चीन में सुप्रीम कमांडर का दर्जा हासिल कर चुके राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब पहले जितने शक्तिशाली नहीं रहे क्योंकि कोरोना वायरस ने सत्ता पर उनकी पकड़ को भी कमजोर कर दिया है.
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेताओं को भी अस्थिर कर दिया है. कोरोना वायरस की वजह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उनके ही देश में आलोचना हो रही है तो यूरोप के कई नेताओं पर भी उनकी ही जनता सवाल उठा रही है. चीन में भी ठीक ऐसा ही हो रहा है लेकिन चीन में सरकार का विरोध करना आसान नहीं है और वहां सरकार के खिलाफ उठने वाले सवालों को अक्सर बड़े बड़े आयोजनों की तस्वीरों के नीचे दबा दिया जाता है. लेकिन सच ये है कि चीन में सुप्रीम कमांडर का दर्जा हासिल कर चुके राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब पहले जितने शक्तिशाली नहीं रहे क्योंकि कोरोना वायरस ने सत्ता पर उनकी पकड़ को भी कमजोर कर दिया है. यानी शी जिनपिंग अस्थिर हो गए हैं.
शी जिनपिंग के बारे में माना जाता था कि कोई उन्हें आजीवन उनके पद से हिला नहीं पाएगा लेकिन अब वो राजनीतिक तौर पर अस्थिर होने लगे हैं. ये कैसे हुआ ये समझाने के लिए आज हम आपको चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की वार्षिक बैठक में लेकर चलेंगे और आपको चीन की अंदरूनी राजनीति समझाएंगे.
चीन की राजधानी बीजिंग में आज से चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की वार्षिक बैठक शुरु हो गई है. इसे चीन की सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक बैठक माना जाता है. दो दिनों तक चलने वाली इस बैठक का आज पहला दिन था.
चीन अब एक देश, एक पार्टी और एक सिस्टम के रास्ते पर चल पड़ा है. ये चीन की उस शक्तिशाली कम्यूनिस्ट पार्टी की नया मंत्र है जिसकी लापरवाहियों ने दुनिया को कोरोना वायरस जैसी महामारी दी है.
चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी इस बैठक में साल भर का एजेंडा तय करती है. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से ये बैठक इस बार दो महीने देर से हो रही है. पहले ये इस बैठक का आयोजन मार्च में होना था.
2 महीने बाद चीन ने आनन फानन में इस बैठक का आयोजन किया है ताकि दुनिया को ये बताया जा सके कि अब चीन में सब सामान्य है. लेकिन इस बैठक के पहले जो पांच बड़ी बातें निकलकर आई हैं आपको सबसे पहले उनके बारे में जानना चाहिए.
पहली बात ये है कि चीन ने कोरोना वायरस पर विजय की घोषणा कर दी है. दूसरी बात हांग कांग पर नियंत्रण के लिए चीन एक नया विवादित कानून लाने वाला है. तीसरी बात चीन इस साल अपनी GDP के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं करेगा. चौथी बात चीन ने अपना रक्षा बजट बढ़ा दिया है, और पांचवी बात चीन ने अर्थव्यस्था को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर पैसा खर्च करने का फैसला किया है.
इन सभी घोषणाओं का मतलब सिर्फ ये संदेश देना है कि चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी ही सर्वशक्तिशाली है और कोरोना वायरस से उसके मूल एजेंडे पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का एजेंडा क्या है ये आपको इन पांचों घोषणाओं की तह में जाकर समझना होगा. चीन ने कोरोना वायरस पर जीत का ऐलान किया है. चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने कहा है कि चीन ने कोरोना वायरस पर निर्णायक विजय हासिल कर ली है. जाहिर है कि चीन इसे लेकर सिर्फ प्रोपेगेंडा कर रहा है क्योंकि चीन में कोरोना वायरस के नए मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
पिछले 2 हफ्तों में चीन के अलग अलग शहरों में कोरोना वायरस के करीब 46 नए मामले सामने आ चुके हैं, और कई इलाकों में अब कोरोना वायरस संक्रमितों के नए क्लस्टर्स बन रहे हैं. यानी चीन वायरस पर विजय को लेकर झूठ बोल रहा है.
चीन का दूसरा बड़ा एजेंडा है अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाना. चीन हांग कांग के लिए नया सुरक्षा कानून लाना चाहता है. इस कानून के पास हो जाने के बाद हांग कांग पर चीन का नियंत्रण मजबूत हो जाएगा. और चीन सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों की आवाज को आसानी से दबा पाएगी.
