कृषि कानून रद्द कराना नहीं आंदोलन का मकसद, जानिए कौन है साजिश के पीछे असली चेहरा?
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कृषि कानून रद्द कराना नहीं आंदोलन का मकसद, जानिए कौन है साजिश के पीछे असली चेहरा?

#UniteAgainstKhalistan: पिछले दो दिनों में हमने आपको जितने भी दस्तावेज दिखाए, उनसे साफ है कि आंदोलन की आड़ में किस तरह प्रोपेगेंडा चलाया जा रहा है. लेकिन आज हम सिर्फ दस्तावेजों के साथ नहीं आए हैं, आज हम एक चेहरे के साथ आए हैं, जो ये बताता है कि किसान आंदोलन (Farmers Protest) का मकसद कृषि कानूनों (Farm Laws) को रद्द कराना नहीं, कुछ और है.

कृषि कानून रद्द कराना नहीं आंदोलन का मकसद, जानिए कौन है साजिश के पीछे असली चेहरा?

नई दिल्‍ली: आज का DNA बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि, आज हम भारत में पिछले 72 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन के पीछे के असली चेहरे को एक्सपोज करने जा रहे हैं. इसका नाम है मोनमिंदर सिंह धालीवाल (Monminder Singh Dhaliwal), जो इस समय किसान आंदोलन (Farmers Protest) की आड़ में भारत को तोड़ने की खतरनाक साजिश रच रहा है और आप चाहें तो इसे अंतरराष्‍ट्रीय टुकड़े टुकड़े गैंग का पोस्‍टर बॉय भी कह सकते हैं. 

जब एक पतंग हवा के साथ संतुलन बैठा लेती है तो उसके लिए भी ये यकीन करना मुश्किल होता है कि उसकी डोर अब भी किसी और के हाथ में है और आंदोलन कर रहे किसानों के साथ ऐसा ही हो रहा है. 

आंदोलन में खालिस्‍तान की एंट्री

पिछले साल 26 नवंबर को जब दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो हमने उसके अगले ही दिन आपको बता दिया था कि इसमें खालिस्तान की एंट्री हो चुकी है और पिछले दो दिनों में हमने आपको जितने भी दस्तावेज दिखाए, उनमें इसका साफ-साफ जिक्र है.  लेकिन आज हम सिर्फ दस्तावेजों के साथ नहीं आए हैं, आज हम एक चेहरे के साथ आए हैं, जो ये बताता है कि किसान आंदोलन का मकसद कृषि कानूनों को रद्द कराना नहीं है. इसका मकसद खालिस्तान है. यानी आज अगर भारत सरकार, संसद द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों को वापस ले भी ले और किसानों की सारी मांगें मान ले, तब भी ये आंदोलन (Farmers Protest) खत्म नहीं होगा और इसकी वजह है इस आंदोलन में खाद और पानी देने का काम कर रहे खालिस्तानी संगठन. 

साजिश का पोस्‍टर बॉय मोनमिंदर सिंह धालीवाल

आज हम इन्हीं ताकतों को कड़ा जवाब देना चाहते हैं और इसके लिए सबसे पहले आपको कनाडा में बैठ कर भारत के खिलाफ खालिस्तान मूवमेंट चला रहे मोनमिंदर सिंह धालीवाल की बातें सुननी चाहिए,  जो ये कह रहा है कि कृषि कानून अगर वापस भी हो जाएं तो भी ये आंदोलन चलता रहेगा और तब तक खत्म नहीं होगा जब तक पूरे पंजाब को खालिस्तान घोषित नहीं कर दिया जाता. 

आपने स्कूल-कॉलेजों में पढ़ा होगा कि पृथ्वी भी सूर्य का चक्कर लगाते हुए 23.5 डिग्री के कोण पर झुकी रहती है और आज सच की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है.  सच तो अब भी विनम्रता के साथ झुका हुआ है लेकिन झूठ को अहंकार है कि वो जीत जाएगा और ये 135 करोड़ लोगों के भारत को सीधी और खुली चुनौती है. 

हालांकि हमें अपना कर्तव्य याद है और हम लगातार इस साजिश के पन्ने पलट रहे हैं ताकि देश के लोग ऐसी ताकतों को अच्छी तरह से पहचान लें, जो भारत के टुकड़े टुकड़े करना चाहती हैं और आपको याद होगा कि कल जब मैं कुछ दस्तावेजों के साथ आपके सामने आया था तो मैंने ये बातें कही थीं कि किसानों का ये आंदोलन इतनी आसानी से समाप्त नहीं होगा क्योंकि, इस आंदोलन का केंद्र बिन्दु कृषि कानून है ही नहीं. 

