DNA ANALYSIS: ऑक्सीजन की कमी से मौतों को दर्ज कर सकती थीं राज्य सरकारें? जानें इसे लेकर क्या हैं नियम
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DNA ANALYSIS: ऑक्सीजन की कमी से मौतों को दर्ज कर सकती थीं राज्य सरकारें? जानें इसे लेकर क्या हैं नियम

भारत में कुल 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं. इन सभी राज्यों में कोरोना से जो मौतें होती हैं, उनकी रिपोर्ट बना कर केन्द्र सरकार को भेजी जाती है और इन्हीं रिपोर्ट्स में लिखा होता है कि कोरोना की वजह से कितने लोगों की मौत हुई और इन मौतों के क्या-क्या कारण थे. 

DNA ANALYSIS: ऑक्सीजन की कमी से मौतों को दर्ज कर सकती थीं राज्य सरकारें? जानें इसे लेकर क्या हैं नियम

नई दिल्ली: केन्द्र सरकार ने संसद में ये जानकारी दी है कि ऑक्सीजन की कमी से इस देश में एक भी कोविड मरीज की मृत्यु नहीं हुई है. पूरा देश इस बयान को सुन कर सन्न रह गया और ये सोचने पर मजबूर हो गया कि जो तस्वीरें हमने दो महीने पहले देखी थीं, जो जलती चिताएं देखी थीं, मरीजों की जो बुरी हालत हमने देखी थी, क्या वो सब झूठ था? या जो अब बताया जा रहा है, वो झूठ है.

  1. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश के कई राज्यों में ऑक्सीजन का भारी संकट था.
  2. अस्पतालों के बाहर ऑक्सीजन के लिए मरीज़ों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगी थीं.
  3. 15 अप्रैल से 10 मई के बीच देश में ऑक्सीजन का संकट चरम पर था.

आगे की बात बताने से पहले अब हम आपको ये बताना चाहेंगे कि ये जानकारी अर्धसत्य है.

राज्य सरकारों का यू-टर्न

कल तमाम विपक्षी नेता और बुद्धिजीवी केन्द्र सरकार पर टूट पड़े और आरोप लगाया कि ये बयान सफेद झूठ है. इसलिए आज हम आपके सामने इस अर्धसत्य का खुलासा करेंगे और बताएंगे कि उस समय ऑक्सीजन को लेकर त्राहि-त्राहि करने वाली राज्य सरकारों ने बाद में कैसे यू-टर्न ले लिया और यही राज्य सरकारें अब कह रही हैं कि हमारे यहां ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई. ये आपके साथ एक बहुत बड़ा धोखा है और आज हम इसी का खुलासा करेंगे.

केन्द्र सरकार देश से झूठ बोल रही है?

20 जुलाई को राज्य सभा में केन्द्र सरकार से इस पर सवाल पूछा गया था. सवाल ये था कि कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी की वजह से कितने लोगों की मौत हुई? जिस पर केन्द्र सरकार ने राज्य सभा में बताया कि क्योंकि, स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए कोरोना से होने वाली मौतों का डेटा राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को देना होता है और अब तक किसी भी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश ने ये जानकारी नहीं दी है कि देश में एक भी मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई है. यानी केन्द्र सरकार की तरफ से दिया गया जवाब बिल्कुल सरल था कि राज्य सरकारों ने आज तक ये बताया ही नहीं कि उनके यहां ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत हुई है.

लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में इस पर राजनीति शुरू हो गई और विपक्षी नेताओं ने ये कहना शुरू कर दिया कि केन्द्र सरकार देश से झूठ बोल रही है, जबकि सच तो ये है कि इस मामले में केन्द्र सरकार का रोल सिर्फ इतना है कि वो राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से रिपोर्ट होने वाली मौतों का डेटा इकट्ठा करती है और यही डेटा हर दिन स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी किया जाता है.

इसे आप ऐसे समझिए कि भारत में कुल 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं. इन सभी राज्यों में कोरोना से जो मौतें होती हैं, उनकी रिपोर्ट बना कर केन्द्र सरकार को भेजी जाती है और इन्हीं रिपोर्ट्स में लिखा होता है कि कोरोना की वजह से कितने लोगों की मौत हुई और इन मौतों के क्या-क्या कारण थे. 

विपक्षी नेताओं की चालाकी

अब पॉइंट ये है कि इन राज्यों ने कोरोना से हुई मौतें तो रिपोर्ट कीं, लेकिन किसी भी सरकार ने इस दौरान ये नहीं माना कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी की वजह से किसी की मौत हुई है. यानी कहानी No One Killed Jessica की तरह,  No One Killed By Oxygen Shortage की बन गई. 

