कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ किसान आंदोलन, खालिस्तान के रास्ते से होते हुए अब पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को देश से तोड़ने की साजिश तक पहुंच गया है और इसके पीछे है खालिस्तानी संगठन, Sikhs For Justice.
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नई दिल्ली: आज हम सबसे पहले टुकड़े टुकड़े गैंग के उस विस्तारवादी विचार का विश्लेषण करेंगे, जिसका मकसद भारत के संवैधानिक ढांचे को ध्वस्त करना है और ये गैंग अब खालिस्तान के साथ भारत के पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को तोड़ने की बातें भी करने लगा है. सरल शब्दों में कहें तो इस गैंग के गोल यानी उद्देश्य अब विस्तारवाद का नया रूप ले रहे हैं और इसने पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र की धरती पर भी अलगाववाद के विचारों को अंकुरित करना शुरू कर दिया है.
किसान आंदोलन की आड़ में सिखों के लिए एक अलग राष्ट्र खालिस्तान की मांग लगातार हो रही है, लेकिन अब Sikhs For Justice नाम के एक खालिस्तानी संगठन ने पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को लेकर अपनी नई योजना पर काम शुरू किया है. ये संगठन अमेरिका से ऑपरेट करता है और इसे चलाने वाले व्यक्ति का नाम है, गुरपतवंत सिंह पन्नू .
पन्नू पर पाकिस्तान से फंडिंग लेकर भारत में खालिस्तान की मांग को बढ़ावा देने का आरोप है और भारत में उसके खिलाफ देशद्रोह के कई मामले दर्ज हैं, लेकिन इस सबके बावजूद उसे किसी का कोई डर नहीं है और अब वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से ये मांग कर रहा है कि इन दोनों राज्यों को भारत से अलग हो जाना चाहिए और इसके लिए आज उसने एक वीडियो जारी किया है. पन्नू का ये दावा भी है कि उसने इसके लिए ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे को अलग से एक चिट्ठी भी लिखी है. सोचिए, इन लोगों में इतनी हिम्मत आती कहां से है.
हम आज ये मांग करते हैं कि गुरपतवंत सिंह पन्नू की तुरंत गिरफ्तारी होनी चाहिए. इसके लिए भारत सरकार को अमेरिका से बात करनी चाहिए.अमेरिका, जो खुद को लोकतंत्र का चैम्पियन मानता है. उसे भी ये सोचना चाहिए कि उसकी जमीन से भारत को तोड़ने की साजिशें रची जा रही हैं और अगर इन साजिशों को रोकना है तो इसके लिए पन्नू का गिरफ्तार होना बहुत ही जरूरी है.
-पन्नू अमेरिका में एक लॉ फर्म चलाता है. जिसका एक दफ्तर न्यूयॉर्क में है और दूसरा दफ्तर अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में है.
-इसके अलावा पन्नू की दो प्रॉपर्टी पंजाब के अमृतसर में है, जिसे भारत सरकार की जांच एजेंसी NIA ने पिछले साल जब्त कर लिया था.
-पन्नू ने पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की है और यही वजह है कि वो अब ये कहा रहा है कि अगर पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र दोनों राज्य भारत से अलग होते हैं तो वो अंतरराष्ट्रीय अदालत में उनकी मदद करेगा.
सोचिए, इसने भारत में ही कानून की पढ़ाई की और अब भारत को ही तोड़ने के लिए कानून के नाम पर लोगों को भड़का रहा है. इस वीडियो को सुनकर आपको पता चलेगा कि कैसे कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुआ किसान आंदोलन, खालिस्तान के रास्ते से होते हुए अब पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को देश से तोड़ने की साजिश तक पहुंच गया है.
-खालिस्तानी संगठन Sikhs For Justice की स्थापना अमेरिका में वर्ष 2007 में हुई थी.
-भारत में इस संगठन पर पूरी तरह पाबंदी है और ये संगठन देश की जांच एजेंसी NIA के भी रडार पर है.
हम आपको Sikhs For Justice और गुरपतवंत सिंह पन्नू से जुड़ी पांच ऐसी बातें बताते हैं, जिससे ये साबित होता है कि ये संगठन भारत को तोड़ना चाहता है.
पहली बात इस संगठन ने रेफरेंडम 2020 नाम से एक भारत विरोधी अभियान शुरू किया था. इसका मकसद था पंजाब में जनमत संग्रह करा कर सिखों के लिए खालिस्तान नाम का एक अलग देश बनाना.
