DNA ANALYSIS: ताइवान से 'साक्षात्कार' पर क्यों आहत हुआ चीन?
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DNA ANALYSIS: ताइवान से 'साक्षात्कार' पर क्यों आहत हुआ चीन?

ताइवान की सरकार का तो मानना है कि ताइवान ही असली चीन है जिसका असली नाम है, रिपब्लिक ऑफ चीन (Repubic Of China) है और जिस चीन को पूरी दुनिया में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन (People's Republic Of China) के नाम से जाना जाता है और जहां कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, वो एक नकली देश है. 

DNA ANALYSIS: ताइवान से 'साक्षात्कार' पर क्यों आहत हुआ चीन?

नई दिल्ली: आज हम आपको बताएंगे कि ताइवान का नाम सुनकर चीन इतना चिढ़ क्यों जाता है. ताइवान भारत से 4 हजार किलोमीटर दूर स्थित पूर्वी एशिया का एक छोटा सा देश है, जिसे चीन अपना हिस्सा मानता है. लेकिन ताइवान के लोग ऐसा नहीं मानते, बल्कि ताइवान की सरकार का तो मानना है कि ताइवान ही असली चीन है जिसका असली नाम है, रिपब्लिक ऑफ चीन (Repubic Of China) है और जिस चीन को पूरी दुनिया में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन (People's Republic Of China) के नाम से जाना जाता है और जहां कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है, वो एक नकली देश है. इसलिए आज हम ये समझने की कोशिश करेंगे कि क्या चीन में बनने वाले नकली सामान की तरह चीन का अस्तित्व भी पूरी तरह नकली है?

इस महीने की 21 तारीख को हमारे अंतरराष्ट्रीय सहयोगी चैनल WION ने ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू  (Joseph Wu) का एक इंटरव्यू किया था. जिसमें ताइवान के विदेश मंत्री ने चीन के अत्याचारों और उसके खतरनाक इरादों पर खुलकर बात की थी. लेकिन चीन को ये इंटरव्यू बिल्कुल पसंद नहीं आया और चीन इस बात से चिढ़ गया कि WION ने ताइवान के विदेश मंत्री को मंच क्यों दिया और उन्हें ताइवान का विदेश मंत्री कहकर क्यों बुलाया, क्योंकि चीन मानता है कि वन चाइना पॉलिसी (One china policy)  के तहत  ताइवान कोई अलग देश नहीं है और एक न एक दिन ताइवान को चीन में मिला लिया जाएगा. लेकिन चीन को WION पर ताइवान के विदेश मंत्री का ये इंटरव्यू इतना नागवार गुजरा कि भारत में चीन के दूतावास को चिट्ठी लिखकर हमारे सहयगी अंतरराष्ट्रीय चैनल का विरोध करना पड़ा.

चीन का कहना है कि 21 तारीख को WION ने ताइवान के फॉरेन रिलेशंस डिपार्टमेंट के हेड जोसेफ वू (Joseph Wu) का जो इंटरव्यू किया था वो वन चाइना पॉलिसी के खिलाफ है और चीन WION द्वारा ताइवान की अलगाववादी गतिविधियों को मंच देने का सख्त विरोध करता है. आप गौर कीजिएगा कि चीन, ताइवान के विदेश मंत्री को अलगाववादी कह रहा है, जबकि ताइवान एक लोकतांत्रिक देश है और वहां अपने नेताओं और प्रतिनिधियों का चुनाव वहां की जनता करती है, जबकि चीन के लोगों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है.

इस चिट्ठी में चीन ने ताइवान को अपना हिस्सा साबित करने के लिए कई तर्क दिए हैं और बार-बार ये साबित करने की कोशिश की है कि वो ताइवान को अलग देश मानने वालों से खुश नहीं है. 

हालांकि चीन को खुश करना हमारा कर्तव्य है भी नहीं और हमें इस बात की खुशी है कि हमारी पत्रकारिता की वजह से चीन आज इतना चिढ़ गया है कि उसे चिट्ठी लिखकर हमारा विरोध करना पड़ा है.

