2011 के सेंसस के मुताबिक, असम भारत का वो राज्य है जहां मुस्लिम जनसंख्या सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. फिलहाल असम की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की जनसंख्या 34 प्रतिशत है.
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नई दिल्ली: आज हम गायों की सुरक्षा से जुड़े एक ऐसे बिल का विश्लेषण करेंगे, जिसकी वजह से असम में एक बार फिर हिंदू और मुसलमानों के नाम पर राजनीति की दुकानें खुल गई हैं. असम की विधान सभा में पेश किए गए इस बिल के मुताबिक, अब वहां मंदिरों के आसपास के 5 किलोमीटर के इलाके में बीफ बेचना और खरीदना गैर कानूनी हो जाएगा.
अगर ये बिल कानून बन गया तो इसका उल्लंघन करने वाले को 3 से 8 साल तक की जेल की सजा हो सकती है और उन पर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. असम में बीजेपी की सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा हैं. हिमंत बिस्वा सरमा ने ये बिल विधान सभा में पेश किया है. अब विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इस नए कानून के जरिए असम की सरकार मुसलमानों को निशाना बनाएगी.
इसलिए आज हम इस खबर को तीन प्वाइंट्स में आपको समझाएंगे.
पहला ये कि क्या सेकुलरिज्म के नाम पर किसी को भी दूसरों की धार्मिक भावनाएं आहत करने का हक दिया जा सकता है?
दूसरा ये कि किसी धर्म स्थल के पास अगर बीफ या किसी भी प्रकार का मांस बेचने पर प्रतिबंध लगता है तो इससे गलत और सही क्या है?
और तीसरा ये दुनिया के दूसरे देश अपने मूल निवासियों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए क्या-क्या प्रावधान करते हैं?
2011 के सेंसस के मुताबिक, असम भारत का वो राज्य है जहां मुस्लिम जनसंख्या सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. फिलहाल असम की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की जनसंख्या 34 प्रतिशत है. असम के 27 में से 9 जिलों में इस्लाम सबसे बड़ा धर्म बन चुका है.
असम में मुसलमान आबादी तेजी से बढ़ने के लिए बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को भी जिम्मेदार माना जाता है क्योंकि, असम, बांग्लादेश के साथ 263 किलोमीटर लंबा बॉर्डर शेयर करता है और यही वजह है कि असम में पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिमों के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियों का तेजी से उदय हुआ है.
इनमें ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी AIUDF जैसी पार्टियां भी शामिल हैं, जो कांग्रेस के साथ मिलकर इस नए बिल का विरोध कर रही हैं.
नए बिल के मुताबिक, असम में हिंदुओं, जैन और सिखों को धर्म स्थल के आस पास के 5 किलोमीटर इलाके में बीफ की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. इसके अलावा असम में मौजूद सत्र यानी वैष्णव मठों के आस पास भी बीफ की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. सत्र उन मठों को कहते हैं कि जिनकी स्थापना 16वीं शताब्दी के कवि और संत शंकरदेव ने की थी.
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के 2015 के सर्वे के मुताबिक, भारत के 40 प्रतिशत मुसलमान बीफ खाते हैं, जबकि ऐसा करने वाले ईसाइयों की संख्या 26 प्रतिशत और बीफ खाने वाले हिंदुओं की संख्या 2 प्रतिशत है. वैसे एक सच ये भी है पूरे भारत में बीफ खाने वाले हिंदुओं की संख्या तेजी से कम हो रही है, जबकि असम अकेला एक ऐसा राज्य है, जहां बीफ खाने वाले हिंदुओं की संख्या तेजी से बढ़ी है.
फिर भी अगर इस आंकड़े को आधार मान लिया जाए, तो असम के 34 प्रतिशत मुसलमानों को ये सोचना चाहिए कि क्या वो 61 प्रतिशत हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए मंदिरों के आस पास बीफ पर लगने वाले कानूनी प्रतिबंध से सहमत नहीं हो सकते? और क्या सेकुलरिज्म के नाम पर एक धर्म को संरक्षण और दूसरे धर्म की भावनाएं आहत करने का हक राजनेताओं को दिया जा सकता है?
अब दूसरे प्वाइंट पर आते हैं और ये समझते हैं कि किसी धर्म स्थल के पास अगर बीफ या किसी भी प्रकार का मांस बेचने पर प्रतिबंध लगता है तो आखिर इसमें गलत क्या है?
मैं आपके साथ अपना एक अनुभव शेयर करना चाहता हूं. कुछ समय पहले रमज़ान के महीने में मैं दुबई गया था. जब मेरा प्लेन दुबई के एयरपोर्ट पर लैंड होने वाला था, तब पायलट ने अनाउंसमेंट की, जिसमें कहा गया कि ये रमज़ान का पवित्र महीना है. इसलिए आप किसी भी सार्वजनिक जगह पर खाना खाने से बचें क्योंकि, इससे स्थानीय लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं. अब आप कल्पना कीजिए कि क्या नवरात्रि के दौरान दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों के एयरपोर्ट्स पर उतरने वाले किसी विमान में ऐसी घोषणा संभव है?
दुबई अरब के उन शहरों में से एक है जिसे सबसे ज्यादा लिबरल माना जाता है, लेकिन वहां भी जब बात एक विशेष धर्म के लोगों की भावनाओं के सम्मान की आती है, तो बाहर से आने वाले पर्यटकों पर कड़े नियम कानून लागू कर दिए जाते हैं.
असम की सरकार का इरादा बीफ पर बैन लगाने का नहीं है. बस धार्मिक स्थलों के पास इसकी खरीद और बिक्री को रोकना है. सेकुलरिज्म के तहत सबको अपने धर्म का पालन अपने तरीके से करने की आज़ादी है, लेकिन इसकी आड़ में दूसरों की भावनाएं आहत करना सही नहीं है. अगर मंदिर और गुरुद्वारे के पास बीफ या कोई दूसरा मांस न बिके और मस्जिदों के पास पोर्क न बिकें तो इसे ही सही मायनों में सर्व धर्म सम्भाव माना जाना चाहिए.
तीसरे प्वाइंट के तहत आपको ये जानना चाहिए कि दुनिया के दूसरे देश अपने मूल निवासियों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए क्या-क्या प्रावधान करते हैं.
दुबई का उदाहरण हम आपको दे ही चुके हैं. इसके अलावा पाकिस्तान समेत कई इस्लामिक देशों में पोर्क खरीदना, बेचना और खाना गैर कानूनी है. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में हॉर्स मीट खाने वालों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. अमेरिका के कई राज्यों में तो हॉर्स मीट पर पूरी तरह प्रतिबंध है. एक मजेदार तथ्य ये है कि सिंगापुर में च्यूइंग गम खाने पर भी प्रतिबंध है. साफ-सफाई को ध्यान में रखते हुए सिंगापुर में च्यूइंग गम पर ये रोक वर्ष 1994 में लगाई गई थी, आज अगर सिंगापुर में किसी को दांतों की एक्सरसाइज के लिए च्यूइंग गम खानी होती है तो उसे ये बात डॉक्टर से लिखवानी पड़ती है.
वैसे तो कोई च्यूइंग गम जब आप बहुत देर तक चबा लेते हैं तो उसकी मिठास और उसका स्वाद खत्म हो जाता है, लेकिन हमारे देश में राजनेताओं ने धर्म और सेकुलरिज्म को एक ऐसी च्यूइंग गम में बदल दिया है, जिसे 70 वर्षों से चबाया जा रहा है. लेकिन राजनेताओं की जुबान से इसका स्वाद है कि जाता ही नहीं है.