DNA ANALYSIS: TRP रेस से सिर्फ जनता का 'घाटा', कैसे मिलेगा फिक्सिंग का समाधान?
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DNA ANALYSIS: TRP रेस से सिर्फ जनता का 'घाटा', कैसे मिलेगा फिक्सिंग का समाधान?

हर हफ्ते गुरुवार के दिन TRP यानी Television Rating Point जारी करने वाली संस्था BARC यानी Broadcast Audience Research Council ने गुरुवार को ये घोषणा की है कि अगले 8 से 12 हफ्तों तक अलग-अलग News Channels की TRP के आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे. 

DNA ANALYSIS: TRP रेस से सिर्फ जनता का 'घाटा', कैसे मिलेगा फिक्सिंग का समाधान?

नई दिल्ली: कोरोना वायरस (coronavirus) की वजह से भारत में आज से 9 महीने पहले लॉकडाउन (Lockdown) लगाया गया था. एक क्षेत्र ऐसा है, जहां आज से लॉकडाउन की घोषणा हो गई है. ये क्षेत्र है न्यूज़ चैनलों की TRP का, जिस पर कब्जे की लड़ाई ने पत्रकारिता के स्तर को बहुत गिरा दिया है.  इसने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर ऐसी दीमक लगा दी है. जिससे छुटकारा पाने के लिए अगले 8 से 12 हफ्तों तक न्यूज़ चैनलों का TRP का आंकड़ा नहीं होगा. इसे आप मीडिया को स्वच्छ करने का अभियान या TRP का पेस्ट कंट्रोल भी कह सकते हैं .

  1. BARC अगले 12 हफ्ते तक TRP जारी नहीं करेगा
  2. TRP मापने के तरीकों का रिव्यू करेगा BARC
  3. नंबर वन के दावों के शोर से मिलेगी मुक्ति

BARC अगले 12 हफ्ते तक TRP जारी नहीं करेगा
हर हफ्ते गुरुवार के दिन TRP यानी Television Rating Point जारी करने वाली संस्था BARC यानी Broadcast Audience Research Council ने गुरुवार को ये घोषणा की है कि अगले 8 से 12 हफ्तों तक अलग-अलग न्यूज़ चैनलों की TRP के आंकड़े जारी नहीं किए जाएंगे. इनमें हिंदी, इंग्लिश, बिजनेस और क्षेत्रीय भाषाओं के सभी न्यूज़ चैनल शामिल होंगे.

TRP मापने के तरीकों का रिव्यू करेगा BARC
BARC का कहना है कि इस दौरान उसकी टेक्निकल कमेटी TRP मापने के मौजूदा मापदंडों को रिव्यू करेगी और जिन घरों में TRP मापने वाले मीटर लगे हैं, वहां हो रही किसी भी तरह की छेड़छाड़ को रोकने की कोशिश की जाएगी. यानी कुछ न्यूज़ चैनलों ओर से किए गए कथित TRP घोटाले को ध्यान में रखते हुए TRP को आने वाले दो से तीन महीनों के लिए रोक दिया गया है.

नंबर वन के दावों के शोर से मिलेगी मुक्ति
 ये ठीक वैसा ही है जैसे 9 महीने पहले कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश की गतिविधियों को रोक दिया गया था. अब  न्यूज़ चैनलों की TRP की गतिविधियों को रोक कर मीडिया को एक खतरनाक 
संक्रमण से रोकने की कोशिश की जा रही है. यानी अब आपको आने वाले कई हफ्तों तक अलग अलग चैनलों द्वारा खुद को नंबर वन साबित करने वाले दावे रिपीट मोड पर नहीं सुनने होंगे.

