#ZameenJihad: जम्‍मू, जमीन और जेहाद का DNA Analysis
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#ZameenJihad: जम्‍मू, जमीन और जेहाद का DNA Analysis

आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में लव जेहाद की तरह जमीन जेहाद भी हो रहा है.

#ZameenJihad: जम्‍मू, जमीन और जेहाद का DNA Analysis

आज देश में सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने की चर्चा हो रही है और देश का मीडिया भी सिर्फ इसी पर बात कर रहा है लेकिन आज हम आपके लिए एक ऐसी खबर लेकर आए हैं जिस पर कोई बात नहीं करता क्योंकि ये खबर मीडिया के एजेंडे को सूट नहीं करती. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में लव जेहाद की तरह जमीन जेहाद भी हो रहा है.

वैसे तो इस देश में सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा करना जन्मसिद्ध अधिकार समझा जाता है. लेकिन इसी देश के बेहद संवेदनशील राज्य में अगर ये जन्मसिद्ध अधिकार सिस्टम के ही आशीर्वाद से जेहाद का हथियार बन जाए तो आप क्या कहेंगे? इस राज्य का नाम है जम्मू-कश्मीर. जम्मू-कश्मीर में पिछले 17 वर्षो के दौरान इस घोटाले को अंजाम दिया गया.

ये वो जेहाद है जिसके दम पर पाकिस्तान भारत को तोड़ने का सपना बरसों से देख रहा है. आज आप हर जगह राजनीति की ख़बरें देख रहे होंगे, लेकिन इससे अलग हम देश के लिए वो दबी हुई ख़बर निकाल कर लाए हैं, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि कैसे देश के साथ इतनी बड़ी साज़िश. बरसों तक होती रही और किसी ने इस पर ध्यान तक नहीं दिया.

क्या आप सोच सकते हैं कि एक राज्य में कानून की आड़ में धर्म के आधार पर जनसंख्या को बदलने की कोशिश होती रही और सरकारें इसे रोकने की बजाय प्रोत्साहन देती रहीं.

क्या आप सोच सकते हैं कि आबादी में बदलाव की प्लानिंग के लिए राज्य सरकार के एक कानून को ही सबसे बड़ा हथियार बनाया जा सकता है? आपके लिए ये कल्पना करना मुश्किल होगा लेकिन ये सब हुआ है देश के सबसे संवेदनशील राज्य जम्मू-कश्मीर के साथ. जहां रोशनी एक्ट नाम के एक कानून के तहत सरकारी ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा करने वालों को ही ज़मीन का असली मालिक बना दिया गया. ये एक बहुत बड़ा ज़मीन घोटाला था जिसमें अवैध कब्ज़ा करने वालों को बेशकीमती सरकारी ज़मीनें कौड़ियों के भाव बेच दी गईं.

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हाई कोर्ट में चल रहा केस
ये मामला फिलहाल जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में चल रहा है लेकिन असल में ये एक बहुत बड़ी साज़िश भी थी क्योंकि आरोपों के मुताबिक हिंदू बहुल जम्मू में अवैध कब्ज़े वाली सरकारी ज़मीनों का मालिक धर्म विशेष के लोगों को बना दिया गया. जब इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ हमने निकाले और इस मामले से संबंधित लोगों से बात की तो हैरान करने वाली जानकारियां निकल कर सामने आईं. इनके मुताबिक सरकारी ज़मीन पर मालिकाना हक़ देने वाले रोशनी एक्ट के तहत जम्मू में 25 हज़ार लोग बसाए गए, जबकि कश्मीर में सिर्फ़ 5 हज़ार लोग बसाए गए.

सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात ये है कि हिंदू बहुल जम्मू में जिन 25 हज़ार लोगों को सरकारी ज़मीन का कब्ज़ा दिया गया, उनमें से करीब 90 प्रतिशत मुसलमान थे.

सवाल ये है कि अगर रोशनी एक्ट सिर्फ अवैध कब्ज़े वाली सरकारी ज़मीनों पर मालिकाना हक वैध करने के लिए था तो फिर हिंदू बहुल जम्मू की ज़मीनों पर करीब 90 प्रतिशत मामलों में मुसलमानों को ही कब्ज़ा क्यों दिया गया? सवाल ये भी है कि क्या ये जम्मू की हिंदू बहुल आबादी को मुसलमान आबादी से बदलने की साज़िश थी. क्या सरकारों ने बहुत सोच समझ कर ऐसे कानून बनाए जिनसे जम्मू की डेमोग्राफी को बदला जा सके. हमने इस मामले पर जम्मू से भी एक Ground Report तैयार की है जिसमें आपको इन सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे.

