवन को अपने ढंग से जीने की है. शादी के सात फेरे और सात जन्मों का साथ अब भी परंपरा का हिस्सा तो हैं, लेकिन बहुत सारे युवा इस परंपरा को पिंजड़ा भी मानने लगे हैं. एक ऐसा पिंजड़ा, जिसमें वो अपने सपनों के पंख फैला नहीं पाते. लेकिन विवाह से मोह भंग क्या समाज को भी कमजोर करने का काम करेगा? इस सवाल का जबाव ना तो सीधा और ना ही आसान.
(इनपुट- महिमा कटारिया)
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