Trending Photos
नई दिल्ली: आज हम बहानों की बेड़ियों में बंधे भारतीयों का DNA टेस्ट करेंगे. अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने कहा था- 99 Percent of Failures Come From People Who Make Excuses. हिन्दी में इसका अर्थ है, 99 प्रतिशत असफलता बहाने बनाने वाले लोगों से आती है. यानी बहाने उस टूटी हुई सीढ़ी की तरह होते हैं, जो आपको कभी सफलता के शिखर पर नहीं ले जाती और कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीनेशन अभियान पर इस समय यही हो रहा है.
देश के कई राज्यों में इस समय लोग वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं और वैक्सीन नहीं लगवाने के लिए उनके पास ढेर सारे बहाने हैं. आप कह सकते हैं कि ये लोग बहानों के धनी हैं. हम आपको 10 सबसे बड़े बहानों के बारे में बताते हैं-
पहला बहाना है - वैक्सीन लगवाने से बुखार आएगा
दूसरा बहाना है - उम्र हो गई है, अब वैक्सीन की क्या ज़रूरत?
तीसरा बहाना है - एक ना एक दिन मरना ही है फिर वैक्सीन लगवाने से क्या होगा?
चौथा बहाना है - मेरा दिल घबराता है इसलिए मैं वैक्सीन नहीं लगवाऊंगा
पांचवां बहाना है - मेरे पास वैक्सीन लगवाने के पैसे नहीं है
छठा बहाना है - आधार कार्ड नहीं है इसलिए वैक्सीन नहीं लगेगी
सातवां बहाना है - अभी गर्मी बहुत है, गर्मी कम हो जाएगी तो वैक्सीन लगवाएंगे
आठवां बहाना है - जब बीमारी नहीं है तो वैक्सीन क्यों लगवाएं?
नौवां बहाना है - वैक्सीन से कुछ नहीं होता
और 10वां बहाना है - वैक्सीन पर सरकार बेवजह पैसे खर्च कर रही है, इसलिए मैं इस बेवजह के खर्च का हिस्सा नहीं बनूंगा.
वैक्सीन को लेकर ये वो 10 बड़े बहाने हैं, जिनकी खोज हमारे देश के लोगों ने की है और आप कह सकते हैं कि इन 10 बहानों में हमारे देश के कई लोगों का चरित्र भी छिपा हुआ है.
वैसे तो कहा जाता है कि बहाने हमारे देश के लोगों के DNA में बसे हुए हैं और हम इन बहानों के आदी हो जाते हैं. ऐसा नहीं है कि ये बहाने बनाना हम बड़े होकर सीखते हैं, इसकी ट्रेनिंग तो हमें बचपन में ही मिल जाती है.
बचपन में स्कूल देर से पहुंचने के लिए बहाने बनाते हैं
स्कूल से छुट्टी लेने के लिए बहाने बनाते हैं
होमवर्क पूरा नहीं करने पर बहाने बनाते हैं
स्कूल में लंच करके नहीं आने पर बहाने बनाते हैं
दोस्तों के साथ बाहर घूमने के लिए माता पिता से बहाने बनाते हैं
फिर बड़े होकर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान और फिर नौकरी या कारोबार करने तक हम बहाने बनाने में एक्सपर्ट हो जाते हैं.
कहने का मतलब ये है कि बहानों को हम अपना मित्र बना लेते हैं जबकि बहाने हमारे सबसे बड़े शत्रु होते हैं और कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर भी आज कुछ ऐसा ही हो रहा है. पिछले साल जब कोरोना वायरस आया था, तब देश में एक ही चर्चा थी कि इस वायरस की वैक्सीन कब आएगी और जब इसकी वैक्सीन आ गई तो कुछ लोगों ने डर और अफवाह के कारण अपनी उसी खूबी को चुना, जिसमें वो माहिर हो चुके हैं. ये खूबी है बहाने बनाने की, जबकि इतिहास बताता है जब जब हमारे देश के लोगों ने बहानों को छोड़ कर देशहित में उठाए गए क़दम और निर्णयों का साथ दिया है, तब तब हम कामयाब हुए.
