DNA ANALYSIS: तुष्टीकरण की राजनीति की 'पोल खोल'
Advertisement
trendingNow1724484

DNA ANALYSIS: तुष्टीकरण की राजनीति की 'पोल खोल'

हिंदू मंदिर को नष्ट करके मस्जिद बनाने का काम सिर्फ अयोध्या में ही नहीं हुआ बल्कि ऐसा पूरे देश में किया गया. ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि जनवरी 1670 में रमजान के महीने में औरंगजेब ने मथुरा के एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था.

DNA ANALYSIS: तुष्टीकरण की राजनीति की 'पोल खोल'

नई दिल्ली: जो लोग कह रहे हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी उन्हें आज कुछ एतिहासिक तथ्यों के बारे में भी जान लेना चाहिए ताकि इसे लेकर उनकी सारी गलतफहमियां दूर हो जाएं.

पूर्व IPS और लेखक किशोर कुणाल की एक मशहूर पुस्तक है जिसका नाम है Ayodhya Revisited जिसमें उन्होंने कुछ पुराने ऐतिहासिक दस्तावेजों का उल्लेख किया है. ऐसे ही एक दस्तावेज में वर्ष 1886 से 1889 तक ASI के DG रहे जेम्स बरजेस ने लिखा है कि सरयु नदी के किनारे बसे त्रेता का ठाकुर मंदिर से संस्कृत में लिखे कुछ शिलालेख मिले हैं. इस मंदिर को राजा जयचंद्र ने सन् 1241 में बनवाया था और बाद में औरंगजेब ने इसे तोड़कर यहां मस्जिद बना दी. ऐसा ही बाबर ने राम मंदिर के साथ भी किया था. यानी भगवान राम और दूसरे देवी देवताओं को समर्पित अयोध्या नगरी के मंदिरों को बार-बार तोड़कर इतिहास को बदलने की कोशिश की गई. फिर भी कुछ लोग कहते हैं कि यहां मस्जिद थी, है और रहेगी.

ये भी पढ़ें: जिन्हें चुभ रहा है Zee News के स्टूडियो में बना भव्य राम मंदिर का मॉडल, वे इसे जरूर पढ़ें

fallback

दस्तावेजों में राम मंदिर का जिक्र
7वीं शताब्दी में चीन के दार्शनिक ह्नेन त्सांग भारत आए थे. उन्होंने अपनी भारत यात्रा का जिक्र करते हुए प्राचीन शहर साकेत के बारे में लिखा था. जिसे राजा दशरथ की राजधानी कहा जाता था, इसी शहर को आज अयोध्या कहा जाता है. हालांकि इसे लेकर थोड़ा विवाद भी है क्योंकि कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अयोध्या और साकेत अलग-अलग शहर थे. लेकिन ह्नेन त्सांग ने यहां राजा हर्ष के समय में मंदिरों की मौजूदगी की बात अपनी पुस्तकों में लिखी थी.

इसके अलावा 17वीं शताब्दी में अंग्रेज व्यापारी विलियम फिंच ने भी अयोध्या में भगवान राम की पूजा किए जाने का जिक्र किया था और उनके लेखन में बाबरी मस्जिद का जिक्र नहीं था.

यानी आखिरी बार अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण 1184 में हुआ था और राम मंदिर की ये लड़ाई 500 वर्ष नहीं बल्कि 800 साल पुरानी है.

लेकिन हिंदू मंदिर को नष्ट करके मस्जिद बनाने का काम सिर्फ अयोध्या में ही नहीं हुआ बल्कि ऐसा पूरे देश में किया गया. ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि जनवरी 1670 में रमजान के महीने में औरंगजेब ने मथुरा के एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया था. इस मंदिर का नाम है केशर राय मंदिर जिसे ओरछा के राजा बीर सिंह बुंदेला ने उस जमाने में 33 लाख रुपये में बनवाया था.

ये भी पढ़ें- DNA ANALYSIS: राम मंदिर पर फिर शुरू हुई नफरत फैलाने की साजिश

मंदिरों को तोड़कर बनाए गए मस्जिद
इसके अलावा आज हम अपने रिसर्च किया तो पता चला कि वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद भी काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी. मथुरा की शाही ईदगाह भी कृष्ण जन्म भूमि मंदिर की जगह पर बनी है. अहमदाबाद की जामा मस्जिद भद्रकाली मंदिर की जगह पर है. इसी तरह मध्य प्रदेश के धार में मौजूद भोजशाला कमाल मौला मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि ये देवी सरस्वती का मंदिर हुआ करता था और इसकी जगह पर मस्जिद बनाई गई. इस मस्जिद की देखरेख ASI द्वारा की जाती है और हिंदुओं को यहां मंगलवार और बसंत पंचमी के दिन पूजा की इजाजत है और मुसलमान यहां हर शुक्रवार को नमाज पढ़ सकते हैं.