दूसरी बात इसी संगठन ने एक चिट्ठी लिख कर ये कहा था कि भारत में 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस के मौके पर जो व्यक्ति इंडिया गेट पर खालिस्तान का झंडा फहराएगा, उसे ढाई लाख डॉलर यानी एक करोड़ 82 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा. उस दिन इंडिया गेट पर तो ऐसा कुछ नहीं हुआ, लेकिन लाल किले पर कुछ लोगों ने एक खास धर्म का झंडा फहराया और भारत के संविधान को भी चुनौती दी.
तीसरी बात भारत सरकार ने जुलाई 2019 में Unlawful Activities Prevention Act के तहत इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया है.
चौथी बात इस समय पन्नू के पास ही इस संगठन का नियंत्रण है और पन्नू पर भारत में देशद्रोह के कई मामले दर्ज हैं. जुलाई 2019 में पंजाब पुलिस ने पन्नू के खिलाफ देशद्रोह के दो नए मामले भी दर्ज किए थे.
पांचवी और आखिरी बात ये कि खालिस्तान की मांग करने वाले पन्नू को इसके लिए पाकिस्तान से फंडिंग मिलती है.
आज आपको ये भी समझना चाहिए कि खालिस्तान की मांग करने वाले पन्नू ने भारत को तोड़ने के लिए पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र राज्य को ही क्यों चुना?
पश्चिम बंगाल में इस समय ममता बनर्जी की सरकार है और महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना और NCP की गठबंधन सरकार सत्ता में है. इन दोनों राज्यों की सरकारों और केन्द्र सरकार के बीच पिछले दिनों काफी टकराव हुआ है. ममता बनर्जी तो केन्द्र सरकार के कई आदेशों और कानूनों को मानने से भी इनकार कर चुकी है.
सबसे बड़ा उदाहरण नागरिकता संशोधन कानून है, जिसको लेकर ममता बनर्जी ने ये कहा था कि वो इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगी. वहीं महाराष्ट्र सरकार ने भी केन्द्र सरकार के कई आदेशों को पलटने की कोशिश की और कई मामलों में जांच को लेकर राज्य और केन्द्र सरकार के बीच टकराव हुआ और शायद यही कारण है कि टुकड़े टुकड़े गैंग इस राजीनीतिक टकराव का फायदा उठा कर अलगाववाद का बीज इन दोनों राज्यों में बोना चाहता है.
आज ये समझने का भी दिन है कि अगर कल को किसी राज्य में ऐसी पार्टी या नेता की सरकार बनती है, जो अलगाववाद के पक्ष में है तो ऐसी स्थिति में भारत का संविधान क्या कहता है.
इन हालात में उस राज्य का गर्वनर संवैधानिक ढांचे को टूटने से बचाने के लिए और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति से विधान सभा को भंग करने की सिफारिश कर सकता है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं. इसके अलावा देश को तोड़ने के लिए ऐसी पार्टी पर कार्रवाई भी हो सकती है और उस पर पाबंदी लगाने का भी फैसला हो सकता है.
हालांकि यहां एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि देश की संविधान सभा इस बात को स्पष्ट कर चुकी है कि किसी भी राज्य के पास किसी भी स्थिति में भारत से अलग होने का अधिकार नहीं है और भारत का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता.
गुरपतवंत सिंह पन्नू ने ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे को लिखी अपनी चिट्ठी में जिस 'कोसोवो मॉडल' की बात की है, आज हम आपको सरल भाषा में इसके बारे में भी बताते हैं.
कोसोवो, साउथ सूडान के बाद इस दुनिया का दूसरा सबसे नया देश है. हालांकि भारत, चीन और रूस समेत कई देश इसे एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता नहीं देते क्योंकि, इन देशों का मानना है कि ऐसा करने से अलगाववाद को बढ़ावा मिलेगा और फिर इन देशों में भी कई प्रांत और राज्य आजादी की मांग करने लगेंगे, जो किसी भी देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए सही नहीं होगा. हालांकि अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी देश ऐसे भी हैं, जो कोसोवो को एक स्वतंत्र देश मानते हैं और इसमें इनका स्वार्थ छिपा है.
कोसोवो ने 17 फरवरी 2008 को यूरोप के देश सर्बिया से आजादी की घोषणा की थी. कोसोवो की आबादी 20 लाख से भी कम है, जिनमें अल्बानिया मुसलमानों की आबादी सबसे ज्यादा है. हालांकि एक समय ऐसा था जब सर्बिया के इस हिस्से में ईसाई बहुसंख्यक थे. लेकिन उस्मानी सम्राज्य का हिस्सा बनने के बाद यहां धीरे-धीरे अल्बानिया में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ने लगी और 20वीं शताब्दी आते आते ईसाई धर्म की आबादी काफी सिकुड़ गई. जब अल्बानिया मुसलमानों की आबादी ज्यादा हो गई तो इन लोगों ने सर्बिया के खिलाफ अलगाववाद की मुहिम छेड़ दी.
