DNA ANALYSIS: वेब सीरीज 'तांडव' पर कोर्ट का फैसला तय करेगा देश में 'क्रिएटिव फ्रीडम' का भविष्‍य
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DNA ANALYSIS: वेब सीरीज 'तांडव' पर कोर्ट का फैसला तय करेगा देश में 'क्रिएटिव फ्रीडम' का भविष्‍य

वेब सीरीज 'तांडव' में हिन्दू देवी देवताओं को जिस तरह से दिखाया गया था. उस पर लोगों ने आपत्ति की थी. पुलिस ने रिपोर्ट लिखी तो गिरफ्तारी से बचने के लिए भारत में OTT की बड़ी अधिकारी अपर्णा पुरोहित इलाहाबाद हाई कोर्ट गईं. लेकिन अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से राहत देने की याचिका ठुकरा दी 

DNA ANALYSIS: वेब सीरीज 'तांडव' पर कोर्ट का फैसला तय करेगा देश में 'क्रिएटिव फ्रीडम' का भविष्‍य

नई दिल्‍ली:  पिछले दिनों आई एक वेब सीरीज 'तांडव' पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक बहुत दूरदर्शी फैसला सुनाया है. इससे देश में उन लोगों की गलतफहमी दूर होगी जो आजादी का गलत मतलब समझते हैं और क्रिएटिव फ्रीडम  के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करते हैं.

क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान

असल में वेब सीरीज 'तांडव' में हिन्दू देवी देवताओं को जिस तरह से दिखाया गया था. उस पर लोगों ने आपत्ति की थी. पुलिस ने रिपोर्ट लिखी तो गिरफ्तारी से बचने के लिए भारत में OTT की बड़ी अधिकारी अपर्णा पुरोहित इलाहाबाद हाई कोर्ट गईं. लेकिन अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से राहत देने की याचिका ठुकरा दी और ऐसा करते हुए इस केस में जो कहा गया वो भारत में क्रिएटिव फ्रीडम का भविष्य तय करता है. 

पहले कुछ प्वाइंट्स में जानिए कि अदालत ने कला के नाम पर धार्मिक अपमान के मामले में कहा क्या है-

-अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देवी-देवताओं का अपमान किया जा रहा है.

-जातीय और धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश की गई और ऐसा लगता है कि देवी देवताओं के अपमान के पीछे कोई निश्चित योजना काम कर रही है.

-दूसरे धर्म का अपमान कमाई का जरिया बन गया है.

-फिल्म के जरिये देश और राज्य की छवि खराब करने की कोशिश की जाती हैं और पुलिस, प्रशासन एवं संवैधानिक पदों का गलत चित्रण किया जाता है. 

-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता.

-सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वालों के खिलाफ सख्ती जरूरी है.

-फिल्म की शुरूआत में डिस्केलमर दे देने से जवाबदेही खत्म नहीं होती. 

-कोर्ट ने कहा कि अगर इस प्रव़ृति पर लगाम नहीं लगाई गई जो कुछ भी फिल्म और वेब सीरीज में दिखाया जा रहा है, देश की युवा पीढ़ी उसे ही सच मान लेगी.

कोर्ट ने ये भी कहा कि पश्चिमी दुनिया के देशों में किसी भी धार्मिक व्यक्ति या चिन्ह को गलत तरीके से नहीं दिखाया जाता है. यहां तक कि भारत में ही दक्षिण भारत में जो फिल्म बनती हैं. उनमें भी धार्मिक भावनाओं का पूरा ध्यान रखा जाता है.

इस फैसले को पढ़ कर लगता है कि जैसे ही हिंदी भाषी राज्योंं में कलाकार आते हैं. उनके लिए कला का मतलब धार्मिक भावनाओं का अपमान ही होता है, जबकि ये सही बात नहीं है.

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