DNA ANALYSIS: दिल्ली दंगे पर पश्चिमी मीडिया के 'पाखंड' का विश्लेषण
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DNA ANALYSIS: दिल्ली दंगे पर पश्चिमी मीडिया के 'पाखंड' का विश्लेषण

सच ये है कि दिल्ली में दंगे हुए और इसमें दोनों धर्मों के लोग मारे गए लेकिन विदेशी मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इसे भारत के मुसलमानों के खिलाफ की गई साजिश बता रहा है. आज हम विदेशी मीडिया के इस दुष्प्रचार का पर्दाफाश करेंगे. 

DNA ANALYSIS: दिल्ली दंगे पर पश्चिमी मीडिया के 'पाखंड' का विश्लेषण

आज से 200 वर्ष पहले अंग्रेज़ों ने भारत को धर्म के आधार पर बांट दिया था. अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' वाली नीति की वजह से हिंदू और मुसलामन एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे. अंग्रेज बार-बार अपने षडयंत्र में सफल होते रहे और इसके नतीजे में भारत आज तक धर्म के आधार पर हुए बंटवारे का दर्द झेल रहा है. 73 साल पहले अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए थे लेकिन विदेशी मीडिया आज भी हजारों मील दूर से ही भारत को बांटने की कोशिश में लगा है. सच ये है कि दिल्ली में दंगे हुए और इसमें दोनों धर्मों के लोग मारे गए लेकिन विदेशी मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इसे भारत के मुसलमानों के खिलाफ की गई साजिश बता रहा है. आज हम विदेशी मीडिया के इस दुष्प्रचार का पर्दाफाश करेंगे. 

सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि इन दंगों के दौरान कैसे ISIS वाली मानसिकता के दम पर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी गईं. दिल्ली के चांद बाग इलाके में हुए दंगों में अंकित शर्मा की भी मौत हो गई थी. अंकित शर्मा की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि उनके शरीर पर एक दो नहीं.. बल्कि 400 बार चाकू से वार किए गए थे. बर्बरता का ऐसा उदाहरण सिर्फ ISIS के आतंकवादियों द्वारा ही पेश किया जाता था. जब बगदादी जिंदा था, तब उसके इशारे पर ही आतंकवादी इतने निर्मम तरीके से लोगों की हत्या करते थे लेकिन अब ISIS वाली वो सोच भारत में भी प्रवेश कर चुकी है और देश की राजधानी दिल्ली की गलियों में ISIS की विचारधारा को अपनाकर कुछ लोगों ने अपने ही पड़ोसियों की जान ले ली. 

दिल्ली दंगों से जुड़ा आज का अपडेट ये है कि अब तक इन दंगों में 43 लोगों की मौत हो चुकी है. दिल्ली पुलिस इस मामले में 123 FIR दर्ज कर चुकी है और 630 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है. जैसे-जैसे दंगे की साजिश से पर्दा उठ रहा है वैसे वैसे लोगों को ये पता चल रहा है कि देश की राजधानी दिल्ली में दंगाइयों की एक भीड़ ऐसी भी थी जो लोगों को जानवरों की तरह मार रही थी और अंकित शर्मा ऐसी ही एक भीड़ का शिकार हो गए थे लेकिन विदेशी मीडिया ये सच्चाई नहीं दिखाना चाहता .बल्कि कुछ विदेशी अखबार तो अंकित शर्मा की हत्या को भी गलत ढंग से पेश कर रहे हैं. 

अमेरिका के एक मशहूर अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल (The Wall Street Journal) में अंकित शर्मा की मौत से जुड़ा एक झूठा दावा किया गया था. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में अंकित शर्मा के भाई के साथ फोन पर हुई बातचीत के हवाले से लिखा था कि अंकित शर्मा की हत्या जिस भीड़ ने की वो जय श्री राम के नारे लगा रही थी लेकिन अंकित शर्मा के भाई ने इस बात से साफ इनकार किया है. अंकित शर्मा के भाई का दावा है कि ये हत्या आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के इशारे पर की गई थी. दिल्ली पुलिस ने इस मामले में ताहिर हुसैन के खिलाफ हत्या का मामला भी दर्ज कर लिया है. यानी विदेशी मीडिया इन दंगों की गलत तस्वीर पेश करके भारत को बांटने की कोशिश कर रहा है लेकिन ये सिर्फ एक उदाहरण है. पश्चिमी मीडिया के ज्यादातर अखबार और न्यूज चैनल दिल्ली दंगों पर झूठ और अफवाह फैला रहे हैं. आप इसे फेक न्यूज़ भी कह सकते हैं. The Wall Street Journal ने कैसे अंकित शर्मा की हत्या के मामले में झूठी रिपोर्टिंग की इसका अंदाजा आप उनके भाई की बातें सुनकर लगा सकते हैं. 
 
