DNA ANALYSIS: Netaji Subhash Chandra Bose के नायकों का नरसंहार, जानिए नीलगंज की अनसुनी कहानी
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DNA ANALYSIS: Netaji Subhash Chandra Bose के नायकों का नरसंहार, जानिए नीलगंज की अनसुनी कहानी

Nilganj Massacre: नीलगंज के जूट रिसर्च इंस्‍टीट्यूट के परिसर में ही कुछ पुरानी इमारतें भी हैं. बताया जाता है कि यहीं पर आजाद हिंद फौज  के सैनिकों को कैद करके रखा गया था. नीलगंज के लोगों को वो बलिदान याद है.

DNA ANALYSIS: Netaji Subhash Chandra Bose के नायकों का नरसंहार, जानिए नीलगंज की अनसुनी कहानी

नई दिल्‍ली:  नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज  के श्रेय को जिस तरह से भुलाया गया. उसके बारे में आपको बताने के लिए आज हमने पश्चिम बंगाल के नीलगंज (Nilganj Massacre) से एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है. द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने यहां पर आजाद हिंद फौज के जवानों को कैद करके रखा था.  उनपर अत्याचार किये और फिर इन देशभक्त सैनिकों की हत्या कर दी. हालांकि आप में से ज्यादातर लोगों ने नीलगंज का नाम भी नहीं सुना होगा . लेकिन ये जगह भारत के 135 करोड़ लोगों के लिए किसी तीर्थस्थल की तरह पवित्र है और यहां की हर एक तस्वीर आपको आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च बलिदान की कहानी बताएगी. 

  1. नीलगंज आजाद हिंद फौज के सैनिकों की शहादत का सबसे बड़ा केंद्र है.
  2. 1945 में कैसे ब्रिटिश सैनिकों ने अत्याचार किया और INA के हजारों सैनिकों को मार दिया. 
  3. आजाद हिंद फौज की बड़ी शहादत को छिपाने की कोशिश की गई. 
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आजाद हिंद फौज की बड़ी शहादत को क्‍यों छिपाया गया?

नेताजी ने कहा था कि अब गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए एक दिल, एक प्राण होकर कटिबद्ध हो जाइए. हिंदुस्तान अब गुलाम नहीं रह सकता और न कोई ताकत उसे गुलाम रख सकती है.  हां, हमें स्वतंत्रता का मूल्य चुकाना होगा, आप इसके लिए तैयार हो जाइए. 

जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ये घोषणा की थी. तब शायद उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि आजादी के बाद उनके अपने देश में ही उनके और आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च बलिदान को भुला दिया जाएगा. 

पश्चिम बंगाल में कोलकाता से महज 30 किलोमीटर दूर नीलगंज आजाद हिंद फौज के सैनिकों की शहादत का सबसे बड़ा केंद्र है. 1945 में कैसे ब्रिटिश सैनिकों ने अत्याचार किया और INA के हजारों सैनिकों को मार दिया. जिस तरह देश में नेताजी के योगदान को कम करके बताया गया, उसी तरह आजाद हिंद फौज की बड़ी शहादत को भी छिपाने की कोशिश की गई. 

देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वाली सबसे बड़ी सेना के साथ ही ये नाइंसाफी हुई है. आज भी इस घटना का कोई लिखित इतिहास नहीं है, न ही इसके बारे में देश को कोई जानकारी दी गई.  इस समय कई पीढ़ियों से चले आ रहे मौखिक इतिहास की मदद से ही नीलगंज की घटना के बारे में पूरी जानकारी मिलती है. 

नीलगंज के जूट रिसर्च इंस्‍टीट्यूट के परिसर में ही कुछ पुरानी इमारतें भी हैं. बताया जाता है कि यहीं पर आजाद हिंद फौज के सैनिकों को कैद करके रखा गया था. 

नीलगंज के लोगों को याद है वो बलिदान 

आजादी के बाद से तत्कालीन सरकारों ने भले ही नेताजी की आजाद हिंद फौज की नीलगंज शहादत को भुला दिया हो लेकिन नीलगंज के लोगों को वो बलिदान याद है और उन्होंने उन सैनिकों की याद में एक स्मारक बनवाया है.

नीलगंज सिर्फ एक उदाहरण है. नेताजी के साथ हमारे देश के इतिहास में लगातार ऐसा ही भेदभाव किया गया. हालांकि नेताजी की 125वीं जयंती पर इस भूल को सुधारने की शुरुआत होगी. 