ताइवान पर चीन के दावे की सच्चाई क्या है?
ताइवान पर चीन के दावे की सच्चाई क्या है और ताइवान को लेकर चीन कैसे पिछले 70 वर्षों से दुनिया से झूठ बोल रहा है ये हम आपको बताएंगे.

ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू (Joseph Wu) ने इस इंटरव्यू के दौरान कई बार इस बात को जोर देकर कहा कि ताइवान एक अलग देश है और चीन ताइवान पर सैन्य कार्रवाई करके उसे मेन लैंड चीन में मिलाना चाहता है. लेकिन यहां हम चीन से एक सवाल पूछना चाहते हैं और हमारा सवाल ये है कि अगर वन चाइन पॉलिसी के तहत ताइवान चीन का हिस्सा है तो फिर वन इंडिया पॉलिसी के तहत चीन कश्मीर, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा क्यों नहीं मानता. चीन भारत से एक तरफा उम्मीद क्यों कर रहा है. कुल मिलाकर चीन के दूतावास की ये चिट्ठी चीन के पाखंड से पर्दा उठाती हैं क्योंकि एक तरफ चीन भारत की अखंडता को चोट पहुंचा रहा है और दूसरी तरफ भारत की मीडिया पर ये दबाव बनाया जा रहा है कि वो ताइवान को चीन का हिस्सा मानें.

हमसे चीन की ये नाराजगी कोई नई बात नहीं है चीन न सिर्फ हमें चिट्ठी लिखकर हमारा विरोध कर रहा है, बल्कि कुछ दिनों पहले हमने आपको बताया था कि चीन कैसे हमारी जासूसी भी कर रहा है. चीन भारत में जिन लोगों की जासूसी कर रहा था उस लिस्ट में एक नाम ज़ी न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी का भी था और आज एक बार फिर इस चिट्ठी में उनका नाम लेकर हमें रोकने की कोशिश की जा रही है.

विदेश मंत्रालय ने ट्वीट करके WION की तारीफ की
चीन के दूतावास की इस चिट्ठी के बाद ताइवान की तरफ से भी एक चिट्ठी जारी की गई है और इस चिट्ठी में ताइवान ने चीन के सभी दावों को सिरे से खारिज किया है और कहा है कि ताइवान पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन का हिस्सा नहीं है. ताइवान के विदेश मंत्रालय ने एक ट्वीट करके WION की तारीफ की है और कहा कि चीन भारत में प्रेस की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन हमें खुशी है WION चीन के सामने डट कर खड़ा है.

इतना ही नहीं WION पर दिखाया गया ताइवान के विदेश मंत्री का इंटरव्यू और उस पर चीन की प्रतिक्रिया आज ताइवान के तमाम न्यूज़ चैनल्स पर भी छाई हुई है और ये वहां के सभी न्यूज़ चैनलों की पहली हेडलाइन बनी हुई है.

अब आपको बताते हैं कि चीन और ताइवान का विवाद क्या है और चीन कैसे ताइवान पर कब्जा करके उसे अपना हिस्सा बनाना चाहता है. लेकिन इसकी शुरुआत हमें एक ताजा घटनाक्रम से करनी होगी.

हर साल 10 अक्टूबर को ताइवान अपना नेशनल डे मनाता है, इस दिन दुनिया भर में ताइवान के डिप्लोमेट्स कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं. ऐसा ही एक कार्यक्रम प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटे से देश फिजी में आयोजित किया गया था. लेकिन चीन को ये बात पसंद नहीं आई और चीन के अधिकारियों ने इस कार्यक्रम में बाधा भी पहुंचाई और ताइवान के डिप्लोमेट्स के साथ हिंसा भी की, इस हिंसा में घायल ताइवान के एक डिप्लोमेट को तो अस्पताल में भर्ती भी कराना पड़ा. इसके बाद से ताइवान और चीन का विवाद एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय हेडलाइन बन गया है.

ताइवान के नेशनल से ठीक पहले भारत में चीन के दूतावास ने एक नोट जारी करके कहा था कि भारत का मीडिया ताइवान को अलग देश कहकर ना बुलाए और वन चाइन पॉलिसी का उल्लंघन न करें. लेकिन चीन ये भूल गया कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और तमाम विवादों के बावजूद भारत में अभी मीडिया की आजादी बरकरार है और हमें पत्रकारिता का पाठ चीन नहीं सिखा सकता.

