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नई दिल्ली: 26 जनवरी 1950 के दिन भारत के इतिहास में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन किया गया था. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को 21 तोपों की सलामी के बाद भारत के तिरंगे को फहराकर हमारे गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की थी. यही देश का पहला गणतंत्र दिवस समारोह था. इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर सुकर्णो भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे और अंग्रेजों से आज़ादी पाने के 894 दिनों के बाद हमारा देश गणतंत्र बना था. उस समय इस परेड में सेना के 3 हजार सैनिकों और अधिकारियों के साथ 100 एयरक्राफ्ट्स भी शामिल हुए थे.
वर्ष 1950 का भारत अब 2021 में प्रवेश कर चुका है और ये भारत दुनिया की महाशक्ति बनने का सपना देखता है. हमारे इस सपने की एक तस्वीर गणतंत्र दिवस परेड में भी दिखाई देती है. गणतंत्र दिवस भारत की एकता, अखंडता और स्वतंत्रता का प्रतीक है और ये परेड 135 करोड़ भारतीयों का राष्ट्रीय गौरव है. लेकिन भारत के गणतंत्र बनने के 71 वर्षों बाद अब 2021 की परेड को रद्द करने की मांग हो रही है.
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने ट्वीट करके कहा कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया है और अब गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि नहीं हैं. इसलिए क्यों न एक कदम आगे जाकर इस पूरे समारोह को ही रद्द कर दिया जाए?
ये वही शशि थरूर हैं जिन्होंने Medical Entrance के लिए होने वाली NEET परीक्षा को कैंसिल करने की बात की थी. हमने तब भी यही कहा था कि देश के छात्रों के भविष्य को देखते हुए NEET परीक्षा होनी चाहिए और ये परीक्षा पिछले वर्ष सितंबर में हुई थी और अब राष्ट्र की परंपरा को निभाने के लिए गणतंत्र दिवस की परेड भी होनी चाहिए.
शशि थरूर ने इस परेड को रद्द करने के लिए कोरोना संक्रमण को मुद्दा बनाया है. इस समय Social Distancing के साथ पूरा देश आगे बढ़ रहा है. आपके ऑफिस काम कर रहे हैं. बाज़ारों में पहले की तरह बिजनेस हो रहा है और जल्द ही बच्चों के स्कूल भी खुल सकते हैं. अगर पूरा देश चल सकता है, तो फिर गणतंत्र दिवस की परेड पर ही रोक क्यों लगाई जाए?
इस विवाद की शुरुआत भारत से लगभग साढ़े 6 हज़ार किलोमीटर दूर ब्रिटेन से हुई है. इस वर्ष की गणतंत्र दिवस परेड में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री Boris Johnson मुख्य अतिथि थे. ब्रिटेन में कोरोना संक्रमण की Second Wave आ चुकी है और वहां पर लॉकडाउन को और सख्त कर दिया गया है. अब इन्हीं वजहों से बोरिस जॉनसन ने अपनी भारत यात्रा को रद्द कर दिया है. इस समय बोरिस जॉनसन का ब्रिटेन में रहना जरूरी है. लेकिन उनके भारत न आने को अब मुद्दा बनाया जा रहा है और परेड को ही रद्द करने का नकारात्मक विचार दिया जा रहा है.
हालांकि कोरोना संक्रमण की वजह से इस बार 26 जनवरी को राजपथ पर होने वाली परेड भी छोटी होगी. इस बार परेड की लंबाई पिछले वर्ष से लगभग आधी कर दी गई है.
इस बार दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह को देखने का मौका भी कम लोगों को मिलेगा और टिकटों की बिक्री भी कम संख्या में होगी. परेड में 15 वर्ष से ज़्यादा उम्र के स्कूली बच्चे ही शामिल हो पाएंगे और इस बार परेड में हर एक Contingent यानी दस्ते में कम लोग होंगे. ताकि Social Distancing का पालन हो सके.
पिछले 71 वर्षों में गणतंत्र दिवस की परेड को आयोजित करने का तरीका बदल गया है.
वर्ष 1950 से 1955 के बीच गणतंत्र दिवस की परेड की जगह बार-बार बदलती रही. इस दौरान गणतंत्र दिवस की परेड लाल किला, नेशनल स्टेडियम, Kingsway और रामलीला मैदान में भी की गई और राजपथ पर गणतंत्र दिवस मनाने की परंपरा वर्ष 1955 में शुरू हुई थी.
