DNA Analysis: भारत में बढ़ा 'जंगल के राजा' का कुनबा, जानें कितनी हुई शेरों की संख्या
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DNA Analysis: भारत में बढ़ा 'जंगल के राजा' का कुनबा, जानें कितनी हुई शेरों की संख्या

इस बार लॉकडाउन की वजह से शेरों के Census में कुछ परेशानी आई थी, इसलिए शेरों की गिनती का एक अलग तरीका इजाद किया गया.

DNA Analysis: भारत में बढ़ा 'जंगल के राजा' का कुनबा, जानें कितनी हुई शेरों की संख्या

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते हमने आपको केरल में इंसानों के हाथों मारी गई मादा हाथी विनायकी की कहानी दिखाई थी. हमारी उस खबर पर देशभर से प्रतिक्रियाएं आईं और सभी ने एक स्वर में कहा कि विनायकी को इंसाफ मिलना चाहिए. हमारी मुहिम विनायकी को न्याय दिलाने की दिशा में बढ़ रही है और हम इस खबर पर हर एक अपडेट आपको देते रहेंगे. लेकिन आज हमारे पास गुजरात से एक शुभ समाचार आया है. और शुभ समाचार ये है कि गिर के जंगलों में शेरों की संख्या करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ गई है.

  1. 2015 में गिर के जंगलों में 523 शेर थे 
  2. अब इनकी संख्या बढ़कर 674 हो गई है
  3. अब ये शेर 30 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके में विचरण करते हैं

2015 में गिर के जंगलों में 523 शेर थे और अब इनकी संख्या बढ़कर 674 हो गई है. अच्छी बात ये है कि जिस इलाके में ये शेर विचरण करते हैं वो इलाका भी पहले से करीब 36 प्रतिशत बड़ा हो गया है. पहले ये शेर 22 हजार वर्ग किलोमीटर के इलाके में घूमते-फिरते थे लेकिन अब ये शेर 30 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके में विचरण करते हैं.

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर जंगल में जाकर इन शेरों की गिनती किसने की होगी? तो हम आपको बता दें कि इसका तरीका भी बहुत दिलचस्प है. जिस तरह हर 10 वर्ष में देश के नागरिकों की गिनती होती है उसी प्रकार हर पांच वर्ष में शेरों की भी गिनती की जाती है. लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से शेरों के Census में कुछ परेशानी आई थी, इसलिए शेरों की गिनती का एक अलग तरीका इजाद किया गया.

इस तरीके को पूनम अवलोकन कहते हैं. यानी शेरों की संख्या गिनने के लिए ऐसा दिन चुना गया जिसकी रात पूर्णिमा यानी पूरे चंद्रमा की थी. इसके तहत 24 घंटे इन शेरों की निगरानी की गई और इसमें वन विभाग के करीब 1400 कर्मचारियों ने हिस्सा लिया.

पूर्णिमा का दिन इसलिए चुना गया ताकि शेरों को सूर्य की रोशनी में भी देखा जा सके और पूरे चंद्रमा की रोशनी में भी उन पर नजर रखी जा सके.

इसके लिए गिर के जंगलों में उन जगहों पर मॉनिटरिंग प्वाइंट्स बनाए गए जहां ये शेर पानी पीने आते हैं. कोई भी शेर गर्मी के दिनों में 24 घंटे में एक बार पानी जरूर पीता है. इसलिए तालाबों और नदियों के पास विशेष प्वाइंट्स बनाकर दिन के समय और फिर रात के समय इन शेरों की गिनती की गई.

इसके अलावा जिन शेरों को रेडियो कॉलर्स पहनाए गए थे उनकी GPS लोकेशन का भी विश्लेषण किया गया. साथ ही शेरों के शरीरों पर बने विशेष पहचान चिन्हों के जरिए भी इनकी गिनती की गई.

अच्छी बात ये है कि शेर इतने ताकतवर होने के बावजूद जनगणना का विरोध नहीं कर सकते जबकि हमारे देश में कुछ लोग नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन यानी NRC के नाम से ही भड़क जाते हैं और विरोध प्रदर्शन करने लगते हैं.

दुनिया में अफ्रीका के जंगलों के अलावा सिर्फ गिर का जंगल ही एक ऐसी जगह है जहां आप शेरों को उनके प्राकृतिक परिवेश में घूमते हुए देख सकते हैं.

दुनियाभर के जंगलों में सिर्फ 20 हजार शेर ही बचे हैं. अफ्रीका के 26 देश तो ऐसे हैं जहां शेर पूरी तरह विलुप्त हो चुके हैं. पूरी दुनिया में शेरों को सबसे ज्यादा खतरा शिकारियों से है. तमाम प्रतिबंधों के बावजूद हर साल सैंकड़ों शेर मार दिए जाते हैं और इसलिए अब शेरों की पूरी प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा है.

भारत में भी शेर कई वर्षों से विलुप्त होने का संकट झेल रहे हैं और ये हाल तब है जब भारत के राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ में भी चार शेर मौजूद हैं. ये शेर शक्ति, हिम्मत, गर्व और विश्वास को प्रदर्शित करते हैं.

इसलिए हमेशा याद रखिए कि जो देश प्रकृति और प्रकृति पर पहला हक रखने वाले जीवों के प्रति सम्मान नहीं रखता वो कभी दुनिया के सामने शक्ति, हिम्मत, गर्व और विश्वास का प्रदर्शन नहीं कर सकता.

भारत की संस्कृति कहती है कि हमें जीव जंतुओं को भी पूरा सम्मान देना चाहिए और शायद यही वजह कि भारत का इतिहास इंसानों और जानवरों के रिश्तों की कहानियों से भरा पड़ा है. ये भारत का मूल इतिहास है. ये वो इतिहास नहीं जिसे अंग्रजों ने या अंग्रेजों को पसंद करने वालों ने रचा था.

भारत की पौराणिक कथाओं में एक किस्सा आता है. जिसमें ऐसा कहा जाता है कि भारत का नाम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर पड़ा था जो बचपन में शेरों के दांत गिना करते थे. इसलिए उन्हें बहुत शक्तिशाली माना जाता था.

यानी भारत का नामकरण कैसे हुआ उसके इतिहास में भी शेरों का जिक्र आता है. लेकिन यहां आपको समझना ये चाहिए आपको प्रकृति के साथ मर्यादा में रहना चाहिए. क्योंकि अगर आप प्रकृति का दोहन करेंगे और आजादी के नाम पर प्रकृति को नुकसान पहुंचाएंगे तो हमें जीवन भर शायद मास्क पहनकर रहना होगा और अगर आप चाहते हैं कि ऐसा ना हो तो प्रकृति के साथ मर्यादाओं में रहना सीखिए. 

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