न्यूज देखने वालों के प्रतिशत की दी जाती रहेगी जानकारी
इस बीच भारत में न्यूज़ चैनलों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था न्यूज़ ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन ने BARC के इस फैसला का स्वागत किया है और कहा है कि इस दौरान BARC को अपनी व्यवस्थाओं को सुधारने का मौका मिलेगा और BARC की विश्वसनीयता वापस लौट पाएगी. हालांकि इस दौरान BARC द्वारा न्यूज़ चैनलों को ये जरूर बताया जाएगा कि एक विशेष हफ्ते में कितने दर्शकों ने न्यूज़ देखी. इस फैसले का सबसे ज्यादा असर उन न्यूज़ चैनलों पर पड़ेगा. जिनके नाम TRP घोटाले में आए हैं. क्योंकि अब अगले दो से तीन हफ्तों तक एडवर्टाइजर्स उन न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन देने से बचेंगे, जिनके नाम इस घोटाले में आए हैं.

लेकिन अब सवाल ये है कि क्या सिर्फ TRP के आंकड़े  रोक देने से सब कुछ ठीक हो जाएगा ? क्या न्यूज़ चैनल इसे सुधार के मौके की तरह देखेंगे और पत्रकारिता के गिरते स्तर को रोकने की कोशिश करेंगे. या फिर 2 से तीन हफ्तों के बाद सबकुछ पहले जैसा ही हो जाएगा? क्या न्यूज़ चैनल एक बार फिर चीखने चिल्लाने, और नाचने गाने वाली पत्रकारिता की तरफ लौट जाएंगे ? ये तीन महीने सिर्फ मीडिया के लिए ही नहीं बल्कि दर्शकों के तौर पर आपके लिए भी आत्म-विश्लेषण का अवसर लेकर आए हैं. इस दौरान उन्हें खुद ये तय करना होगा कि आप किस प्रकार की पत्रकारिता देखना चाहते हैं, आप विश्नसनीयता के पैमानों पर किसी न्यूज़ चैनल का आंकलन करना चाहते हैं या फिर इस आधार पर कि वो बिना किसी जांच पड़ताल के कितनी फेक न्यूज़ चलाता है और आपको इस तरह की फेक न्यूज़ देखने में कितना मजा आता है.

News Channels के लिए आत्म मंथन और आत्म विश्लेषण का समय
गुरुवार से  न्यूज़ चैनलों की दुनिया में एक बहुत बड़ी क्रांति की शुरुआत हुई है. अगले तीन महीनों तक कोई चैनल ये नहीं कह पाएगा कि वो नंबर वन है. अब से पहले लगभग हर चैनल ये कहता रहा है कि वो नंबर वन है. नंबर वन बनने की ये होड़ News Channels को मांसाहारी बना रही थी. इन न्यूज़ चैनलों के मुंह खून लगा चुका था और ये लालच इस हद तक बढ़ चुका था कि अगर चैनलों को किसी की जान भी लेनी पड़ती तो वो ऐसा भी करने के लिए तैयार थे. लेकिन अब दर्शक तीन महीनों तक शांति से न्यूज़ चैनल देख पाएंगे . ये देश भर के न्यूज़ चैनलों के लिए आत्म मंथन और आत्म विश्लेषण का समय है. अब दौर आ गया है कि न्यूज़ चैनल ये समझें कि सफलता का पैमाना TRP नहीं बल्कि दर्शकों का भरोसा है. आज से TRP, Lockdown में चली गई है और News Unlock हो गई है, ये बात सबको समझनी होगी.

मुंबई पुलिस कर रही है TRP घोटाले की जांच
BARC ने न्यूज़ चैनलों की जिस TRP को रोकने का फैसला किया है वो पिछले हफ्ते तब चर्चा में आई, जब देश के दो बड़े न्यूज़ चैनलों पर TRP से छेड़छाड़ करने के आरोप लगे. फिलहाल मुंबई पुलिस ने इस पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है. जो लोग TRP घोटाले की बात को मानने से इनकार कर रहे हैं उनका दावा है कि कुछ घरों में लगे मीटर से छेड़छाड़ करके TRP को इतने बड़े पैमाने पर प्रभावित करना संभव नहीं हैं. भारत में हर हफ्ते 15 वर्ष से ऊपर के औसतन 20 करोड़ दर्शक हिंदी न्यूज़ चैनल देखते हैं. इस दौरान दर्शक औसतन 47 मिनट तक न्यूज़ देखते हैं. यानि हो सकता है कि किसी चैनल को औसतन 10 मिनट देखा जाता हो, किसी को 15 मिनट तो किसी को डेढ़ घंटा. लेकिन इन सबका औसत सिर्फ 47 मिनट है. इसी तरह इंग्लिश न्यूज़ चैनल देखने वाले दर्शकों की संख्या 1 करोड़ 90 लाख है. ये लोग औसतन सिर्फ साढ़े 9 मिनट न्यूज़ देखते हैं.