इसलिए आज हम खुलकर चीन के विस्तारवाद की हकीकत बताएंगे और ये भी बताएंगे कि दुनिया चीन के खिलाफ कैसे एकजुट हो सकती है.

तिब्बत की तरह ताइवान भी चीन की दुखती रग
तिब्बत की तरह ताइवान भी चीन की दुखती रग है. चीन इन दोनों देशों को वन चाइना पॉलिसी के तहत अपना हिस्सा मानता है और पूरी दुनिया के ज्यादातर देश भी अब तक वन चाइना पॉलिसी से सहमत रहे हैं लेकिन अब समय बदलने लगा है और दुनिया चीन के इस दावे पर सवाल उठा रही है. क्योंकि चीन बाकी देशों की अखंडता का सम्मान करना अभी तक नहीं सीखा है और भारत के साथ चीन का सीमा विवाद इसी का सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन आज हम भारत की नहीं ताइवान की बात करेंगे.

चीन और ताइवान के विवाद पर अभी दुनिया में तीन तरह के मत हैं. कुछ लोग मानते हैं कि ताइवान चीन का हिस्सा है. कुछ लोग मानते हैं कि चीन ताइवान का हिस्सा है, जबकि कुछ लोग मानते हैं कि चीन एक अलग देश है और ताइवान एक अलग देश है.

ताइवान भारत के पूर्व में स्थित एक छोटा सा देश है जिसकी चीन से दूरी सिर्फ 100 किलोमीटर है. ताइवान का आकार भारत के केरल राज्य के बराबर है. जिसकी जनसंख्या करीब 2 करोड़ 40 लाख है और इसलिए ताइवान का जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा है. भारत में एक वर्ग किलोमीटर इलाके में औसतन 382 लोग रहते हैं, जबकि ताइवान में एक वर्ग किलोमीटर इलाके में 651 लोग रहते हैं. जीडीपी के हिसाब से ताइवान की प्रति आय 18 लाख 42 हजार रुपए हैं जबकि चीन की प्रति व्यक्ति आय 7 लाख रुपए हैं यानी ताइवान के लोग चीन के लोगों के मुकाबले करीब ढाई गुना ज्यादा अमीर हैं.

समृद्धि चीन के लालच की एक बड़ी वजह
इस मामले में ताइवान यूरोप के भी ज्यादातर देशों से बहुत आगे है और ताइवान की यही समृद्धि चीन के लालच की एक बड़ी वजह है. ताइवान में रहने वाले 95 प्रतिशत लोग हान चाइनीज मूल के हैं. चीन में रहने वाले 92 प्रतिशत लोग भी इसी मूल के हैं और यही वजह है कि ताइवान खुद को असली चीन बताता है जबकि चीन का दावा है कि वही असली चीन है और ताइवान उसका सिर्फ एक हिस्सा है.

वर्ष 1683 से 1895 तक ताइवान पर चीन के चिंग वंश का शासन था. 17वीं शताब्दी की शुरुआत में मेन लैंड चीन से बड़ी संख्या में प्रवासी ताइवान पहुंचने लगे, क्योंकि इन लोगों के लिए अलग अलग कारणों से चीन में जीवन बहुत कठिन हो गया था. लेकिन वर्ष 1885 में जापान और चीन के बीच हुए पहले युद्ध में जापान की जीत हुई और चिंग वंश ने ताइवान को जापान को सौंप दिया और कुछ समय के लिए दुनिया ने ताइवान को भुला दिया.