पश्चिमी देशों और कट्टपंथी मुस्लिम संगठनों के अवसरवादी गठजोड़ का ही ये नतीजा था कि सर्बिया के कोसोवो प्रांत में अलगाववाद की भावना भड़की और बाद में ये एक अलग देश बन गया.
सर्बिया ने जब इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में कोसोवो की आजादी का विरोध किया तो इस मामले में फैसला कोसोवो के ही पक्ष में आया. तब अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कहा था कि कोसोवो की आजादी किसी तरह के नियम और संविधान का उल्लंघन नहीं करती. इस फैसले से उन लोकतांत्रिक देशों की चिंता बढ़ गई जो सम्प्रभुता और अखंडता की बात करते हैं. इनमें भारत भी था और यही वजह है कि भारत आज भी कोसोवो को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता नहीं देता है.
खालिस्तान की मांग करने वाले आतंकवादी संगठन चाहते हैं कि जैसा वर्ष 2008 में सर्बिया में हुआ था, ठीक वैसा ही भारत में भी दोहराया जाए और गुरपतवंत सिंह पन्नू इसमें महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में मदद देने की बात भी कह रहा है.
आज हम आपको ये भी बताना चाहते हैं कि दुनियाभर में अलगाववाद की भाषा एक ही है. देशों को तोड़ कर उन्हें अलग अलग हिस्सों में बांटने वाला टुकड़े टुकड़े गैंग एक ही भाषा बोलता है और ये भाषा नफरत और स्वार्थ की है. इसे आप ऐसे समझिए-
- कनाडा के क्यूबेक प्रांत में आज़ादी की मांग है.
-स्पेन का कैटेलोनिया, ब्रिटेन का स्कॉटलैंड , रूस का चेचन्या, चीन का तिब्बत और पाकिस्तान के बलूचिस्तान और सिंध में भी आजादी की मांग है.
हालांकि हमारे देश में कुछ लोग ऐसे हैं, जिनके दिल और दिमाग में अलगाववाद का एक विशाल पेड़ अपनी जगह बना चुका है और ये लोग इसी पेड़ की छांव में रह कर भारत के टुकड़े टुकड़े करने का सपना देखते हैं.
अब आपको हम कुछ तस्वीरों के बारे में बताते हैं. ये तस्वीरें 12 फरवरी की हैं, जब पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में खालिस्तानी आतंकी जरनैल सिंह भिंडरावाला के जन्मदिन के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ. सबसे अहम बात ये कि इस कार्यक्रम में 26 जनवरी को लाल किले पर एक खास धर्म का झंडा फहराने वाले आरोपियों के परिवावालों को मंच पर बुला कर सम्मानित किया गया और उन्हें 50 - 50 हजार रुपये की राशि बतौर इनाम में दी गई.
हम चाहते हैं कि आज आप खुद ये तय करें कि क्या ये देश लोकतंत्र के हिसाब से चलेगा या अलगाववाद के विचारों से क्योंकि, जिस देश के लोकतंत्र पर अलगाववाद का दीमक लग जाता है, उस देश में लोकतंत्र खोखला होने लगता है और हम ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने देंगे.
आज हम आपको इस कार्यक्रम से जुड़ी कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं और इसके लिए सबसे पहले आपको जसकरण सिंह के बारे में बताते हैं. जसकरण सिंह किसान यूनियन अमृतसर का अध्यक्ष है, जो दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन में शामिल है और सबसे अहम बात ये कि जसकरण सिंह 26 जनवरी को दिल्ली में भड़की हिंसा के दौरान देश की राजधानी में ही मौजूद था.
जसकरण सिंह ने इस कार्यक्रम में भगत सिंह को लेकर कुछ बातें कहीं हैं. उसने कहा कि उसके जैसे सिख भगत सिंह को अपना नायक नहीं मानते क्योंकि, भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए शहादत दी थी. वो जरनैल सिंह भिंडरावाला को अपना हीरो मानते हैं क्योंकि, भिंडरावाला ने खालिस्तान नाम का एक अलग देश बनाने के लिए अलगाववाद का सहारा लिया था.
सोचिए, देश की आजादी के लिए शहादत को गले लगाने वाले वाले भगत सिंह आज जिंदा होते तो उन्हें ये बातें सुन कर कितना दुख होता?
