DNA ANALYSIS: TRP मापने के लिए लागू व्‍यवस्‍था क्‍या भरोसेमंद है?
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DNA ANALYSIS: TRP मापने के लिए लागू व्‍यवस्‍था क्‍या भरोसेमंद है?

टेलीविजन पर किसी चैनल, किसी शो और किसी ख़बर को कितने लोगों ने देखा और कितनी देर तक देखा ये मापने के लिए टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट यानी TRP नाम का एक मीटर होता है.  इसके बारे में आपने काफ़ी सुना होगा.  लेकिन इसके बारे में जो बात अब हम आपको बताने जा रहे हैं वो आपको कोई और नहीं बताएगा.

DNA ANALYSIS: TRP मापने के लिए लागू व्‍यवस्‍था क्‍या भरोसेमंद है?

नई दिल्‍ली: देश का सबसे पुराना न्‍यूज़ चैनल होने की वजह से ज़ी न्यूज़  (Zee News) के पास दर्शकों के भरोसे का भंडार है. कुछ लोग पसंद करते हैं, कुछ लोग नापसंद करते है. लेकिन भरोसा सब करते हैं.  भरोसा मापने के लिए अब तक किसी मशीन का आविष्कार नहीं हुआ है.  हमारे और आपके बीच भरोसा आपस की समझदारी से बनता और बिगड़ता है. जी़ न्‍यूज़ पर लोगों का जो भरोसा है, उसका छोटा सा हिस्सा भी बड़े से बड़े न्यूज़ चैनल के पास नहीं है.

दर्शकों के इसी विश्वास और भरोसे का घोटाला हुआ है.  जिसे TRP रेटिंग घोटाला भी कहा जा सकता है.  आपने पैसों का घोटाला सुना होगा, सामान का घोटाला सुना होगा पर ये  ये भरोसे का घोटाला है, किसी की मेहनत और ईमानदारी को पीछे धकेलने का घोटाला है, ये आपकी पसंद और मर्ज़ी में मिलावट का घोटाला है. 

टेलीविजन पर किसी चैनल, किसी शो और किसी ख़बर को कितने लोगों ने देखा और कितनी देर तक देखा ये मापने के लिए टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट यानी TRP नाम का एक मीटर होता है.  इसके बारे में आपने काफ़ी सुना होगा.  लेकिन इसके बारे में जो बात अब हम आपको बताने जा रहे हैं वो आपको कोई और नहीं बताएगा. 

TRP के मीटर केवल 44,000 घरों में

टीवी तो पूरा देश देखता है पर TRP के मीटर केवल 44,000 घरों में लगाए गए हैं. TRP के ये मीटर 62% शहरों में हैं और 38% ग्रामीण क्षेत्रों में लगे हैं.  इस TRP को मापने वाली एजेंसी का नाम BARC है और ये हर हफ्ते TRP के आंकड़े जारी करती है. इसी से तय होता है कि कौन सा चैनल देश मे फर्स्ट है और कौन सा लास्ट और TRP के इसी नंबर गेम के आधार पर विज्ञापन भी मिलते हैं यानी टीवी न्यूज़ चैनल कितना कमाएंगे, ये भी TRP ही तय करती है.  अब तक आपको ये समझ आ गया होगा कि TRP क्या है और ये कैसे आपकी पसंद नापसंद का निर्धारण करती है और कैसे आपके टीवी देखने से चैनलों  के कार्यक्रम और कमाई तय होती है. अब बात उस अखिल भारतीय विश्वास घोटाले की जिसमें आपके भरोसे को देश के कुछ चैनल बेच कर खा गए. 

कल मुंबई पुलिस ने देश को हैरान करने वाली जानकारी दी.  2016 से 2019 के बीच तीन साल में टीवी देखने वाले दर्शकों को धोखा दिया गया है. देश के एक बड़े न्यूज़ चैनल ने नंबर वन बनने के लिए TRP घोटाला किया  है. 

TRP मापने का जो तरीका था उसमें हेरा-फेरी की गई.  देश के 44,000 घरों से जो डेटा इकट्ठा किया गया, उसमें  गड़बड़ी की गई.  एक नए चैनल को नंबर वन बनाने के लिए पुराने नंबर वन चैनल को ग़लत तरीके से पीछे कर दिया गया.

