किसान आंदोलन को शाहीन बाग में बदला जा रहा है. दिल्ली के पास बहादुर गढ़ से एक तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर में किसान आंदोलन वाली जगह पर आप उन लोगों के पोस्टर्स देख सकते हैं जो देश को नुकसान पहुंचाने के आरोप में इस समय देश की अलग-अलग जेलों में बंद हैं.
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नई दिल्ली: किसान आंदोलन के ज़रिए देश विरोधी ताकतें देश को कैसे कमज़ोर करना चाहती हैं. हक़ के लिए चलाए जा रहे एक आंदोलन में अचानक टुकड़े टुकड़े गैंग, JNU गैंग, अवाॅर्ड वापसी गैंग और अर्बन नक्सलियों की एंट्री कैसे हो गई है ये समझने के लिए आपको इतिहास में थोड़ा पीछे चलना होगा.
आज से करीब सवा दो सौ साल पहले भारत में अंग्रेज़ों के शासन की शुरुआत हुई थी. उससे पहले दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी करीब 25 प्रतिशत हुआ करती थी और इसमें सबसे बड़ी भूमिका भारत के किसानों की थी. भारत के किसान जो भी उगाते थे. उसकी मांग पूरी दुनिया में हुआ करती थी लेकिन जब 1947 में अंग्रेज़ भारत से गए तब दुनिया की GDP में भारत की हिस्सेदारी घटकर 4 प्रतिशत से भी कम हो गई थी और सबसे बुरा हाल देश के किसानों का था.
क्या आप जानते हैं कि दो सौ वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि देश के साथ-साथ भारत का खुशहाल किसान भी बदहाल हो गया. हुआ ये था कि अंग्रेज़ों ने भारत के लोगों में फूट डाल दी थी. धर्म के नाम पर लोग आपस में लड़ने लगे थे. मौके का फ़ायदा उठाकर अंग्रज़ों ने किसानों का ज़बरदस्त शोषण शुरू कर दिया और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रांति कमज़ोर पड़ने लगी थी.
क्रांति में नफ़रत की मिलावट
देश को बांटने वालों ने क्रांति में नफ़रत की मिलावट कर दी थी और इसमें अंग्रेज़ों का साथ दे रहे थे वो लोग, जो देश के टुकड़े टुकड़े करना चाहते थे और आख़िरकार 15 अगस्त 1947 को देश के ओरिजनल टुकड़े टुकड़े गैंग का सपना पूरा हो गया और भारत दो हिस्सों में बंट गया. लेकिन आज दो सौ वर्षों के बाद भी स्थिति बदली हुई नहीं लग रही है. देश का किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहा है और किसानों की क्रांति को कमज़ोर करने के लिए इस आंदोलन में वर्तमान भारत के टुकड़े टुकड़े गैंग की एंट्री करा दी गई है. इस किसान आंदोलन को शाहीन बाग में बदला जा रहा है. दिल्ली के पास बहादुर गढ़ से एक तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर में किसान आंदोलन वाली जगह पर आप उन लोगों के पोस्टर्स देख सकते हैं जो देश को नुकसान पहुंचाने के आरोप में इस समय देश की अलग अलग जेलों में बंद हैं. इनमें टुकड़े टुकड़े गैंग के लोग भी शामिल हैं JNU को देश विरोधी ताकतों का गढ़ बनाने वाले लोग भी हैं
अर्बन नक्सली भी हैं, दिल्ली दंगों की साज़िश करने वाले भी हैं, खालिस्तानी भी हैं, अवाॅर्ड वापसी गैंग भी है, नए नागरिकता कानून का विरोध करने वाले भी हैं और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध करने वाले भी हैं.
इनमें उमर ख़ालिद, शरजील इमाम, वरवरा राव, जीएन साईं बाबा, और सुधा भारद्वाज जैसे लोगों के नाम शामिल हैं. पोस्टर्स में जो नाम आपको दिखाई दे रहे हैं उनमें से ज़्यादातर पर Unlawful Activities (Prevention) Act यानी UAPA के तहत आरोप दर्ज़ हैं. किसी पर भीमा कोरोगांव में हिंसा भड़काने का आरोप है तो कई दिल्ली दंगों की साज़िश के आरोप में जेल में बंद है. ज़ाहिर है इनमें से ज़्यादातर लोग देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं लेकिन इसे नज़रअंदाज़ करते हुए भोले भाले किसानों के हाथ में इनकी तस्वीरों वाले पोस्टर्स पकड़ा दिए गए. संभव है कि इनमें से ज़्यादातर किसानों को शायद अंदाज़ा भी नहीं होगा कि जिन लोगों की रिहाई की मांग वो कर रहे हैं उन पर कितने गंभीर आरोप हैं.