इस दौरान चीन में राजनीतिक उठापटक का दौर शुरू हो गया और इसी दौरान वर्ष 1911 में चीन में सन यात सेन के नेतृत्व में चाइनीज नेशनलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई. इस चाइनीज नेशनलिस्ट पार्टी के तीन उद्देश्य थे. पहला लोकतंत्र, दूसरा अर्थव्यवस्था और तीसरा राष्ट्रवाद. ये उस समय चीन की सबसे बड़ी पार्टी थी और इसमें सभी विचारधाराओं के लोग शामिल थे. इनमें चीन के राष्ट्रवादी और कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता भी शामिल थे. चीन की स्थानीय भाषा में इसे कोमितांग पार्टी कहा जाता था. कोमितांग का अर्थ होता है, राष्ट्रवादी और इसी पार्टी ने चीन का नाम नाम सबसे पहले रिपब्लिक ऑफ चीन रखा था. लेकिन इसी दौरान इस राष्ट्रवादी पार्टी से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अलग हो गई और दोनों एक दूसरे के खिलाफ हो गईं. इसके बाद चीन में राजनीतिक स्थितियां बदलीं और कम्युनिस्ट पार्टी मजबूत होने लगी. इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन माओ जेदोंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों ने चीन के राष्ट्रवादियों को गृहयुद्ध में हरा दिया.

करोड़ों लोगों के साथ धोखा
मोओ जेदोंग से गृह युद्ध हारने के बाद चीन की सेना के एक जनरल जो चीन की राष्ट्रवादी पार्टी के नेता थे, भागकर ताइवान पहुंचे. इस जनरल का नाम था चियांग काई शेक. इस जनरल ने ताइवान में कोमितांग पार्टी की सरकार बनाई और ताइवान पर शासन करने लगे. अब क्योंकि कोमितांग पार्टी ने ही रिपब्लिक ऑफ चीन की स्थापना की थी. इसलिए ताइवान शिफ्ट होने के बाद कोमितांग पार्टी ने ताइवान को रिपब्लिक ऑफ चीन कहना शुरू कर दिया और कहा कि मेन लैंड चीन इसी रिप​ब्लिक ऑफ चीन का हिस्सा है.

इसी दावे से चिढ़कर चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपने देश का नाम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन रख दिया. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि लंबे समय तक दुनिया भी रिपब्लिक ऑफ चीन यानी ताइवान को ही असली चीन मानती थी. यहां तक कि सुरक्षा परिषद में भी रिपब्लिक ऑफ चीन को ही स्थायी सदस्य बनाया गया था न कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन को.

लेकिन 1971 में पाकिस्तानियों की मदद से चीन और अमेरिका के बीच एक समझौता हुआ और चीन ने कम्युनिस्ट पार्टी के शासन वाले पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन को असली चीन मानना शुरू कर दिया. इसके बाद PRC यानी People's Republic Of China को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बना दिया गया. आप कह सकते हैं कि ये ताइवान के करोड़ों लोगों के साथ धोखा था. लेकिन अमेरिका जैसे देशों ने अपने लालच की वजह से ये होने दिया.

हैरानी की बात ये है कि ताइवान के लोग आज अपने देश के पासपोर्ट पर पूरी दुनिया में तो घूम सकते हैं लेकिन वो इस पासपोर्ट को लेकर संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर में दाखिल नहीं हो सकते.

ताइवान में तानाशाही का अंत
एक तथ्य ये भी है कि वर्ष 1987 तक ताइवान में भी तानाशाही थी. 1987 में जब ताइवान के शासक चियांग काई शेक की मृत्यु हुई तो उनके बेटे चियांग चिंग कुओ सत्ता में आए और उन्होंने ताइवान में लोकतंत्र के दरवाजे खोलने शुरू किए. इसके बाद वर्ष 1996 में पहली बार ताइवान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हुए और इन चुनावों में ताइवान की राष्ट्रवादी कोमितांग पार्टी की ही जीत हुई.

कोमितांग पार्टी का मानना रहा है कि पूरे चीन पर ताइवान का अधिकार है. लेकिन आगे चलकर जब ताइवान में विपक्ष मजबूत हुआ तो एक नई पार्टी का उदय हुआ जिसका नाम है, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पाटी यानी DPP. DPP के पास फिलहाल ताइवान की सत्ता है और ताइवान की मौजूदा राष्ट्रपति का नाम है साई इंग वेन. लेकिन कोमितांग और DPP की विचारधारा के बीच एक बुनियादी फर्क ये है कि जहां कोमितांग चीन को अपना हिस्सा मानती है वहीं DPP चीन को एक अलग देश और ताइवान को एक अलग देश मानती है. लेकिन चीन को दोनों ही दावे पसंद नहीं हैं.