जम्मू की आबादी का गणित
लेकिन पहले हम आपको जम्मू की आबादी का गणित भी दिखा देते हैं क्योंकि इससे आपके लिए आबादी में बदलाव और ज़मीन वाली इस साज़िश को समझना आसान होगा. 2001 की जनगणना के मुताबिक जम्मू में हिंदू आबादी करीब 65 फीसदी थी और मुस्लिम आबादी करीब 31 फीसदी थी. लेकिन 2011 में जम्मू की हिंदू आबादी में करीब 3 फीसदी की गिरावट आई और मुस्लिम आबादी 3 फीसदी के करीब ही बढ़ी. यानी जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या को बदलने को लेकर जो दावा किया जा रहा है उसकी पुष्टि कुछ हद तक सरकार के ये आंकड़े भी करते हैं. 

हिंदू बहुल जम्मू में मुस्लिम आबादी को बढ़ाने के पीछे किसका हित हो सकता है? ये सबके लिए एक बड़ा सवाल है. जम्मू की जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों के नाम अब जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के पास हैं. ये लिस्ट हमारे पास भी है. इसको उदाहरण के तौर पर एक इलाके की लिस्ट से समझिए जिसमें जिन्होंने जम्मू में तवी नदी के आसपास के इलाकों में अवैध कब्ज़ा किया था और अब भी यहां इनका कब्ज़ा है. ये लिस्ट हाई कोर्ट के निर्देश पर जम्मू के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज ने तैयार की थी.

रोशनी एक्‍ट
अब आपको पता चल रहा होगा कि कैसे जम्मू कश्मीर में सरकारी ज़मीन पर धड़ल्ले से कब्ज़ा हुआ. कानून ऐसे बनाए गए कि कब्ज़ा करने वालों को ही ज़मीन का मालिक बना दिया गया. इसलिए यहां आपको रोशनी एक्ट के बारे में भी जानना चाहिए. 2001 में तत्कालीन नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने सरकारी ज़मीनों पर मालिकाना हक देने के लिए रोशनी एक्ट बनाया था. यानी जिन लोगों ने सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर रखा था, उन्हें इस एक्ट से ज़मीन का मालिक बनाने का रास्ता दे दिया.

इसमें मामूली कीमत पर ज़मीन का मालिकाना हक उन्हीं को देने का प्रावधान था, जिन्होंने ज़मीन कब्ज़ा कर रखी थी. तब रोशनी एक्ट का मकसद ये बताया गया था कि इससे मिलने वाली रकम को बिजली के प्रोजेक्ट्स में लगाया जाएगा. पहले एक्ट में प्रावधान था कि 1999 से पहले जिन्होंने ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा है, उन्हें नए कानून का फायदा मिलेगा लेकिन 2004 में एक्ट में बदलाव करके 1999 वाले प्रावधान को खत्म कर दिया गया और पूरी तरह से खुली छूट दे दी.

2014 में इस रोशनी एक्ट के ज़रिए किया गया ज़मीन घोटाला सबके सामने आया, जब सीएजी की रिपोर्ट सामने आई. सीएजी ने इसे 25 हज़ार करोड़ का घोटाला बताया और ये जम्मू कश्मीर के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला कहा गया. 2018 में जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रोशनी एक्ट को खत्म कर दिया.

इस मामले को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने बहुत गंभीरता से लिया है और कब्ज़ा करने वाले तमाम लोगों के नाम सार्वजनिक करने के आदेश दिए. इस मामले की सुनवाई जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस गीता मित्तल की बेंच कर रही है. हमारे पास हाई कोर्ट के ऑर्डर की कॉपी भी है और जो बात हम आपसे कह रहे हैं कि कैसे बेहद कम कीमत पर महंगी सरकारी ज़मीन को अवैध कब्ज़ा करने वालों के हवाले किया गया, वही बात इस ऑर्डर की कॉपी में भी है.

इसमें कोर्ट ने कहा है कि 2004 में सरकार ने 20 लाख 64 हज़ार 972 कनाल सरकारी ज़मीन बेच कर 25 हज़ार 448 करोड़ रुपये कमाने का टारगेट रखा था लेकिन उसे सिर्फ करीब 76 करोड़ रुपये ही मिले यानी मकसद रोशनी एक्ट के तहत पैसा जुटाना नहीं था, कुछ और ही था.

