DNA ANALYSIS: कोरोना पर भारत की Success Story की खास बातें, हुए 5 बड़े असर
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DNA ANALYSIS: कोरोना पर भारत की Success Story की खास बातें, हुए 5 बड़े असर

कर्फ्यू का ये विचार कई मायनों में अलग था क्योंकि, तब तक हम लोगों के लिए कर्फ्यू का मतलब था- किसी शहर या जिले में प्रशासन द्वारा लगाई गई सख्‍ती, जिसमें Indian Penal Code यानी IPC की धारा 144 का इस्तेमाल किया जाता है और क्षेत्र के डीएम या पुलिस कमिश्नर को सभी फैसले लेने के अधिकार मिल जाते हैं, लेकिन इस कर्फ्यू में ऐसा नहीं था.

DNA ANALYSIS: कोरोना पर भारत की Success Story की खास बातें, हुए 5 बड़े असर

नई दिल्‍ली: कल 22 मार्च को जनता कर्फ्यू को एक वर्ष पूरे हो गए हैं. 22 मार्च को पिछले वर्ष भारत में जनता कर्फ्यू लगा था और तब हमने दुनिया को ये बताया था कि जब संकल्प और साहस बड़ा होता है तब कोई भी विपदा, कोई भी संकट बड़ा नहीं रह जाता. जनता कर्फ्यू ने ही कोरोना वायरस के ख़िलाफ भारत की एकता के सूत्र को भी स्पष्ट किया और हम बड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार हो पाए. 

भारत बना दुनिया के लिए मिसाल

जनता कर्फ्यू से एक दिन पहले यानी 21 मार्च 2020 को देश में कोरोना वायरस के कुल मरीज़ों की संख्या 396 थी. यानी मरीज़ों की संख्या तो कम थी लेकिन डर बहुत ज़्यादा था. हर कोई परेशान था और ये सोच रहा था कि वो जीवित रहेगा भी या नहीं. दुनियाभर में भारत को लेकर संशय की स्थिति थी और अमेरिका जैसे देशों का अनुमान था कि भारत इस संकट से बुरी तरह लड़खड़ा जाएगा और भारत में इस महामारी से करोड़ों लोग प्रभावित होंगे.

हालांकि भारत के लोग उस समय डरे हुए जरूर थे लेकिन हारे नहीं थे. आप कह सकते हैं कि इस संघर्ष के लिए हमने सबसे पहले डर को डिलीट करना सीखा और इसकी शुरुआत जनता कर्फ्यू से हुई. हमने धैर्य को हथियार, एकता को अपनी ताकत और अनुशासन को अपना रास्ता बनाया और भारत दुनिया के लिए मिसाल बन गया.

सबसे बड़ा कर्फ्यू 

इससे पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भारत में इतना बड़ा कर्फ्यू लगेगा कि 135 करोड़ लोग अपने घरों में रहेंगे और सबकुछ बंद हो जाएगा. सोचिए, जिस देश के लिए ये कहा जाता है कि यहां लोग अनुशासित नहीं हैं और यहां नियमों का पालन कराना लोगों से लगभग नामुमकिन है. उस देश के लोगों ने ख़ुद पर दुनिया का सबसे बड़ा कर्फ्यू लगाया और इसे कामयाब भी किया. 

जनता कर्फ्यू के अनुभव से क्‍या सीखा जा सकता है?

आज जब देश में कोरोना संक्रमण की रफ़्तार फिर से बढ़ रही है. तब ये समझना भी जरूरी है कि भारत जनता कर्फ्यू के अपने अनुभव से क्या सीख सकता है और आज हम इसमें आपकी मदद करेंगे. इसके साथ ही आज हम हमारे देश की अद्भुत एकता शक्ति का भी विश्लेषण करेंगे, जो न सिर्फ हमारी ताकत है, बल्कि हमारी संस्कृति भी है.

इसके लिए सबसे पहले हम आपको एक साल पीछे ले जाना चाहते हैं. तब तारीख 19 मार्च थी और देश में डर और भय का माहौल था. एक एक कर लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे थे और लोगों के लिए ये समझना था कि वो कैसे इस महामारी का सामना करें. उस दिन 19 मार्च को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात 8 बजे ये घोषणा की थी कि देश में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू रहेगा. 

