वो द्वीप जो आपको समझाएगा लोकतंत्र का सही मतलब, जानें पूरी कहानी
Advertisement
trendingNow1840944

वो द्वीप जो आपको समझाएगा लोकतंत्र का सही मतलब, जानें पूरी कहानी

अगर तिरंगे के गौरव और उसकी गरिमा को कुछ मुट्ठीभर लोग चोट पहुंचाने की कोशिश करते हैं, तो फिर हमारा देश आज कहां खड़ा है? ये सारे सवाल आज पूरे भारत को परेशान कर रहे हैं.

वो द्वीप जो आपको समझाएगा लोकतंत्र का सही मतलब, जानें पूरी कहानी

नई दिल्‍ली:  लोकतंत्र पर अब तक आपने दो अलग-अलग विचार देखे. पहला उदाहरण म्‍यांमार का है,  जहां पर डेमोक्रेसी खतरे में है.  दूसरा उदाहरण भारत का है, जहां कुछ लोग अपनी जिद में डेमोक्रेसी को खतरे में डाल रहे हैं.  शायद हम डेमोक्रेसी का सही मतलब ही नहीं समझ पाए हैं. इसलिए हमें जो आजादी मिली उसका हम गलत इस्तेमाल करने लगे और Too Much Democracy हो गया. हम लोकतंत्र के नाम पर अपने ही देश के खिलाफ आंदोलन करने लगते हैं और विरोध के अधिकार के नाम पर हिंसा को भी सही ठहराने लगते हैं. अंग्रेजों के खिलाफ 174 साल तक संघर्ष करके जो अधिकार पाए उनके साथ हमें कुछ कर्तव्य भी मिले पर हमने उन्हें भुला दिया. आपको इस आजादी और लोकतंत्र का मूल्य समझाने के लिए हमने अंडमान निकोबार द्वीप समूह से एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. इसे पढ़िए और सोचिए कि कहीं हम गलत रास्ते पर तो नहीं हैं?

राष्ट्रीय ध्वज के समानांतर कोई दूसरा झंडा हो सकता है?

क्या भारत में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के समानांतर कोई दूसरा झंडा हो सकता है या फिर फहराया जा सकता है? भारत आज़ादी के 73 वर्षों के बाद इसी सवाल के मुहाने पर खड़ा है. जरा सोच कर देखिए अगर तिरंगे के गौरव और उसकी गरिमा को कुछ मुट्ठीभर लोग चोट पहुंचाने की कोशिश करते हैं, तो फिर हमारा देश आज कहां खड़ा है? ये सारे सवाल आज पूरे भारत को परेशान कर रहे हैं. लेकिन सोचिए इस तिरंगे के लिए हमारे देश के महानायकों ने कितनी यातनाएं झेलीं. कैसे अत्याचार और अन्याय को अपने विचारों की रीढ़ बना लिया, लेकिन कभी झुके नहीं. ऐसे ही एक महानायक थे, सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने तिरंगे के आगे झुकने का महत्व वर्ष 1943 में ही पूरी दुनिया को समझा दिया और आज हम आपको उसी कहानी के बारे में बताना चाहते हैं. 

पहली बार इस द्वीप पर फहराया गया था तिरंगा

अंडमान का पोर्ट ब्लेयर द्वीप,  जो भारत का पहला ऐसा भू भाग बना. जहां 30 दिसंबर 1943 को राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया.  इस अध्याय के एक एक गौरवमयी पन्ने को आज एक बार फिर समझना जरूरी है.  अंडमान का पोर्ट ब्लेयर द्वीप,  आजाद भारत का पहला भू भाग बना लेकिन साथ ही इस क्रम में ये जानना भी जरूरी है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेंजों से सीधी टक्कर लेने वाले महानायकों को इसके लिए कितनी यातनाएं झेलनी पड़ीं

यहां की जेल में स्वतंत्रता सेनानियों में से एक वीर सावरकर की कुछ पंक्तियां मुख्य प्रवेश द्वार पर ही अंकित हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके बलिदान को कभी भूले नहीं. 

आज आपको ये भी समझना चाहिए कि तिरंगे के सम्मान के लिए हमारे महानायकों ने क्या कुछ सहा. 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें 

उस दौर में ब्रिटिश नेविगेटर रोस के नाम पर जिस आइलैंड का नाम रोस आइलैंड रखा गया था, आज वो नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप के नाम से जाना जाता है. इस द्वीप पर अंग्रेजी हुकुमत के दौर के निशान आज भी मौजूद हैं और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से भी इस द्वीप की कई यादें जुड़ी हैं.

भारत को स्वतंत्र करने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था और इस संघर्ष का बर्मा से भी विशेष संबंध है.  वर्ष 1944 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने बर्मा में ही अपना सबसे प्रसिद्ध नारा दिया था. ये नारा था - तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा. इस नारे ने भारतीयों को ब्रिटिश राज के खिलाफ एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस समय जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन हुआ था और बर्मा में ही इस फौज को ट्रेनिंग मिली थी. 

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news