कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ भारत ने अभी तक मजबूती से लड़ाई लड़ी है. लेकिन अब इस लड़ाई में वो जीतेगा, जो सबसे पहले अपने देशवासियों तक वैक्सीन (Vaccine) पहुंचा देगा. भारत इस दिशा में भी पीछे नहीं है.
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नई दिल्ली: आज हम आपको कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) पर दो अच्छी ख़बरें बताना चाहते हैं. पहली खबर ब्रिटेन से आई है, जहां अगले हफ़्ते से लोगों को कोरोना वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और दूसरी खबर भारत से है, जहां वैक्सीन लगाने के लिए सिरिंज बनाने का काम तेज़ी से हो रहा है.
ब्रिटेन में अमेरिका की फार्मा कंपनी फाइज़र और BioNTech की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंज़ूरी मिल गई है. इमरजेंसी इस्तेमाल का मतलब ये है कि जब तक इस वैक्सीन का लोगों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता, तभी तक इसका इस्तेमाल किया जाएगा.
ब्रिटेन ने 4 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया
ब्रिटेन ने 4 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया है, जिनमें से 8 लाख वैक्सीन अगले कुछ दिनों में वहां पहुंच जाएंगी. ब्रिटेन के हर नागरिक को वैक्सीन की दो डोज़ दी जाएंगी. यानी वैक्सीन की पहली खेप से दो करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा. अगर प्रयोग सफल रहा तो ब्रिटेन को लगभग 8 करोड़ और वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी क्योंकि वहां की आबादी 6 करोड़ से ज़्यादा है.
ब्रिटेन में ये वैक्सीन सबसे पहले 80 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को लगाई जाएगी. स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं से जुड़े लोगों को भी ये वैक्सीन पहले चरण में लगाई जा सकती है. जिन लोगों की उम्र 50 से 80 वर्ष तक है और जिन्हें पहले से गम्भीर बीमारियां हैं, उन्हें इस वैक्सीन के लिए दूसरे चरण का इंतजार करना पड़ेगा. पहले चरण मे सब ठीक रहा तो ब्रिटेन सरकार दूसरे चरण की तारीख तय करेगी.
कहा जा रहा है कि ये दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित की गई वैक्सीन है, जिसे बनाने में फाइज़र को 10 महीने का समय लगा. किसी भी बड़ी बीमारी की वैक्सीन के रिसर्च, ट्रायल और उसे लोगों तक पहुंचाने में कम से कम 10 वर्ष तक का समय लग जाता है. लेकिन कोरोना की वैक्सीन बनाने में वैज्ञानिकों को एक ही वर्ष में सफलता मिल गई.
उदाहरण के लिए पोलियो की वैक्सीन तैयार होने में 47 वर्ष का समय लगा.
-चिकन पॉक्स की वैक्सीन में 42 वर्ष और इबोला की वैक्सीन में 43 वर्ष लग गए थे.
-HEPATITIS B की वैक्सीन तैयार होने में 13 वर्ष का समय लगा. हालांकि HIV AIDS की वैक्सीन 39 साल में भी नहीं बन पाई है. एचआईवी एड्स के संक्रमण का पहला मामला वर्ष 1981 में सामने आया था.
वैक्सीन की Efficacy रेट 95 प्रतिशत
हालांकि फाइज़र का दावा है कि उसकी वैक्सीन की Efficacy रेट 95 प्रतिशत है. ये रेट ट्रायल के अंतिम नतीजों पर आधारित है. लेकिन ये वैक्सीन कितनी इफेक्टिव है यानी कितने लोगों को बीमारी से बचाती है. ये तभी पता चलेगा जब बड़े पैमाने पर वैक्सीन लोगों को लगाई जाएगी.
वैक्सीन बांह पर सिरिंज से लगाई जाएगी. यानी जैसे चोट लगने पर Tetanus का इंजेक्शन लगता है, ठीक उसी तरह ये वैक्सीन ब्रिटेन में लोगों को लगाई जाएगी.
हालांकि फाइज़र की इस वैक्सीन को स्टोर करके रखना बड़ी चुनौती होगी क्योंकि ये वैक्सीन-70 डिग्री Celsius पर स्टोर की जा सकती है. इसके लिए ख़ास Refrigerators का प्रोडक्शन तेज़ हो गया है. लेकिन अगर भारत जैसे विकासशील देश इस वैक्सीन का इस्तेमाल करते हैं तो उनके सामने इस वैक्सीन को -70 डिग्री Celsius पर स्टोर करके रखना और इसे लोगों तक पहुंचाना सबसे मुश्किल काम होगा.
फाइज़र वैक्सीन की एक डोज़ की क़ीमत भारतीय रुपयों में 1400 रुपये के आसपास हो सकती है. यानी ये वैक्सीन महंगी भी है. हालांकि ब्रिटेन ने इसके इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है. पश्चिमी देशों में ब्रिटेन पहला ऐसा देश बन गया है, जहां कोरोना वैक्सीन को व्यापक इस्तेमाल की मंज़ूरी मिली है
और संभव है कि अमेरिका में भी जल्द इस वैक्सीन का इस्तेमाल शुरू हो जाए. क्योंकि अमेरिका पहले से फाइज़र को इस वैक्सीन की 10 करोड़ डोज़ का ऑर्डर दे चुका है.
रूस में भी अगले हफ़्ते से शुरू हो सकता है टीकाकरण अभियान
इस बीच एक बड़ा अपडेट ये है कि रूस में भी अगले हफ़्ते से टीकाकरण अभियान शुरू हो सकता है. रूस ने जानकारी दी है कि वो Sputnik V की 20 लाख डोज़ तैयार कर चुका है.