उदाहरण के लिए, वर्ष 1920 में महात्मा गांधी ने भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराने के लिए असहयोग आन्दोलन शुरू किया था. इस आन्दोलन के तहत उन्होंने अंग्रेज़ी कपड़े, अंग्रेज़ी सरकार की सेवाओं और दूसरी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए कहा था. तब लोग महात्मा गांधी की इस अपील पर बहाने बना कर अपनी ज़िम्मेदारी से भागे नहीं थे, बल्कि देशभर में अंग्रेजी कपड़ों की होली जलाई गई थी. लोगों की इस एकता ने ही असहयोग आन्दोलन को प्रभावशाली रूप दिया और अंग्रेज़ी सरकार पर दबाव बढ़ना शुरू हुआ.
इसी तरह जब स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने लोगों से आज़ाद हिन्द फौज से जुड़ने की अपील की तो उन्होंने एक नारा दिया था. ये नारा था तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा. उनकी इस अपील पर तब लोगों ने बहाने नहीं बनाए, बल्कि लोग आज़ाद हिन्द फौज का हिस्सा बने और कई लोगों ने फौज से बाहर रह कर सुभाष चंद्र बोस को समर्थन दिया.
सोचिए, अगर उस समय लोग ये बहाने बनाते कि वो आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति नहीं देंगे या सुभाष चंद्र बोस का समर्थन नहीं करेंगे तो क्या हमारा देश आज़ाद होता? सच तो ये है कि अगर स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों ने बहाने बनाए होते तो देश को कभी अंग्रेज़ों से आज़ादी नहीं मिलती. ऐसे बहाने बेड़ियों का रूप ले लेते और भारत इन बेड़ियों में हमेशा के लिए जकड़ा रहता, लेकिन लोगों ने सहयोग किया और आज़ादी हासिल की.
आज़ादी के बाद भी लोग सहयोग की परम्परा को नहीं भूले. वर्ष 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और देश में अनाज का भयानक संकट था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने लोगों से अपील की थी कि वो एक समय का खाना छोड़ दें. आपको जानकर हैरानी होगा कि उस समय उनकी एक आवाज पर लाखों भारतीयों ने एक वक्त का खाना छोड़ दिया था, लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर तब भी इसी तरह के बहाने बनाए गए तो क्या होता?
इसे आप कुछ वर्ष पुराने एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं. वर्ष 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों से ये अपील की थी कि वो गैस सिलिंडर पर सब्सिडी छोड़ दें तब देश ने उनका सहयोग किया. उनकी इस अपील के बाद एक करोड़ से ज़्यादा लोगों ने सिलंडर पर सब्सिडी को छोड़ दिया. इसके बाद इसका लाभ उज्जवला योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिया गया और सरकार अब तक 8 करोड़ लोगों को फ्री एलपीजी कनेक्शन दे चुकी है.
ये वो उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि बहाने देश को कमज़ोर करते हैं और संकल्प देश को मजबूत करता है.
इसे आप एक और बात से समझ सकते हैं. वर्ष 2019 में New Motor Vehicle Act लागू हुआ था, जिसके तहत बिना हेलमेट के दुपहिया वाहन चलाने पर जुर्माना 100 रुपये से बढ़ा कर एक हज़ार रुपये कर दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद बहुत से लोगों ने हेलमेट पहनने की आदत नहीं डाली. आज भी हर शहर में बिना हेलमेट के दुपहिया वाहन चलाने के लिए चालान कटते हैं और ये चालान भरे भी जाते हैं, लेकिन लोगों के बहाने खत्म नहीं होते.
सोचिए इस क़ानून के तहत ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर जुर्माना कई गुना बढ़ा दिया गया था और इसका मकसद था सड़क दुर्घटनाओं को रोकना, लेकिन क्या ऐसा हुआ. इसे अब आप इन आंकड़ों से समझिए. एक सितम्बर से दिसम्बर 2019 तक देश में 1 लाख 39 हज़ार सड़क दुर्घटनाएं हुई. यानी जुर्माना बढ़ाने के बावजूद सड़क दुर्घटनाएं ज़्यादा कम नहीं हुईं क्योंकि, सरकार ने नियम तो 2019 में बनाए लेकिन लोगों के बहाने तो वर्षों से चले आ रहे हैं.