पाकिस्‍तान का एजेंडा
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस 20 लाख कनाल ज़मीन पर जोधपुर और जैसलमेर जैसे बड़े शहर बसाए जा सकते हैं. अब सोचिए ये कितनी बड़ी साज़िश थी. जो बरसों से चली रही थी. 2001 में इस साज़िश को कानूनी सुरक्षा कवच भी मिल गया और हमारे नेता भी उस खेल में शामिल हो गए जो पाकिस्तान भारत के खिलाफ खेलना चाहता था.

हमारी रिपोर्ट में आपने गज़वा-ए-हिंद शब्द पर गौर किया होगा. गज़वा-ए-हिंद कट्टर इस्लाम की वो विचारधारा है जिसके तहत पूरी दुनिया में इस्लाम के राज की स्थापना करने के लिए सबसे बड़ी और आखिरी लड़ाई भारत के खिलाफ लड़ी जाएगी. पाकिस्तान इसी गज़वा-ए-हिंद के दम पर भारत को तोड़ने के सपने देखता है.

जब भी इस शब्द का जिक्र आता है तो कहा जाता है कि पाकिस्तान इसकी शुरुआत कश्मीर के साथ करना चाहता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पाकिस्तान के रणनीतिकारों के लिए कश्मीर नहीं बल्कि जम्मू पर कब्ज़ा करना ज्यादा महत्वपूर्ण रहा.

इसे समझने के लिए आज हमने कुछ किताबों और दस्तावेज़ों का अध्ययन किया है. ऐसा ही एक दस्तावेज़ है White Paper on Kashmir जिसे जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के HOD रह चुके Dr M.K Teng और C L GADOO ने ड्राफ्ट किया था.

ये रिपोर्ट कश्मीर में हुए नरसंहारों पर आधारित थी जिसमें पाकिस्तान की भूमिका और भारत में जेहाद फैलाने की कोशिशों का जिक्र है.

इस रिपोर्ट में लिखा है कि पाकिस्तान का मकसद जम्मू के मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में आतंकवाद को बढ़ावा देना है. उनका मकसद चेनाब नदी के पश्चिमी छोर पर मुसलमानों को इकट्ठा करके भारत के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार करना था. इसी के आधार पर जम्मू और कश्मीर को तोड़ दिया जाए.

इस रिपोर्ट में आगे लिखा है कि जम्मू-कश्मीर में एक गृह युद्ध छेड़ा जाए...ताकि भारत इस युद्ध में थक जाए और वो कश्मीर पर आत्मसमर्पण कर दें. इसके बाद दुनिया के दूसरे देश इसमें दखल देंगे और फिर भारत दूसरे देशों के दबाव के बाद जो फैसला होगा वो पकिस्तान के पक्ष में होगा.

इस रिपोर्ट में कश्मीर के अल्पसंख्यक हिंदुओं को खत्म करने की योजना का भी जिक्र है क्योंकि ये वही लोग हैं जो पाकिस्तान और कश्मीर के बीच दीवार हैं. ये वही लोग हैं जो नहीं मानते कि कश्मीर, पाकिस्तान का हिस्सा है और ये वही लोग हैं जो कश्मीर में निज़ाम-ए-मुस्तफा यानी इस्लाम के कानून लागू होने नहीं देना चाहते. ये वही लोग हैं जो भारत के खिलाफ जेहाद में साथ नहीं देंगे.

पंडित नेहरू और सरदार पटेल
1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ था तब मुसलमानों की एक बड़ी आबादी पाकिस्तान चली गई थी जबकि हिंदू और सिखों की एक बड़ी आबादी पाकिस्तान से भारत आ गई थी. इस दौरान दिल्ली में मुसलमानों के जो घर खाली हो गए थे उनमें पाकिस्तान से आने वाले सिखों और हिंदुओं को बसा दिया गया था. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ऐसा नहीं चाहते थे. इसे लेकर तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और पंडित नेहरू के बीच विवाद भी हो गया था. इस विवाद के बारे में उस समय सरदार पटेल के राजनीतिक सचिव रहे वी शंकर ने अपनी किताब में भी लिखा है. इस किताब में नेहरू और पटेल के बीच हुए पत्र व्यवहार का ब्योरा है.