हालांकि इन ख़बरों ने विकासशील और ग़रीब देशों की चिंता भी बढ़ा दी है. क्योंकि अलग अलग कम्पनियों की वैक्सीन के बाज़ार में आने से अब अमीर देशों के बीच इन्हें ख़रीदने की होड़ शुरू हो गई है. ऐसे में जिन देशों के पास पैसा है, संसाधन हैं, वो इन वैक्सीन्स को आसानी से ख़रीद लेंगे और हो सकता है कि इस रेस में विकासशील और ग़रीब देशों का नम्बर आए ही न. ऐसा हुआ तो दुनिया की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना की वैक्सीन से वंचित भी रह सकता है.
भारत की स्वदेशी वैक्सीन
हालांकि इस मामले में भारत बेहतर स्थिति में हैं. भारत की स्वदेशी वैक्सीन जिसका नाम कोवैक्सीन है, ये ट्रायल के तीसरे चरण में है. इस वैक्सीन की क़ीमत केवल 100 रुपये हो सकती है और ये दुनिया की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन भी होगी.
इसके अलावा Oxford Astrazeneca की कोरोना वैक्सीन भी आख़िरी चरण में पहुंच चुकी है, जिसका उत्पादन पुणे के Serum Institute of India में किया जा रहा है. इस वैक्सीन की क़ीमत भारतीय रुपयों में 222 रुपये हो सकती है. यानी कीमत के लिहाज से ये वैक्सीन भी भारत के लिए सस्ती हो सकती है.
अहमदाबाद में Zydus Cadila नाम की कम्पनी भी कोरोना की वैक्सीन विकसित कर रही है. ये वैक्सीन अभी ट्रायल के दूसरे चरण में है और इसकी क़ीमत नहीं बताई गई है.
हालांकि आप यही सोच रहे होंगे कि कोरोना वैक्सीन आप तक कब पहुंचेगी और ये वैक्सीन कैसे लगाई जाएगी. इस समझाने के लिए हमने एक रिपोर्ट तैयार की है.
corona वैक्सीन के लिए तय मानकों के हिसाब से बनाई गई सिरिंज
भारत में इस समय बड़े पैमाने पर वैक्सीन लगाने में इस्तेमाल होने वाली सिरिंज का उत्पादन किया जा रहा है. जो सिंरिंज बनाई जा रही है, वह कोरोना वैक्सीन के लिए तय मानकों के हिसाब से बनाई गई सिरिंज है. इस सिरिंज में 0.5 ML की डोज़ आ सकती है.
भारत की जनसंख्या 135 करोड़ है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि भारत में पहले उन लोगों को वैक्सीन लगाई जा सकती है जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा जरूरत है. इनमें हेल्थ केयर वर्कर्स, बुज़ुर्ग और बीमार लोग शामिल हैं. अगर संक्रमण की चेन टूट गई तो हो सकता है कि हर किसी को वैक्सीन लगाने की ज़रूरत न पड़े. इसके अलावा 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को वैक्सीन नहीं लगाई जाएगी. क्योंकि जब किसी वैक्सीन का बच्चों पर इस्तेमाल किया जाता है, तो उसके ट्रायल अलग से होते हैं. इस हिसाब से भारत को लगभग 90 करोड़ सिरिंज की जरूरत पड़ेगी.
कोरोना वायरस के खिलाफ भारत ने अभी तक मजबूती से लड़ाई लड़ी है. लेकिन अब इस लड़ाई में वो जीतेगा, जो सबसे पहले अपने देशवासियों तक वैक्सीन पहुंचा देगा. भारत इस दिशा में भी पीछे नहीं है. भारत की सबसे बड़ी सिरिंज बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान सिरिंज का प्लांट हरियाणा के फरीदाबाद में है. इस प्लांट में काम किस रफ्तार से चल रहा है. इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहां इस वक्त हर एक घंटे में एक लाख सीरिंज बनाई जा रही है.
20 करोड़ सीरिंज बनाने का ऑर्डर
कंपनी को 20 करोड़ सीरिंज बनाने का ऑर्डर मिल चुका है. जिसमें से 10 करोड़ बनकर तैयार हैं. हालांकि भारत की जरूरत इससे कहीं ज्यादा है. कोरोना की वैक्सीन दो बार में लगाई जाएगी. पहली डोज़ के 28 दिन बाद दूसरी डोज़ इस लिहाज से फिलहाल 90 करोड़ वैक्सीन लगाए जाने का आकलन किया गया है. इतने बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन के लिए सरकार ने ऑटो डिसेबल सिरिंज चुनी है यानी ऐसी सिरिंज जिससे एक बार इंजेक्शन लगाने के बाद ये खुद ही नष्ट हो जाए.
वैक्सीन, वायल और सिरिंज के मामले में भारत न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि इस समय हर कंपनी 100 प्रतिशत क्षमता पर काम करके वैश्विक बाज़ार की जरुरतों के हिसाब से भी तैयारी कर रही है.
हालांकि अभी चुनौतियां कम नहीं हैं. वैक्सीन की कोल्ड स्टोरेज, वेस्ट डिस्पोज़ल और सबसे बड़ी बात, इंजेक्शन लगाने के लिए ट्रेंड हेल्थ स्टाफ, इन चुनौतियों को हल करने पर अभी काम चल रहा है. लेकिन पहला बड़ा पड़ाव यानी वैक्सीन और सिरिंज, इन्हें कामयाबी से पार किया जा चुका है.