Gyanvapi Masjid Case: वाराणसी की सिविल कोर्ट ने Archaeological Survey of India (ASI) को पूरे ज्ञानवापी परिसर की जांच कराने के आदेश दिए हैं. ये परिसर वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है.
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नई दिल्ली: आज हम आपको काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आए कोर्ट के एक बहुत महत्वपूर्ण फैसले के बारे में बताना चाहते हैं, जिसने हमारे देश के कट्टरपंथी, कुछ बुद्धिजीवी और कुछ उदारवादी लोगों को परेशान कर दिया है. खुद को सहनशीलता का चैम्पियन बताने वाले इन लोगों को ये फैसला सहन नहीं हो रहा है.
वाराणसी की सिविल कोर्ट ने इस मामले में Archaeological Survey of India को पूरे ज्ञानवापी परिसर की जांच कराने के आदेश दे दिए हैं. ये परिसर वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है, जहां ज्ञानवापी मस्जिद मौजूद है. वैसे तो ये मामला 352 वर्ष पुराना है, लेकिन पिछले 24 घंटों से इस पर बहुत चर्चा हो रही है.
इस मामले में हिन्दू पक्षकारों का कहना है कि मुगल शासक औरंगज़ेब ने वर्ष 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करके ज्ञान वापी मस्जिद का निर्माण कराया था. यानी जिस जगह अभी मस्जिद है, वहां पहले भगवान शिव को समर्पित असली ज्योतिर्लिंग मौजूद था, लेकिन बाद में औरंगजेब ने मंदिर तुड़वा दिया और मस्जिद बनवा दी.
और अब कोर्ट ने इसी के साक्ष्य ढूंढने के लिए Archaeological Survey of India को सर्वेक्षण के लिए आदेश दिए हैं और ये काफी महत्वपूर्ण फैसला है.
ज्ञानवापी विवाद में Archaeological Survey of India को शामिल करने का मतलब आप समझते हैं? इसका मतलब है कि अब जो पूरी जांच होगी साक्ष्य के आधार पर होगी, विश्वास या धर्म के आधार पर नहीं होगी. इस पर राजनीति नहीं चलेगी. ये वैज्ञानिक जांच होगी. इसमें जो साक्ष्य दिए जाएंगे, वो भी वैज्ञानिक जांच के आधार पर दिए जाएंगे और विज्ञान झूठ नहीं बोलता, विज्ञान धर्म को नहीं मानता, विज्ञान सच बताता है और इसलिए ये फैसला बहुत अहम है.
इस विश्लेषण में हमने मौजूदा ज्ञान वापी परिसर के नक्शे से लेकर, मस्जिद वाली जगह पर मंदिर होने के कई साक्ष्य भी आपके सामने रखे थे और इस विश्लेषण को दिखाने के बाद देशभर से हमारे पास कई प्रतिक्रियाएं आई थीं. लोगों ने हमें इस विश्लेषण के लिए धन्यवाद दिया था और वहीं से ये मुहिम शुरू हुई थी, जो अब नए पड़ाव पर पहुंच गई है. इसलिए सबसे पहले आपको कोर्ट के आदेश की पांच बड़ी बातें बताते हैं कि कोर्ट ने इस पर क्या कहा है.
पहली बात कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर की खुदाई के लिए Archaeological Survey of India को पांच सदस्यों की एक टीम बनाने के लिए कहा है, जो सर्वेक्षण के काम का नेतृत्व करेगी. महत्वपूर्ण बात ये है कि पांच लोगों की इस टीम में दो सदस्य मुस्लिम समुदाय से भी होंगे.
दूसरी बात इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य ये पता लगाना है कि क्या ज्ञानवापी मस्जिद, वहां पहले से मौजूद किसी मंदिर को तोड़ कर, बदल कर या उसके ऊपर बनाई गई थी.
तीसरी बात अगर जांच में इसके ठोस साक्ष्य मिलते हैं कि मस्जिद वाली जगह पर पहले मंदिर था तो इस टीम को अपनी रिपोर्ट में ये भी बताना होगा कि उस मंदिर की बनावट, उसका आकार और उस पर किस तरह की शिल्प कला थी और अगर मंदिर था तो उस मन्दिर में किस देवी-देवता की मूर्ति विराजमान थी. ये भी बताना होगा.
चौथी बात इस पांच सदस्यीय टीम को सर्वेक्षण के दौरान ज्ञान वापी परिसर के किसी भी हिस्से में जाने और वहां जांच करने का अधिकार होगा. टीम को ऐसा करने से न रोका जाए, ये सुनिश्चित करना पुलिस का काम होगा.
और पांचवीं बात ये कि खुदाई के दौरान मीडियाकर्मी वहां मौजूद नहीं रह सकते. कोर्ट ने केवल हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों को इस दौरान वहां मौजूद रहने की अनुमति दी है. साथ ही इसकी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के भी निर्देश दिए हैं.
