शिव कई तरह के विरोधी विचारों का संगम हैं. उनमें जन्म भी है और मृत्यु भी. उनमें अमरता भी है और विनाश भी. उनमें सत्य भी है और असत्य भी.
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नई दिल्ली: कल 11 मार्च को कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक शिव-पावर्ती के विवाह का उत्सव देश ने मनाया. कल ट्विटर पर भी भगवान शिव ट्रेंड कर रहे थे. टॉप 20 में से 15 हैशटैग शिव पर थे. सोशल मीडिया पर शिव की ऐसी चाहत हमें बताती है कि आधुनिक सोच और जीवन में भी इस अध्यात्मिक शक्ति का महत्व कितना ज्यादा है. नई पीढ़ी से लेकर पुरानी पीढ़ी तक शिव भारत के अध्यात्मिक मानचित्र का केन्द्र हैं. महान दार्शनिक नीत्शे ने कहा था कि "उदास परंपराएं बीमार समाज को जन्म देती है." इसलिए भारत में उत्सव और हर्ष, हर त्योहार के मूल में होता है.
आज हम अपने देश और उसकी पहचान की बात करते हैं. हमें उसकी सीमाएं पता हैं और उनकी ताकत भी. कुछ लोग कहते हैं, भारत एक राष्ट्र के रूप में 19 वीं शताब्दी से जाना गया पहचाना गया, उससे पहले तो यहां राष्ट्र नहीं था. जो लोग ऐसा कहते हैं वो इस देश के शिव तत्व को पहचानते नहीं हैं. 8वीं शताब्दी में केरल के कलाडी में एक बच्चे का जन्म हुआ. उसका नाम रखा गया शंकराचार्य. बहुत कम उम्र में उन्होंने ज्ञान की हर किताब को याद कर लिया और फिर उन्होंने कलाड़ी से निकल कर भारत वर्ष के चार कोनों में चार शिव मंदिरों की स्थापना की, जिन्हें आज हम दक्षिण में श्रृंगेरी मठ, पूर्व में गोवर्धन मठ, पश्चिम में शारदा मठ और उत्तर में बद्रीनाथ के ज्योतिर्मठ के रूप में जानते हैं.
इन चारों पीठ को जोड़ दें तो आज के भारत का नक्शा स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है और इन सबमें अगर एक चीज कॉमन है तो वो हैं शिव और इन्हीं शिव के पार्वती से मिलने का उत्सव है शिवरात्रि. सनातन परंपरा में इन चारों पीठ का बहुत महत्व है और भारत की अध्यात्मिक चेतना का चतुर्भुज भी इन्हीं शिव मंदिरों से तैयार होता है. हर गांव में एक शिवालय जरूर होता है. शिव विनाश के देवता है फिर भी उनको घर-घर में पूजा जाता है. सत्यम शिवम और सुंदरम की विचारधारा को जीने वाले देश में शिव के बिना कुछ भी संभव नहीं है.
इसे हमने कोरोना के विनाश काल में बहुत अच्छी तरह से समझा है. शिव हमें विष धारण करना सिखाते हैं. विरोधी विचारों में संतुलन बनाना सिखाते हैं. कोरोना के दौरान पुलिस, डॉक्टर , सफाईकर्मी और वैज्ञानिकों ने कोरोना के खतरे का जहर पिया पर देश के लोगों को बचाया. ये है शिव और उनकी सोच का नतीजा, जो हम भारतीयों के DNA में शामिल है.
सोशल मीडिया के इस युग में शिव का महत्व हमारे लिए बहुत बढ़ गया है. आज सबसे ज्यादा जहर अगर किसी चीज से हमारे जीवन में आ रहा है, तो वो है हमारा मोबाइल फोन और इंटरनेट देश में 50 करोड़ लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं और 69 करोड़ इंटरनेट का. ये सब लगातार जहर उगल रहे हैं. इस नफरत से देश को बचाने में भी शिव का टूलकिट हमारे बहुत काम आ सकता है.
शिव कई तरह के विरोधी विचारों का संगम हैं. उनमें जन्म भी है और मृत्यु भी. उनमें अमरता भी है और विनाश भी. उनमें सत्य भी है और असत्य भी. वो क्रोध भी हैं और शांति भी, पर हर तत्व को वो सही मात्रा में रखते हैं. हम शिव से ये संतुलन सीख लें तो विरोधी विचारों के साथ एकता बना सकते हैं और सही गलत की पहचान भी आसानी से कर सकते हैं. इससे नफरत घटती है और प्यार बढ़ता है. अब हम आपको शिवरात्रि के 5 संदेश बताते हैं-
पहला कभी किसी का विश्वास मत तोड़िए क्योंकि, शिव की पहली पत्नी सती उनका विश्वास तोड़कर अपने पिता के धार्मिक आयोजन में शामिल होने चली गई थीं. इससे शिव बहुत नाराज हुए और उन्होंने सती का मानसिक त्याग कर दिया था. इसके बाद सती ने देहत्याग कर दिया. हमारे आपसी रिश्तों में भी ऐसे अवसर आते हैं तब हमें शिव के जीवन से प्रेरणा लेकर उनका समाधान करना चाहिए.
दूसरी बात है, दूसरे के लिए अपने जीवन को खतरे में डालने वाले ही हमारे असली हीरो हो सकते हैं. कोरोना के दौरान हमने इस सच को फिर से समझा है और आगे भी हमें इसे याद रखना चाहिए.
तीसरा संतुलन, हमें अपने जीवन और समाज में हमेशा संतुलन बना कर रखना चाहिए क्योंकि, संतुलन बिगड़ने का मतलब ही विनाश है.
चौथी बात जो सीखनी चाहिए वो है, सबको समान नजर से देखना शिव के साथ समाज का हर वर्ग रहता है. पशु पर्यावरण और सभी तरह के जीव जंतु और मनुष्य उनके यहां एक साथ बिना ऊंच नीच भेदभाव के रहते हैं.
पांचवीं और सबसे अहम बात, हमें कभी उत्सव को नहीं भूलना चाहिए शिव श्मशान में भी होली खेलने का साहस रखते हैं और हमें भी जीवन को हमेशा उत्सव की तरह देखना चाहिए.
-अब हम आपको शिव के व्यक्तित्व से जुड़ी वस्तुओं और प्रतीकों का मतलब समझाते हैं-
-त्रिशूल का मतलब है- ज्ञान, इच्छा और उनको लागू करने का रास्ता.
-त्रिशूल पर लगा डमरू वेद मंत्रों का प्रतीक है.
-शरीर पर शेर की खाल निडरता को दिखाती है.
-शिव की जटाओं में गंगा ज्ञान की परंपरा है.
-सिर पर चांद बताता है कि शिव की सत्ता अनंत है.
-माथे पर तीसरी आंख बुराई के अंत के बारे में बताती है.
-गले मे लिपटा सर्प सिखाता है कि अगर अहंकार को वश में कर ले तो वो आभूषण बन जाता है.
-और कलाई में रूद्राक्ष की माला शुद्धता का प्रतीक है.