मनोरंजन चैनल के दर्शकों की संख्या 34 करोड़
लेकिन इसके मुकाबले GEC यानी हिंदी के General Entertainment Channels के दर्शकों की संख्या 34 करोड़ है. और ये लोग औसतन 2 घंटे इन चैनलों को देखते हैं. यानी General Entertainment Channels की दर्शकों की संख्या ना सिर्फ न्यूज़ देखने वाले दर्शकों से डेढ़ गुना ज्यादा है बल्कि इन पर दर्शकों द्वारा जो समय खर्च किया जाता है वो भी करीब करीब दो गुना है. पिछले दो हफ्तों में IPL मैचों के दौरान Sports Channels देखने वाले दर्शकों की संख्या भी न्यूज़ चैनल देखने वालों से कहीं ज्यादा है. पिछले दो हफ्तों में करीब 21 करोड़ लोगों ने Sports Channels देखे हैं और इन पर औसतन 76 मिनट खर्च किए हैं. यानी मार्केट के नजरिए से न्यूज़ चैनलों की हिस्सेदारी बहुत छोटी है. फिर भी इस पर कब्जे को लेकर न्यूज़ चैनलों सभी दायरों के बाहर चले जाते हैं और नतीजे में दर्शकों को सच्ची नहीं बल्कि सिर्फ सनसनीखेज़ खबरें दिखाई जाती हैं.

TRP से सीधा जुड़ा हुआ है विज्ञापन का कारोबार
विज्ञापन देने वाली कंपनियां आपको घड़ी से लेकर गाड़ी तक TRP के आधार पर बेचती हैं. जिस चैनल की जितनी ज्यादा TRP होती है उसे उतने ही महंगे विज्ञापन मिलते हैं. लेकिन अब News Channels के लिए Rating के आकड़े जारी नहीं होने से Advertisers, न्यूज़ चैनलों के पिछले कुछ हफ्तों के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें विज्ञापन देंगे. इससे उन चैनलों को काफी नुकसान होगा, जिनके नाम TRP घोटाले में आए हैं.

टीवी की दुनिया में न्यूज चैनलों की हिस्सेदारी काफी कम
ये आंकड़े देखकर आप समझ गए होंगे कि टेली​​विजन की दुनिया में न्यूज़ चैनल की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा नहीं है. देश भर में 44 हज़ार घरों में TRP को मापने वाले मीटर लगे हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक दिन भर में औसतन ज्यादा से ज्यादा साढ़े तीन या 4 हज़ार मीटर्स पर ही हिंदी न्यूज़ रिकॉर्ड होती है. यानी सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही हिंदी न्यूज़ चैनल देखते हैं. अब इन साढ़े तीन या चार हज़ार घरों में से करीब 50 घरों को भी प्रभावित कर लिया जाए और इन घरों के लोगों को एक विशेष न्यूज़ चैनल 4 से 5 घंटे देखने के लिए कह दिया जाए तो उस चैनल की TRP 6 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. 

जुगाड़ से TRP बढ़वाने का खेल
उदाहरण के लिए मान लीजिए कि नंबर वन बनने का मुकाबला चैनल A और चैनल B के बीच है. मान लीजिए कि इस हफ्ते चैनल A की TRP 17 प्रतिशत है, यानी हिंदी न्यूज़ देखने वाले 17 प्रतिशत लोग चैनल A को देखते है, जबकि चैनल B की TRP 14 प्रतिशत है यानी चैनल A और B के बीच 3 प्रतिशत का फासला है. अब अगर चैनल B ने 50 घरों को भी प्रभावित कर दिया तो उसकी TRP 14 से बढ़कर 20 हो जाएगी. हो सकता है कि चैनल A की TRP सिर्फ 1 या दो प्रतिशत ही बढ़े. ऐसे में चैनल B TRP से छेड़छाड़ करके नंबर वन हो जागा.