इसी तरह श्रीनगर की जामिया मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यहां पहले तारापिदा मंदिर हुआ करता था, जिसे कश्मीर के शाह मीरी वंश के छठे सुल्तान सिकंदर बुतशिकन ने 15वीं सदी में तोड़कर वहां मस्जिद बना दी थी.

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि जम्मू और कश्मीर पहले हिंदू बाहुल्य क्षेत्र था. लेकिन 14वीं शताब्दी में हिंदुओं का दमन शुरू हुआ. मुगलों के दौर में भी बहुत बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्मांतरण हुआ. बड़े और प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया गया. बहुत से मंदिरों को तोड़ने की कोशिश की गई. लेकिन मजबूती की वजह से वो पूरी तरह तोड़े नहीं जा सके. आज भी ऐसे मंदिर मौजूद हैं. इनमें से कई प्राचीन मंदिर आज खंडहर बन चुके हैं. ये खंडहर आज भी अपने गौरवशाली इतिहास की गवाही दे रहे हैं. 

मंदिरों का गौरवशाली इतिहास
जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में 2 हजार 200 वर्ष पुराना शंकराचार्य मंदिर आज भी मौजूद है. मार्तण्ड मंदिर, कश्मीर का सबसे प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है. अनंतनाग जिले में मौजूद ये मंदिर करीब 1200 वर्ष पुराना है. और कश्मीर घाटी के बारामूला जिले में मौजूद शंकर-गौरी-ईश्वर मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है.

कश्मीर के राजनीतिक और धार्मिक इतिहास की तह तक जाने की कोशिश कई लेखकों और इतिहासकारों ने की है. लेकिन कश्मीर पर सबसे पुरानी और भरोसेमंद रचना 'राजतरंगिणी' को माना जाता है. जिसे कश्मीर के कवि कल्हण ने लिखा था.

माना जाता है कि राजतरंगिणी की रचना वर्ष 1147 से 1149 के बीच की गई थी. इसमें कल्हण लिखते हैं कि कश्मीर घाटी पहले एक विशाल झील थी जिसे कश्यप ऋषि ने बारामुला की पहाड़ियां काटकर खाली किया था.

राजतरंगिणी के अनुसार श्रीनगर शहर को सम्राट अशोक ने बसाया था और यहीं से बौद्ध धर्म पहले कश्मीर घाटी में और फिर मध्य एशिया, तिब्बत और चीन पहुंचा. कल्हण अपनी रचना में भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमण और कश्मीर में इस्लाम की शुरुआत का भी उल्लेख करते हैं.

यानी पौराणिक इतिहासकारों से लेकर आधुनिक इतिहासकार तक मानते हैं कि कश्मीर में हिंदू धर्म की जड़ें बहुत गहरी रही हैं. 14वीं शताब्दी में सूफीवाद कश्मीर पहुंचा. शुरुआत में वहां की हिंदू संस्कृति को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया. लेकिन बाद में धीरे-धीरे हिंदुओं के धर्मांतरण की शुरुआत हो गई. 7वीं शताब्दी से लेकर 13वी शताब्दी तक कश्मीर पर कई हिंदू राजाओं का शासन रहा.

तुष्टिकरण की राजनीति
भारत में 73 वर्षों तक अल्पसंख्यको का तुष्टिकरण किया गया. यहां तक कि अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए पहले की सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक को पलट दिया था. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्ष 1985 का शाह बानो केस है. शाह बानो एक मुस्लिम महिला थीं जिन्हें उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने तलाक दे दिया था. शाह बानो ने अपने पति से गुजारा भत्ता मांगा और इसकी मांग को लेकर वो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गईं. सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया. लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस फैसले को पलट दिया और एक नया कानून बना दिया. जिसके मुताबिक पत्नी को गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी उसे तलाक देने वाले पति की जगह उसके रिश्तेदारों पर डाल दी गई. उस समय देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. लेकिन ऐसा करके भी कांग्रेस को देश की धर्म निरपेक्षता पर कोई खतरा मंडराता हुआ नहीं दिखा. तब ना तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान हुआ और ना ही संविधान में सबको दिए गए बराबरी के अधिकार का सम्मान किया गया. लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में तुष्टिकरण की राजनीति जोर पकड़ती गई और ये सिलसिला 1990 तक चलता रहा.