10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस था और तर्क दिया जा रहा है कि इसी मौके पर जेल में बंद इन लोगों की रिहाई की मांग, इन पोस्टर्स के ज़रिए की गई थी. हालांकि जिन किसान आंदोलन वाली जगहों पर ये पोस्टर्स लगाए गए थे. उन किसान संगठनों का कहना है कि ये कोई राजनैतिक कदम नहीं है जबकि सिंघु बॉर्डर पर मौजूद किसान संगठनों का कहना है कि उन्हें ये जानकारी नहीं है कि इन पोस्टर्स का मकसद क्या था?
परजीवी प्रदर्शनकारियों की एंट्री
लेकिन कुल मिलाकर किसानों के इस आंदोलन में बात बात पर प्रदर्शन करने वाले उन परजीवी प्रदर्शनकारियों की एंट्री हो चुकी है जो देश के हर आंदोलन को शाहीन बाग में बदलना चाहते हैं. ये ऐसे परजीवी हैं जो हर आंदोलन की सवारी करने लगते हैं और आंदोलन कर रहे किसानों को शायद इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि ये लोग देश के लिए खून पसीना बहाने वाले किसानों का खून चूसकर खुद को शक्तिशाली बना रहे हैं.
हम आपको इस आंदोलन के पीछे अंतरराष्ट्रीय साज़िश के बारे में बताएंगे.
एक तरफ़ देश विरोधी ताक़तें इस आंदोलन को हाईजैक करने का प्रयास कर रही हैं तो दूसरी तरफ़ इस आंदोलन के नाम पर देश के लोगों को बंधक बनाया जा रहा है. 12 दिसंबर को किसान दिल्ली जयपुर और दिल्ली आगरा हाईवे को जाम करेंगे और देश भर के टोल नाकों को एक दिन के लिए फ्री कराने की कोशिश होगी.
इसके अलावा 14 दिसंबर को किसान संगठन देश भर के सभी ज़िलों में धरना प्रदर्शन करेंगे. इसी दिन देश भर में ट्रेनें भी रोकी जाएंगी, ये सब तब हो रहा है जब सरकार लिखित तौर पर किसानों की मांगों पर गौर करने का आश्वासन दे चुकी है लेकिन किसान सरकार की किसी भी बात पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं और वो नए कृषि कानूनों को सिरे से ख़ारिज करने की मांग पर अड़े हैं.
यानी आने वाले कुछ दिन आपके लिए मुश्किल भरे हो सकते हैं. इसलिए अगर आप मैप पर दिख रहे रास्तों के ज़रिए दिल्ली से बाहर जाने की योजना बना रहे हैं या फिर इन रास्तों से दिल्ली आना चाहते हैं तो आप अभी अपनी योजना को टाल दें, यही बेहतर होगा.
खुद किसानों का भी नुकसान
यहां किसानों को भी एक बात समझनी चाहिए और वो ये कि अभी देश का मूड किसानों के साथ है. चाहे किसानों की मांगे सही हों या ग़लत, देश के लोगों की किसानों के साथ हमदर्दी है और देश अपने अन्न दाताओं का अपमान होते हुए नहीं देखना चाहता लेकिन अगर ये आंदोलन शहरों को बंधक बनाने के फॉर्मूले पर ही चलता रहा तो इससे देश के लोगों की नाराज़गी बढ़ जाएगी. किसान अन्न उगाते हैं तो देश के लोगों का पेट भरता है लेकिन इसके लिए अर्थव्यवस्था और शहरों का काम करते रहना भी ज़रूरी है क्योंकि लोग पैसे कमाएंगे तभी तो लोगों की जेब में अन्न खरीदने का पैसा होगा और अगर अर्थव्यवस्था ठप हो जाएगी तो देश के लोगों के साथ साथ खुद किसानों का भी नुकसान होगा. इसलिए सब कुछ बंद करने पर नहीं बल्कि सब कुछ शुरू करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
आंदोलन को सकारात्मक बनाना चाहिए, सब कुछ बंद करके नकारात्मकता फैलाने से किसी को कुछ हासिल नहीं होगा. इससे सिर्फ़ देश का नुकसान होगा.
क्रांति और विद्रोह में यही फर्क़ होता है, क्रांति की शुरुआत सकारात्मक बदलाव के लिए होती है और इसके कुछ निश्चित उद्धेश्य होते हैं. लेकिन ज़्यादातर विद्रोह अराजकता का रास्ता पकड़ लेते हैं और इसी का फ़ायदा देश विरोधी ताक़तें उठाने लगती हैं.
आंदोलन की आड़ में हिंसा और दंगा फैलाने की योजना
आज हमें ये खतरनाक जानकारी भी मिली है कि कुछ अलगाववादी ताकतें इस आंदोलन की आड़ में हिंसा और दंगा फैलाने की योजना बना रही हैं और ऐसी आशंका है कि आने वाले कई दिनों में देश भर में हिंसक घटनाएं हो सकती हैं, ये ठीक वैसा ही है जैसा नागरिकता कानून के बाद दिल्ली दंगों के दौरान हुआ था. इसलिए आज हम पूरे देश को और सरकार को भी सावधान करना चाहते हैं. लेकिन ये योजना कैसे बनाई जा रही है इसका जवाब आपको दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर नहीं बल्कि दिल्ली से हज़ारों किलोमीटर दूर दुनिया के अलग-अलग देशों में मिलेगा.
