DNA ANALYSIS: जानें कौन हैं हर्ष मंदर जो नागरिकता के नाम पर फैल रहे हैं वैचारिक वायरस
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DNA ANALYSIS: जानें कौन हैं हर्ष मंदर जो नागरिकता के नाम पर फैल रहे हैं वैचारिक वायरस

हर्ष मंदर फिलहाल नागरिकता कानून के विरोध और सुप्रीम कोर्ट को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान के कारण चर्चा में हैं. 

DNA ANALYSIS: जानें कौन हैं हर्ष मंदर जो नागरिकता के नाम पर फैल रहे हैं वैचारिक वायरस

और अब उस वायरस की बात जो कोरोना की ही तरह तेजी से फैल रहा है. ये एक वैचारिक वायरस है. ये वायरस उन लोगों के मस्तिष्क में रहता है, जो खुद को बुद्धिजीवी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और भूखे, बेघर, हिंसा पीड़ित लोगों का मसीहा बताते हैं . ताज़ा मामला हर्ष मंदर का है . 65 वर्ष के हर्ष मंदर पूर्व IAS अफसर हैं . वो देश का संविधान समझते हैं. उम्मीद की जाती है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट और संसद के बारे में भी पता होगा. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी के बेहद करीबी होने कारण हर्ष मंदर सरकार के काम-काज का तरीका भी बेहतर समझते होंगे लेकिन, अफसोस की बात है कि आजकल देश भर में नागरिकता के नाम पर नकारात्मक और खतरनाक विचारों का जो वायरस फैल रहा है, उस वायरस को तैयार करने वालों में हर्ष मंदर भी शामिल हैं. 

एक तरफ तो हर्ष मंदर का ये कहना है कि NRC, अयोध्या और कश्मीर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्युरिज्म की रक्षा नहीं की. इसलिए अब फैसला सड़कों पर होगा लेकिन, दूसरी तरफ यही हर्ष मंदर बीजपी के 3 नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण के मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गए.

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने हर्ष मंदर की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. आपने थोड़ी देर पहले हर्ष मंदर का जो बयान सुना, उसकी ट्रांसक्रिप्ट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के सामने पेश की. मेहता ने कोर्ट को बताया कि हर्ष मंदर ने शाहीन बाग जाकर नागरिकता के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को भड़काया और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयान दिया. इसके बाद मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे ने हर्ष मंदर के वकील से कहा कि हर्ष मंदर के खिलाफ लगे आरोप बेहद गंभीर हैं. जब तक इस आरोप पर सफाई नहीं आ जाती, तबतक इस याचिका पर सुनवाई नहीं होगी .

हर्ष मंदिर के वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उन्हें इस बयान की सत्यता की पुष्टि के लिए समय चाहिए जिस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हैरानी जताई और कहा कि अपने ही बयान की जांच के लिए समय मांगने वाले लोग दूसरों के मामले में तुरंत एफआईआर की मांग कैसे कर सकते हैं. आज आपको हर्ष मंदर का इतिहास भी जानना चाहिए . ये वही हर्ष मंदर हैं, जिन्होंने देश के कुछ बुद्धिजीवियों के साथ संसद हमले के दोषी आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु के लिए राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजी थी .

हर्ष मंदर देश के उन तथा-कथित बुद्धिजीवियों में भी शामिल थे, जिन्होंने 2008 में मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादी अजमल कसाब और 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन की फांसी रोकने की मांग की थी. लेकिन इन सबके अलावा हर्ष मंदर की एक राजनीतिक पहचान भी है जिसके बारे में आपको ज़रूर पता होना चाहिए. IAS की नौकरी छोड़कर NGO Action Aid के लिए काम करने वाले हर्ष मंदर, मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में सोनिया गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे.

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उन्होंने वर्ष 2010 से 2012 तक NAC. यानी National Advisory Counclil में काम किया. सोनिया गांधी NAC की चेयरपर्सन थीं . और ऐसा माना जाता था कि मनमोहन सिंह की सरकार NAC के इशारों पर ही चलती थी और थोड़ा पहले चलें तो वर्ष 1993 में केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी. तब हर्ष मंदर मसूरी के National Academy of Administration में नए IAS अफसरों को ट्रेनिंग दिया करते थे. उस समय राजीव गांधी फाउंडेशन ने एक प्रोजेक्ट में हर्ष मंदर की मदद की थी और आज की तरह उस समय भी, राजीव गांधी फाउंडेशन की अध्यक्ष सोनिया गांधी ही थीं. बाद में वर्ष 2002 में इस संस्था ने हर्ष मंदर को राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से भी सम्मानित किया .

हर्ष मंदर फिलहाल नागरिकता कानून के विरोध और सुप्रीम कोर्ट को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान के कारण चर्चा में हैं. इसलिए आपको उनके एक मशहूर बयान के बारे में भी पता होना चाहिए. पिछले साल दिसंबर में हर्ष मंदर ने घोषणा की थी कि अगर संसद में नागरिकता संशोधन बिल पास हो गया तो वो आधिकारिक रूप से, दस्तावेजों में खुद को एक मुस्लिम नागरिक के तौर पर दर्ज कराएंगे. और संसद में कानून पारित होने के बाद उन्होंने बाकी लोगों से भी ऐसा करने की अपील की. नागरिकता विरोधी प्रदर्शन में भी वो लगातार सक्रिय हैं. कुल मिलाकर ये english speaking celebrities का एक ख़तरनाक और दोहरा मापदंड है. वो देश की संवैधानिक संस्थानों के साथ भी सुविधा की सियासत करते हैं . सुप्रीम कोर्ट का सहारा भी लेते हैं और अपने फायदे के लिए सुप्रीम कोर्ट को सांप्रदायिक घोषित करने से भी नहीं डरते.

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