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कर्फ्यू का विचार कई मायनों में अलग

कर्फ्यू का ये विचार कई मायनों में अलग था क्योंकि, तब तक हम लोगों के लिए कर्फ्यू का मतलब था- किसी शहर या जिले में प्रशासन द्वारा लगाई गई सख्‍ती, जिसमें Indian Penal Code यानी IPC की धारा 144 का इस्तेमाल किया जाता है और क्षेत्र के डीएम या पुलिस कमिश्नर को सभी फैसले लेने के अधिकार मिल जाते हैं, लेकिन इस कर्फ्यू में ऐसा नहीं था. ये कर्फ्यू जनता ने अपनी इच्छा से अपने लिए खुद पर लगाया था और इसे सफल बनाने की जिम्मेदारी भी लोगों पर ही थी और बाहर निकलने के अधिकार भी लोगों के पास ही थे.

उस समय देश ने अनुशासन दिखाया और जनता कर्फ्यू की ऐसी तस्वीरें दुनिया ने देखीं, जिसने सबको हैरान कर दिया. उस दिन सड़कें खाली थीं और लोग अपने घरों में थे. इस कर्फ्यू के दौरान देश ने शाम के 5 बजे 5 मिनट के लिए ताली, थाली और घंटी बजा कर उन लोगों का भी आभार व्यक्त किया, जो अपनी ड्यूटी पर थे. इन लोगों को कोरोना वॉरियर्स कहा गया. डॉक्टर्स, नर्सें, अस्पताल के दूसरे कर्मचारी, पुलिसकर्मी, पत्रकार और सफाई कर्मचारियों ने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई. 

पीएम मोदी की अपील 

लोगों ने अपने घर की बालकनी, खिड़की और दरवाज़े पर खड़े होकर ताली, थाली और घंटी बजाई. इससे ही देश में एकता का शोर पैदा हुआ और ये एक अभियान बन गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक अपील पर देश के 135 करोड़ लोग एक हो गए और इसी एकता ने ये तय किया कि भारत कैसे इस पूरी लड़ाई को लड़ेगा और कैसे चुनौतियों से निपटेगा. आज हम सबसे आपको प्रधानमंत्री के उस संबोधन के कुछ महत्वपूर्ण अंश सुनाना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने जनता कर्फ्यू का ऐलान किया था.

लक्ष्मण रेखा का महत्व

संकट के समय में एक छोटी सी भी चीज़ महत्वपूर्ण होती है और भारत ने इसका पूरा ध्यान रखा और इसके साथ ही हमने लक्ष्मण रेखा का महत्व भी समझा. ये रेखा भी हमने खुद ही खींची थी यानी जनता कर्फ्यू की सफलता ने तय किया कि भारत आने वाले दिनों में चुनौतियों से कैसे निपटेगा. आज जब हम आपको ये सब बातें बता रहे हैं तो शायद आपको ये सब सामान्य लग रहा होगा लेकिन उस समय ऐसा नहीं था और इसकी कई वजह थीं. 

भारत में उस समय सरकारी अस्पतालों में सिर्फ 16 हज़ार वेंटिलेटर्स  उपलब्ध थे और परिस्थितियों को देखते हुए क़रीब 70 हज़ार वेंटिलेटर्स  की कमी थी. इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा ये जानकारी दी गई थी कि उस समय देश में 84 हज़ार लोगों पर एक आइसोलेशन बेड था. जबकि 36 हज़ार लोगों पर एक क्‍वारंटीन बेड था यानी स्थिति अच्छी नहीं थी और लोग डरे हुए थे. 

हालांकि आज जब देश अनलॉक हो चुका है तब इसकी कई वजह है.आज सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की संख्या 16 हज़ार से बढ़ कर लगभग 36 हज़ार हो गई है. इसके अलावा तब देश में वेंटिलेटर बनाने वाली सिर्फ़ 8 कंपनियां थीं जिनकी संख्या अब 17 हो गई है और इन कंपनियों की सालाना उत्पादन क्षमता 3 लाख 96 हज़ार 260 वेंटिलेटर्स है. इसके अलावा पिछले साल की तुलना में कोरोना वायरस की जांच के लिए लैबोरेटरी की संख्या भी एक से बढ़ कर 2 हज़ार 300 हो गई है. 