इतिहासकार कहते हैं, पंडित नेहरू और कांग्रेस ने नेताजी के सच को छिपाया. कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी ने नेताजी के साथ हमेशा धोखा किया. 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आजाद भारत वाला सपना सच हो गया. अब उनके योगदान को सम्मान देने का एक और सपना पूरा होना चाहिए. जिसका इंतजार देश के 135 करोड़ लोग पिछले 74 वर्षों से कर रहे हैं. 

अगर नेताजी होते देश के पहले प्रधानमंत्री

आज आपको ये भी समझना चाहिए कि अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू की जगह नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री होते तो आज का भारत कैसा होता? इसे हम आपको कुछ पॉइंट्स में बताते हैं. 

पहली बात ये कि भारतीय राजनीति में नेहरू गांधी परिवार की जड़ें इतनी मजबूत नहीं होती

दूसरी बात चीन के साथ भारत का युद्ध नहीं हुआ होता और शायद चीन के साथ सीमा विवाद भी नहीं होता

तीसरी बात अगर बोस आजाद  भारत के पहले प्रधानमंत्री होते तो देश का बंटवारा नहीं होता और पाकिस्तान और बांग्लादेश अलग राष्ट्र नहीं बनते क्योंकि, नेताजी सैन्य शक्ति के गठन में विश्वास रखते थे और उन्होंने आजाद हिंद  फौज का गठन करके ये साबित भी किया था

चौथी बात नेताजी का मानना था कि भारत को एक मजबूत लीडर की जरूरत थी, जो देश के लोगों को कड़े अनुशासन का महत्व समझाता है.  यानी बोस प्रधानमंत्री होते तो हमारा देश आज ज्‍यादा अनुशासित होता

पांचवीं बात भारत में लिमिटेड डेमोक्रेसी होती यानी Too Much Democracy का सिद्धांत मज़बूत नहीं होता और ज़रूरत से ज़्यादा लोकतंत्र से होने वाली समस्याओं से आज का भारत संघर्ष नहीं कर रहा होता

छठी बात बोस, पंडित नेहरु से 10 वर्ष छोटे थे. यानी इससे आजाद भारत को एक ज्‍यादा युवा  नेतृत्व मिलता, जिसका असर आज के भारत की नीतियों में भी दिखता. 

सबसे आखिरी और बड़ी बात ये कि बोस महिला सशक्तिकरण में विश्वास रखते थे और जाति व्यवस्था के भी खिलाफ थे. यानी इन दो बड़े मुद्दों पर बोस के विचारों का भारत को आज लाभ मिलता, अगर वो प्रधानमंत्री बने होते तो. 

बोस के विचारों की शक्ति को समझने के लिए आपको उनके भाषणाेंं को सुनना चाहिए. जो आपको राष्ट्रवाद का असली महत्व समझाएगा और ये समझने में भी मदद करेगा कि बोस का भारत की राजनीतिक संस्कृति में महत्व कितना बड़ा है.

नेताजी के एक भाषण का अंश-

इस वक्त जमाना हमारे अनुकूल है, वर्तमान अंतरराष्‍ट्रीय परिस्थिति से
हमें लाभ उठाना चाहिए, भारत को भी दुनिया के दूसरे राष्ट्रों के साथ ही
जीना मरना है, इसलिए हमें अंतरराष्‍ट्रीय परिस्थिति से पूरा वाकिफ रहने की
दरकार है,अभी तो हम इच्छा रखते हुए भी हिंदुस्तान के बाहर उपनिवेशों
में बसे हुए अपने भाइयों की मदद नहीं कर सकते, वे भी हमारे ही खून हैं,
हम उन्हें भला कैसे भूल सकते हैं, भारत आज चिरकालीन शोषण के
कारण दरिद्रता की चक्की में पिस रहा है,महामारी आदि बीमारियों का
भारत घर हो रहा है, निरक्षरता अभी फैली हुई है, वैज्ञानिक साधन हमें अभी
मुअस्सर नहीं, जिससे एक-एक की उन्नति कर सकें, दो शाम रोटी मुहाल है,
इन सब कुरोगों की एकमात्र रामबाण औषधि आजादी है, वो राष्ट्रीय एकता
पर निर्भर करती है, असंगठित और कमजोर रहना पाप है, गुलामी सब
कष्टों और पापों की जड़ है, अब गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए
एक दिल, एक प्राण होकर कटिबद्ध हो जाइए, हिंदुस्तान अब गुलाम नहीं
रह सकता और न कोई ताकत उसे गुलाम रख सकती है, हां हमें स्वतंत्रता
का मूल्य चुकाना होगा, आप इसके लिए तैयार हो जाइए, जिससे यदि हम
गुलाम हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं तो स्वतंत्र हिंदुस्तान में जिएं और मरें, तभी
आजाद हिंदुस्तान दुनिया को नए नए संदेश दे सकेगा.

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