किसान आंदोलन का मकसद

आज अगर भारत सरकार कृषि कानूनों को रद्द भी कर दे तो कल ये लोग जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग करेंगे. फिर नागरिकता संशोधन कानून को रद्द करने के लिए दबाव बनाएंगे और ये भी संभव है कि जेलों में बंद अर्बन नक्‍सल्‍स की रिहाई की भी मांग सरकार के सामने रख दी जाए और सोचिए, अगर सरकार ये सारी मांगें भी मान ले तो क्या ये आंदोलन खत्‍म हो जाएगा?  नहीं, ये आंदोलन खत्म नहीं होगा और तब तक खत्म नहीं होगा, जब तक केंद्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हट नहीं जाती. यानी ये आंदोलन मोदी विरोध के इर्द गिर्द ही सिमटा हुआ है और इसी वजह से आज किसानों का ये आंदोलन झूठ के हाइवे पर इतनी दूर जा चुका है कि इसका एपिसेंटर भारत से 12 हजार किलोमीटर दूर कनाडा में बन गया है. यहां हमारे देश को बदनाम करने की Power Point Presentation बनाई जा रही है और इसलिए हम चाहते हैं कि आज आप ये जानें कि जो बातें कल मैंने आपसे कही थीं, वही बातें कैसे आज सच साबित हो रही हैं. 

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मेरे पास इस समय कुछ दस्‍तावेज हैं,  जो दस्तावेज कनाडा के एक एनजीओ Poetic Justice Foundation से जुड़े हैं और ये वही एनजीओ है जिसने भारत के खिलाफ 26 जनवरी को Global Day of Action नाम का खतरनाक प्‍लान तैयार किया था और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि कनाडा में बैठकर भारत के खिलाफ खालिस्तानी प्रोपेगेंडा चला रहा मोनमिंदर सिंह धालीवाल इस एनजीओ का को-फाउंडर है. 

सबसे पहले हम आपको इस एनजीओ के बारे में बताते हैं. ये कनाडा का एक एनजीओ है, जो पिछले ही साल 23 मार्च 2020 को रजिस्टर्ड हुआ था और इसका मौजूदा स्‍टेटस एक्टिव है.  यानी ये एनजीओ अभी पूरी तरह सक्रिय है और किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तान की साजिश रच रहा है. 

हमारे पास जो दस्‍तावेज है, उसमें इसका  बिजनेस नंबर लिखा हुआ है और इसी पेज पर सबसे नीचे इसका कनाडा का पता भी बताया गया है.

दूसरे पेज पर इसके डायरेक्‍टर्स के नाम और दूसरी जानकारियां हैं इसके मुताबिक इस एनजीओ में कुल चार डायरेक्‍टर हैं.  पहले डायरेक्टर का नाम है, हरदीप सिंह सहोटा और इस दस्‍तावेज में इसका पता भी लिखा है.  ये कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के एक शहर में रहता है. 

दूसरे डायरेक्टर का नाम है मोनमिंदर सिंह धालीवाल. इसके बारे में हमने आपको अभी बताया कि कैसे ये किसान आंदोलन की आड़ में भारत के खिलाफ खालिस्तान का एजेंडा चला रहा है और सबसे अहम यहां इसका जो पता बताया गया है वो कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में ही है. 

तीसरी डायरेक्टर का नाम अनिता लाल है और चौथी डायरेक्टर का नाम यहां सबरीना सोही लिखा है. 

किसान आंदोलन का रिमोट कंट्रोल इनके हाथों में?

हमने जब इन चारों लोगों के बारे में रिसर्च की तो हमें कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं. हमें पता चला कि ये लोग पिछले कई दिनों से अपने ट्विटर हैंडल पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं और इनके कुछ ट्वीट्स से ये भी पता चलता है कि ये चारों लोग खालिस्तान से जुड़े हैं और भारत में किसान आंदोलन का रिमोट कंट्रोल इनके हाथों में भी हो सकता है. 

इस साजिश को आप मोनमिंदर सिंह धालीवाल की एक फेसबुक पोस्ट से भी समझ सकते हैं, जो उसने 17 सितम्बर 2020 को लिखी थी और यहां समझने वाली बात ये है कि इस पोस्ट के तीन दिन बाद 20 सितम्बर 2020 को भारत की संसद ने तीन कृषि कानूनों को मंजूरी दी थी. अब मैं आपको पढ़ कर बताता हूं कि इस पोस्ट में क्या लिखा है. 

खुद को खालिस्तानी बताने वाले मोनमिंदर सिंह धालीवाल ने 27 दिसम्बर 2020 को लिखी अपनी एक फेसबुक पोस्ट में Zee News के खिलाफ भी जहर उगला था और आप इसकी इस पोस्ट से समझ सकते हैं कि देश के टुकड़े टुकड़े चाहने वाले Zee News से इतना चिढ़ते क्यों हैं?

भारत के खिलाफ काम कर रहे इस विदेशी गठजोड़ को समझें तो इसमें एक कंपनी का नाम बार बार आता है और इस कंपनी का नाम है, Sky Rocket. ये एक पब्लिक रिलेशन कंपनी है और सबसे अहम धालीवाल फेसबुक पर खुद को इस कंपनी का Director of Strategy बताता है.

