DNA ANALYSIS: LAC पर अब तक की सबसे बड़ी तैनाती, समझिए भारत ने रक्षा नीति में क्यों किया ये बदलाव?
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DNA ANALYSIS: LAC पर अब तक की सबसे बड़ी तैनाती, समझिए भारत ने रक्षा नीति में क्यों किया ये बदलाव?

भारत की रक्षा नीति किसी भी दौर में नहीं बदली. 1962 में चीन और भारत के बीच भीषण युद्ध हुआ, लेकिन फिर भी भारत ने पहली चुनौती पाकिस्तान को ही माना और युद्ध के मोर्चे पर पहली प्राथमिकता पाकिस्तान को दी, लेकिन आजादी के 73 वर्षों के बाद भारत ने अपनी रक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया है.

DNA ANALYSIS: LAC पर अब तक की सबसे बड़ी तैनाती, समझिए भारत ने रक्षा नीति में क्यों किया ये बदलाव?

नई दिल्ली: भारत और चीन की सीमा पर भारतीय सेना ने दो लाख सैनिकों की तैनाती कर दी है और ये इस क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी तैनाती है. 

सबसे आक्रामक और ऐतिहासिक बदलाव

भारतीय सेना ने अब अपनी सैनिक शक्ति का रीओरिएंटेशन कर दिया है. यानी जिन सैनिकों की नजरें पाकिस्तान पर गड़ी रहती थीं, अब वही सैनिक चीन पर नजर रखेंगे. आप कह सकते हैं कि आजादी के बाद भारत की रक्षा नीति में किए गए ये सबसे आक्रामक और ऐतिहासिक बदलाव हैं.

इस समय चीन के साथ लगने वाली Line of Actual Control पर भारत ने कुल 2 लाख जवानों की तैनाती की हुई है. अहम बात ये है कि LAC पर ये इतिहास में अब तक की भारत की तरफ से सबसे बड़ी तैनाती है, जिनमें 50 हजार जवानों को अभी तैनात किया गया है.

40 प्रतिशत अधिक सुरक्षा बल 

ऐसी कई रिपोर्ट्स हैं, जो बताती हैं कि भारत ने LAC पर जवानों की तैनाती में पिछले साल की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक सुरक्षा बल जुटा रखा है.

यहां महत्वपूर्ण बात ये है कि अब भारत और चीन दोनों ही LAC पर सैनिकों की तैनाती के मामलों में बराबर हो गए हैं. यानी जितने जवान चीन ने सीमा पर तैनात कर रखे हैं, उतने ही जवान भारत के सीमा पर तैनात हैं. जब दो देशों के बीच ऐसी स्थिति होती है तो माना जाता है कि दोनों देश युद्ध की सम्भावनाओं से इनकार नहीं कर रहे हैं और खुद को तैयार कर रहे हैं.

हालांकि युद्ध ऐसे ही नहीं जीते जाते. युद्ध, सीमाई इलाकों की भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करते हैं और ये एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसे अमेरिका ने वियतनाम की हार से सीखा.

रूस ने अफगानिस्तान की हार से सीखा. जर्मनी ने द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ से अपनी हार से सीखा और चीन ने गलवान घाटी में भारत से मिली हार से सीखा.

ये वो उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि किसी भी युद्ध में सीमा की भौगोलिक स्थितियां यानी इलाके की जानकारी बहुत महत्वपूर्ण होती है. शायद यही वजह है कि चीन अब तिब्बत के स्थानीय लोगों की सैनिक टुकड़ी बना रहा है, जो भारत के खिलाफ ऊंची चोटियों पर युद्ध लड़ सके.

भारत की रणनीति

हालांकि इसके जवाब में भारत ने भी अपने 50 हजार सैनिकों को पाकिस्तान के साथ लगी सीमा चोटियों से हटा कर चीन की तरफ भेज दिया है. भारत ने एक और रणनीति बनाई है. इस रणनीति को भी आज आपको समझना चाहिए.

दरअसल, High Altitude Warfare यानी ऊंची चोटियों पर युद्ध लड़ना एक खास कला है और किसी भी सैनिक को सीधे ऊंची चोटियों पर युद्ध लड़ने के लिए नहीं भेजा जा सकता. इसी के लिए भारत ने अपने सैनिकों को High Altitude Warfare Training देने के लिए एक विशेष नीति बनाई है और इसके तहत स्टेज वन में सैनिकों को 9 से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर भेजा जाता है. यहां पर सैनिकों को प्रतिकूल स्थितियों में खुद को ढालने में कम से कम 6 दिन का समय लगता है. यानी अगर कोई जवान यहां पहुंच भी गया तो भी वो युद्ध नहीं लड़ सकता. उसे कम से कम इसमें 6 दिन लगेंगे और इसके बाद ही वो युद्ध में शामिल हो पाएगा.