इस बैठक में ताईवान के लिए भी एक संदेश था, चीन ताइवान पर भी अपना दावा ठोकता है और अब चीन के प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बिना शांतिपूर्ण शब्द का जिक्र किए ताइवान को चीन में मिलाने की बात कही है. साफ है कि चीन हांग कांग और ताईवान की स्वायत्ता छीनना चाहता है और इसके लिए वो सेना के इस्तेमाल से भी पीछे नहीं हटेगा.
तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि 1990 के बाद से पहली बार चीन ने इस वर्ष अपनी GPD के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित ना करने का फैसला किया है. चीन का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रभावों की वजह से GDP विकास दर का आंकलन करना आसान नहीं है.
इस साल के शुरुआती तीन महीनों में चीन की अर्थव्यस्था 6.8 प्रतिशत तक सिकुड़ गई. पिछले वर्ष चीनी की GDP 6.1 प्रतिशत थी और इस बार चीन की GDP सिर्फ 2.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
यानी दुनिया भर में विकास का पहिया रोकने वाला चीन अब खुद भी अपने किए की सजा भुगत रहा है. चीन में बेरोजगारी भी ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है. लेकिन चीन में मीडिया आजाद नहीं है और वहां बेरोजगारों की संख्या का पता लगाना कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या पता लगाने से भी मुश्किल है.
पिछले महीने चीन की एक ब्रोकरेज फर्म ने दावा किया था कि चीन में बेरोजगारी की दर 20 प्रतिशत तक पहुंच गई है, लेकिन चीन की सरकार के दबाव में ये रिपोर्ट वापस ले ली गई थी. चीन के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चीन में बेरोजगारी दर सिर्फ 6 प्रतिशत है, लेकिन सब जानते हैं कि कोरोना वायरस के मरीजों के आंकड़ों की तरह इसके भी सच होने की गुंजाइश बहुत कम है.
चीन अब अपनी अर्थव्यवस्था को उबारने की बात कर रहा है लेकिन कोई नहीं जानता कि चीन ये कब और कैसे करेगा. लेकिन इस बैठक से निकली चौथी महत्वपूर्ण बात ये है कि डूबती अर्थव्यवस्था के बीच चीन ने अपना रक्षा बजट बढ़ा दिया है.
चीन ने अपने रक्षा बजट में 6.8 प्रतिशत की वृद्धि कर दी है. ये 13 लाख 50 हजार करोड़ रुपए के बराबर. भारत का रक्षा बजट इससे तीन गुना कम है.
कोरोना वायरस के दौर में भी चीन की सैन्य गतिविधियों में कोई कमी नहीं आई है. चीन ने साउथ चाइना सी में अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं. ताईवान को चीन बार बार सैन्य कार्रवाई की धमकी दे रहा है तो भारत की सीमा पर भी चीन और भारत की सेनाओं के बीच झड़पें बढ़ गई हैं.
यानी कोरोना वायरस के बावजूद चीन पहले से ज्यादा आक्रमक हो गया है, और रक्षा बजट में इजाफा बताता है कि चीन अपने आक्रमक रवैये पर कायम रहेगा.
कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की बैठक से निकला पांचवा टेक अवे चीन की अर्थव्यस्था से जुड़ा है. लेकिन अर्थव्यस्था को लेकर अपनी योजनाओं पर चीन खुलकर बात नहीं कर रहा है. लेकिन चीन ने कुछ लक्ष्य तय कर लिए हैं. इनमें 90 लाख नई नौकरियां पैदा करना भी शामिल है. पिछले साल चीन ने करीब 1 करोड़ 10 लाख नई नौकरियां पैदा करने का लक्ष्य रखा था. यानी इस साल चीन में पिछले वर्ष की तुलना में 20 लाख कम नौकरियां पैदा होंगी.
शायद ऐसा पहली बार है जब चीन ट्रेडरी बॉन्ड्स जारी करने जा रहा है. यानी सरकार अपने नाम से बॉन्ड जारी करके बाजार से पैसा उठाएगी. तो क्या ये मान लिया जाए कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था के पास कैश की कमी हो गई है? ये अभी पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता.
चीन की अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ों पर यकीन करना आसान नहीं है, क्योंकि चीन कभी पूरा सच नहीं बताता. लेकिन ये सब जानते हैं कि चीन के बैंक भारी दबाव में हैं और चीन ने दुनिया के दूसरे देशों को जो लोन दिया है, उसके भी डूबने का खतरा है.
कुल मिलाकर चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की बैठक में बडे बड़े नारे तो दिए गए. लेकिन कोई मजबूत घोषणा नहीं हुई. चीन ने रक्षा बजट बढ़ाया है लेकिन उसकी अर्थव्यस्था संकट में हैं. चीन वायरस पर अभी तक काबू नहीं पा सका है लेकिन उसकी इच्छा ताइवान और हांग कांग पर नियंत्रण करने की है.
घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दबाव का सामना करने के बावजूद शी जिनपिंग ये संदेश देना चाहते हैं कि वो अपने लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं. और उनका सभी स्थितियों पर पूरा नियंत्रण है.
गिरती अर्थव्यस्था, बेरोजगारी, बढ़ती गरीबी और कोरोना वायरस को लेकर चीन पर पड़ता अंतर्राष्ट्रीय दबाव चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की छवि के लिए किसी झटके से कम नहीं है. शी कैसे कमजोर हो रहे हैं और कैसे ये संकट अब उनके राजनैतिक भविष्य के लिए चुनौती बन गया है ये समझने के लिए आपको दो साल पुरानी एक तस्वीर देखनी चाहिए.
ये तस्वीर वर्ष 2018 में आयोजित कम्यूनिस्ट पार्टी की वार्षिक बैठक की है, तब भी राष्ट्रपति शी इस बैठक के केंद्र में थे और आज भी हैं. लेकिन अब समय बदल चुका है.
वर्ष 2018 में इसी बैठक में चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति बने रहने की सीमा खत्म कर दी थी और शी के आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया था. ये एक बहुत बड़ा कदम था और शी के राजनैतिक जीवन का सबसे बड़ा दांव भी था. इसी के साथ चीन में शी जिनपिंग की हैसियत सुप्रीम कमांडर जैसी हो गई थी. तब उनकी तुलना चीन के संस्थापक माओ जे दोंग से की गई थी. लेकिन 2 साल में बहुत कुछ बदल चुका है.
वो आज भी चीन के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं, लेकिन कोरोना वायरस ने उनकी छवि को भारी नुकसान पहुंचाया है. क्योंकि पूरी दुनिया में उन्हें कि इस महामारी के लिए जिम्मेदार माना गया है. शी इन सब वजहों से कमजोर हुए हैं. लेकिन फिर भी वो अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए चीन की सबसे शक्तिशाली राजनैतिक बैठक में तमाम दावे कर रहे हैं. इस बैठक को चीन में टू सेशन मीटिंग कहा जाता है, क्योंकि इसमें दो अलग अलग महत्वपूर्ण बैठकें होती हैं.
शी जिनपिंग इस बैठक में मौजूद थे, उनके आस पास उनकी पार्टी के वफादार नेता थे, सबने चेहरे पर मास्क पहने हुए थे. लेकिन शी ने कोई मास्क नहीं पहना था. कहने के लिए इसमें लोकतांत्रित तरीके से फैसले लिए जाते हैं. यानी सबकी राय ली जाती है, लेकिन चीन में असल में होता वही है जो वहां के राष्ट्रपति चाहते हैं. Covid 19 के बाद हो रही इस बैठक के जरिए चीन पूरी दुनिया में अपनी छवि सुधारने की भी कोशिश करेगा.
लेकिन हकीकत ये है कि चीन इस समय चार बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. पहली चुनौती है गिरती अर्थव्यवस्था और बेरोजगार हुए लाखों लोग. दूसरी चुनौती वो लोन हैं जो चीन ने कई छोटे छोटे देशों को दिए हैं लेकिन कोरोना वायरस की वजह से ये देश कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं. हो सकता है कि इनमें से कई देश कर्ज़ चुका ही ना पाएं यानी दिवालिया हो जाएं. इनमें ज्यादातर वो देश शामिल हैं जो चीन की महत्वकांक्षी Belt And Road योजना का हिस्सा हैं और अब Covid-19 की वजह से ये योजना अधर में लटक गई है.
तीसरी चुनौती ये है कि चीन पर इस समय जबरदस्त अंतर्राष्ट्रीय दबाव है और कोरोना वायरस का संक्रमण पूरी दुनिया में फैलाने को लेकर चीन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय जांच भी शुरू हो सकती है.
शी जिनपिंग के सामने चौथी चुनौती चीन की कूटनीतिक विफलता है. खासकर अमेरिका के साथ उसके रिश्ते बहुत हद तक बिगड़ चुके हैं. ऑस्ट्रेलिया के साथ भी चीन के कूटनीतिक संबंधों में दरार आ चुकी है.
लेकिन इस बात की कोई उम्मीद नहीं कि कम्यूनिस्ट पार्टी की बैठक में शी जिनपिंग इनमें से किसी भी मुद्दे पर बोलेंगे, और सवालों का जवाब देने की तो बात ही करना बेईमानी है.