अब तक इन दंगों में 43 लोगों की मौत हो चुकी है और मारे गए लोगों में हिंदू भी हैं और मुसलमान भी. कल जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक कल दोपहर ढाई बजे तक दिल्ली के दंगों में मार गए लोगों की संख्या 35 हो चुकी थी. इनमें 10 हिंदू और 16 मुसल्मि थे जबकि 9 लोग ऐसे थे जिनकी पहचान नहीं हो सकी है. कुल मिलाकर इस हिंसा में हिंदू और मुसलमान दोनों की जान गई है. किसी भी इंसान की जान नहीं जानी चाहिए और इसकी सभी को निंदा करनी चाहिए.. लेकिन पश्चिमी मीडिया इस मामले पर एक तरफा रिपोर्टिंग कर रहा है. 

जिन घरों और दुकानों को जलाया गया है. उसके मालिक हिंदू भी थे और मुसलमान भी लेकिन विदेशी मीडिया इसे सिर्फ हिंदुओं द्वारा मुसलमानों पर की गई हिंसा बताने की कोशिश कर रहा है. आज हमारे पास कुछ विदेशी अखबारों में छपी हेडलाइन और खबरों की कटिंग है जिन्हें पढ़कर आप समझ जाएंगे कि कैसे विदेशी मीडिया इन दंगों पर एक विशेष एजेंडे के तहत रिपोर्टिंग कर रहा है. अमेरिका का मशहूर अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times) लिखता है, "As New Delhi Counts The Dead...Questions Swirl About Police Response. लेकिन इस Headline के नीचे जो पैराग्राफ है आपको उस पर गौर करना चाहिए. यहां अखबार लिखता है. Witness Say Officers Stood By.. When Hindu Mobs Attacked Muslims.

आज अमेरिका के एक और मशहूर अखबार The Washington Post में भी दिल्ली दंगों पर खबर छापी गई है जिसमें लिखा गया है:  
India's Hard Line Hindu Nationalist Watched Anti- Government Protests Centered in Muslim Communities For Months In anger That Finally Boiled Over In the Worst Communal Rioting In New Delhi In Decades, Leaving 38 People Dead And The Indian Capital Shell Shocked.

यानी पश्चिमी मीडिया भारत में हुई हिंसा के बहाने अपना एजेंडा साधना चाहता है लेकिन आज हम पश्चिमी मीडिया के इस पाखंड में छेद करके रहेंगे. अमेरिका को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहा जाता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले करीब ढाई सौ वर्षों में अमेरिका में जातीय हिंसा की 400 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं और इनमें हज़ारों लोग मारे भी गए हैं यानी अमेरिका में पिछले 200 वर्षों में हर साल जातीय दंगों की करीब 2 घंटनाएं हुई हैं. 

जबकि भारत में वर्ष 1671 से लेकर अब तक करीब 88 बड़े दंगे हुए हैं. यानी हर 4 साल में एक दंगा हम ये नहीं कह रहे कि दंगों या हिंसा के मामले में भारत का रिकॉर्ड कोई बहुत अच्छा है लेकिन हम ये कह रहे हैं कि जिन देशों का रिकॉर्ड इस मामले में बहुत बुरा है. उन्हें भारत जैसे देशों पर ऐसी टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए और पहले अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए. भारत में जब किसी व्यक्ति की मॉब लिंचिंग होती है तो पश्चिमी मीडिया में उसे बड़ी हेडलाइन के रूप में पेश किया जाता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका को मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाने में 120 वर्ष से लग गए.

अमेरिका की संसद में दो दिन पहले ही मॉब लिंचिंग के खिलाफ एक कानून पास किया गया है जिसका नाम है Emmett Till Anti-lynching Act. Emmett Till 14 साल का एक अश्वेत अमेरिकन लड़का था जिसकी 1955 में निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई थी और उसके दोषियों को सज़ा भी नहीं हो पाई थी. अमेरिका के सांसदों की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1882 से लेकर 1968 के बीच..रंग भेद की वजह से 4 हज़ार 742 लोगों की हत्या की गई लेकिन 99 प्रतिशत दोषियों को कभी कोई सज़ा नहीं मिल पाई. अल्पसंख्यकों के खिलाफ इतने खराब रिकॉर्ड के बावजूद अमेरिकी और पश्चिमी मीडिया को भारत में कट्टरता बढ़ती हुई दिखाई देती है .जबकि सच ये है कि ये कट्टरता पूरी दुनिया में बढ़ रही है और सिर्फ भारत इसके केंद्र में नहीं है. 

DNA वीडियो: 

अमेरिका में सिर्फ वर्ष 2018 में ही 7 हजार 615 लोगों के साथ नफरत के आधार पर हिंसा हुई .लेकिन अमेरिका के अखबार और वहां के नेता अपने देश पर उंगली नहीं उठाते. उन्हें भारत की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी रहती है. अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से....राष्ट्रपति पद के उम्मीद वारों में से एक Bernie Sanders ने भी कल एक ऐसा ही भड़काऊ Tweet किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि 20 करोड़ मुसलमान भारत को अपना घर कहते हैं लेकिन भीड़ मुसलमानों के खिलाफ हिंसा कर रही है और ट्रंप ने ये मामला भारत पर छोड़कर मानव अधिकारों का उल्लंघन किया है. 

