DNA ANALYSIS: पढ़े-लिखे केरल पर दहेज हत्या के दाग, पिछले 5 साल में सामने आए इतने ज्यादा मामले
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DNA ANALYSIS: पढ़े-लिखे केरल पर दहेज हत्या के दाग, पिछले 5 साल में सामने आए इतने ज्यादा मामले

वर्ष 1960 से लेकर वर्ष 2008 के बीच केरल में दहेज की रकम में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यानी जितनी तेज़ी से केरल के लोग साक्षर नहीं हुए ज्यादा तेज़ी से लोग दहेज के लालची बन गए.

DNA ANALYSIS: पढ़े-लिखे केरल पर दहेज हत्या के दाग, पिछले 5 साल में सामने आए इतने ज्यादा मामले

नई दिल्ली: आज हम भारत के उस उद्योग का विश्लेषण करेंगे जिससे निकलने वाला लालच का धुआं भारत के समाज को लगातार बीमार कर रहा है. इस उद्योग का नाम है दहेज. भारत में हर साल 1 करोड़ शादियां होती हैं और इनमें से 95 प्रतिशत में किसी न किसी रूप में दहेज दिया जाता है.

  1. केरल में साक्षरता दर 96 प्रतिशत से ज्यादा है.
  2. 1960 से लेकर वर्ष 2008 के बीच केरल में दहेज की रकम में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
  3.  5 वर्षों में 66 महिलाओं की हत्या दहेज की वजह से.
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दहेज पर रक्षा बजट से भी ज्यादा खर्च

भारत में औसतन एक शादी में दहेज की रकम की शुरुआत 2 से तीन लाख रुपये के बीच होती है और ये दो से तीन करोड़ रुपये तक भी जा सकती है. यानी भारत में दहेज वाला ये उद्योग कुछ नहीं तो कम से कम 5 से 10 लाख करोड़ रुपये का है, जबकि भारत का रक्षा बजट भी अभी सिर्फ साढ़े तीन लाख करोड़ का है. भारत में देश की रक्षा करते हुए हर साल औसतन डेढ़ हजार सैनिक शहीद होते हैं, लेकिन दहेज पर रक्षा बजट से भी ज्यादा खर्च करने वाले भारत में साढ़े सात हजार महिलाएं दहेज के लालचियों के हाथों में मार दी जाती हैं.

इतना ही नहीं भारत का स्वास्थ्य बजट सवा दो लाख करोड़ रुपये और शिक्षा बजट 93 हजार करोड़ रुपये है. यानी भारत शिक्षा पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करके भी लोगों को दहेज के खिलाफ जागरूक नहीं कर पाता.

केरल इस लालच का नया केंद्र

और अब भारत का सबसे शिक्षित राज्य केरल इस लालच का नया केंद्र बन गया है. केरल में पिछले दिनों कई महिलाओं को दहेज की वजह से मार दिया गया. केरल में साक्षरता दर 96 प्रतिशत से ज्यादा है जबकि पिछले महीने ही वर्ल्ड बैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1960 से लेकर वर्ष 2008 के बीच केरल में दहेज की रकम में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यानी जितनी तेज़ी से केरल के लोग साक्षर नहीं हुए ज्यादा तेज़ी से लोग दहेज के लालची बन गए. स्थिति ये है कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान को दहेज उत्पीड़न के खिलाफ उपवास रखना पड़ा.

केरल में दहेज उत्पीड़न का सबसे ताज़ा और सबसे चर्चित मामला 24 साल की विस्मया का है, जो पेशे से एक डॉक्टर थीं. विस्मया की शादी पिछले साल केरल के कोल्लम ज़िले में रहने वाले 30 साल के किरण कुमार से हुई थी, लेकिन पिछले महीने संदेहास्पद परिस्थितियों में इस 24 साल की महिला की मौत अपने ससुराल में हो गई.

मौत से दो दिन पहले ही विस्मया ने अपने परिवार को मैसेज करके इस बात की जानकारी दी थी कि दहेज की वजह से उसके साथ मारपीट की जा रही है. इस महिला ने अपने घरवालों को वो तस्वीरें भी भेजी थीं. जिसमें उसके शरीर पर चोट के निशान साफ तौर पर देखे जा सकते हैं.

आरोप है कि विस्यमा का पति उसपर और उसके परिवार पर दहेज का दबाव बना रहा था और वो शादी के बाद कम से कम 5 बार इस महिला के साथ बुरी तरह से मारपीट कर चुका था. विस्मया का परिवार दहेज के रूप में किरण कुमार को 800 ग्राम सोना, कुछ एकड़ ज़मीन और एक महंगी गाड़ी दे चुका था, लेकिन इसके बाद भी वो लगातार और पैसों की मांग करता रहा.