21 नवंबर 1947 को सरदार पटेल ने कांग्रेस के नेता सी नियोगी को एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने लिखा कि मैंने अभी-अभी एस के कृपलानी के हस्ताक्षर वाला ऑफिस मेमोरेंडम देखा है जिसमें ये सूचित किया गया है कि दिल्ली के मुख्यतः मुस्लिम मोहल्ले में जो घर खाली पड़े हैं वो गैर मुस्लिम रिफ्यूजियों को किराए पर न दिए जाएं बल्कि सिर्फ मुसलमानों को ही दिए जाएं ताकि ये मोहल्ले दिल्ली में संगठित मुस्लिम मोहल्लों में बदल सके.

पटेल ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि अगर सरकार ने ऐसा कोई फैसला किया है तो इसकी जानकारी उन्हें क्यों नहीं दी गई और अगर इस पर अमल किया गया तो गैर मुस्लिमों के बीच तीखी प्रतिक्रिया होगी. इसी चिट्ठी की एक प्रति पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी दी गई थी.

चिट्ठी मिलते ही नेहरू ने पटेल को जवाब में चिट्ठी भेजी. इस चिट्ठी में उन्होंने लिखा कि हम में से कोई नहीं चाहता कि शहर में संगठित मुस्लिम मोहल्ले बसाए जाएं लेकिन इसके पीछे मंशा शहर के दो-तीन ऐसे मोहल्लों में उपद्रव रोकने की थी जहां बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं. नेहरू ने इस चिट्ठी के ज़रिये पटेल को ये समझाने की कोशिश की थी कि दिल्ली के कई मोहल्लों में रहने वाले मुसलमान भयभीत हैं और पाकिस्तान से आए सिख रिफ्यूजी उन्हें धमका रहे हैं और मुसलमान शहर छोड़कर जा रहे हैं. इसलिए ये निर्देश दिए गए हैं.

इसके जवाब में अगले दिन यानी 22 नवंबर 1947 को गृहमंत्री सरदार पटेल ने फिर से पंडित नेहरू को एक पत्र लिखा. जिसका सार ये था कि शहर में मुसलमानों की संगठित बस्तियां बसाने से देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. उन्होंने अपनी चिट्ठी में ये भी कहा कि इस पर विश्वास करना मुश्किल है कि किसी मुस्लिम बस्ती में कुछ गैर मुसलमानों ने ऐसी परिस्थितियां खड़ी कर दी कि मुसलमानों को अपने घर छोड़कर जाना पड़ा. पटेल ने अपनी चिट्ठी में साफ किया कि किसी भी हालत में बाहर से मुसलमानों को लाकर दिल्ली में नहीं बसाना चाहिए.

मृदला साराभाई की चिट्ठी
जिस तरह जम्मू में बाहर से आए मुसलमानों को बसाकर वहां की डेमोग्राफी बदलने के आरोप लग रहे हैं वैसे ही आरोप 1947 में भी लगे थे. 25 नवंबर 1947 को कांग्रेस के नेता के सी नियोगी ने कांग्रेस नेता मृदला साराभाई की एक चिट्ठी सरदार पटेल को भेजी थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना हकीम शरीफउद्दीन करनाल जिले से अपने कार्यकर्ता और अनुयायियों को एकत्रित करके दिल्ली में ऐसी जगहों पर फिर से बसाना चाहते हैं जहां उनके रिश्तेदार या मित्र रहते हैं. वो चाहते हैं कि इसके लिए उन्हें एक ट्रक दिया जाए और रास्ते में रक्षा करने वाला एक पुलिस दल भी दिया जाए.

इसके जवाब में सरदार पटेल ने लिखा था कि हम रिफ्यूजियों के बड़ी संख्या में दिल्ली आने के विरुद्ध हैं और हम इन लोगों को दिल्ली लाने के लिए कोई सुविधा नहीं दे सकते और मौलाना शरीफउद्दीन द्वारा अपने अनुयायियों को दिल्ली में एकत्रित करने की योजना से हमारा कोई संबंध नहीं होना चाहिए.

यानी बाहर से लोगों को लाकर अलग-अलग शहरों में बसाने की योजना आज से नहीं बल्कि आजादी के बाद से चली आ रही है और कई बार कांग्रेस समेत कई पार्टियां ऐसी योजनाओं को प्रोत्साहित करती रही हैं. कभी इन योजनाओं का मकसद अल्पसंख्यकों की रक्षा करना होता है तो कभी एक साजिश के तहत एक शहर या एक इलाके की जनसंख्या में बदलाव लाना.

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