Bernie Sanders की भाषा आपको बिल्कुल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की तरह लग सकती है .इसके पीछे एक वजह भी है क्योंकि Sanders के चुनाव प्रचार का जिम्मा पाकिस्तानी मूल के फैज़ शकीर के पास है और वही अक्सर Bernie Sanders के भाषण लिखते हैं. इन भाषणों में भारत विरोधी बातें तो होती हैं लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ एक शब्द भी नहीं होता. लेकिन सिर्फ पश्चिमी मीडिया ही नहीं बल्कि भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी भारत को बदनाम करने में जुटा रहता है .इसका एक उदाहरण 25 फरवरी को भी दिखाई दिया था. जब पश्चिमी मीडिया और भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने मिलकर दिल्ली हिंसा पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से कुछ सवाल पूछे और ये सवाल इस तरीके से फ्रेम किए गए थे ताकि भारत की छवि को चोट पहुंचाई जा सके. आप इन सवालों को एक बार फिर सुनिए. इससे आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि कैसे पत्रकारिता के नाम पर एजेंडे वाली दुकाने चलाई जाती हैं. मीडिया का एक हिस्सा कैसे इन दंगों का एक तरफा सच आपको दिखा रहा है. इसे कुछ उदाहरणों से समझिए. 

ताहिर हुसैन के तहखाने में दंगे के औजार मिले
इस दंगे में दोनों धर्मों के लोग मारे गए हैं..लेकिन मीडिया आपको ज्यादातर एक धर्म के पीड़ितों की कहानियां ही दिखा रहा है. आजादी के नाम पर जब सड़कों को जाम किया जाता है तो मीडिया का ये हिस्सा उसका महिमा मंडन करता है. इसे शानदार लोगों की शानदार क्रांति बताता है लेकिन जब कुछ लोग रास्ता खुलवाने की बात करते हैं तो ये असहनीशलता में बदल जाता है. इसी तरह जब दंगों में एक नेता का नाम आता है तो उसके बारे में जानकारी देने से मीडिया कतराने लगता है क्योंकि इस नेता के नाम के साथ एक वोट बैंक जुड़ा है. हम ताहिर हुसैन की बात कर रहे हैं जिसके तहखाने में दंगे के औजार मिले जिस पर अंकित शर्मा की हत्या का आरोप लगा और जिसके लोगों पर हिंसा भड़काने के आरोप हैं. उस ताहिर हुसैन की पहचान मीडिया काफी समय तक छिपाता रहा. जब Zee News ने इसकी सच्चाई आपको दिखाई और DNA में ताहिर हुसैन का नाम लेकर इस षडयंत्र पर सवाल उठाए तब जाकर मीडिया के एक बड़े हिस्से को होश आया और वहां भी ताहिर हुसैन का नाम लेकर खबरें चलने लगीं. 

कुछ दिनों पहले दिल्ली के जाफरा बाद इलाके का एक वीडियो वायरल हुआ था. उस वीडियो में शाहरुख नाम का एक उपद्रवी पुलिस वाले पर बंदूक तान रहा था लेकिन मीडिया का एक हिस्सा प्राइम टाइम पर उसे लाल टी-शर्ट वाला लड़का कहकर बुलाता रहा हिंसा का कोई धर्म नहीं होता और हिंसा फैलाने वालों की पहचान भी धर्म के आधार पर नहीं होनी चाहिए लेकिन जब कोई दुष्प्रचार सोची समझी साजिश के तहत किया जाता है..तो उसका भंडाफोड़ करना भी ज़रूरी होता है. शाहरुख ने जिस पुलिस वाले पर बंदूक तानी थी उसका नाम दीपक दहिया है और वो दिल्ली पुलिस में हेड कॉन्सटेबल हैं. जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि दंगाइयों को रोकना उनका कर्तव्य था और उन्होंने ठीक ऐसा ही किया. 

मीडिया के जिस हिस्से को लगता है कि ये सिर्फ हिंदुओं द्वारा भड़काया गया दंगा था या जिन्हें लगता है कि इसमें सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगों के निशाना बनाया गया, उन्हें आज हमारा विश्लेषण देखना चाहिए. इस दंगे में राहुल भी मारा गया तो मेहताब की भी मौत हुई. शाहीद की भी जान गई तो अंकित की भी हत्या की गई लेकिन इसी दौरान किसी मुसलमान ने किसी हिंदू की जान बचाई तो किसी हिंदू ने अपने मुस्लिम पड़ोसी पर आंच नहीं आने दी. इसलिए आज आपको भी दर्द और इंसानियत की ये कहानियां देखनी चाहिए ताकि आपको दिल्ली दंगों को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार की सच्चाई समझ में आ जाए. 

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