विस्मया का पति खुद पेशे से केरल के मोटर वाहन विभाग में एक अच्छे पद पर तैनात है और काफी पढ़ा लिखा भी है, लेकिन अब उस पर देहज के लिए अपनी पत्नी की हत्या करने का आरोप है और वो इस समय जेल में है.

विस्मया की शादी तस्वीरें देखकर आप समझ सकते हैं कि वो शादी के दौरान कितनी खुश थीं. इन तस्वीरों को देखकर नहीं लगता कि इस महिला को इस बात का ज़रा सा भी अंदाज़ा रहा होगा कि शादी के बाद उसका जीवन नर्क में बदल जाएगा.

पिछले 5 वर्षों में 66 महिलाओं की हत्या 

केरल में सिर्फ दहेज के लोभियों की संख्या और उनका लालच ही नहीं बढ़ा है, बल्कि केरल में दहेज की वजह से होने वाली मौतों की संख्या भी बढ़ी है. केरल में पिछले 5 वर्षों में 66 महिलाओं की हत्या दहेज की वजह से हो चुकी है, जबकि इस दौरान दहेज उत्पीड़न के 15 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं.

केरल में 1960 के दशक में हर शादी में औसतन 20 हज़ार रुपये दहेज दिया जाता था, जो 2008 आते आते बढ़कर 80 हज़ार रुपये हो गया और ज़ाहिर है कि अब 13 साल बाद दहेज की ये औसत रकम कई गुना बढ़ गई होगी .

विस्मया के परिवार ने दहेज में करीब 40 लाख रुपये का सोना, लाखों की ज़मीन और 15 लाख रुपये की एक गाड़ी दी थी.

दूल्हे के प्रोफाइल के हिसाब से दहेज

पूरे भारत की तरह केरल में भी दूल्हे के प्रोफाइल के हिसाब से उसका रेट तय होता है, दूल्हा अगर IAS ऑफिसर है तो दहेज की रकम एक से दो करोड़ रुपये के बीच हो सकती है, अगर दूल्हा दुबई में व्यवसाय या अच्छी नौकरी करता है तो ये रकम 50 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच हो सकती है. एक लाख रुपये महीना कमाने वाले दूल्हे का परिवार भी दहेज में 30 से 40 लाख रुपये मांग लेता है.

केरल में 55 प्रतिशत हिंदू, 26 प्रतिशत मुस्लिम और 18 प्रतिशत ईसाई रहते हैं, लेकिन वहां इन सभी समुदायों में दहेज की प्रथा बहुत आम है. अगर दूल्हा सीरियन ईसाई है तो उसके लिए लड़की के घरवाले 30 लाख रुपये तक का दहेज दे देते हैं. वहीं मुस्लिम समुदाय में भी अगर दूल्हा गल्फ के किसी देश में नौकरी कर रहा होता है तो उसके घर वाले भी लड़की वालों से लाखों रुपये का दहेज मांगते हैं. ये आंकड़े हमने केरल के अलग अलग स्थानीय अखबारों और वहां छपने वाली मीडिया रिपोर्ट से हासिल किए हैं. 24 साल की विस्मया की जान तो दहेज की वजह से चली गई, लेकिन अब उसके भाई ने लोगों से अपील की है कि वो दहेज के खिलाफ आवाज उठाएं.

दहेज पर महात्मा गांधी ने कही थी ये बात

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि जो युवा शादी के लिए दहेज की शर्त रखता है. वो न सिर्फ अपनी शिक्षा, बल्कि अपने देश को भी ठोकर मारने का काम करता है और ये महिलाओं का सबसे बड़ा अपमान है और अब केरल के ही कई युवा महिलाओं के इस अपमान के खिलाफ खड़े हो गए हैं. इतना ही नहीं केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी दहेज प्रथा के खिलाफ एक दिन का उपवास रखा. उन्होंने इस मामले पर Zee News से विशेष बातचीत की और कहा जब तक हर कोई दहेज के खिलाफ आवाज नहीं उठाएगा, तब तक इस गलत प्रथा को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता.

हर साल एक करोड़ शादियां

भारत में हर साल एक करोड़ शादियां होती हैं और इनपर 3 लाख 75 हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं. लेकिन इतना पैसा खर्च करने के बाद भी भारत में हर दिन 21 महिलाओं को दहेज की वजह से मार दिया जाता है. यानी भारत में हर घंटे दहेज हत्या की एक घटना होती है और ये हाल तब है जब भारत में वर्ष 1961 से ही दहेज मांगना गैर कानूनी है. हालांकि 1984 में इस कानून में बदलाव करके दूल्हा और दुल्हन को मिलने वाले तोहफों को इससे बाहर कर दिया गया और आज इन्हीं गिफ्ट्स की आड़ में लाखों रुपये के दहेज का लेन देन किया जाता है. ये स्थिति तब है जब IPC की धारा 498-A के तहत दहेज लेने वाले अपराधियों को कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान है. इसके तहत दोषी को 10 साल तक की सजा हो सकती है.