पुलिस ने इस घोटाले में अबतक TRP मापने वाली संस्था BARC के पूर्व CEO पार्थो दासगुप्ता , COO रोमिल रामगढ़िया समेत कुल 15 लोगों को गिरफ्तार किया है . 

TRP मापने का जो तरीका था उसमें हेरा-फेरी की गई.  देश के 44,000 घरों से जो डेटा इकट्टा किया गया, उसमे गड़बड़ी की गई.  एक नए चैनल को नंबर वन बनाने के लिए पुराने नंबर वन चैनल को ग़लत तरीके से पीछे कर दिया गया. 

पुलिस ने इस घोटाले में अबतक TRP मापने वाली संस्था BARC के पूर्व CEO पार्थो दासगुप्ता , COO रोमिल रामगढ़िया समेत कुल 15 लोगों को गिरफ्तार किया है. 

रेस में कोई पिछड़ जाए तो वो दुखी हो जाता है.  लेकिन हम आज बहुत खुश हैं. हमें इस बात पर गर्व है कि आपके भरोसे को धोखा देने वाली TRP की रेस से शामिल होकर हमने नंबर वन चैनल होने की कोशिश नहीं की TRP की सीढ़ी पर ZEE NEWS छठे नंबर पर हैं लेकिन दर्शकों के भरोसे पर नंबर वन है.  पूरी मेहनत और अच्छी खबरें दिखाने के बावजूद जब हम पिछड़ते थे तो निराशा होती थी. हम सोचते थे कि हम ऐसा क्या दिखा रहे हैं जो दर्शकों को पसंद नहीं आ रहा है? कहां ग़लती हो रही है? दर्शकों के हित की बात करने पर भी दर्शक हमें क्यों पसंद नहीं कर रहे हैं? लेकिन आज हमें बिल्कुल अफ़सोस नहीं है. हमें पता चल गया है कि हमने इस दौरान एक ही ग़लती की और वो ये कि हमने दर्शकों से झूठ नहीं बोला, बेईमानी नहीं की, उनके भरोसे में मिलावट नहीं की. ऐसी मिलावटी TRP हमें नहीं चाहिए. 

दुनिया के 180 देशों में देखा जाता है Zee News 

Zee News देश का पहला 24 HOUR न्यूज़ चैनल है.  Zee News को दुनिया के 180 देशों में देखा जाता है.  ये देश का हम पर भरोसे का सबूत है. अब हम आपको कुछ आंकड़ों के जरिए ये बताएंगे कि आपके पसंदीदा चैनल Zee News को TRP घोटाला करके कैसे गलत पोजिशन पर दिखाया गया. 

वर्ष की शुरुआत में हम दूसरे नंबर पर थे.  नौ महीने बाद सितंबर में छठे नंबर पर आ गए.  इस दौरान हमने न्यूज़ के स्तर को गिरने नहीं दिया. ख़बरें इकट्ठा करने के हमारे प्रयास में कोई कमी नहीं आई, ठंड में, धूप में, बारिश में हमारे रिपोर्टर चौबीस घंटे डटे रहे.  न्यूज़रूम के भीतर हमारे प्रोड्यूसर हफ्ते में सातों दिन काम करते रहे. कोरोना काल में पूरी दुनिया में लॉक़डाउन हो गया लेकिन Zee News ख़बरों के लिए पूरी ज़िम्मेदारी से काम करता रहा.  Zee News में काम करने वाले कई लोग कोरोना संक्रमित हुए, अस्पताल में उनका इलाज हुआ और स्वस्थ होकर वो फिर से काम पर लौट आए.  इस दौरान TRP गिरती चली गई.  कुछ नए चैनल्स अपनी ख़राब ख़बरों के बावजूद ऊपर निकल गए. 

अब हम आपके साथ एक ऐसा डाटा शेयर करना चाहते हैं, जो TRP घोटाले में आपके पसंदीदा चैनल Zee News को पहुंचाए गए नुकसान को बिल्कुल स्पष्ट कर देगा.  आप जब हमारा कार्यक्रम देखते हैं और अगर वो आपको अच्छा लगता है तो देर तक देखते हैं और नहीं पसंद आता तो चैनल बदल देते हैं,  तो किस चैनल को दर्शकों ने कितनी देर तक देखा इस आधार पर भी TRP मापी जाती है. 

