देश में आज से 18 साल से ऊपर वालों के लिए कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हो जाएगा. हालांकि देश के कई राज्यों में युवाओं को इसके लिए इंतजार करना होगा.
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नई दिल्ली: आपको याद होगा, पिछले दिनों हमने आपको मृत्यु और मोक्ष की वेटिंग लिस्ट के बारे में बताया था. आज हम आपको वैक्सीन (Corona Vaccine) की वेटिंग लिस्ट के बारे में बताएंगे.
ये भी एक कतार ही है, जिसमें अब तक देश के लगभग ढाई करोड़ लोग लग चुके हैं. यानी ये 18 से 44 वर्ष तक की उम्र के वो लोग हैं, जिन्होंने 28 अप्रैल के बाद वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. ये संख्या हर घंटे के साथ बढ़ रही है. बड़ी बात ये है कि इनमें से अब तक किसी भी व्यक्ति को वैक्सीन लगवाने की तारीख़ नहीं मिली है. इसलिए हम इसे वैक्सीन की वेटिंग लिस्ट कह रहे हैं.
अब सवाल है कि रजिस्ट्रेशन तो हो गया लेकिन आपको वैक्सीन (Corona Vaccine) कब मिलेगी? इसी का पूरा हिसाब किताब आज हम आपको सरल भाषा में देंगे. उससे पहले आप ये जान लीजिए कि किन किन राज्यों में आज से 18 साल से ऊपर के लोगों के वैक्सीन नहीं लगेगी.
इनमें सबसे पहला राज्य है महाराष्ट्र. महाराष्ट्र सरकार के मुताबिक़ Covishield बनाने वाली कम्पनी Serum Institute Of India ने उससे 15 मई तक का समय मांगा है. यानी महाराष्ट्र सरकार की मानें तो वहां 15 मई से पहले राज्य सरकार को कंपनी से वैक्सीन नहीं मिलेगी. महाराष्ट्र ने Serum Institute Of India से वैक्सीन की 7 करोड़ डोज मांगी हैं.
दूसरा राज्य है दिल्ली. दिल्ली में भी 1 मई से टीकाकरण अभियान शुरू नहीं होगा. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि 3 मई तक अगर दिल्ली को वैक्सीन (Corona Vaccine) मिल गई तो वैक्सीनेशन शुरू हो जाएगा. दिल्ली सरकार ने 3 तीन लाख वैक्सीन का ऑर्डर दिया है और बाकी 50 लाख डोज के लिए उसे और इंतजार करना होगा.
इसके अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब और तेलंगाना, ये वो राज्य हैं, जो आज से इसलिए वैक्सीनेशन शुरू नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनके पास भी वैक्सीन नहीं है. जो ऑर्डर राज्य सरकारों ने दिया है, उसमें भी अभी समय लग सकता है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तमिलनाडु ने भी साफ़ कर दिया है कि अभी इन राज्यों में 18 साल से ऊपर के लोगों का वैक्सीनेशन शुरू नहीं होगा. इन सारी बातों का एक लाइन में सार ये है कि अभी आपको वैक्सीन के लिए इंतज़ार करना होगा.
इस समय भारत में दो वैक्सीन बनाई जा रही हैं, पहली है Covishield और दूसरी है Co-Vaxin. अगर इन दोनों Vaccines का कुल उत्पादन जोड़ दें तो हमारे देश को हर महीने इनकी 7 करोड़ से साढ़े 8 करोड़ डोज़ मिल रही हैं. जिनमें से 15 प्रतिशत डोज़ पहले दूसरे देशों को भेजी जा रही थीं. लेकिन अब इस पर केन्द्र सरकार ने रोक लगा दी है.
इस लिहाज से देखें को अब 7 करोड़ से साढ़े 8 करोड़ डोज़ भारत में ही इस्तेमाल हो रही हैं. लेकिन क्या ये काफ़ी है? एक अनुमान के मुताबिक अगर इस साल के अंत तक देश की 80 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन (Corona Vaccine) लगानी है तो हर महीने 17 करोड़ डोज की जरूरत पड़ेगी. जबकि मौजूद परिस्थितियों में दोनों Vaccines का कुल उत्पादन हर महीने इसका आधा भी नहीं है. यही वजह है कि देश में हम वैक्सीन का संकट देख रहे हैं.
अगर आपको ये सब बहुत जटिल लग रहा है तो आप इसे इस उदाहरण से समझिए. सोचिए एक परिवार में पांच लोग रहते हैं और इन पांच लोगों में से चार लोग एक व्यक्ति की कमाई पर ही निर्भर हैं. ऐसी स्थिति में परिवार की निर्भरता एक व्यक्ति पर ज्यादा बढ़ जाएगी और वो सभी लोगों की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएगा. वैक्सीन पर अभी ऐसा ही हो रहा है. बनाने वाली कंपनियां दो हैं और आबादी है 135 करोड़. यानी हम इन कम्पनियों की उत्पादन क्षमता पर ही निर्भर हैं. इसे आप कुछ और आंकड़ों से भी समझ सकते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक़ अगर देश में 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन (Corona Vaccine) लगाई जाती है तो हर महीने वैक्सीन की 22 करोड़ डोज़ की ज़रूरत पड़ेगी. जबकि अभी केवल औसतन 8 करोड़ वैक्सीन बन रही हैं. यानी वैक्सीन की सप्लाई सीमित है क्योंकि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां सीमित हैं. यहां एक मुश्किल ये भी है कि अभी कई राज्यों के पास 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को टीका लगाने के लिए भी वैक्सीन की पर्याप्त डोज़ नहीं बची हैं.