इसके अलावा उस समय भारत में PPE किट भी नहीं बनती थी, लेकिन आज भारत PPE किट बनाने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है. कहते हैं कि हम उतने ही मजबूत होते हैं, उतने हम एकजुट होते हैं. अंग्रेज़ों की गुलामी से भी हमें तभी आज़ादी मिली जब हम एकजुट हुए और इसी एकजुटता वाली संस्कृति का परिचय हमने जनता कर्फ्यू के दौरान दिया. 

जनता कर्फ्यू के पांच बड़े असर थे-

पहला असर ये था कि इसने देश के लोगों को पैनिक के माहौल से बाहर निकाला.

दूसरा ये कि जब कोरोना वॉरियर्स का ताली और थाली बजाकर आभार व्यक्त किया गया तो देश में उत्सव जैसा माहौल बन गया. इसी माहौल ने हमें निगेटिविटी से भी बाहर निकाला. हालांकि तब हमारा मजाक भी बनाने की कोशिश हुई, लेकिन इसके बावजूद हम रुके नहीं.

तीसरा ये क‍ि हेल्‍‍थ वर्कर्स को हमने नेशनल हीरो बना दिया और तब लोग अपने घरों से डॉक्टरों पर फूलों की वर्षों भी करते थे. 

चौथा भारत ने इस संकट से निपटने के लिए बेहद अद्भुत तरीका अपनाया और लोगों को जागरूक किया कि वो कोरोना वायरस से बचने के लिए नियमों का पालन करें और अनुशासित रहें

और पांचवां ये कि जनता कर्फ्यू की वजह से ही भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लॉकडाउन लागू करना आसान हुआ. जिसके बाद ब्रिटेन और दूसरे पश्चिमी देशों ने भी हमारे ही तरीकों को अपनाया.

अनुभव से क्या सीख सकते हैं?

आज जब जनता कर्फ्यू को एक साल पूरे हो गए हैं तब ये समझना भी जरूरी है कि मौजूदा परिस्थितियों में हम अपने अनुभव से क्या सीख सकते हैं. 

पहला है अनुशासन, आज देशभर में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है और पिछले 24 घंटे में लगभग 47 हजार मामले सामने आ चुके हैं. जबकि पिछले साल जब लॉकडाउन लगाया गया था तब देश में कुल मिला कर 396 मरीज़ ही थे.  ऐसे में जनता कर्फ्यू के दौरान आपने जो अनुशासन दिखाया. उसकी देश को एक बार फिर ज़रूरत है. अगर आप बेवजह अपने घरों से बाहर न निकलें, मास्क और दो गज की दूर के नियम का पालन करें तो ये अनुशासन कोरोना वायरस के कमबैक को असफल कर सकता है.

दूसरा है गंभीरता, पिछले साल लोगों में काफ़ी डर था. हालांकि जनता कर्फ्यू और बाद में लॉकडाउन के दौरान लोगों ने इस महामारी को लेकर गंभीरता  दिखाई और अपना और अपनों का ख़्याल रखा. इसी गंभीरता की जरूरत देश को एक बार फिर है. हमारी आपसे यही अपील है कि आप कोरोना वायरस को हल्के में बिल्कुल मत लीजिए.

तीसरा पॉइंट है ईमानदारी, अगर आप किसी कोरोना संक्रमित मरीज के सम्पर्क में आते हैं तो आपको देश के प्रति ईमानदार रहते हुए कहीं बाहर यात्रा नहीं करनी है और सरकारी दिशा निर्देशों का भी पालन करना है. जैसे जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन के दौरान आपने किया था. यानी इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में अगर आप अनुशासन, गंभीरता और ईमानदारी को अपना हथियार बना लें तो इससे बड़ी कोई दूसरी सामाजिक वैक्सीन नहीं हो सकती और इससे आप कोरोना वायरस को नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.

सबसे अहम बात ये कि अब देश में कोरोना वायरस की एक नहीं, दो-दो वैक्सीन आ चुकी हैं इसलिए अपना नंबर आने पर वैक्सीन जरूर लगवाएं क्योंकि, वैक्सीन ही इस महमारी के खिलाफ एक सुरक्षा कवच का काम करेगी.

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