अगर नया कानून लागू हो गया तो सिर्फ सात लाख प्रवासी भारतीयों को ही कुवैत में रहने की अनुमति मिल पाएगी और बाकी के सात से आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ेगा.
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नई दिल्ली: कुवैत में प्रवासी कोटा बिल की वजह से आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है. कुवैत की नेशनल असेंबली ने इस बिल के ड्राफ्ट को मंजरी दे दी है और अगर ये कानून में बदल गया तो कुवैत में प्रवासियों की संख्या 70 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत रह जाएगी.
प्रस्तावित कानून के मुताबिक कुवैत की आबादी में प्रवासी भारतीयों की संख्या घटाकर 15 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है. अभी कुवैत में भारतीयों की संख्या करीब साढ़े चौदह लाख है और ये कुवैत की कुल आबादी के 30 प्रतिशत से ज्यादा है.
यानी अगर नया कानून लागू हो गया तो सिर्फ सात लाख प्रवासी भारतीयों को ही कुवैत में रहने की अनुमति मिल पाएगी और बाकी के सात से आठ लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ेगा.
कुवैत सरकार ने देश में प्रवासी नागरिकों की संख्या को कम करने का ये फैसला ऐसे वक्त में लिया है जब कोरोना वायरस का असर कुवैत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है. कुवैत की 90 प्रतिशत अर्थव्यवस्था मूल रूप से तेल के निर्यात पर निर्भर है. लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से कच्चे तेल की मांग घटने लगी. एक वक्त ऐसा भी आया जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत, कई जगहों पर जीरो से भी नीचे यानी नेगेटिव में चली गई.
इससे कुवैत की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान हुआ. तेल से होने वाली कमाई के दम पर ही कुवैत की सरकार अपने नागरिकों को कई तरह की सब्सिडी देती थी. लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं और कुवैत की सरकार चाहती है कि वहां के मूल नागरिकों को भी रोजगार मिले और जब कुवैत के नागरिक काम करने लगेंगे तो प्रवासियों को वापस लौटना होगा और यही काम इस बिल के जरिए किया जा रहा है. एक कारण ये भी है कि Covid 19 की वजह से कुवैती नागरिकों के मन में प्रवासी विरोधी भावनाएं गहरा रही हैं.
नए कानून के पीछे कुवैत सरकार का मकसद ये है कि कुवैत के स्थानीय नागरिकों को ज्यादा से ज्यादा नौकरियां उपलब्ध हो पाएं. इस कानून का असर कुवैत में काम करने वाले करीब 33 लाख प्रवासी नागरिकों पर होगा, लेकिन सबसे ज्यादा भारतीय नागरिक प्रभावित होंगे, क्योंकि प्रवासियों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की ही है.
कुवैत में रहने वाले औसतन हर दो में से एक प्रवासी, भारतीय है. जहां करीब सवा पांच लाख भारतीय, प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करते हैं. 28 हजार भारतीय नागरिक सरकारी नौकरियों में हैं. कुवैत में काम करने वाले नागरिकों के आश्रितों की संख्या करीब एक लाख 60 हजार है. कुवैत के 23 भारतीय स्कूलों में करीब साठ हजार भारतीय छात्र पढ़ते हैं.
अगर कुवैत में प्रवासी कोटा बिल, कानून बन जाता है तो सबसे ज्यादा खतरा उन प्रवासी भारतीयों को होगा जो वहां मजदूरी करते हैं. जानकारों के मुताबिक कुवैत सरकार सबसे पहले उन प्रवासी नागरिकों को देश से बाहर करेगी जो या तो पूरी तरह निरक्षर हैं या कम पढ़े-लिखे हैं. कुवैत में निरक्षर प्रवासी नागरिकों की संख्या करीब तेरह लाख है. इनमें भी भारतीय ही सबसे ज्यादा हैं.
ये वो भारतीय हैं जो बेहतर भविष्य का सपना लेकर कुवैत गए थे. कुवैत में रहने वाले भारतीयों ने वर्ष 2018 में करीब 3 लाख 75 हजार करोड़ रुपये की रकम भारत भेजी थी. लेकिन अब कुवैत में इनके भविष्य पर संकट आ गया है. ये वो भारतीय हैं जिन्होंने कुवैत की तरक्की में अपना योगदान दिया है. लेकिन संकट की इस घड़ी में कुवैत सरकार, इन भारतीयों के अहसानों को भूलकर उन्हें देश से बाहर निकाल देना चाहती है.