DNA ANALYSIS: जब पहली बार लोक सभा सांसद चुने गए थे अटल बिहारी वाजपेयी, पंडित नेहरू काे लेकर कही थी ये बात
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DNA ANALYSIS: जब पहली बार लोक सभा सांसद चुने गए थे अटल बिहारी वाजपेयी, पंडित नेहरू काे लेकर कही थी ये बात

अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) पहली बार वर्ष 1957 में लोकसभा के लिए सांसद चुने गए थे.  तब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे.

DNA ANALYSIS: जब पहली बार लोक सभा सांसद चुने गए थे अटल बिहारी वाजपेयी, पंडित नेहरू काे लेकर कही थी ये बात

नई दिल्‍ली:  96 वर्ष पहले 25 दिसंबर के दिन अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था.  अटल जी एक कवि थे, नेता भी थे.  शब्द और भाव पर उनकी ऐसी पकड़ थी कि उन्होंने Twitter, Facebook, Google और WhatsApp का इस्तेमाल किए बगैर अपनी पार्टी को 2 सांसदों से शुरू करके दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया.  अटल जी संयम, कर्मयोग, राष्ट्रवाद और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. यही वजह है कि उनके विरोधी हों या समर्थक,  सभी उनका सम्मान करते थे.  किसी एक व्यक्ति में इतने गुणों का एक साथ मौजूद होना अपने आप में एक बड़ी बात है.

अटल जी कहते थे-

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं. 
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे. 
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा. 

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अटल बिहारी वाजपेयी गठबंधन के नेता थे, सबको साथ लेकर चलते थे.  वो हर जाति, संप्रदाय और विचारधारा के लोगों में लोकप्रिय थे और उनकी राजनीति,  किसी से वैचारिक विरोध के बाद भी बातचीत का सिलसिला नहीं तोड़ती थी.  सरकार की आलोचना और आरोप पर अटल जी की बातों से भारत के जननायक आज भी सीख ले सकते हैं. 

आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया

राजनीतिक जीवन में संयम अटल जी की एक और बड़ी ताकत थी. वर्तमान में सत्ता के लोभ और लालच ने राजनीतिक पार्टियों की नैतिकता को पाताल में पहुंचा दिया है.  करीब 20 वर्ष पहले 17 अप्रैल 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 महीने के कार्यकाल के बाद सिर्फ़ एक वोट की वजह से गिर गई थी.  उस समय AIADMK की अध्यक्ष जयललिता ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चल रही NDA सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.  इससे सरकार अल्पमत में आ गई थी. लेकिन अटल जी ने राजनीतिक संयम रखते हुए अपने आदर्शों से कोई समझौता नहीं किया. 

विपक्ष के विरोध का सामना 

अटल जी की तरह राष्ट्रवादी बनना आसान नहीं है  क्योंकि, इसके लिए इरादा और हौसला भी अटल होना चाहिए.  भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का इरादा भी एक ऐसी चट्टान की तरह था, जिसे हिला पाना असंभव था.  इसका सबसे मज़बूत उदाहरण वर्ष 1998 में देखने को मिला था. जब 11 मई और 13 मई को, भारत ने 5 सफल Nuclear Tests किए थे.  भारत के सफल परमाणु परीक्षण से दुनिया तिलमिला गई थी और हमारे ऊपर कई प्रकार के प्रतिबंध भी लगाए गए थे.  लेकिन अटल जी के इस फैसले ने भारत को दुनिया में एक परमाणु शक्ति के तौर पर स्थापित कर दिया था.  देश को शक्तिशाली बनाने के लिए उन्होंने ये राष्ट्रवादी फैसला लिया था. हालांकि हैरानी की बात ये है कि इस परमाणु परीक्षण के लिए अपने देश में ही उन्हें विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ा था.  

अटल जी, कर्मयोगी थे और ये उनके चरित्र की एक और बड़ी विशेषता थी. कर्मयोगी वो होते हैं जो लगातार अपना काम ईमानदारी से करते हैं. अटल जी चाहे पक्ष में रहे या विपक्ष में, वो लगातार देश के पक्ष में काम करते रहे.  वर्ष 1996 में अटल जी ने 13 दिनों की सरकार चलाई थी. लेकिन विश्वास मत हासिल नहीं होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और इस्तीफा देने से पहले उन्होंने संसद में एक भाषण दिया था.  इस भाषण में उन्होंने देश के सामने जो विचार रखे थे. उसे सुनकर आज के नेता भी चाहें तो सीख ले सकते हैं.

अटल जी पहली बार वर्ष 1957 में लोकसभा के लिए सांसद चुने गए थे.  तब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे.  ZEE NEWS को वर्ष 2005 में दिए एक इंटरव्यू में अटल जी ने कहा था कि उस वक्त उन्होंने साहस दिखाया और लोकसभा में पहली पंक्ति में बैठकर कई मुद्दों पर चर्चा की.  इस इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ तब के बीजेपी सांसद और अभी के केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू भी थे.  किरण रिजिजू ने तब कहा था कि अटल जी के साथ बैठना उनके लिए गर्व की बात है.  इस इंटरव्यू को आज किरण रिजिजू ने खुद शेयर किया है.

शुरुआती दिनों में पहचान एक क्रांतिकारी के रूप में

अपने जीवन के शुरुआती दिनों में अटल जी की पहचान एक क्रांतिकारी के रूप में हुई.  इसके बाद वो कवि और पत्रकार के रूप में मशहूर हो गए.  राजनीति की दुनिया में प्रवेश करने के बाद वो इस क्षेत्र में शीर्ष तक पहुंचे.  लेकिन एक कवि के तौर पर उन्हें ये अहसास हुआ कि जनता तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे अच्छा माध्यम कविता ही हो सकती हैं.  भारत रत्न अटलजी की कविताएं जीवन के दर्शन के बहुत करीब थीं.  वो अक्सर कहा करते थे-

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता

इन पंक्तियों में उनके जीवन का सार छुपा हुआ है. आज अटलजी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी लिखी हुई कविताएं हमेशा हमारे बीच गूंजती रहेंगी. 

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