एक्‍टर Sandeep Nahar की सुसाइड की खबर के साथ भेदभाव क्‍यों? जानिए उनकी पूरी कहानी
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एक्‍टर Sandeep Nahar की सुसाइड की खबर के साथ भेदभाव क्‍यों? जानिए उनकी पूरी कहानी

संदीप नाहर (Sandeep Nahar) की फेसबुक पोस्ट और वीडियो को बहुत देखा जा रहा है, जो उन्होंने मौत से कुछ घंटे पहले पोस्ट किया था. उस पोस्ट में उन्‍होंने इस बात का जिक्र किया था कि सोशल मीडिया की तस्वीरों में वो खुश नजर आ रहे हैं लेकिन असल में वो बेहद परेशान हैं.

एक्‍टर Sandeep Nahar की सुसाइड की खबर के साथ भेदभाव क्‍यों? जानिए उनकी पूरी कहानी

नई दिल्‍ली: अगर हम आपसे पूछें  कि SSR कौन है, तो आप फौरन बता देंगे कि SSR मतलब सुशांत सिंह राजपूत. लेकिन अगर मैं आपसे पूछूं कि SN कौन है, तो आप शायद इसका जवाब ना बता पाएं.  SN मतलब है संदीप नाहर.

हार मानकर चुना आत्‍महत्‍या का रास्‍ता

SSR यानी सुशांत सिंह राजपूत महीनों तक खबरों में बने रहे. सुशांत के नाम पर महीनों तक हैशटैग ट्रेंड करता रहा. सुशांत की दुखद मौत नेशनल हेडलाइन बनी और आज सुशांत के दोस्त संदीप नाहर की आत्महत्या की दुखद खबर आई है.  आप इन्हें नाम से शायद न पहचान पाएं. संदीप नाहर ने सुशांत सिंह राजपूत के साथ बॉलीवुड फिल्म MS Dhoni The Untold Story में काम किया था. संदीप ने इस फिल्म में सुशांत के एक सिख दोस्त की भूमिका निभाई थी. वही दोस्त, जो संघर्ष के दिनों में एम एस धोनी की सबसे ज्यादा मदद करता है. उसे पहला क्रिकेट बैट लाकर देता है. फिल्म में संदीप का रोल एक ऐसे दोस्त का था जो मुश्किल समय में अपने दोस्त का हौसला बढ़ाता है. लेकिन ये संदीप नाहर की फिल्मी जिंदगी थी. असल जिंदगी  में उन्हें खुद मदद की जरूरत थी, जो उन्हें नहीं मिली और हालात से हार मानकर उन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया.

सुसाइड की खबर के साथ भेदभाव

संदीप ने सोमवार 15 फरवरी को मुंबई के गोरेगांव में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली. आज ये खबर ट्रेंड नहीं कर रही. संदीप सुशांत के दोस्त थे. पिछले वर्ष जून में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर आई और आज संदीप नाहर की आत्महत्या की. दोनों ने एक ही फिल्म में काम किया था. लेकिन इस खबर में वो सितारा नहीं है जिसके पास सितारों को देखने वाला टेलीस्कोप हो, ये खबर उस अभिनेता की नहीं है जिसके पास स्टारडम हो, जिसके लाखों चाहने वाले हों. शायद इसलिए एक ही फिल्म में काम करने वाले दो अभिनेताओं की सुसाइड की खबर के साथ भेदभाव हो गया. संदीप के घर पर न मीडिया की भीड़ है और न ही कैमरे उनके परिवार का पीछा कर रहे हैं. लेकिन मौत शोहरत और आम जिंदगी में फर्क नहीं करती. ये हमारी एक अनजान लेकिन अनमोल कलाकार को श्रद्धांजलि है. 

संदीप नाहर का भी परिवार है- माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त, रिश्तेदार. उनका जीवन भी किसी आम आदमी के जीवन जैसा रहा होगा. उनका संघर्ष आम लोगों के संघर्ष जैसा ही था. संदीप ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि उन्होंने बाउंसर की नौकरी की, जिम ट्रेनर की नौकरी की, वो संघर्षों से नहीं हारे लेकिन पर्सनल लाइफ का तनाव अब वो नहीं झेल पा रहे हैं.  कितनी अजीब बात है कि हम किसी खबर पर बात करने के लिए उसमें सनसनी देखते हैं, मसाला खोजते हैं.  लेकिन मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी खबर को खबर ही नहीं समझते. 