एक जमाना था, जब जेसिका लाल की हत्या के आरोपियों को छोड़ दिया गया था और लोगों ने कहा था कि जेसिका मरी तो थी, लेकिन उसे किसी ने मारा नहीं है. इसी तरह इस मामले में भी ऑक्सीजन की कमी से लोग मरे तो हैं, लेकिन इन्हें किसी ने मारा नहीं है और ये हुआ है राज्य सरकारों के यू-टर्न की वजह से क्योंकि, ये मामला तो राज्य सरकारों का था, लेकिन विपक्षी नेताओं ने बड़ी चालाकी से इसे केन्द्र सरकार से जोड़ दिया. 

ये नेता अच्छी तरह से जानते हैं कि ये मुद्दा उनकी कमजोर पड़ चुकी राजनीति को ऑक्सीजन दे सकता है, लेकिन आज हम इस राजनीतिक ऑक्सीजन को लीक भी करेंगे और आपको इस विषय पर सही जानकारी भी देंगे, ताकि आपको कोई भ्रमित न कर सके.

देश के कई राज्यों में था ऑक्सीजन का भारी संकट

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश के कई राज्यों में ऑक्सीजन का भारी संकट था और अस्पतालों के बाहर ऑक्सीजन के लिए मरीज़ों की लम्बी-लम्बी लाइनें लगी थीं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 15 अप्रैल से 10 मई के बीच देश में ऑक्सीजन का संकट चरम पर था और उस समय कई अस्पतालों से ऐसी खबरें भी आईं कि वहां कुछ ही घंटों या कुछ ही मिनटों का ऑक्सीजन बचा है.

इनमें से ज्यादातर दिल्ली के अस्पताल हैं, जो उस समय ऑक्सीजन की कमी की बात कह रहे थे और कई प्राइवेट अस्पतालों ने दिल्ली हाई कोर्ट में भी इसके लिए गुहार लगाई थी. तब कई अस्पतालों के बाहर इस तरह के नोटिस चिपटकाए गए थे कि वहां ऑक्सीजन नहीं है, इसलिए कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं किया जा सकता.

23 और 24 अप्रैल की आधी रात को दिल्ली के जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल से ये खबर भी आई कि वहां ऑक्सीजन नहीं मिलने से कोरोना के 21 मरीजों की मौत हो गई है और ये मामला तब कोर्ट भी पहुंचा और फिर कोर्ट के ही आदेश पर दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने इस मामले में एक कमेटी भी बनाई और इस कमेटी ने अपनी जांच में जो पाया, वो सब इस रिपोर्ट में लिखा है. इसलिए अब आपको हमारी बातें बहुत ध्यान से सुननी चाहिए क्योंकि, हम आपको इस मामले की सच्चाई बताएंगे.

ये रिपोर्ट दिल्ली सरकार ने खुद हाई कोर्ट में पेश की थी. इसमें केजरीवाल सरकार द्वारा बनाई गई चार सदस्यों की एक कमेटी कहती है कि उसने 6 अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों की जांच की और इनमें से एक भी मामले में ये दावा सही नहीं निकला.

दिल्ली सरकार की ये रिपोर्ट ये भी कहती है कि जिस जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल में आम आदमी पार्टी ने 21 मरीजों की मौत के पीछे ऑक्सीजन की कमी का आरोप लगाया था, उसमें भी मौत का कारण ऑक्सीजन की कमी नहीं था.

अब आपने देख लिया कि दिल्ली सरकार कोर्ट में क्या कहती है, लेकिन यही सरकार जब राजनीति का मौका आता है, तो सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर अलग बात कहती है. इनमें जो विरोधाभास है, उसी से आप समझ जाएंगे कि इस मुद्दे पर गंदी राजनीति कौन खेल रहा है.

इस मामले में दिल्ली सरकार की एक दलील ये है कि उसने ऑक्सीजन की कमी की वजह से जान गंवाने वाले लोगों की एक सूची तैयार करने के लिए कमेटी बनाने की इजाज़त मांगी थी लेकिन केन्द्र सरकार ने उसे ऐसा करने से रोक दिया, जबकि ये बात भी पूरी तरह सही नहीं है. सच्चाई ये है कि ये कमेटी कोरोना से मरने वाले लोगों के परिवारों को मुआवजा देने के लिए बनाई जानी थी, लेकिन दिल्ली सरकार चाहती थी कि इसमें ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले लोगों को भी जोड़ा जाए, जिसकी वजह से उप राज्यपाल ने इसकी अनुमति नहीं दी.

ऑक्सीजन की कमी से 619 मौतों का दावा

भारत की एक डेटा एनालिस्ट कंपनी डेटा मीट का दावा है कि भारत में कुल 619 मौतें ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई थीं. जिनमें से 59 मौतें दिल्ली में, 30 मौतें मध्य प्रदेश में, 46 उत्तर प्रदेश, 52 आन्ध्र प्रदेश, 22 हरियाणा, 4 जम्मू-कश्मीर, 6 पंजाब, 37 तमिलनाडु, 16 गुजरात और 59 मौतें महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुईं. 