संक्षेप में कहें तो बहाने बेड़ियों की तरह होते हैं, जो आपको बांध कर रखते हैं. इस समय जब देश में कोरोना वायरस के मामले तेज़ी से घट रहे हैं, तब ज़रूरी है कि देश में तेज़ी से वैक्सीनेशन हो और तीसरी लहर आने से पहले अधिकतर लोगों को कम से कम वैक्सीन की एक डोज़ लग जाए और सरकार ने इसकी रूपरेखा भी तैयार की. भारत सरकार का कहना है कि वो दिसम्बर महीने तक 18 साल से ऊपर के 94 करोड़ लोगों के लिए पर्याप्त वैक्सीन की व्यवस्था कर लेगी, लेकिन चुनौती ये है कि वैक्सीन तो उपलब्ध हो जाएगी लेकिन क्या सभी लोग आसानी से वैक्सीन लगवा लेंगे?
अभी की स्थिति देखें तो कई राज्यों में लोग वैक्सीन लगवाने से बच रहे हैं. इनमें पढ़े-लिखे लोग भी हैं और ऐसे लोग भी हैं, जो गांवों में रहते हैं. स्वास्थ्य विभाग की टीमें इन लोगों को जागरूक करने के लिए गांव-गांव का दौरा कर रही हैं, लेकिन इस दौरान उन पर हमले की धमकी दी जा रही है और कुछ लोग वैक्सीन लगवाने से पूरी तरह इनकार कर चुके हैं.
एक स्टडी कहती है कि हम बहाने इसलिए बनाते हैं ताकि हम अपनी नज़रों में सही बने रहें. यानी बहाना असल में वो झूठ होता है, जो हम ख़ुद से बोलते हैं. जैसे, ये कहना कि मेरे पास समय नहीं है, पहले मैंने ऐसा कभी नहीं किया, मेरे पास ये करने की Skills नहीं है. समय अभी खराब चल रहा है और ये मेरे लिए ठीक नहीं है. ये सब बहाने होते हैं, जो हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं.
हिन्दी की एक कहावत है कि 'जीतने वाले कभी बहाने नहीं बनाते और बहाने बनाने वाले कभी जीतते नहीं हैं.'
इसे ऐसे समझिए कि जो लोग आज वैक्सीन नहीं लगवाने के लिए बहाने बना रहे हैं, वो कोरोना वायरस के खिलाफ देश की जीत में विलेन बनने का काम कर रहे हैं क्योंकि, कई अध्ययन में बात साबित हुई है कि कोरोना पर रोकथाम का एक ही विकल्प है और वो है वैक्सीन. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के चीफ मेडिकल एडवाइजर डॉक्टर एंथॉनी फाउची का कहना है कि कोरोना वायरस पर रोकथाम के लिए किसी भी देश की 75 से 80 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लगानी ज़रूरी हैं, तभी इस लड़ाई को जीता जा सकता है, लेकिन भारत इसमें अभी काफ़ी पीछे है.
भारत में अब तक 23 करोड़ 90 लाख 58 हज़ार 360 वैक्सीन की डोज ही लग पाई है.
और इनमें से दोनों डोज लेने वालों की संख्या सिर्फ 4 करोड़ 69 लाख 21 हजार 227 है.
सोचिए, 135 करोड़ की आबादी वाले देश में अब तक दोनों डोज लेने वालों की संख्या 5 करोड़ भी नहीं हो पाई है. केन्द्र सरकार ने तय किया है कि वो दिसम्बर तक 18 साल से ऊपर के लोगों को वैक्सीन लगाने का काम पूरा कर लेगी लेकिन सवाल है कि जब लोग वैक्सीन लगवाएंगे ही नहीं तो ये लक्ष्य पूरा कैसे होगा?
कल हमने आपसे एक सवाल पूछा था कि क्या केन्द्र सरकार को कोरोना की वैक्सीन सभी के लिए अनिवार्य कर देनी चाहिए? क्योंकि अभी वैक्सीन को लेकर लोगों की सहमति ज़रूरी है लेकिन कुछ लोग इस पर फैले डर और अफ़वाह की वजह से वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं और बहाने बना रहे हैं. हमारे देश के सामने इन बहानों को भी ख़त्म करने की चुनौती है और ये तभी सम्भव होगा जब लोग जागरूक होंगे और अपनी ज़िम्मेदारी को समझेंगे.
आज हम आपसे यही कहना चाहते हैं कि संकट की इस घड़ी में देश को बहानों की नहीं, एकता की ज़रूरत है और एकता तभी आती है जब लोग अपने कर्तव्यों को समझते हैं, लेकिन अभी कुछ लोग इसे समझने के लिए तैयार नहीं हैं.