महिलाओं के पक्ष में फैसला सिर्फ 15 प्रतिशत मामलों में

दहेज उत्पीड़न के जो मामले कोर्ट पहुंचते हैं उनमें से सिर्फ 15 प्रतिशत में ही महिलाओं के पक्ष में फैसला आता है. भारत के एक NGO की रिपोर्ट के मुताबिक बेटियों की शादी करने के लिए भारत के 60 प्रतिशत परिवार, बैंक या दूसरे माध्यमों से कर्ज़ लेते हैं. फिर भी भारत में हर साल साढ़े सात हजार महिलाओं को दहेज के लिए मार दिया जाता है. यानी भारत में एक पिता अपनी बेटी भी गंवा देता है और अपनी ज़मीन जायदाद भी. फिर भी दहेज के लिए महिलाओं के शोषण में कमी नहीं आती.

भारत में दहेज प्रथा की शुरुआत कब हुई?

हैरानी की बात ये है कि भारत में दहेज प्रथा की शुरुआत कब हुई इसकी ठीक ठीक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, जबकि दुनिया के दूसरे देशों में इसकी शुरुआत के पुख्ता प्रमाण उपलब्ध हैं.

उदाहरण के लिए 3 से 4 हजार पुरानी बेबीलोन सभ्यता में दहेज लिए जाने के सबूत मिलते हैं. इसके अलावा प्राचीन ग्रीस और यूरोप में भी लड़की के परिवार वालों को दहेज देना पड़ता था. प्राचीन रोम में तो लड़की का परिवार अपना घर गिरवी रखकर दहेज का इंतजाम करता था और जो परिवार अत्यधिक गरीब होते थे, उनकी बेटियों को शादी की इजाजत नहीं दी जाती थी.

भारत के इतिहास का अध्ययन करने वाले मानते है कि प्राचीन भारत में दहेज जैसी कोई प्रथा नहीं थी. ऐतिहासिक सबूतों के मुताबिक, 20वीं सदी की शुरुआत तक भारत में लड़की का परिवार नहीं, बल्कि लड़के का परिवार दहेज देता था और इस वजह से वो युवा अविवाहित रह जाते थे, जो बहुत गरीब होते थे. 

भारत के इतिहास पर काम करने वाले जर्मन इतिहासकार माइकल वित्जेल के मुताबिक, वैदिक भारत में दहेज की प्रथा नहीं थी. उनका तो ये भी दावा है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति में पूरा पूरा हक मिलता था.

ग्रीस के इतिहासकार एरियन ने तो भारत पर सिकंदर के आक्रमण का इतिहास लिखने के दौरान इस बात का जिक्र विशेष तौर पर किया कि उस जमाने में भारत में किसी भी लड़की का विवाह इस आधार पर नहीं होता था कि उसके पिता के पास देने के लिए कितना दहेज है.

कर्ज चुकाने के लिए दहेज की मांग 

मशहूर लेखिका और न्यूयॉर्क की सिटी यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर वीना तलवार ओल्डनबर्ग की एक किताब है जिसका नाम है- ‘Dowry Murder, The Imperial Origins of a Cultural Crime’ में लिखती हैं कि भारत में अंग्रेज़ों के आने से पहले भी दहेज प्रथा थी, लेकिन तब दहेज इसलिए दिया जाता था ताकि महिलाएं शादी के बाद भी किसी पर निर्भर न हों. लेकिन जब अंग्रेज़ों ने ज़मीन से जुड़े कानूनों में बदलाव किए, इसके बाद लोगों को ज़मीन का मालिकाना हक तो मिल गया, लेकिन इन ज़मीनों पर अंग्रेज़ों ने कई तरह के टैक्स लगा दिए. इससे लोग कर्ज़ में डूबने लगे और जो महिलाएं कभी पुरुषों की संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार हुआ करती थी, वो धीरे-धीरे पुरुषों पर निर्भर हो गईं और पुरुष कर्ज चुकाने के लिए दहेज की मांग करने लगे.

इसलिए आप जब भी किसी शादी में जाएं तो पहले ही ये पूछ लें कि वहां दहेज तो नहीं लिया जा रहा और अगर ऐसा है, तो आप शादी में जाने से ही मना कर दें.

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