DNA ANALYSIS: जब जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के विचार को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दी थी चुनौती
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DNA ANALYSIS: जब जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के विचार को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दी थी चुनौती

अनुच्छेद 370 की वजह से ही कई दशकों तक जम्मू-कश्मीर का देश से संपूर्ण विलय नहीं हो पाया था. वर्ष 1950 से 2019 तक जम्मू-कश्मीर वो राज्य था, जहां का निशान अलग था, विधान अलग था. लेकिन एक व्यक्ति ने इस विचार को चुनौती दी और वो थे डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी. 

DNA ANALYSIS: जब जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के विचार को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने दी थी चुनौती

नई दिल्ली: आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर कश्मीर के स्थानीय नेताओं के साथ बैठक करेंगे. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद ये पहली बार होगा जब केंद्र सरकार, जम्मू कश्मीर के सभी नेताओं के साथ दिल्ली में बैठक करेगी.

बैठक में जम्मू-कश्मीर में चुनाव की प्रक्रिया और विकास को लेकर चर्चा हो सकती है. इस बैठक में Gupkar Declaration के नेता भी शामिल होंगे. ये वही एलायंस है, जो कश्मीर में अब भी अनुच्छेद 370 लागू करने की मांग कर रहा है.

अनुच्छेद 370 को दी चुनौती

अनुच्छेद 370 की वजह से ही कई दशकों तक जम्मू-कश्मीर का देश से संपूर्ण विलय नहीं हो पाया था. वर्ष 1950 से 2019 तक जम्मू-कश्मीर वो राज्य था, जहां का निशान अलग था, विधान अलग था. लेकिन एक व्यक्ति ने इस विचार को चुनौती दी और वो थे डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी. कल 23 जून को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि थी.

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक दूरदर्शी नेता थे. वो जानते थे कि अनुच्छेद 370 की वजह से आने वाले वक्त में जम्मू कश्मीर ही नहीं, पूरे देश को बहुत सी परेशानियां होंगी.

जेल में रहस्यमयी तरीके से मौत

उन्होंने वर्ष 1950 से ही अनुच्छेद 370 का विरोध शुरू कर दिया था. उन्होंने एक देश, एक विधान, एक निशान का नारा दिया. देश की अखंडता को चुनौती देने वाले अनुच्छेद 370 का विरोध करने की वजह से 11 मई वर्ष 1953 को उन्हें गिरफ्तार किया गया और फिर 23 जून को जम्मू कश्मीर की जेल में उनकी रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई.

जब 5 अगस्त 2019 को संसद में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया जाना तय हुआ, तो उस दिन भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना पूरा हुआ.
वो सपना था- एक देश, एक विधान और एक निशान.

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने देश की अखंडता और एकता के लिए अनुच्छेद 370 का हमेशा विरोध किया. उन्होंने इसके खिलाफ पूरे देश में सभाएं कीं, रैलियां निकालीं, विरोध प्रदर्शन किए और इसी के लिए उन्होंने जान कुर्बान कर दी.

वर्ष 1953 में 23 जून को ही डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी की मौत जम्मू कश्मीर की एक जेल में रहस्यमयी तरीके से हो गई थी. 11 मई 1953 को गिरफ्तार किए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पूरे 40 दिनों तक जम्मू-कश्मीर की शेख अब्दुल्ला सरकार ने कैदी की तरह रखा था.

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जेल में बंद रखने की वजह मात्र इतनी थी कि वो बिना परमिट के अपने ही देश के एक राज्य में जा रहे थे. अनुच्छेद 370 में प्रावधान था कि बिना परमिट के कोई जम्मू कश्मीर में प्रवेश नहीं कर सकता था.

जम्मू-कश्मीर का असली विलय

वर्ष 1953 में ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर का भारत में संपूर्ण विलय के लिए प्रजा परिषद के आंदोलन का समर्थन किया था. 23 जून 1953 को उनकी मौत के कुछ समय बात परमिट सिस्टम को खत्म कर दिया गया, लेकिन जम्मू-कश्मीर का असली विलय 66 साल बाद हुआ जब अनुच्छेद 370 हटाया गया.

1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी वर्ष 1934 से 1938 तक कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति रहे. उस वक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी मात्र 33 वर्ष के थे, जिसकी वजह उस वक्त वो सबसे कम उम्र के कुलपति चुने गए थे.

नेहरू सरकार में वो मंत्री भी रहे, कैबिनेट में वो Industry And Supply Minister थे, लेकिन वर्ष 1950 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि, वो पंडित नेहरू की कुछ नीतियों से सहमत नहीं थे.

नेहरू सरकार से इस्तीफा 

नेहरू सरकार से इस्तीफा देकर डॉक्टर मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ बनाया था. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत एक रहस्य बनकर रह गई क्योंकि, कैद में रहते हुई उनकी मौत पर कभी कोई जांच नहीं बैठाई गई. पश्चिम बंगाल के एक नेता तथागत रॉय की किताब The Life And Times Of Shyama Prasad Mookerjee में पंडित जवाहर लाल नेहरू और श्यादा प्रसाद मुखर्जी की मां के बीच हुई बातचीत का जिक्र है.

किताब में लिखा है कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने जवाहर लाल नेहरू से डॉ. मुखर्जी की रहस्यमयी मौत की जांच की मांग की, लेकिन नेहरू ने मौत को रहस्यमयी नहीं माना था. इसी वजह से आजतक उनकी मौत से पर्दा नहीं उठ पाया. हालांकि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सपना पूरा जरूर हो गया.

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