Benefits of Cycling: रोजाना साइकिल चलाने वालों को दिल से जुड़ी बीमारियां नहीं होती हैं. रोजाना अगर आप साइकिल चलाते हैं तो आपका मेटाबॉलिज्म भी बेहतर रहता है.
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नई दिल्ली: आज हम आपको ये बताएंगे कि कैसे साइकिल पर पेडल मारने से आपकी सेहत रास्ते पर आ सकती है. श्रीमद भगवत गीता में जीवन चक्र यानी Life Cycle के विषय में बताया गया है. इसमें कहा गया है कि जिसने जन्म लिया है,उसकी मृत्यु निश्चित है, लेकिन मृत्यु भी अंत नहीं है, बल्कि ये नए जीवन चक्र यानि Life Cycle की शुरुआत है.
मतलब ये है कि जीवन को दुखी होकर जीना है या खुश रहकर, ये आप पर निर्भर करता है क्योंकि, जीवन चक्र तो चलता ही रहेगा, ये आपके ऊपर है कि आप किस तरह से उसका हिस्सा बनना चाहते हैं. एक साधारण सी साइकिल भी हमें यही सीख देती है.
एक साइकिल में कई हिस्से होते हैं जैसे दो टायर, हैंडल, पैडल, सीट और कैरियर साइकिल के दो पहिए जीवन चक्र हैं, जिसको चलाए रखना हमारी जिम्मेदारी है.
-पैडल इस जीवन को चलाने वाली शक्ति का स्रोत हैं. पैडल जब तक चलते रहेंगे साइकिल के पहिए चलते रहेंगे.
-हैंडल जीवन की सही दिशा है. इसको हमेशा थामे रखना है ताकि हम लड़खड़ाएं नहीं.
-सीट हमें सिखाती है कि अपनी जगह पर मजबूती से डटे रहना हैं. हार नहीं मानना है.
-कैरियर वो पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं, जिसको हमें अपने कंधों पर उठाना है ताकि हमारा परिवार भी हमारे साथ आगे बढ़ सके.
एक साइकिल से आप संघर्ष करने की कला सीख ले सकते हैं. साइकिल हमें सिखाती है कि अगर आपको अपनी मंजिल तक पहुंचना है तो खुद को गतिशील बनाए रखना होगा. सही दिशा में चलना होगा और लगातार चलते रहना होगा.
हम आज आपको साइकिल का पूरा इतिहास बताएंगे. आज आपके पास जो साइकिल है, उसमें पैडल और ब्रेक हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि विश्व की पहली साइकिल में न पैडल थे न ही ब्रेक था.
साइकिल का इतिहास लगभग 203 वर्ष पुराना है. साइकिल का आविष्कार जिस दौर में हुआ, उस दौर में घोड़े या घोड़ा गाड़ी ही यातायात के साधन थे, लेकिन घोड़ों की सेहत, उनकी उम्र और उनके खान-पान पर बहुत ध्यान देना पड़ता था. यानी ये खर्चीला था और हर किसी के बस की बात नहीं थी.
12 जून वर्ष 1817 में जर्मनी के कार्ल वॉन ड्रेज ने पहली बार अपने आविष्कार को दुनिया के सामने रखा था.उन्होंने इसको नाम दिया था ड्रेज़िएन. इस आविष्कार को बाद में लॉफ मशीन, रनिंग मशीन और वेलोसिपीड भी कहा गया. उस साइकिल को ये कहकर परिभाषित किया गया था कि ये एक ऐसी मशीन है जिसमें दो पहिए हैं और ये बिना घोड़ों की मदद से चलाई जा सकती है.
कार्ल वॉन ने उस वक्त अपनी बिना पैडल वाली साइकिल से 8-9 मील की दूरी तय की थी. इसमें दो पहिए तो थे, लेकिन इसे चलाने वाले इंसान को अपने पैरों से इसे ढकेलना होता था, जब साइकिल गति पकड़ती थी तो पैरों को आगे वाले पहिए के किनारों पर टिकाना होता था. इस साइकिल में बैठने के लिए सीट की व्यवस्था भी थी.
सोचिए, उस दौर में साइकिल चलाना कितना खतरनाक काम था क्योंकि, साइकिल में ब्रेक नहीं हुआ करते थे. लेकिन तब भी लोगों को इसमें भविष्य नजर आया और धीरे-धीरे इस आविष्कार के डिजाइन में बदलाव होने शुरू हो गए.
वर्ष 1869 में जो साइकिल आई उसमें पैडल थे, लेकिन उसके डिजाइन में बड़े बदलाव किए गए थे. उस वक्त तक साइकिल की चेन का आविष्कार नहीं हुआ था, इसलिए जो पैडल बनाए गए थे वो अगले पहिए में लगाए गए थे, जिसको लंबी रॉड के जरिए पिछले पहिए से जोड़ा गया था. इस साइकिल को Two Wheel Velocipede कहा जाता था, इस साइकिल में पिछला पहिए आगे वाले पहिए से काफी बड़ा था.
इसके बाद वर्ष 1860 में भी पैडल वाली साइकिल बनाई गई, इस साइकिल के पहियों को लगभग समान रखा गया. इसको पैडल बाइकिल कहा गया. इस साइकिल में भी चेन या ब्रेक की व्यवस्था नहीं थी.
इसके बाद वर्ष 1870 में High Wheel Bicycle आई. इस साइकिल का अगला पहिया पिछले से काफी बड़ा था, इसमें भी बिना चेन वाला पैडल लगाया गया था.