सब कुछ सामान्य होता तो इस आयोजन में शी जिनपिंग के दूसरे कार्यकाल की सफलता का जश्न मनाया जाता है, और शी पहले से ज्यादा शक्तिशाली नेता के तौर पर स्थापित हो जाते, लेकिन कोरोना वायरस में चीन की भूमिका ने शी जिनपिंग के राजनैतिक करियर पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है.
कोरोना वायरस ने सिर्फ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की छवि को ही नहीं बदला है. बल्कि चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की इस सबसे महत्वपूर्ण बैठक के रंग रूप को भी बदल दिया है.
शी जिनपिंग के अलावा इस बैठक में आए सभी प्रतिनिधियों के लिए फेस मास्क अनिवार्य है. इस बैठक में करीब 3 हजार नेता शामिल हो रहे हैं. ऐसे में इन लोगों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करना भी एक चुनौती है.
डाइनिंग टेबल्स पर कांच की दीवारें बना दी गई हैं. हैंड सैनिटाइजर्स का इस्तेमाल करना अनिवार्य है और खाना शेयर करने पर प्रतिबंध है. इस बैठक को कवर करने वाले पत्रकारों की संख्या भी सीमित कर दी गई है और पत्रकारों को परिसर में जाने से पहले कोविड-19 का टेस्ट कराना होगा.
कोरोना वायरस ने कैसे चीन की राजनीति और उसके राजनेताओं को हमेशा के लिए बदल दिया है, ये इस विश्लेषण से समझें.
चीन की सबसे महत्वूर्ण राजनैतिक बैठक शुरू हो चुकी है. ये एक बड़े राजनैतिक सर्कस की तरह है, लेकिन इस बार तस्वीरें बदली बदली सी हैं.
बैठक में जैसे ही कम्यूनिस्ट पार्टी के बड़े नेता आते हैं, 3 हजार प्रतिनिधि खड़े होकर तालियां बजाते हैं. चीन के बड़े नेता कौन हैं, उन्हें पहचानना इस बार आसान है क्योंकि जिन्होंने मास्क नहीं पहने वही बड़े नेता हैं. ये बड़े नेता राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बीचों बीच बैठे हैं.
आम तौर पर चीन के सुप्रीम लीडर को लेकर एक भरोसे का माहौल रहता है. लेकिन इस बार चीन के ये तमाम नेता चिंताओं में डूबे हुए हैं.
दुनियाभर के देश चीन से नाराज हैं और इसी संकट के बीच चीन की संसद ये महत्वपूर्ण बैठक कर रही है. सबको उम्मीद थी कि चीन के नेता चीन पर उठते सवालों का जवाब देंगे लेकिन इसकी बजाय चीन ने बैठक में हांग कांग के लिए नए सुरक्षा कानून पर प्रस्ताव लाया गया है और अब हांग कांग के नागरिकों के अलावा अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने भी इसका विरोध किया है. इस कानून की आड़ में चीन हांग कांग की आजादी और स्वायत्ता छीनना चाहता है.
चीन को जिस समय कोरोना वायरस और अपनी दमनकारी नीतियों पर जवाब देने चाहिए उस समय चीन सिर्फ दिखाने की राजनीति कर रहा है. लेकिन इस वायरस ने इस बैठक की परंपराएं भी बदल दी हैं.
बैठक से पहले प्रतिनिधियों की जांच की गई, यहां तक कि पत्रकारों के लिए भी कोरोना वायरस का टेस्ट अनिवार्य किया गया है. गेट पर थर्मल स्कैनर लगाए गए हैं, और इन्हीं व्यवस्थाओं की आड़ में विदेशी मीडिया के पत्रकारों को इस बैठक से दूर रहने के लिए कहा गया है. कारण कोरोना वायरस को बताया जा रहा है लेकिन जानकारों का कहना है कि चीन आलोचनाओं से बचने के लिए ऐसा कर रहा है.
इसके अलावा भी कई कारणों से ये बैठक पहले से अलग है. प्रतिनिधि मास्क पहनकर बैठक में हिस्सा ले रहे हैं. खाने की टेबलों को कांच की दीवारों से बांट दिया गया है, ताकि सोशल डिस्टेन्सिंग का नियम ना टूटे. हर जगह सेनिटाइजर रखे गए हैं और खाना बांटकर खाने की मनाही है. यहां तक कि मास्क लटकाने के लिए अलग से हुक भी लगाए गए हैं.
इस बैठक में चीन के नेता सालभर का एजेंडा तय करते हैं. दो महीने देर से हुई इस बैठक के जरिए चीन दुनिया को ये दिखा रहा है कि उसके यहां सब ठीक है. लेकिन चीन की इस कहानी पर अब भी बहुत लोगों को यकीन नहीं है.