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आप देख सकते हैं कि जनवरी 2020 में चैनल को देर तक देखने के मापदंड पर Zee News नंबर वन है जबकि नौ महीने बाद सितंबर में पांचवें नंबर पर पहुंच गया. 

हमारी मेहनत नंबर वन थी. दर्शकों का भरोसा भी नंबर वन था लेकिन TRP चार्ट में हम गिरते जा रहे थे. पर अब हमें इस गिरावट पर भी खुशी है.  हम अपने दर्शकों और चैनल को विज्ञापन देने वालों को धन्यवाद कहना चाहते हैं. वो इसलिए क्योंकि उन्होंने हम पर अपना विश्वास बनाए रखा.  नकली TRP के झांसे में नहीं आए. विज्ञापन से ही हमारी सैलरी आती है.  विज्ञापन से चैनल का खर्च निकलता है.  इसलिए हमारा मानना है कि विज्ञापन का आधार हमेशा प्रोडक्ट की क्वालिटी पर होना चाहिए न कि TRP के आधार पर क्योंकि TRP में मिलावट हो जाती है, घोटाला हो जाता है. 

क्या दिखाया जाना चाहिए और क्या नहीं ?

अब यहां एक सवाल ये है कि अगर News Channel खुद में सुधार कर लें और आपको सच्ची और साफ़ सुथरी ख़बरें दिखाने लगें तो क्या News Channel को पहले जैसी TRP मिलेगी और क्या TRP मापने के लिए जो व्यवस्था फिलहाल लागू है, वो व्यवस्था पर्याप्त और भरोसेमंद है ?

इस समय देश भर के 44 हज़ार घरों में TRP को मापने वाले मीटर लगे हैं  और इन घरों में कुल 1 लाख 80 हज़ार लोग रहते हैं . यानी ये देश की जनसंख्या का सिर्फ 0.1 प्रतिशत है.  अब आप सोचिए कि इतने कम लोग ये कैसे तय कर सकते हैं कि आपको क्या दिखाया जाना चाहिए और क्या नहीं ?

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भारत में जनसंख्या के हिसाब से सबसे छोटी लोकसभा सीटों में से एक है. अंडमान और निकोबार,  जहां वोटर्स की संख्या सिर्फ़ ढाई लाख है. अब एक लाख 80 हज़ार लोगों की पसंद और नापसंद को अंतिम मान लेना ऐसा ही है, जैसे सिर्फ़ अंडमान-निकोबार के लोग भारत के लोकसभा चुनाव में वोट डालें और सिर्फ़ उन्हीं के वोटों को पूरे भारत की पसंद मान लिया जाए. 

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टेलीविजन के विज्ञापनों का सालाना बाज़ार 32 हज़ार करोड़ रुपये का है. इसे अगर हम उन एक लाख 80 हजार लोगों के बीच बराबर बांट दें जिनके घर में TRP मापने वाले मीटर लगे हैं, तो हर व्यक्ति के हिस्से में 17 लाख 77 हजार, 777 रुपये आएंगे. इस बाज़ार में न्‍यूज़ चैनलों  की हिस्सेदारी 3600 करोड़ रुपये है. अगर इसे भी इन एक लाख 80 हज़ार लोगों के बीच बराबर-बराबर बांट दिया जाए तो सबके हिस्से में दो-दो लाख रुपये आएंगे.  यानी TRP को प्रभावित करने के नाम पर जो लोग 400 या 500 रुपये में बिक जाते हैं उन्हें खुद भी पता नहीं होगा कि वो जो कर रहे हैं, उसका कुछ लोग कितना बड़ा फायदा उठा रहे हैं.  

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TRP की रेस पत्रकारिता के लिए भस्मासुर 

TRP की ये रेस पत्रकारिता के लिए भस्मासुर साबित हुई है. किसी न्यूज़ चैनल की सफलता का पैमाना TRP को मान लिया गया है, जबकि सच ये है कि जब TRP को मापने की शुरुआत हुई थी, तो इसका मकसद दर्शकों के बीच किसी चैनल की लोकप्रियता मापना नहीं था, बल्कि ये व्यवस्था एडवर्टाइजर्स  के लिए की गई थी. दर्शकों का इससे कोई लेना देना ही नहीं था. लेकिन आज TRP के दम पर ही हर चैनल खुद को नंबर वन साबित करने में जुटा है.  न्‍यूज़ चैनलों  के रूप में इस समय पूरे देश में सच के अलग-अलग संस्करण बेचने वाली 400 से ज़्यादा दुकानें चल रही हैं. 