तो ये वो पांच बातें जिससे इस मामले को नई दिशा मिलेगी.
वाराणसी सिविल कोर्ट ने 2 अप्रैल को ही इस मामले की सुनवाई पूरी की थी और ये जो मुकदमा चल रहा है, इसमें 3 पक्ष हैं.
पहले, स्वयंभू ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर यानी खुद साक्षात भगवान शिव हैं. वैसे ही जैसे अयोध्या मामले में रामलला विराजमान खुद पार्टी थी. अदालत ने वकील विजय शंकर रस्तोगी को भगवान शिव का वाद मित्र नियुक्त किया है.
दूसरा पक्ष है, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड.
और तीसरा पक्ष है, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी. ये ज्ञानी वापसी मस्जिद की ही कमेटी है.
जब मंदिर तोड़ कर यहां मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने मस्जिद बनवाई थी तब किसी को आपत्ति नहीं थी. सैकड़ों वर्षों तक इस पर किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन अब जब इस मामले में न्याय की बात उठ रही है तो हमारे देश के कट्टरपंथी इससे परेशान होने लगे हैं.
आपको याद होगा कि पिछले साल 1 अक्टूबर को हमने DNA में इस पूरे मामले पर विस्तृत जानकारी आपको दी थी और एक शानदार विश्लेषण आपको दिखाया था.
इस मामले में अदालत के फ़ैसले के बाद मुस्लिम पक्षकारों ने नाराजगी जताई है. सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने इस मामले में हाई कोर्ट का रुख करने का फ़ैसला किया है. बोर्ड की दलील है कि ये मामला पहले से इलाहाबाद हाई कोर्ट में विचाराधीन है, ऐसे में सिविल कोर्ट के फ़ैसले का महत्व ज़्यादा नहीं रह जाता. यानी अब इस मामले में हाई कोर्ट जाने की तैयारी हो गई है.
ज्ञान वापी मस्जिद प्रबंधन ने भी इस फ़ैसले का विरोध किया है और बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकार रहे इक़बाल अंसारी ने भी सिविल कोर्ट के फ़ैसले पर नाराज़गी जताई और कहा है कि हाई कोर्ट में ये फ़ैसला खारिज हो जाएगा.
अब आप समझ गए होंगे कि क्यों हम कह रहे हैं कि इससे फ़ैसले से कुछ लोगों को परेशानी होने लगी है.
हालांकि मुस्लिम पक्ष अपनी इस दलील के पीछे 1991 में बने Places of Worship Act यानी उपासना स्थल क़ानून को आधार बता रहे हैं क्योंकि, इस क़ानून के अनुसार देश में धार्मिक स्थलों पर 15 अगस्त 1947 के दिन की यथास्थिति लागू है और सिर्फ़ अयोध्या मामले को इसका अपवाद माना गया था.
हालांकि अदालत में भगवान शिव के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने कहा है कि सर्वेक्षण में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा क्योंकि, ज्ञानवापी परिसर में जिस जगह अभी मस्जिद है, वहां मंदिर होने के साक्ष्य मिलते हैं और इसके बारे में हमने आपको 6 महीने पहले ही बता दिया था.
अभी जो मौजूदा काशी विश्वनाथ मंदिर है, उसे वर्ष 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने बनवाया था और ये मंदिर ज्ञानवापी परिसर के पास में ही है क्योंकि, इससे पहले वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद बना दी थी. हिन्दू पक्षकारों का मानना है कि काशी मंदिर की वास्तविकता दो हज़ार वर्षों पुरानी है.
क़रीब दो हज़ार साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने काशी विश्व नाथ मंदिर बनाया था, जो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसीलिए इसे हिन्दुओं की आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता है.
पिछले साल एक अक्टूबर को जब हमने इस पर आपके लिए विश्लेषण तैयार किया था, तो ये सारी जानकारियां साक्ष्यों के साथ उसमें थीं. हम चाहते हैं कि अयोध्या के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर की जो मुहिम नए पड़ाव पर पहुंची है, उसे मज़बूत करने के लिए इससे जुड़ी तमाम जानकारियां आपको होनी चाहिए.
आज जब इस मामले में कोर्ट के फैसले का विरोध शुरू हो गया है तो हमें राम मंदिर मामले की भी याद आती है. आपको याद होगा कि राम मंदिर के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उस मामले में सैकड़ों वर्ष तक नाइंसाफ़ी हुई थी और जब इंसाफ़ की मांग उठी तो कई कट्टरपंथी इसके ख़िलाफ़ खड़े हो गए. इस मामले में भी यही हो रहा है. आज जब 352 वर्षों के बाद इस मामले में इंसाफ़ की बात उठ रही है तो हमारे देश के कुछ कट्टरपंथियों को इससे परेशानी शुरू हो गई है, तो ऐसे में आज हमारा सवाल ये है कि क्या ये राम मंदिर पार्ट 2 तो नहीं है.