आज आपको ये भी समझना चाहिए कि खालिस्तान की मांग करने वाले ये लोग भगत सिंह को अपना दुश्मन क्यों मानते हैं? इसे आप चार पॉइंट्स में समझिए.
पहली बात भगत सिंह ने अपनी धार्मिक पहचान की जगह भारतीय पहचान को सबसे ऊपर रखते हुए स्वतंत्र भारत के लिए 23 वर्ष की उम्र में शहादत दी जबकि भिंडरावाला इसी धर्मनिरपेक्ष भारत को तोड़ कर सिखों के लिए अलग देश बनाना चाहता था.
दूसरी बात भगत सिंह ने मार्च 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. 1928 में उन्होंने Hindustan Republican Association का नाम बदल कर Hindustan Socialist Republican Association कर दिया था. इन संगठनों के नाम से ही आप ये समझ सकते हैं कि भगत सिंह के विचारों में सिर्फ़ भारत के लिए ही जगह थी, खालिस्तान के लिए नहीं.
तीसरी बात भगत सिंह ऐसे भारत का सपना देखते थे, जहां हम अपनी धार्मिक पहचान की बजाय अपनी भारतीय पहचान को महत्व दें.
और चौथी बात ये कि भगत सिंह किसानों और मजदूरों के हक की बात करते थे. वो सिखों के अधिकारों की बात नहीं करते थे. वो धर्म की बात नहीं करते थे.
तो ये वो बातें हैं, जिनकी वजह से खालिस्तान की मांग करने वाले ये लोग भगत सिंह को पसंद नहीं करते.
पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में ये कार्यक्रम 12 फरवरी को हुआ था और इसका आयोजन शिरोमणि अकाली दल अमतृसर ने करवाया था, जिसकी स्थापना वर्ष 1994 में हुए Amritsar Declaration के तहत हुई थी और पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह इसके संस्थापक सदस्यों में से एक हैं.
Amritsar Declaration 1994 का मुख्य उद्देश्य था, लोकतांत्रिक दायरे में रह कर सिखों के लिए अलग क्षेत्र की मांग करना.
हालांकि वर्ष 1998 में जब पंजाब में विधान सभा चुनाव हुए थे तो शिरोमणि अकाली दल अमतृसर के नेताओं की बुरी तरह हार हुई थी. पंजाब के लोगों ने इन्हें पूरी तरह नकार दिया था. इसी के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए और आज पंजाब के मुख्यमंत्री हैं.
लोकतंत्र में अलगाववाद की कोई जगह नहीं हो सकती और इसे आज हम एक छोटी सी कहानी के माध्यम से आपको समझाना चाहते हैं. ये कहानी एक राजा और दो हिस्सों में बंटी उसकी प्रजा की है. राजा के महल में एक खूबसूरत बगीचा था.
उसने अपनी प्रजा के स्वभाव को समझने के लिए लोगों से कहा कि वो उसके बगीचे में दो पौधे या पेड़ लगाएं. एक गुट ने नागफनी यानी कैक्टस का पौधा लगाया जबकि दूसरे गुट ने बांस का वृक्ष लगाने के लिए बीज अंकुरित किए. कैक्टस के पौधे में कुछ ही दिनों में पत्तियां निकल आईं और एक साल में उसने बड़ा रूप ले लिया. लेकिन दूसरी तरफ बांस का पेड़ था, जिसमें समय के साथ कोई परिवर्तन नहीं हुआ.
तीन वर्षों के बाद राजा ने देखा कि कैक्टस का पौधा तो और बड़ा हो चुका है जबकि बांस के पेड़ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. हालांकि कुछ और समय बीता और बांस के पेड़ में अंकूर फूटे और देखते ही देखते बांस का पेड़ काफी ऊंचा हो गया.
ये देख कर तब राजा को ये बात समझ आई कि उसकी प्रजा दो हिस्सों में बंटी हुई है. पहली नागफनी पौधा लगाने वाली है, जिसके मन में अलगाववाद की भावना है, जो अलग हो जाना चाहती है क्योंकि, नागफनी का पौधा तेजी से बड़ा होता है लेकिन उसकी जड़ें बहुत कमजोर होती हैं और तेज हवा से ये जड़ें उखड़ने लगती हैं, जबकि बांस के पेड़ की जड़ें इतनी मज़बूत होती हैं कि बड़े से बड़ा तूफ़ान भी उसे नहीं हिला सकता. लोकतंत्र बांस के पेड़ की तरह ही होता है. ये अपनी जड़ें जमाने में समय लेता है और भारत के लोकतंत्र ने अपनी जड़ों को स्थापित करने के लिए कई वर्षों का समय लिया है, जिसे अलगाववाद का विचार कभी झुका नहीं सकता.