रजनीकांत ने राजनीति को न कह दिया है. आप इसे रजनीकांत का राजनीति से इंस्टैंट (Instant) संन्यास भी कह सकते हैं. उन्होंने इसी महीने की शुरुआत में नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी और अगले साल तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही थी.
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नई दिल्ली: अब हम एक ऐसे कलाकार के जीवन का विश्लेषण करेंगे, जिनकी राजनीतिक फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही, The End हो गई. लेकिन यहां समझने वाली बात ये है कि इस फ़िल्म की पटकथा, किसी और ने नहीं उसी कलाकार ने लिखी है, जो सही समय पर सही फ़ैसले लेने की कला जानता है. आप आज इस ख़बर से ये सीख सकते हैं कि जीवन में 'हां' कहना हमेशा लाभदायक नहीं होता. कई बार न कहना भी ज़रूरी होता है और मशहूर अभिनेता रजनीकांत ने ऐसा ही किया है.
रजनीकांत ने राजनीति को न कह दिया है. आप इसे रजनीकांत का राजनीति से इंस्टैंट (Instant) संन्यास भी कह सकते हैं. उन्होंने इसी महीने की शुरुआत में नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी और अगले साल तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही थी. लेकिन राजनीति में आने के जिस सपने के लिए उन्होंने 24 साल का लंबा इंतज़ार किया, उस सपने के इतने क़रीब पहुंच कर उन्होंने इसे त्याग देने का फ़ैसला किया है. रजनीकांत ने अपने चाहने वालों से इसके लिए माफ़ी मांगी है. उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर एक चिट्ठी डाली है और राजनीति में न आने की वजह बताई है. उन्होंने अपने ख़राब स्वास्थ्य को ईश्वर की चेतावनी बताते हुए राजनीति में नहीं जाने का निर्णय किया है.
जीवन में अपने प्रति ईमानदार होना सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है. हमारे समाज में लोगों को हां बोलना तो सिखाया जाता है, लेकिन न कब बोलना है, ये कोई नहीं सिखाता. लेकिन आप रजनीकांत के इस फ़ैसले से समझ सकते हैं कि जीवन में कई मौक़े ऐसे आते हैं, जब No की ताक़त Yes से ज़्यादा होती है.
सोशल मीडिया पर एक मैसेज चर्चा में है कि रजनीकांत ही पॉलिटिक्स में आए बिना राजनीति को छोड़ सकते हैं. वैसे राजनीति की सीमा पर वो वर्षों से खड़े थे. वर्ष 1996 में जी.के मूपनार ने कांग्रेस छोड़ कर तमिल मनीला कांग्रेस नाम की पार्टी बनाई थी. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव थे. नरसिम्हा राव चाहते थे कि रजनीकांत कांग्रेस में शामिल हो जाएं. विधान सभा चुनाव के दौरान प्रचार करते हुए उनकी रजनीकांत से दो बार मुलाक़ात हुई, लेकिन रजनीकांत कांग्रेस में शामिल नहीं हुए. तब कांग्रेस ने AIADMK के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था. इसके विरोध में जी.के मूपनार ने DMK के साथ गठबंधन कर लिया था और रजनीकांत ने भी इस गठबंधन का खुल कर समर्थन किया, जिसे चुनाव में जीत भी हासिल हुई. कहा जाता है कि इस जीत में रजनीकांत के समर्थन ने अहम भूमिका अदा की थी.
यहीं से रजनीकांत की राजनीति में एंट्री की अटकलें लगनी शुरू हुईं. इसके बाद ऐसे कई मौक़े आए जब लगा कि रजनीकांत राजनीति में आ जाएंगे. लेकिन उन्होंने सही समय का इंतज़ार किया और अब जब सबको लग रहा था कि रजनीकांत के लिए राजनीति में आने का यही सही समय है, रजनीकांत ने राजनीति को न कह दिया.
भगवान और डेस्टनी के इशारों को समझना भी एक कला है और आप कह सकते हैं रजनीकांत इस कला के धनी हैं. हर व्यक्ति का अपनी आत्मा के साथ एक कनेक्शन होता है. हम अपनी आत्मा से बातें करते हैं. ये सोशल मीडिया पर होने वाली उसी Encrypted Chat की तरह है, जिसे कोई दूसरा देख और पढ़ नहीं सकता. ये आप ही जानते हैं कि आपकी आत्मा आपसे क्या कहना चाहती है.
आप इसे दो उदाहरण से समझ सकते हैं. एक उदाहरण जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का है, जिन्होंने अपने ख़राब स्वास्थ्य के बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ दी और दूसरा उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का है, जो चुनाव में मिली हार को स्वीकार नहीं करना चाहते.
आप क्या करते हैं और क्या फ़ैसला लेते हैं, इसी से आपकी पहचान बनती और बिगड़ती है. रजनीकांत ने एक बार फिर अपने फ़ैसले से सबको चौंकाया है. फ़िल्मों में उन्हें असंभव को संभव करने के लिए जाना जाता है और अब जब उन्होंने राजनीति में आने से इनकार कर दिया है, तो लोग यही कह रहे हैं कि राजनीति में आए बिना, राजनीति छोड़ देना, असंभव है, जिसे केवल रजनीकांत ही संभव बना सकते हैं.