क्या सच्ची खबरें दिखाने से चैनलों की बढ़ सकती है TRP
अब यहां एक सवाल ये है कि अगर न्यूज़ चैनल खुद में सुधार कर भी लें और आपको सच्ची और साफ सुथरी खबरें दिखाने भी लगें तो क्या न्यूज़ चैनलों को पहले जैसी TRP मिलेगी और क्या TRP मापने के लिए जो व्यवस्था फिलहाल लागू है, क्या वो व्यवस्था पर्याप्त है ? इस समय देश भर के 44 हज़ार घरों में TRP को मापने वाले मीटर लगे हैं.  इन घरों में कुल 1 लाख 80 हज़ार लोग रहते हैं. यानी ये देश की जनसंख्या का सिर्फ 0.1 प्रतिशत है. अब आप सोचिए इतने कम लोग ये कैसे तय कर सकते हैं कि आपको क्या दिखाया जाना चाहिए और क्या नहीं ?

भारत में विज्ञापन का सालाना कारोबार
भारत में जनसंख्या के हिसाब से सबसे छोटी लोकसभा सीटों में से एक है अंडमान और निकोबार. जहां वोटर्स की संख्या सिर्फ ढाई लाख है. अब 1 लाख 80 हज़ार लोगों की पसंद और ना पसंद को अंतिम मान लेना ऐसा ही है..जैसे सिर्फ अंडमान के लोग भारत के लोकसभा चुनाव में वोट डालें और सिर्फ उन्हीं के वोटों को पूरे भारत की पसंद मान लिया जाए. टेलीविजन के विज्ञापनों का सालाना बाज़ार 32 हजार करोड़ रुपये का है. इसे अगर हम उन 1 लाख 80 हजार लोगों के बीच बराबर बांट दें जिनके घर में TRP मापने वाले बैरोमीटर लगे हैं तो हर व्यक्कि के हिस्से 17 लाख 77 हजार, 777 रुपये आएंगे. इस बाज़ार में न्यूज़ चैनल की हिस्सेदारी 3600 करोड़ रुपये है अगर इसे भी इन 1 लाख 80 हज़ार लोगों के बीच बराबर बांट दिया जाए तो सबके हिस्से में दो-दो लाख रुपये आएंगे.

कुछ हजार देकर करोड़ों रुपये कमा डाले
यानी TRP को प्रभावित करने के नाम पर जो लोग 400 या 500 रुपये में बिक जाते हैं उन्हें खुद भी नहीं पता होगा कि वो जो कर रहे हैं उसका कुछ लोग कितना बड़ा फायदा उठा रहे हैं. TRP की ये रेस पत्रकारिता के लिए भस्मासुर साबित हुई है. किसी न्यूज़ चैनल की सफलता का पैमाना TRP को मान लिया गया है. जबकि सच ये है कि जब TRP को मापने की शुरुआत हुई थी तो इसका मकसद दर्शकों के बीच किसी चैनल की लोकप्रियता मापना नहीं था बल्कि ये व्यवस्था Advertisers के लिए की गई थी. दर्शकों का इससे कोई लेना देना ही नहीं था.