ब्रिटेन के बर्मिंघम में खालिस्तानी समर्थकों की रैलियां
कनाडा और अमेरिका में कैसे खालिस्तानी समर्थक किसानों के सपोर्ट में रैलियां निकाल रहे हैं. ये हम आपको दिखा चुके हैं. लेकिन आपको ब्रिटेन के बर्मिंघम शहर से आई कुछ तस्वीरें देखनी चाहिए. यहां भी कल किसानों के समर्थन में रैलियां निकाली गईं और यहां भी इन रैलियों में खालिस्तान के झंडे नज़र आए. एक ट्रक पर तो कृषि कानूनों के साथ-साथ वर्ष 1984 के सिख दंगों का भी ज़िक्र था और इस पर भी खालिस्तान का झंडा लगा हुआ था, जब ये रैली निकाली जा रही थीं, तब बर्मिंघम की सड़कों पर पुलिस भी मौजूद थी. लेकिन किसी ने इन खालिस्तानियों को रोका नहीं. इतना ही नहीं, इन लोगों ने वहां भारत के उच्चायोग को भी बंद कराने की कोशिश की.
बर्मिंघम, ब्रिटेन का एक ऐसा शहर है जहां 200 से भी ज़्यादा देशों से आए लोग रहते हैं. अभी यहां कि बहुसंख्यक आबादी अंग्रेज़ों की है. लेकिन कहा जा रहा है कि जल्द ही यहां रहने वाले अंग्रेज़ी मूल के लोग अल्पसंख्यक बन जाएंगे.
वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक बर्मिंघम की 42 प्रतिशत आबादी आज की तारीख़ में ग़ैर ब्रिटिश है. जिनमें से 21 प्रतिशत मुसलमान हैं और इनमें भी सबसे ज़्यादा संख्या पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए मुसलमानों की है.
खालिस्तान को सबसे ज़्यादा मदद पाकिस्तान से
अब आप इस कनेक्शन को समझिए, खालिस्तान को सबसे ज़्यादा मदद पाकिस्तान से ही मिलती है और बर्मिंघम में इतनी बड़ी संख्या में पाकिस्तानी मूल के लोगों की मौजूदगी ये साफ़ करती है कि वहां अब इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है और इसीलिए अब इस शहर की सड़कों पर खुले आम खालिस्तान के झंडे लहराए जा रहे हैं.
ऐसा ही कुछ इन दिनों कनाडा में हो रहा है. जहां बड़ी संख्या में खालिस्तान समर्थक रहते हैं और इन्हें कनाडा की सरकार का संरक्षण भी हासिल है.
सोशल मीडिया पर खालिस्तान के लिए हमदर्दी
इस बीच महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने ये ख़ुलासा किया है कि पिछले 15 दिनों में किसान आंदोलन के नाम पर सोशल मीडिया पर करीब 13 हज़ार ऐसे पोस्ट लिखे गए हैं जिनमें खालिस्तान का ज़िक्र है, जिनमें खालिस्तान के लिए हमदर्दी दिखाई गई है या फिर खालिस्तान की मांग की गई है.
इससे आप समझ सकते हैं कि कैसे दुनिया भर के देशों की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया पर खालिस्तान के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है.
हम किसानों के साथ हैं और ये मानते हैं कि उन्हें उनका हक़ मिलना चाहिए. लेकिन हम किसानों के साथ साथ पूरे देश को बार बार सावधान कर रहे हैं कि इस आंदोलन को अलगाववादियों और आतंकवादियों के हाथ का मोहरा न बनने दिया जाए.
देश को कमज़ोर करने की कोशिश
विरोध प्रदर्शन करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इस आंदोलन की आड़ में जिस तरह से देश को कमज़ोर करने की कोशिश हो रही है. उसे लेकर देश के साथ साथ सरकार को भी सावधान रहना चाहिए और एक बड़ी खबर पाकिस्तान से आ रही हैं, जहां बालाकोट में जैश ए मोहम्मद का वो ट्रेनिंग सेंटर फिर से शुरू हो गया है. जहां भारत की वायुसेना ने फरवरी 2019 में एयरस्ट्राइक की थी और वहां मौजूद आतंकवादियों के कैम्पों को नष्ट कर दिया था. लेकिन कल इस ट्रेनिंग सेंटर को एक बार फिर से शुरू कर दिया गया. इस मौके पर यहां मसूद अज़हर का भाई मौलाना अब्दुल रउफ अज़हर भी मौजूद था और उसे ही भारत के खिलाफ चलाए जाने वाले तमाम ऑपरेशन्स का इंचार्ज बनाया गया है. इस मौके पर मौलाना मसूद अज़हर के दो और भाई भी मौजूद थे.
अब देखना ये है कि भारत इस बार आतंकवादियों के इस ट्रेनिंग सेंटर को खत्म करने के लिए क्या करता है.