ये जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स के हिसाब से इस कंपनी ने प्रकाशित की हैं. हालांकि हम इसकी पुष्टि नहीं करते, लेकिन हम इतना जरूर आपको बता सकते हैं कि इन राज्यों का इस पर क्या कहना है.

महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी की वजह से एक भी मौत नहीं हुई और ये बात महाराष्ट्र सरकार बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच को भी कह चुकी है कि वहां इस तरह की एक भी मौत नहीं हुई. इसके बावजूद शिवसेना इस पर केन्द्र सरकार को लेकर हैरानी जताती है, लेकिन ये नहीं कहती कि ऑक्सीजन की कमी से मौत की बात को उसकी सरकार खुद नहीं मानती. 

महाराष्ट्र के बाद अब आपको छत्तीसगढ़ के बारे में बताते हैं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार है और वहां के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव का कहना है कि उनके राज्य में भी ऑक्सीजन की कमी की वजह से किसी की मौत नहीं हुई, जबकि 15 अप्रैल को मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई थी कि राज्य में कोरोना के चार मरीजों की मौत ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से हो गई है और तब राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन अब छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार का कहना है कि वहां ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में थी.

इन मौतों को दर्ज कर सकती थीं राज्य सरकारें? 

दिल्ली, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की तरह तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और बिहार की सरकार ने भी इस बात से साफ इनकार किया है कि वहां ऑक्सीजन की कमी से किसी मरीज की जान गई. सोचिए, जब ये सभी राज्य सरकारें इस बात को नहीं मानतीं कि वहां ऑक्सीजन नहीं मिलने से कोई मरा, तो केन्द्र सरकार अपने पास से ऐसे लोगों की संख्या कहां से देगी. इससे आज आप ये भी समझ गए होंगे कि क्यों हम आज कह रहे हैं कि No One Killed By Oxygen Shortage.

अब हम आपको ये बताते हैं कि क्या यू-टर्न लेने वाली ये राज्य सरकारें ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को दर्ज कर सकती थीं? क्या इसे लेकर कोई नियम हैं?

भारत में कोरोना के मामलों को दर्ज करने से लेकर उन्हें स्टोर करने तक ये काम तीन चरणों में होता है.

-पहले अस्पताल कोरोना से होने वाली मौतों का डेटा इकट्ठा करते हैं.

-फिर ये डेटा राज्यों सरकारों के पास भेजा जाता है.

-और आखिर में केन्द्र सरकार एक स्टोर रूम की तरह इन आंकड़ों को एक जगह रखने का काम करती है.

कोरोना के मामलों को किस तरह किया जाता है रिकॉर्ड

कोरोना के मामलों को किस तरह रिकॉर्ड किया जा सकता है, इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइंस हैं. इनमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि अगर राज्य सरकारें चाहतीं तो वो ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले लोगों की डेटा तैयार कर सकती थीं और केन्द्र सरकार को इसके बारे में बता सकती थीं. ICMR के मुताबिक, मौत के कारणों को तीन भागों में बांटा जा सकता है.

-पहला कारण वो है, जिससे मरीज की जान चली गई.

-दूसरा कारण वो है, जिसकी वजह मरीज की हालत बिगड़ी.

-और तीसरा कारण वो है, जो बीमारी से संबंधित नहीं है, लेकिन मौत में उसका भी रोल रहा है. यानी तीसरे कॉलम में ऑक्सीजन की कमी का कारण लिखा जा सकता था और ये काम राज्य सरकारों को करना था न कि केन्द्र सरकार को. इस पूरे मामले को लेकर विपक्षी नेताओं ने गुमराह करने की कोशिश की और इसमें अपने लिए राजनीति की ऑक्सीजन ढूंढ ली.

राहुल गांधी का ट्वीट

राहुल गांधी ने इस खबर को शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा कि सिर्फ ऑक्सीजन की ही कमी नहीं थी. संवेदनशीलता और सत्य की भारी कमी तब भी थी, आज भी है. लेकिन सत्य क्या है, वो आज हमने आपको बताया. यहां एक बड़ी बात ये है कि हमारे देश के विपक्षी नेता, बुद्धिजीवी और टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्य ट्विटर ट्रोल तो बन जाते हैं, लेकिन वो आम लोगों के मुद्दों को समझते नहीं हैं और न ही उनसे इनका कोई लेना देना होता है. इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं.

विपक्षी पार्टियों का असली चरित्र

20 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरी लहर की तैयारी को लेकर एक सर्वदलीय बैठक की थी, लेकिन इस बैठक में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और लेफ्ट पार्टियों के नेता शामिल नहीं हुए. ये वही पार्टियां हैं, जो अगर कोरोना की तीसरी लहर आई तो राजनीति करने में सबसे आगे होंगी, लेकिन जब बात तैयारियों की आती हैं तो ये पार्टियां उसमें हिस्सा ही नहीं लेतीं और इससे आप इनका असली चरित्र समझ सकते हैं.

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