30 अप्रैल 2021 तक कुल उपलब्ध डोज की संख्या 1 करोड़ 20 लाख बताई गई है. इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरी है वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना और इसके लिए वैक्सीन को Patent मुक्त करना होगा. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, अब आप इसे समझिए.
Patent एक तरह का कानूनी अधिकार है, जो किसी संस्था या व्यक्ति को किसी प्रोडक्ट, डिजाइन, खोज या किसी खास Service पर एकाधिकार देता है. अगर किसी कम्पनी ने कोई प्रोडक्ट बनाया और उस प्रोडक्ट का Patent करा लिया तो कोई दूसरी कम्पनी उस प्रोडक्ट की नकल नहीं कर पाएगी. कुल मिलाकर पेटेंट जिसके नाम पर है, उसकी खोज या प्रोडक्ट के इस्तेमाल पर उसे ही पूरा फायदा मिल सके, इसके लिए ये नियम बना.
ज़ी न्यूज का मानना है कि वैक्सीन (Corona Vaccine) पर फायदे वाला ये नियम लागू नहीं होना चाहिए. इसके लिए अलग व्यवस्था होनी चाहिए और भारत इस दिशा में भी कोशिश कर रहा है. कुछ दिनों पहले भारत सरकार ने WHO से Vaccines को Patent मुक्त करने के लिए कहा था और ये मामला अब तक विचाराधीन है.
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इसके अलावा देश की सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर हुई है, जिसमें ये मांग की गई है कि वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार Third Party कंपनियों को Compulsory License जारी करे ताकि वो भी वैक्सीन बना सके. हम आपको बता दें कि अगर सरकार चाहे तो ऐसा कर सकती है.
The Patents Act 1970 के सेक्शन 92 में लिखा है कि भारत सरकार किसी प्राकृतिक आपदा या महामारी के समय जनहित में किसी भी वस्तु, उपकरण या दवाइयां बनाने का License थर्ड पार्टी कंपनियों को दे सकती है. यानी वैक्सीन को Patent मुक्त कर सकती है.
भारत में तीन हज़ार Pharmaceutical कम्पनियां हैं, जिनकी देश में लगभग साढ़े 10 हज़ार फैक्ट्रियां हैं. जबकि वैक्सीन सिर्फ़ इनमें से दो ही फैक्ट्रियों में बन रही है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बाकी कंपनियों के पास इसके लिए लाइसेंस नहीं है.
Vaccines को Patent मुक्त करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि अगर ऐसा होता है तो भारत में जो दो कम्पनियां वैक्सीन का उत्पादन कर रही हैं. उनके अलावा दूसरी कंपनियां भी वैक्सीन (Corona Vaccine) बना सकेंगी और इससे वैक्सीन की कमी का जो संकट है, वो ख़त्म हो जाएगा. इसके लिए फायदे वाली थ्योरी को भूलना होगा और अमेरिका, ब्रिटेन और Russia जैसे बड़े देशों को इसमें पहल करनी होगी. ये वो देश हैं, जहां वैक्सीन पर Patent का कंपनियों को बहुत फायदा हो रहा है.
फाइज़र जैसी कंपनी तो कई ग़रीब देशों में ईस्ट इंडिया कम्पनी की तरह काम कर रही है और इन देशों की राष्ट्रीय सम्पत्ति को गिरवी रखने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. जिसकी वजह से आज हम वैक्सीन को लेकर Free For All की मांग करते हैं. हमें लगता है कि इस पर Patent नहीं होना चाहिए.
वैक्सीन की तरह ऑक्सीजन की वेटिंग लिस्ट भी बहुत लम्बी है. इसलिए अब हम आपको ये बताते हैं कि देश में ऑक्सीजन का हिसाब किताब क्या है?
इस समय भारत में प्रति दिन ऑक्सीजन का कुल उत्पादन 7 हज़ार 127 Metric Ton है, जिसमें से 4 हज़ार Metric Ton मेडिकल ऑक्सीजन (Oxygen) पहले अस्पतालों में इस्तेमाल होती थी, लेकिन अब इसकी मांग 76 प्रतिशत बढ़ गई है. देश में ऑक्सीजन का जितना उत्पादन हो रहा है, उतनी ही खपत इस समय हर दिन हो रही है. ऑक्सीजन की कमी की तरह उसकी सप्लाई भी आज एक बड़ी चुनौती है.
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हमारे देश में ऑक्सीजन Tankers की कुल संख्या लगभग 1200 है, जो एक बार में 16 हज़ार Metric Ton ऑक्सीजन की सप्लाई कर सकते हैं. इस हिसाब से देखें तो ऑक्सीजन Tankers की संख्या पर्याप्त लगती है. जबकि ऐसा है नहीं. असल में ये सभी Tankers अस्पतालों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में औसतन 7 दिन का समय लेते हैं. इससे हर दिन की सप्लाई पर असर पड़ता है. अभी इन Tankers के लौटने का इंतज़ार करना पड़ता है.
अगर भारत इन Tankers की संख्या को डबल कर ले तो ऑक्सीजन (Oxygen) सप्लाई की ये परेशानी भी ख़त्म हो सकती है. इसके अलावा भारत को मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने की भी ज़रूरत है. एक अनुमान के मुताबिक़ भारत को प्रति दिन कोरोना मरीज़ों के लिए 13 हज़ार Metric Ton ऑक्सीजन चाहिए, जो पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा है. जबकि मौजूदा उत्पादन लगभग 7 हज़ार Metric Ton है.
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