स्टेज 2 में 12 से 15 हजार फीट की ऊंचाई पर सैनिकों को भेजा जाता है. यहां पर सैनिकों को मौसम और दूसरी स्थितियों के साथ खुद को ढालने में चार दिन लगते हैं. यानी पहले और दूसरे स्टेज में कुल 10 दिन सिर्फ मौसम और दूसरी स्थितियों के साथ खुद को ढालने में लग जाते हैं.

और स्टेज 3 में 15 हजार या उससे ज्यादा फीट की ऊंचाई पर ऐसा करने में चार दिन का समय और लगता है और इस तरह से 14 दिन का चक्र पूरा होता है. अब भारत ने बदलाव ये किया है कि उसने पाकिस्तान की ऊंची चोटियों से अपने जवानों को LAC पर स्टेज 2 पर भेज दिया है. यानी ये 50 हजार जवान 12 से 15 हजार फीट की ऊंचाई पर युद्ध के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं और इससे भारत को 10 दिन की बढ़त मिल गई है.

सरल शब्दों में कहें तो जवानों को स्टेज 2 तक पहुंचने में जो 10 दिन खुद मौसम के अनुकूल ढालने में लगते हैं, वो समय अब नहीं लगेगा और ये जवान पूरी तरह तैयार हैं.

भारत का दुश्मन नम्बर 1 चीन 

इन तमाम बातों से ये पता चलता है कि भारत का दुश्मन नम्बर एक पाकिस्तान नहीं, बल्कि चीन है. वर्ष 1947 में जब भारत को ब्रिटिश हुकूमत के शासन से आजादी मिली थी, तब देश दो टुकड़ों में विभाजित हुआ था. एक था भारत और एक देश था पाकिस्तान. उस समय महात्मा गांधी को ऐसा लगता था कि इस विभाजन के बाद साम्प्रदायिक टकराव पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और पाकिस्तान बनने से भारत की भी तकलीफें कम होंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पाकिस्तान के बनने के कुछ ही हफ़्तों बाद जिन्ना ने भारत पर हमला कर दिया और ये हमला तब कश्मीर पर हुआ था.

जिन्ना द्वारा किए गए इस विश्वासघात ने उस समय भारत के नेताओं की ही सोच नहीं बदली, बल्कि इस घटनाक्रम ने हमेशा के लिए भारत की रक्षा नीति को भी बदल कर रखा दिया और दशकों तक भारत ने अपने हथियारों और तोपों का मुंह पाकिस्तान की तरफ करके रखा. कहने का मतलब ये है कि सीमा पर भारत के लिए पहली चुनौती चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और भूटान नहीं थे, बल्कि हमारी पहली चुनौती था पाकिस्तान.

ये रक्षा नीति किसी भी दौर में नहीं बदली. 1962 में चीन और भारत के बीच भीषण युद्ध हुआ लेकिन फिर भी भारत ने पहली चुनौती पाकिस्तान को ही माना और युद्ध के मोर्चे पर पहली प्राथमिकता पाकिस्तान को दी, लेकिन आजादी के 73 वर्षों के बाद भारत ने अपनी रक्षा नीति में बड़ा बदलाव किया है और अब पाकिस्तान हमारे देश के लिए पहली चुनौती नहीं है, बल्कि युद्ध के मोर्चे पर भारत की पहली प्राथमिकता चीन के खिलाफ खुद को तैयार रखना है.

इस समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 3 दिन के लद्दाख दौरे पर हैं और इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि युद्ध के मोर्चे पर भारत के लिए चीन पहली चुनौती है और पाकिस्तान दूसरी. आज रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने भाषण में इसके संकेत दिए और आज चीन की सरकार के प्रवक्ता का भी इस पर जवाब आया है, आपको ये दोनों बयान सुनाते हैं.

सुन-जू की ' द आर्ट ऑफ वॉर'

चीन के महान रणनीतिकार सुन-जू ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले एक पुस्तक लिखी थी, जिसका शीर्षक है- ' द आर्ट ऑफ वॉर'.

सुन ज़ू ने इसमें इलाकों का महत्व बताया था. उन्होंने लिखा था कि युद्ध में जमीन के बारे में पुख्ता जानकारी सबसे ज्यादा मददगार होती है, इसलिए जीत पर नियंत्रण के लिए दुश्मन के हालात का अंदाजा लगाना, इलाके की दूरियों और मुश्किलों के बारे में सही आकलन करना बेहतर रणनीति के गुण होते हैं.

इसी में उन्होंने ये भी लिखा है Victorious Warriors Win First And Then Go To War. While Defeated Warriors Go To War First And Then Seek To Win. इसका हिंदी में अर्थ है कि एक विजयी योद्धा युद्ध भूमि में पहुंचने से पहले ही अपनी अचूक प्लानिंग से अपनी जीत सुनिश्चित कर लेता है जबकि युद्ध में पराजय होने वाला योद्धा पहले युद्ध भूमि में जाता और फिर युद्ध की योजना बनाता है और भारत इस बात को समझ चुका है.

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