पहली बार देश के बहुसंख्यकों ने धर्म निरपेक्षता की परिभाषा का नए सिरे से विश्लेषण राम मंदिर आंदोलन के साथ ही किया और भारत की राजनीति में हिंदुत्व को भी जगह मिलने लगी. लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि देश के मुसलमान खतरे में आ गए थे बल्कि सच तो ये है कि 1950 से लेकर अब तक भारत में मुसलमानों की आबादी 9 प्रतिशत से बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई जबकि हिंदुओं की आबादी 84 प्रतिशत से घटकर 80 प्रतिशत रह गई. इसके अलावा भारत की 6 प्रतिशत आबादी अन्य धर्मों को मानने वाली है. अगर भारत के मुसलमान सच में ख़तरे में होते तो आप खुद सोचिए कि क्या उनकी आबादी घटने की बजाय बढ़ने लगती?

भारत में सभी बराबर
भारत की सच्ची धर्म निरपेक्षता यही है कि भारत में हिंदु और मुसलमानों को बराबर का हक हासिल है और एक मंदिर बन जाने से किसी का हक छिन नहीं जाता. फिर भी कुछ लोगों को लगता है कि भारत की धर्म निरपेक्षता खतरे में है. ऐसे लोगों को उन देशों की तरफ भी देखना चाहिए जहां धर्म को राजनीति में जगह दे दी गई है. पूरी दुनिया में इस समय 50 देश ऐसे हैं जो या तो खुद को इस्लामिक देश कहते हैं या जिनकी राजनीति में इस्लाम को प्रमुख स्थान हासिल है. इन देशों में भी अल्पसंख्यक रहते हैं लेकिन जब इन देशों का कोई नेता मस्जिद जाता है तो किसी को इससे परेशानी नहीं होती. इतना ही नहीं जब दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप हाथ में बाइबल उठाते हैं तब भी किसी को कोई परेशानी नहीं होती. जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मस्जिद जाकर नमाज पढ़ते हैं तो कोई ये नहीं कहता कि पाकिस्तान के हिंदू खतरे में आ गए हैं. इसी तरह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन भी चर्च जाते हैं, टर्की के राष्ट्रपति तैयप एदोर्गन उस मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं जो पहले चर्च और म्यूजियम हुआ करती थी लेकिन इस पर भारत में बैठे बुद्धीजीवी, पत्रकार और मुसलमानों का एक वर्ग कुछ नहीं बोलता. लेकिन जब हिंदू धर्म को मानने वाला एक प्रधानमंत्री राम मंदिर के भूमि पूजन में जाकर अपनी आस्था प्रकट करता है तो सबको भारत की धर्मनिरपेक्षता खतरे में दिखाई देती है.

राम मंदिर का विरोध करने वालों की मंशा और गलतियां 
- पहली बात ये है कि इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवमानना की है और इन पर कार्रवाई होनी चाहिए.
- दूसरी बात ये है कि इन्होंने संविधान का अपमान किया है.
- तीसरी बात ये है कि इन्होंने हिंदु-मुस्लिम भाईचारे को तोड़ने की कोशिश की है.
- चौथी बात ये है कि ये लोग नहीं चाहते कि अयोध्या में राम मंदिर का मसला आने वाले 500 वर्षों तक भी सुलझे.

पूरी दुनिया ने देखा भूमि पूजन
राम मंदिर का भूमि पूजन, देश और दुनिया का सबसे ज्यादा देखा जाने वाला कार्यक्रम बन चुका है. देश में करीब 200 टीवी चैनल्स पर इसका प्रसारण हुआ है. ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भूमि पूजन के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देखा गया. इसके अलावा इंडोनेशिया, थाईलैंड, नेपाल और कई देशों में इसे देखा गया.

न्यूज एजेंसी ANI के जरिए करीब 1200 चैनल्स और अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी APTN के जरिए दुनिया भर के करीब 450 मीडिया हाउसेज में भूमि पूजन के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण मुहैया करवाया गया. जो लोग टीवी पर इसे देख नहीं पाए, उन्होंने You-tube पर इसे देखा. डेढ़ करोड़ लोगों ने तो सिर्फ दूरदर्शन के You-tube चैनल पर भूमि पूजन कार्यक्रम को देखा. इसमें सबसे ज्यादा व्यूवरशिप अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान जैसे करीब 23 देशों से आई है.

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news