दूसरे देशों की अखंडता चीन को पसंद नहीं 
हालांकि दुनिया के कुछ छोटे मोटे देशों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर देश अब पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन को ही असली चीन मानते हैं और ताइवान को चाइनीज ताइपेई कहकर बुलाते हैं. ये वो नाम हैं, जो चीन ने ताइवान को दिया है. भारत भी औपचारिक रूप से ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है और वन चाइना पॉलिसी का सम्मान करता है. लेकिन ऐसा लगता है कि अब वन चाइन पॉलिसी की फिर से समीक्षा करने का समय आ गया है. क्योंकि चीन खुद को तो अखंड चीन के तौर पर दिखाता है. लेकिन उसे दूसरे देशों की अखंडता पसंद नहीं है. चीन कश्मीर के भी कुछ हिस्सों पर दावा करता है और चीन को इस बात पर भी एतराज है कि भारत ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाकर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में क्यों बांटा? चीन अरुणाचल प्रदेश के भी एक बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है. लेकिन जब कोई ताइवान, लद्दाख और हॉन्ग कॉन्ग को चीन का हिस्सा मानने से इनकार करता है तो चीन को बहुत बुरा लग जाता है और चीन आजाद और लोकतांत्रिक देशों की प्रेस को नसीहतें देने लगता है. चीन भूल जाता है कि भारत में प्रेस को पूरी आजादी है और भारत का मीडिया चीन के राष्ट्रपति, शी जिनपिंग के इशारे पर नहीं चलता.

कुल मिलाकर भारत सहित दुनिया के 18 देशों से चीन का सीमा विवाद है. यानी उसके पड़ोसी देश सिर्फ 14 हैं. लेकिन उससे भी ज्यादा देशों के साथ उसका सीमा विवाद है. कुछ समय पहले चीन के सरकारी टीवी चैनल के संपादक ने रूस के एक शहर के चीन का हिस्सा होने का दावा किया था. यानी संभव है कि अगले कुछ दिनों में ऐसे देशों की संख्या और भी ज्यादा हो सकती है जिनके साथ चीन का सीमा विवाद है.

चीन के डिजिटल जासूसी नेटवर्क का खुलासा
कुछ समय पहले भारत में चीन के डिजिटल जासूसी नेटवर्क का खुलासा हुआ था. तब ये खबर आई थी कि चीन, भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत कई बड़े नेताओं और बड़ी हस्तियों का सर्विलांस या जासूसी करवा रहा था. चीन की सरकार और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी एक कंपनी को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी. कुल मिलाकर लगभग 10 हजार भारतीयों की जासूसी ये कंपनी अब तक कर चुकी थी. किसी भी देश को जिन पदों पर बैठे लोग चला रहे होते हैं, उन सभी की खुफिया निगरानी की जा रही थी. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा इस सूची कई बड़े नेताओं, सैनिक अधिकारियों, वैज्ञानिकों, संपादकों और दूसरे महत्वपूर्ण लोगों के नाम हैं.

चीन जिन भारतीयों की जासूसी करवा रहा था उनमें एक नाम ज़ी न्यूज़ के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी का भी है. ज़ी न्यूज़ पर हम लगातार ऐसी खबरें दिखाते रहे हैं, जिनसे चीन को समस्या हो सकती है. हमने हमेशा चीन के प्रॉपेगेंडा के खिलाफ एक साफ स्टैंड लिया है. चीन को यही बात चुभती है. ज़ी न्यूज़ पर पिछले महीने हमने मेड इन इंडिया (Made In India)  मुहिम चलाई थी. जिसमें हमने दर्शकों से मिस्ड कॉल मंगाए थे. एक करोड़ से अधिक दर्शकों ने मिस्ड कॉल करके हमारी मुहिम को समर्थन दिया था. ज़ी न्यूज़ दुनिया के कई देशों में देखा जाता है. एक ओपिनियन मेकर के तौर पर हम हमेशा वो खबरें दिखाते हैं जिनमें भारत का हित हो.

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