मौत से पहले का वीडियो 

संदीप नाहर की फेसबुक पोस्ट और वीडियो को बहुत देखा जा रहा है, जो उन्होंने मौत से कुछ घंटे पहले पोस्ट किया था. उस पोस्ट में उन्‍होंने इस बात का जिक्र किया था कि सोशल मीडिया की तस्वीरों में वो खुश नजर आ रहे हैं लेकिन वो केवल समाज को दिखाने के लिए है. असल में वो बेहद परेशान हैं. इसलिए संदीप नाहर की मौत की खबर में हमारे लिए एक और सीख है.

सोशल मीडिया पोस्ट और असल जीवन के बीच बहुत बड़ा अंतर

सामाजिक रिश्तों पर काम करने वाली एक संस्था Relationship Charity Relate की मानें तो सोशल मीडिया पर मौजूद 51 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि सोशल मीडिया पर उनके रिश्तों का Portrayal यानी प्रदर्शन असल जिंदगी से ज्यादा खुशनुमा है. यानी लोग वास्तविक जीवन में लड़ाई झगड़ों, अकेलेपन, डिप्रेशन से जूझ रहे होंगे लेकिन फेसबुक की प्रोफाइल पिक्‍चर, वाट्सऐप की डीपी और इंस्‍टाग्राम की तस्वीरें बिल्कुल अलग होती हैं. असल में चाहे दिन भर किसी से बात न हो पाई हो. लेकिन सोशल मीडिया पोस्ट मुस्कुराते हुए चेहरों की आती है. 14 फरवरी को Valentine Day पर सोशल मीडिया  के अलग अलग प्‍लेटफॉर्म्‍स  पर ऐसी तस्वीरों की भरमार थी जिनमें हंसते- मुस्कुराते युवा जोड़े नजर आ रहे थे. हो सकता है ऐसी पोस्ट करने वाले कई कपल्‍स  में शाम तक ब्रेकअप ही हो गया हो क्योंकि, सच सोशल मीडिया से बिल्कुल अलग हो सकता है.

2020 की एक स्टडी में ये पाया गया कि 67 प्रतिशत लोगों को सोशल मीडिया पोस्ट देखकर उन्हें अपनी जिंदगी के बेहतर न होने का अहसास होता है. 73 प्रतिशत सोशल मीडिया पर खूबसूरत तस्वीरों और कंटेंट को पोस्ट करने का दबाव महसूस करते हैं. 60 प्रतिशत को लगता है कि सोशल मीडिया पर पॉपुलर होने के लिए उन्हें कंटेंट तैयार करना होगा.  यानी ऐसी पोस्ट करनी होंगी जिससे वो मशहूर हों. लोग उन्हें नोटिस करें. 

अमेरिका में 2019 में हुई एक रिसर्च के मुताबिक सोशल मीडिया पर 3 घंटे से ज्यादा बिताने वाले किशोर यानी टीनएजर्स मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.  इसलिए इस दुखद खबर में हमारे लिए दो सबक हैं, पहला सबक ये कि सितारों की चमक और आम आदमी के संघर्ष और चुनौतियां एक सी होती हैं. शोहरत का मतलब मानसिक ताकत होना नहीं होता. जिसके पास मानसिक संयम और शांति है- असल जिंदगी में वही सितारा है और दूसरा सबक ये है कि सोशल मीडिया पोस्ट और असल जीवन के बीच बहुत बड़ा अंतर है. इसलिए हमें इस बात की परवाह नहीं करनी चाहिए कि हमारी पोस्ट पर कितने लाइक्‍स या कमेंट्स हैं. हमारा डिजिटल प्रोफाइल कितना शानदार है, हमारे कितने फॉलोअर्स हैं.

इसका सबसे बड़ा टेस्‍ट ये है कि आज अपनी फेसबुक फ्रेंड लिस्‍ट देखिएगा और फिर ये सोचिएगा कि इनमें से आप कितने लोगों से बात करके उनसे अपने दिल का हाल बांट सकते हैं. असल जीवन की कमाई वही गिनती के लोग होंगे जिनसे आप आमने सामने दिल की बात कह पाएं. आपके पास ऐसे लोगों की गिनती जितनी ज्यादा होगी, आप मानसिक बीमारियों से उतने ही दूर रहेंगे. 

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