Farmers Protest पर प्रोपेगेंडा क्‍यों? समझिए कैसे 'आयोजन' में बदल गया आंदोलन
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Farmers Protest पर प्रोपेगेंडा क्‍यों? समझिए कैसे 'आयोजन' में बदल गया आंदोलन

आज आपको ये भी समझना चाहिए कि एक आंदोलन का चरित्र कैसा होता है इसे समझने के लिए आपको वो दौर याद करना होगा, जब भारत आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था. तब भारत में कई बड़े आंदोलन हुए. 

Farmers Protest पर प्रोपेगेंडा क्‍यों? समझिए कैसे 'आयोजन' में बदल गया आंदोलन

नई दिल्‍ली:  भारत को बदनाम करने के लिए जिस मार्केटिंग स्‍ट्रैटजी पर कुछ विदेशी ताकतें काम कर रही हैं. कल 3 फरवरी को उसके खिलाफ भारत ने अभूतपूर्व एकता दिखाई है. ट्विटर पर भारत की एकता को दर्शाने वाले तीन हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं.

  1. भारत में वर्ष 1920 में 'असहयोग आंदोलन' हुआ.
  2. 1930 में महात्मा गांधी ने 'दांडी यात्रा' निकाली और वर्ष 1942 में अंग्रेजों 'भारत छोड़ो आंदोलन' की जड़ें मजबूत हुईं. 
  3. लेकिन आज जो किसान आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा है, वो आंदोलन कम आयोजन ज्‍यादा नजर आता है.

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भारत में कल दिन भर लाखों ट्वीट किए गए और हमारे देश ने दुनिया को ये बता दिया कि भारत एक है और इसके टुकड़े टुकड़े करने का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा.  इनमें देश के गृह मंत्री अमित शाह का भी ट्वीट है, उन्होंने लिखा है कि कोई भी प्रोपेगेंडा भारत की एकता को नहीं तोड़ सकता.  क्रिकेट का भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने भी ट्वीट करके भारत को बदनाम करने वालों को कड़ा जवाब दिया. उन्होंने कहा कि भारत की संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता.  बाहरी ताकतें दर्शक हो सकती है, लेकिन प्रतिभागी नहीं हो सकती. 

इसके अलावा अभिनेता अक्षय कुमार और भारतीय क्रिकेट टीम में बल्लेबाज शिखर धवन ने भी देश की एकता का संदेश दिया. ये ट्वीट सकारात्मक विचारों से भरे हैं और सबसे अहम ये कि ये विचार देश को जोड़ने की बातें करते हैं, तोड़ने की नहीं.

किसानों के इस आंदोलन के पीछे कौन हो सकता है? 

आज ये समझने का भी दिन है कि किसानों के इस आंदोलन के पीछे कौन हो सकता है? इस आंदोलन के पीछे चीन की साजिश हो सकती है, जो पहले से सीमा पर भारत के लिए एक चुनौती बना हुआ है. 

इसके पीछे पाकिस्तान भी हो सकता है जो हमेशा से ही भारत को अस्थिर करने की साजिशें रचता रहा है और इसके पीछे ऐसे अंतरराष्‍ट्रीय तानाशाह भी हो सकते हैं जिन्होंने कसम खाई है कि वो भारत को तबाह करने के लिए हजारों करोड़ रुपये भी खर्च कर सकते हैं. 

समझिए आंदोलन का चरित्र 

आज आपको ये भी समझना चाहिए कि एक आंदोलन का चरित्र कैसा होता है इसे समझने के लिए आपको वो दौर याद करना होगा, जब भारत आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था. तब भारत में कई बड़े आंदोलन हुए. भारत में वर्ष 1920 में 'असहयोग आंदोलन' हुआ. 1920 में ही 'प्रजा मंडल आंदोलन' भी शुरू हुआ. 1930 में महात्मा गांधी ने 'दांडी यात्रा' निकाली और वर्ष 1942 में अंग्रेजों 'भारत छोड़ो आंदोलन' की जड़ें मजबूत हुईं. 

इन सभी आंदोलनों में एक समानता थी कि ये प्रायोजित और लोगों पर जबरदस्ती थोपे गए आंदोलन नहीं थे. इन आंदोलनों में लोगों की भीड़ इकट्ठा करने के लिए पैसे नहीं दिए जाते थे. विदेशी ताकतें काम नहीं करती थीं. तब लोग अपने मन से मजबूत होकर आंदोलन की रीढ़ बनते थे और आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते थे. 

आजादी  के बाद भी जब भारत में आंदोलन हुए और किसान सड़कों पर उतरे तब भी ये आंदोलन प्रायोजित नहीं थे.  आपको 1974 में शुरू हुआ जे पी आंदोलन याद होगा.  तब इस आंदोलन की कमान भारत के बड़े नेता जय प्रकाश नारायण के हाथों में थी और उनके कहने पर लोगों की भीड़ सड़कों पर उतर आती थी.  लेकिन आज जो किसान आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा है, वो आंदोलन कम आयोजन ज्‍यादा नजर आता है.  इस आंदोलन के लिए बड़ी बड़ी मार्केटिंग कंपनियां काम कर रही हैं. पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है और सबसे अहम ये आंदोलन अपने लक्ष्यों से भटका हुआ और विदेशी ताकतों से प्रभावित है. 

देश के खिलाफ होने वाले दुष्प्रचार का हिस्सा क्‍यों बने लोग?

भारत के लिए ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हमारे देश में जो लोग देशभक्ति की फिल्में देख कर सिनेमा हॉल में तालियां बजाते नहीं थकते, वही लोग देश के खिलाफ होने वाले दुष्प्रचार का हिस्सा बन जाते हैं और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को भी कूड़े की तरह डस्‍टबिन में डाल देते हैं.  इसलिए हम चाहते हैं कि आज आपको इन लोगों का चरित्र भी समझना चाहिए क्योंकि, ये लोग किसान आंदोलन पर रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग  के समर्थन से बहुत ज्‍यादा खुश हैं. वो भी तब जब हमारे देश के किसानों से रिहाना का कोई लेना-देना नहीं हैं. वो तो ये तक नहीं जानती हैं कि भारत में किसान आंदोलन किस वजह से हो रहा है और हमारे देश के किसानों की क्या स्थिति है. 

IMF की चीफ इकोनॉमिस्‍ट गीता गोपीनाथ ने किया कृषि कानूनों का समर्थन 

इसलिए हम आपको बताना चाहते हैं कि दुनिया में आर्थिक स्थिरता के लिए काम करने वाली संस्था International Monetary Fund की चीफ इकोनॉमिस्‍ट गीता गोपीनाथ केंद्र सरकार द्वारा लाए तीनों कृषि कानूनों का समर्थन कर चुकी हैं. उन्होंने इन कानूनों को किसानों के लिए लाभकारी बताया है और ये संकेत भी दिए हैं कि भारत को बड़े बदलावों के लिए इस तरह के कानूनों पर जोर देकर काम करना चाहिए. 

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