नई जनसंख्या नीति के तहत उत्तर प्रदेश की सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक जन्म दर को 1.9 तक लाना है. इसके तहत जो लोग दो से ज्यादा बच्चों को जन्म देंगे, उनके स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है, उन्हें सरकारी नौकरियां भी नहीं मिलेंगी
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नई दिल्ली: भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में जब से नई जनसंख्या नियंत्रण नीति का ऐलान हुआ है, तब से वहां राजनीति नियंत्रण से बाहर हो गई है. नई जनसंख्या नीति के तहत उत्तर प्रदेश ने जन्म दर कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि NDA के कुछ दल और हिंदूवादी संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं. इस पूरी खबर को भी आप तीन प्वाइंट्स में समझिए.
पहला ये नई जनसंख्या नीति है क्या है ?
दूसरा इस पर इतनी राजनीति क्यों हो रही है ?
और तीसरा इस नीति के लागू होने से क्या वाकई उत्तर प्रदेश को फायदा होगा?
इस नई जनसंख्या नीति के तहत उत्तर प्रदेश की सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक जन्म दर को 1.9 तक लाना है. इस नई नीति के आधार पर ही उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जा सकता है, जिसका ड्राफ्ट सरकार ने तैयार कर लिया है. इसके तहत जो लोग दो से ज्यादा बच्चों को जन्म देंगे, उनके स्थानीय चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है, उन्हें सरकारी नौकरियां भी नहीं मिलेंगी और सरकार से मिलने वाली सब्सिडी पर भी उनका कोई हक नहीं होगा.
इस ड्राफ्ट के अनुसार जो लोग दो बच्चों की नीति का पालन करेंगे उन्हें सरकारी सेवा की अवधि के दौरान दो बार अतिरिक्त इंक्रिमेंट मिलेंगे, जो महिलाएं इस नीति का पालन करेंगी, उन्हें 12 महीने की मैटरनिटी लीव मिलेगी और इस दौरान उन्हें पूरी सैलरी और दूसरे अलाउंसेज भी मिलेंगे और उनके नेशनल पेंशन स्कीम फंड में तीन प्रतिशत अतिरिक्त राशि जमा की जाएगी.
उत्तर प्रदेश में इस नए जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत इसलिए महसूस की जा रही है क्योंकि, अभी उत्तर प्रदेश की आबादी 24 करोड़ है और अगर उत्तर प्रदेश एक अलग देश होता तो आबादी के मामले में ये चीन, भारत और अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर होता.
भारत के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ 7 प्रतिशत उत्तर प्रदेश के पास है, जबकि भारत की करीब 17 प्रतिशत आबादी इस राज्य में रहती है. उत्तर प्रदेश आकार में यूनाइटेड किंगडम के बराबर है लेकिन साढ़े 6 करोड़ आबादी वाले यूके की तुलना में उत्तर प्रदेश में करीब 4 गुना ज्यादा आबादी रहती है. भारत में प्रति वर्ग किलोमीटर 382 लोग रहते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में हर वर्ग किलोमीटर इलाके में 829 लोग रहते हैं. यानी उत्तर प्रदेश के पास आबादी की तुलना में संसाधन और जमीन दोनों ही कम हैं.
2011 में उत्तर प्रदेश की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत थी, जबकि मुसलमानों की आबादी 19 प्रतिशत से थोड़ी ज्यादा है. 2001 से 2011 के बीच उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ी है, जबकि हिंदुओं की आबादी में गिरावट आई है. उत्तर प्रदेश के कई जिलों में मुसलमानों की आबादी ज्यादा तेजी से बढ़ी है, जबकि कुछ जिले तो ऐसे हैं, जहां मुसलमानों की आबादी हिंदुओं के बराबर या उससे भी ज्यादा हो चुकी है. इसलिए कई लोग आरोप लगा रहे हैं सरकार नए कानून के जरिए मुसलमानों की आबादी को नियंत्रित करना चाहती है, लेकिन ये आरोप पूरी तरह से सही नहीं है.
वर्ष 2001 तक हिंदू महिलाओं में जन्मदर 4.1 प्रतिशत थी. यानी 20 साल पहले तक उत्तर प्रदेश में एक हिंदू महिला औसतन 4 बच्चों को जन्म देती थी, जबकि तब मुस्लिम महिलाओं में जन्म दर 4.8 हुआ करती थी यानी 20 साल पहले एक मुस्लिम महिला 4 या उससे भी ज्यादा बच्चों को जन्म दिया करती थी, लेकिन अब दोनों ही समुदायों में जन्मदर घटकर 2.9 के करीब आ गई है, जो अब भी कई मायनों में बहुत ज्यादा है. इसलिए जो लोग ये आरोप लगा रहे हैं कि सरकार सिर्फ मुसलमानों की आबादी को नियंत्रित करना चाहती है, उन्हें इन आंकड़ों को ध्यान से देखना चाहिए.
अब आपको बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में नई जनसंख्या नीति और जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रस्तावित कानून का विरोध क्यों हो रहा है?
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सरकार ये सब आने वाले चुनावों की वजह से कर रही है. बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार ने भी इस पर सवाल उठाए हैं और कहा है कि जनसंख्या को रोकने के लिए सिर्फ कानून ही उपाय नहीं है, जबकि हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि दो या उससे कम बच्चे पैदा करने वालों को प्रोत्साहन का नतीज ये होगा कि प्रदेश में हिंदुओं की जनसंख्या तेजी से घटने लगेगी, जबकि कुछ मुसलमान नेताओं की दलील है कि बच्चे तो ऊपर वाले की देन है और इसमें दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए.
अब आते हैं सबसे अहम सवाल पर और वो ये कि क्या जनसंख्या नियंत्रण कानून से उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को वाकई फायदा होगा? इसका जवाब मिला जुला है.
भारत के करीब 9 राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू हैं, लेकिन मोटे तौर पर जिन राज्यों में भी ये कानून लागू किए गए वहां आबादी करीब करीब 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ी, जबकि बिना कानून के उत्तर प्रदेश में भी आबादी बढ़ने की रफ्तार 20 प्रतिशत है.
दूसरी बात ये है कि चीन जैसे देशों को घटती हुई आबादी को देखते हुए आखिरकार अपने यहां लागू वन चाइल्ड पॉलिसी को खत्म करना पड़ा क्योंकि, अब चीन की आबादी में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन फिर भी वहां के लोग एक से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहते. यानी अगर इस तरह के कानून बिना सोच विचार के लागू किए जाए तो आगे चलकर इसका खामियाजा भी उठाना पड़ सकता है.
आपको इस खबर ये बात भी समझनी चाहिए कि भविष्य में जन्म लेने वाले जिन बच्चों को हिंदुओं और मुसलमानों में बांटा जा रहा है. उनके लिए कोई भी ये नहीं कह रहा ये किसी धर्म या सम्प्रदाय के
नहीं, बल्कि भारत के बच्चे हैं.