आधुनिक समय में राजपथ की ये परेड हमारे गणतंत्र की वार्षिक परंपरा बन गई है. हमारे देश में गणतंत्र को बहुत महत्व दिया जाता है. हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने पर गर्व भी करते हैं और इस भावना का प्रदर्शन राजपथ पर हमारी सेना और सुरक्षाबलों के शौर्य और पराक्रम में दिखाई देता है. राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड में भारत के अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता है. सेना के Tanks, Fighter Aircrafts, लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें और नई Military Technology भी इस परेड का हिस्सा बनती है. आप इसे दुनिया के सामने भारत का शक्ति प्रदर्शन भी कह सकते हैं.
आप में से बहुत कम लोगों ने करीब से सेना के हथियारों को देखा होगा या उनके बारे में जानते होंगे और इस परेड को देखकर ही आपको अपनी सेनाओं की शक्ति के बारे में सही जानकारी मिलती है.
अगर आप 26 जनवरी को राजपथ के आस-पास भी खड़े हों तो आप देशभक्ति के सम्मान और राष्ट्रवाद के जोश को महसूस कर सकते हैं. कुल मिलाकर ये भारतीय गणतंत्र में नई ऊर्जा भरने वाला दिन है.
गणतंत्र दिवस परेड में सबसे आगे भारत की सेनाएं होती है. ये दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर सेना है. जो राष्ट्र की शक्ति और सीमाओं की रक्षा के संकल्प को दिखाती है. इनकी वजह से ही देश के सभी दुश्मनों की चुनौतियां आसान लगती हैं.
वर्ष 2020 में इसी परेड में आपने सर्जिकल स्ट्राइक के नायकों को देखा था. वर्ष 2016 में Line of Control के पार जाकर Parachute Regiment के बहादुर सैनिकों ने ही हमला किया था और उस पराक्रम के बाद पहली बार Special Forces के जवानों को आपने राजपथ पर देखा.
जब भी देश के नायकों का ज़िक्र होता है, तो लोग अक्सर फिल्मी पर्दे के कलाकारों और खिलाड़ियों की बात करते हैं. अक्सर ऐसे लोग सेना और सुरक्षाबलों को भूल जाते हैं, जबकि हमारी सुरक्षा के लिए बलिदान देने वाले ये सैनिक ही हमारे सच्चे नायक हैं. गणतंत्र दिवस परेड में सेना के बाद अर्ध-सैनिक बल होते हैं और फिर पुलिस, NCC और देश के राज्यों, विभागों और मंत्रालयों की झांकियां होती हैं.
ये एक ऐसा अनोखा दिन है जब आप एक ही जगह पर रहकर पूरे भारत की सभ्यता और संस्कृति की झांकी एक साथ देख सकते हैं और अनेकता में एकता की भावना को समझ सकते हैं.
ये झांकियां एक प्रकार से भारत के सभी राज्यों में हुए विकास को देखने का दुर्लभ मौका है और पूरी दुनिया के सामने हर राज्य अपनी विशेषताओं का प्रदर्शन भी करता है.
गणतंत्र दिवस में उन चुनौतियों को भी दिखाया जा सकता है, जिसका सामना पिछले 1 वर्ष में पूरे देश ने बड़ी मुश्किलों से किया है और इस परेड को रद्द करने की सोच रखना भी देश के 135 करोड़ लोगों के साथ नाइंसाफी होगी.
इस महामारी के बाद दुनिया की रफ़्तार थोड़ी धीमी जरूर हुई लेकिन वो कभी रुकी नहीं है. पिछले वर्ष जून के महीने में रूस की राजधानी मॉस्को में Victory Day Parade हुई. कोरोना की वजह से इसका आयोजन 9 मई 2020 के बदले 24 जून को किया गया था. वर्ष 1945 में नाज़ी जर्मनी को हराने के बाद रूस में पहली बार मिलिट्री परेड आयोजित की गई थी. इस परेड में भारतीय सैनिकों के साथ 19 देशों की सेनाएं शामिल हुईं थी और देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इस परेड में मौजूद रहे थे. इसे देखने के लिए करीब 64 हजार दर्शक आए थे और इसमें शामिल सैनिकों की संख्या 14 हजार से ज्यादा थी. रूस की सरकार इसे एक राष्ट्रीय उत्सव के तौर पर मनाती है और ये हमारे गणतंत्र दिवस की परेड जैसा ही है.
कोरोना काल में ही अमेरिका में पिछले वर्ष नवंबर महीने में राष्ट्रपति चुनाव हुए. कोरोना वायरस के इंफेक्शन के मामले में अमेरिका दुनिया में पहले नंबर पर है. इसके बावजूद वहां पर राष्ट्रपति चुनाव को टाला नहीं गया और अब इसी महीने की 20 तारीख को अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति Joe Biden का शपथ ग्रहण भी होगा.