देश भर में चल रहे हैं 400 न्यूज चैनल
आज TRP के दम पर ही हर चैनल खुद को नंबर वन साबित करने में जुटा है. न्यूज़ चैनलों के रूप में इस समय पूरे देश में सच के अलग अलग संस्करण बेचने वाली 400 से ज्यादा दुकानें चल रही हैं. टीवी पर जो न्यूज़ दिखाई जाती है उसके विज्ञापन का बाज़ार इस समय 3 हज़ार 640 करोड़ रुपये का है, जबकि TV पर विज्ञापन का कुल बाज़ार 32 हज़ार करोड़ रुपये का है. ये 400 न्यूज़ चैनल विज्ञापन के इसी बाज़ार में अपना हिस्सा ढूंढ रहे हैं. किसे कितनी TRP मिलेगी और किसे कितना विज्ञापन, ये दोनों व्यवस्थाएं समानांतर चल रही हैं और इसी की लडाई ने पत्रकारिता की ये हालत कर दी है. जैसे जैसे TRP बढ़ती है वैसे वैसे चैनलों के पास विज्ञापन के रूप में ज्यादा पैसा आता है और जैसे जैसे TRP घटती है. ये पैसा भी कम होने लगता है.

TRP मापने वाली कंपनी का कर्मचारी करवा सकता है बड़ा घोटाला
भारत में जिन 1 लाख 80 हज़ार लोगों के घरों में TRP मीटर लगे हैं उन घरों का चुनाव 2011 के Census के आधार पर किया गया है. सेंसस के आधार पर ही इन घरों को उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर बांटा गया है.  लेकिन जो लोग हर महीने 400 से 500 रुपये लेकर TRP को प्रभावित करने के लिए तैयार हो जाते हैं. ज़ाहिर है उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती होगी. TRP मीटर्स की देखरेख की जिम्मेदारी जिस संस्था के पास है.अगर उस संस्था का कोई वर्तमान या पूर्व कर्मचारी न्यूज़ चैनलों के साथ मिलिभगत कर ले तो वो कई घरों को प्रभावित कर सकता है.  जिस TRP घोटाले की वजह से न्यूज़ चैनलों की रेटिंग पर प्रतिबंध लगाया गया है उसकी शुरुआती जांच में भी ऐसी ही मिलीभगत की बात सामने आई है.

सेट टॉप बॉक्स में चिप लगाकर जांची जा सकती है वास्तविक TRP
इसलिए अब सवाल ये है कि इस समस्या का समाधान क्या है. भारत में इस समय करीब 25 करोड़ घर हैं जिनके पास टेलिविजन है. इनमें से 5 करोड़ घरों के पास प्राइवेट DTH यानी Direct To Home की सुविधा हैं. 4 करोड़ घर DD Free Dish के माध्यम से टेलीविजन देखते हैं यानी कुल मिलाकर भारत में 9 करोड़ परिवारों के पास DTH हैं. अब एक समाधान ये है कि इन सभी DTH वाले घरों के Set Top Box में कोई ऐसी चिप लगा दी जाए, जो ये रिकॉर्ड कर ले कि किसी घर में कौन सा चैनल कितनी देर देखा जा रहा है. इससे TRP के आंकड़ों का सैंपल साइज़ बड़ा हो जाएगा. 

इसमें एक बाधा ये है कि ये सभी DTH, One Way Technology पर आधारित है. यानी इन सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डाउन लिंक तो संभव है. लेकिन आप अपना डेटा बाहर नहीं भेज सकते. अगर इस टेक्नोलॉजी को बदला जाएगा तो इस पर बहुत खर्च आएगा और ये खर्च या तो ब्रॉडकास्टर्स को उठाना होगा या फिर एडवर्टाइजर्स को. हमारे देश में सुधार के नाम पर खर्च करने की आदत ज्यादा लोगों की नहीं होती. इसलिए हो सकता है 12 हफ्तों के बाद भी इस व्यवस्था को पूरी तरह से बदलना संभव ना हो.

अगले 84 दिनों तक सभी न्यूज़ चैनल के पास अब एक बहुत बड़ा अवसर है कि वो कैसी जानकारी अपने दर्शकों तक पहुंचाना चाहते हैं. किसी भी न्यूज़ चैनल का उद्देश्य आप तक जरूरी सूचनाएं पहुंचाना होना चाहिए और इसका आधार मन मर्जी की खबरों नहीं बल्कि रिसर्च, तथ्यों और ग्राउं​ड रिपोर्टिंग पर आधारित होनी चाहिए.  यही पत्रकारिता का सच्चा धर्म है.

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