वर्ष 1890 में पहली बार चेन वाली साइकिल बनाई गई. इस साइकिल में पैडल की व्यवस्था दोनों पहियों के बीच में दी गई और उसको चेन के जरिए पिछले पहिए से जोड़ा गया. पैडल चलाने पर चेन के जरिए पिछला पहिया घूमता था. इस साइकिल को तब Safety bicycle कहा गया. दरअसल, ये वो पहली साइकिल जिसमें ब्रेक की भी व्यवस्था थी.
इसके बाद वर्ष 1960 में रेसिंग बाइक बनाई गई. इस साइकिल को तेज गति से भागने के लिए तैयार डिजायन किया गया था। इस साइकिल में भी ब्रेक दिए गए थे.
इसके बाद वर्ष 1970 में गियर वाली साइकिल आई। इनको तब माउंटेन बाइक कहा गया. दरअसल, पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान साधारण साइकिल में ताकत ज्यादा लगानी पड़ती है. इसका ध्यान रखते हुए उसके तैयार किया गया था. गियर की वजह से साइकिल चलाने वालों को चढ़ाई वाली सड़कों पर ज्यादा ताकत नहीं लगाई पड़ती थी.
जिस दौर में साइकिल का आविष्कार हुआ, उसमें दौर में वो एक यातायात का साधन था. समय के साथ फ्यूल पर चलने वाले दूसरे कई साधनों का आविष्कार हुआ. इसके बावजूद साइकिल का अस्तित्व नहीं मिटा. आज के दौर में साइकिल न सिर्फ यातायात का साधन है, बल्कि इस दौर की जरूरत भी है. चलिए हम आपको साइकिल चलाने के 5 फायदे बताते हैं:
पहला फायदा ये है कि साइकिल चलाना एक संपूर्ण व्यायाम है जो पूरे शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है. यानी बीमारियां दूर रहेंगी.
दूसरा फायदा ये है कि साइकिल चलते वक्त धुंआं नहीं छोड़ती क्योंकि, इसमें इंजन नहीं होता है. यानी प्रदूषण मुक्त यातायात का साधन है. पर्यावरण को इससे कोई नुकसान नहीं.
तीसरा फायदा ये है कि साइकिल चलते वक्त आवाज नहीं करती है, इसलिए ध्वनि प्रदूषण नहीं होता है.
चौथा फायदा ये है कि साइकिल को पेट्रोल डीज़ल की जरूरत नहीं पड़ती है यानी खर्च भी कम.
पांचवां फायदा साइकिल के लिए ऑटो इंश्योरेंस भी नहीं लेना होता है, यानी इंश्योरेंस का खर्चा भी कम हो गया है.
साइकिल को चलाने के लेकर डॉक्टर्स भी लोगों को प्रेरित करते आए हैं. खासकर कोरोना संक्रमण के पिछले एक साल में साइकिल चलाने के लेकर लोगों में जागरूकता भी आई है.
डॉक्टर्स के मुताबिक 1 घंटे साइकिल चलने से 800 कैलोरी तक बर्न की जा सकती है. यानी साइकिल चलाकर फिट रहना आसान है. साइकिल चलाने से शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता भी बढ़ती है. पैरों की मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत होती हैं. साइकिल चलाने से सांस लेने में आ रही समस्याओं से निजात मिलता है. रोजाना साइकिल चलाने वालों को दिल से जुड़ी बीमारियां नहीं होती हैं. रोजाना अगर आप साइकिल चलाते हैं तो आपका मेटाबॉलिज्म भी बेहतर रहता है. साइकिल चलाने से अवसाद और एंजाइटी की समस्या भी दूर होती है.
साइकिल के मामले में जहां तक भारत की बात है तो वर्ष 1960 से लेकर 1990 तक भारत के ज्यादातर परिवारों के पास साइकिलें थीं. फिलहाल दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिलें आज भी चीन की सड़कों पर चलती हैं क्योंकि, वो साइकिल का सबसे बड़ा निर्माता है, इस रेस में भारत दूसरे नंबर पर है. चीन में हर एक घर में साइकिल होती है.
दुनियाभर के देश अपने यहां लोगों को साइकिल चलाने को लेकर प्रेरित कर रहे हैं. इसमें फ्रांस, इंग्लैड और नीदरलैंड सबसे आगे हैं. पिछले साल 29 जुलाई को इंग्लैड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की ये तस्वीरें आई थीं जिसमें वो साइकिल चलाते नजर आए थे. कोरोना संक्रमण काल में उन्होंने लोगों को फिट रहने का संदेश इस तरह से दिया था. दरअसल, इंग्लैड में लोगों में बढ़ रहे मोटापे को लेकर ये एक तरह का जागरूकता अभियान था. बोरिस जॉनसन की ये साइकिल मेड इन इंडिया साइकिल थी, जो हीरो कंपनी ने यूके में ही बनाई थी.
28 जून 2017 की इन तस्वीरों ने भी लोगों को साइकिल चलाने को लेकर प्रेरित किया था. पीएम मोदी को ये साइकिल नीदरलैंड के पीएम Mark Rutte ने गिफ्ट की थी. नीदरलैंड में लोग साइकिल चलाना बहुत पसंद करते हैं. नीदरलैंड की जनसंख्या लगभग 1 करोड़ 60 लाख है और वहां के लोगों के पास 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा साइकिलें हैं.
3 सितंबर 2018 में डेनमार्क से ये तस्वीरें आई थीं जिसमें फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और डेनमार्क के पीएम लार्स लोके साइकिल चलाते नजर आए थे. कोपेनहेगन की गलियों में दोनों ही साइकिल पर सैर करते दिखे थे.
साइकिल पर पेडल मारने से आप अपनी सेहत को रास्ते पर ला सकते हैं और हमेशा एक बात याद रखें कि साइकिल का हैंडल आपको सही दिशा के बारे में बताता है.