टीवी पर जो  न्‍यूज़ दिखाई जाती है उसके विज्ञापन का बाज़ार इस समय 3 हज़ार 640 करोड़ रुपये का है, जबकि टीवी  पर विज्ञापन का कुल बाज़ार 32 हज़ार करोड़ रुपये का है. ये 400 न्‍यूज़ चैनलों  विज्ञापन के इसी बाज़ार में अपना हिस्सा ढूंढ रहे हैं.  किसे कितनी TRP मिलेगी और किसे कितना विज्ञापन, ये दोनों व्यवस्थाएं समानांतर चल रही हैं और इसी की लड़ाई ने पत्रकारिता की ये हालत कर दी है. जैसे जैसे TRP बढ़ती है वैसे वैसे चैनलों के पास विज्ञापन के रूप में ज़्यादा पैसा आता है और जैसे-जैसे TRP घटती है. ये पैसा भी कम होने लगता है.  इसलिए अब इस घोटाले के बाद न्यूज की क्वालिटी पर विज्ञापन मिलने चाहिए क्योंकि, TRP तो नकली है, मिलावटी है. 

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भारत में जिन 44 हज़ार घरों में TRP मीटर लगे हैं उन घरों का चुनाव 2011 के Census के आधार पर किया गया है. Census के आधार पर ही इन घरों को उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के आधार पर बांटा गया है. लेकिन जो लोग हर महीने 400 से 500 रुपये लेकर TRP को प्रभावित करने के लिए तैयार हो जाते हैं. ज़ाहिर है उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होगी. TRP मीटर्स की देखरेख की ज़िम्मेदारी जिस संस्था के पास है. अगर उस संस्था का कोई वर्तमान या पूर्व कर्मचारी न्‍यूज़ चैनलों  के साथ मिलीभगत कर ले तो वो कई घरों को प्रभावित कर सकता है.  जिस TRP घोटाले की वजह से न्‍यूज़ चैनलों  की रेटिंग्‍स पर प्रतिबंध लगाया गया है उसकी शुरुआती जांच में भी ऐसी ही मिलीभगत की बात सामने आई है. जिसमें एक चैनल में काम करने वाले दो कर्मचारी चैनल से निकले, एक ने अपना न्यूज चैनल शुरू किया और दूसरा TRP रेटिंग एजेंसी में नौकरी करने लगा. फिर इन दोनों और इनके कुछ और साथियों ने मिलकर देश का अखिल भारतीय विश्वास घोटाला किया. 

खर्च बढ़ जाएगा पर मिलावट रुक जाएगी

इसलिए अब सवाल ये है कि इस समस्या का समाधान क्या है. भारत में इस समय करीब 25 करोड़ घर हैं, जिनके पास टेलीविजन हैं. इनमें से 5 करोड़ घरों के पास प्राइवेट DTH यानी Direct To Home की सुविधा है और 4 करोड़ घर DD Free Dish के माध्यम से टेलीविज देखते हैं, यानी कुल मिलाकर भारत में 9 करोड़ परिवारों के पास DTH है.  अब एक समाधान ये है कि इन सभी DTH वाले घरों  के Set Top Box में कोई ऐसी Chip लगा दी जाए, जो ये रिकॉर्ड कर ले कि किसी घर में कौन सा चैनल कितनी देर तक देखा जा रहा है, इससे TRP के आंकड़ों का सैंपल साइज़ बड़ा हो जाएगा. लेकिन इसमें एक बाधा ये है कि ये सभी DTH One Way Technology पर आधारित है. यानी इन Set Top Box के माध्यम से Down Link तो संभव है. लेकिन आप अपना Data बाहर नहीं भेज सकते. अगर इस Technology को Return Path Data Technology से बदल दिया जाए जिसमें दर्शक के टीवी सेट में लगे मीटर का डाटा बाहर भी जाने लगे तो TRP में भरोसे का घोटाला नहीं हो पाएगा. इससे खर्च बढ़ जाएगा पर मिलावट रुक जाएगी.  खर्च को Broadcasters और Advertisers मिल कर उठा सकते हैं, लेकिन हमारे देश में सुधार के नाम पर खर्च करने की आदत ज़्यादा लोगों की नहीं होती. 

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