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काबुल: सबसे बड़ी खबर ये है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) इस समय अबु धाबी में हैं और UAE की सरकार ने उन्हें मानवीय आधार पर शरण दे दी है. वहीं दूसरी तरफ तालिबानी नेता मुल्ला बरादर (Mullah Baradar) 20 साल बाद कतर Air Force के एक Military Plane से कंधार पहुंच गया है. और यहीं से वो काबुल (Kabul) जाएगा.
मुल्ला बरादर अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति बन सकता है इसलिए उसका कंधार पहुंचना बहुत बड़ी खबर है. कंधार को तालिबान का गढ़ माना जाता है. और यहीं से तालिबान के बड़े Commanders और नेता ऑपरेट करते हैं. आप कह सकते हैं कि कंधार में तालिबान के आतंकवादियों की संसद बैठती है, जिनका समर्थन जुटाने के लिए मुल्ला बरादर वहां पहुंचा है.
बता दें कि मुल्ला बरादर ने कतर से कंधार तक का सफर कतर एयरफोर्स के C-17 Aircraft में किया. ये दुनिया के उन चुनिंदा Aircrafts में से एक है, जिसका इस्तेमाल बड़े-बड़े देशों की वायु सेना करती हैं. इनमें अमेरिका से लेकर कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसे देश भी हैं.
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बिना हथियारों वाले एक C-17 Aircraft की कीमत 2 हजार 750 करोड़ रुपये तक हो सकती है और कतर ने एक तालिबानी की खातिरदारी के लिए अपनी वायुसेना के इतने महंगे विमान को लगाया है.
पिछले वर्ष जब अमेरिका के साथ मुल्ला बरादर ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तो इसके लिए कतर ने ही दोहा में सारे इंतजाम की जिम्मेदारी उठाई थी. 8 वर्षों के बाद जब मुल्ला बरादर 2018 में पाकिस्तान की जेल से रिहा हुआ था, तब भी कतर ने उसे अपने देश में जगह दी थी और उस समय मुल्ला बरादर को कतर में तालिबान के राजनीतिक दल का प्रमुख बनाया गया था.
मुल्ला बरादर को अमेरिका ने पाकिस्तान में इसलिए गिरफ्तार कराया था क्योंकि उसे लगता था कि वो उसके लिए बड़ा खतरा हो सकता है और बड़ी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे सकता है. अमेरिका के ही दबाव पर उसे 8 वर्षों तक जेल में रखा गया और अमेरिका के ही दबाव पर उसी से दोहा में पिछले साल शांति समझौते पर तालिबान से हस्ताक्षर कराए गए. इससे आप अमेरिका के दोहरे मापदंड को समझ सकते हैं.
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मुल्ला बरादर उन चार लोगों में से एक है, जिन्होंने वर्ष 1994 में तालिबान का गठन किया था. और यही वजह है कि राष्ट्रपति के लिए उसकी दावेदारी सबसे मजबूत है. कंधार एयरपोर्ट पहुंचने पर तालिबान के Commanders ने उसका जबरदस्त स्वागत किया और गवर्नर हाउस पहुंचने पर उसके स्वागत में आतिशबाजी भी की गई. ये तस्वीरें बता रही हैं कि तालिबान जीत गया और दुनिया हार गई.
पिछली बार जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आया था तो उस सरकार का नेतृत्व मुल्ला उमर ने किया था. जिसे मुल्ला बरादर पर बहुत विश्वास था. मुल्ला बरादर ने बाद में मुल्ला उमर की बेटी से शादी भी की और तालिबान की सरकार में वो उप विदेश मंत्री भी बना.
उसने NATO यानी North Atlantic Treaty Organization के देशों की सेना के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं. जेहाद के नाम पर कई बड़े आतंकवादी ऑपरेशन का नेतृत्व किया. कतर और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ तालिबान का संतुलन बना कर रखा और तालिबान के राजनीतिक मामलों में भी उसका हमेशा से दखल रहा है.
आज मुल्ला बरादर 20 वर्षों के बाद अफगानिस्तान पहुंचा है तो इससे साफ है कि उसे वहां की सत्ता मिलने वाली है. लेकिन आज दुनिया भर के नेताओं को ये भी सोचना चाहिए कि क्या वो अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक ऐसे नेता का स्वागत करेंगे, जिसने जेहाद और इस्लामिक कट्टरपंथ के नाम पर आतंकवाद को सही ठहराने की कोशिश की. और इसकी क्या गारंटी है कि वो अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा नहीं करेगा?
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