अब ये महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि इस कंपनी की ऑफिशियल वेबसाइट  पर कनाडा के एक बड़े सांसद की तस्वीर है और इस सांसद का नाम है जगमीत सिंह, जिसका 2013 में भारत सरकार ने वीजा रद्द कर दिया था क्योंकि, तब भारत की जांच एजेंसियों ने इसके तार खालिस्तान से जुड़े होने की बात कही थी और बड़ी बात ये है कि ये तब हुआ था जब देश में कांग्रेस की  गठबंधन सरकार थी और प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह थे. एक बार के लिए सोचिए कि अगर जगमीत सिंह का वीजा आज रद्द हुआ होता तो क्या होता? तब यही कांग्रेस पार्टी सरकार की आलोचना करती और कुछ मुट्ठीभर लोग सरकार को ट्विटर पर ट्रोल करने की कोशिश करते. लेकिन ऐसा 2013 में हुआ था इसलिए आज इस पर कोई बात नहीं करना चाहेगा. लेकिन हम चाहते हैं कि आपको ये पता हो.

अब आप खुद सोचिए कि ये नेक्सस कितना बड़ा और खतरनाक है और इसमें धालीवाल जैसे लोगों के तार कनाडा के बड़े सांसद जगमीत सिंह से भी जुड़ते दिख रहे है. यहां एक समझने वाली बात ये भी है कि जगमीत सिंह कनाडा की New Democratic Party के नेता हैं और वहां की  सरकार को इस पार्टी का समर्थन मिला हुआ है। और सबसे बड़ी बात ये कि अगर जगमीत सिंह की पार्टी अपना समर्थन वापस ले ले तो जस्टिन ट्रूडो की सरकार गिर जाएगी, तो इससे ये पता चलता है कि मोनमिंदर सिंह धालीवाल की पहुंच कनाडा में कितनी ऊपर तक है और शायद यही वजह है कि कनाडा भारत के खिलाफ खालिस्तानी प्रोपेगेंडा का एपिसेंटर बन गया है, जहां से किसान आंदोलन को नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है. 

रिआना से क्‍या कनेक्‍शन है?

अब हम आपको इस नेक्सस से जुड़ी एक और बड़ी बात बताते हैं कि किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट करने वाली अमेरिका की मशहूर पॉप सिंगर रिआना, इंस्‍टाग्राम पर पर जगमीत सिंह को फॉलो करती हैं. 

दुनियाभर में इंस्‍टाग्राम के कुल यूजर्स की संख्या 100 करोड़ से भी ज़्यादा है और रिआना इन 100 करोड़ यूजर्स में से सिर्फ 1525 लोगों को फॉलो करती हैं और इन लोगों में कनाडा के सांसद जगमीत सिंह भी हैं,  जिन्होंने तीन फरवरी को अपने एक ट्वीट में रिआना को किसान आंदोलन  का समर्थन करने के लिए धन्यवाद दिया था.  अब आप समझ गए होंगे कि भारत के खिलाफ कितनी बड़ी ताकतें काम कर रही हैं. 

मोनमिंदर सिंह धालीवाल कहता है कि ये आंदोलन कृषि कानूनों के वापस होने पर भी खत्म नहीं होगा और उसका एनजीओ भारत के खिलाफ 26 जनवरी के लिए Golbal Day of Action नाम से प्‍लान बनाता है.  जगमीत सिंह के साथ उसकी तस्वीरें सामने आती हैं और फिर ये पता चलता है कि रिआना इंस्‍टाग्राम पर जिन 1525 लोगों को फॉलो  करती हैं, उनमें जगमीत सिंह का नाम भी शामिल है.  सोचिए, अगर ये साजिश नहीं है तो फिर साजिश के ये तार आपस में कैसे जुड़ रहे हैं. 

बारबाडोस देश में जन्म लेने वाली रिआना, हमारे देश भारत पर आरोपों के पत्थर फेंकती हैं. भारत को बदनाम करती हैं. भारत के टुकड़े करने की साजिश करने वालों का साथ देती हैं.  लेकिन भारत, बदनामी के पत्थरों को चुन-चुन कर जमा करता है और फिर ऐसा पुल तैयार करता है, जिससे वो बारबाडोस को कोरोना वैक्‍सीन्‍स की सप्‍लाई करता है. 

हमें पता कि रिआना को भारत का ये रूप कभी समझ में नहीं आएगा. लेकिन हम चाहते हैं कि वो बारबाडोस के प्रधानमंत्री का वो संदेश आज जरूर पढें, जो उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा है. 

उन्होंने लिखा है, बारबाडोस की सरकार और जनता, भारत सरकार की इस बात के लिए शुक्रगुजार है कि उन्होंने कोरोना की वैक्सीन उन्हें दान में दी है. 

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