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नई दिल्ली: देश में ठीक पांच साल पहले यानी 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया था, जिसके तहत भारत में नोटबंदी का ऐलान किया गया था और 500 और 1000 के नोट चलन से बाहर हो गए थे. इसके बदले में 2000 और 500 रुपये के नए नोट बाजार में लाए गए थे, इसका मकसद कालेधन और भ्रष्टाचार को कम करना था. फिलहाल भारत में 10, 20 50, 100, 500 और 2000 रुपये तक के नोट चलन में हैं. विमुद्रीकरण (Demonetization) के दौरान जो 500 और 1000 के जो नोट वापस लिए गए थे वो करीब 15.5 लाख करोड़ रुपये के बराबर थे. उस समय भारत में कुल जितनी करेंसी चलन में थी ये उसका 86% हिस्सा था. लेकिन क्या आपको पता है कि अमेरिका,चीन और जर्मनी जैसे देशों में बड़े नहीं बल्कि छोटे नोटों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है.
अमेरिका में सबसे बड़ा नोट 100 डॉलर का है, इसी तरह चीन में सबसे बड़ा नोट 100 युआन का है, जर्मनी में सबसे बड़ा नोट 500 यूरो का है. लेकिन अब यूरोप का सेंट्रल बैंक इस 500 के नोट को भी बाजार से बाहर करने की तैयारी कर रहा है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में यूरोप में जितने भी आतंकवादी हमले हुए हैं, उनकी फंडिग में ज्यादातर 500 यूरो के नोट का ही इस्तेमाल हुआ था. इसलिए कई बार यूरोप में 500 के नोट को बिन लादेन नोट भी कहा जाता है. दरअसल जितना बड़ा नोट चलन में होता है, उसके दम पर भ्रष्टाचार करना और आतंकवाद फैलाना उतना ही आसान होता है. उदाहरण के लिए अगर किसी के पास 1 करोड़ रुपये कैश रखा है और सभी नोट 50-50 रुपये के हैं तो उसे दो लाख नोट अपने पास रखने होंगे, जिन्हें छिपाना आसान नहीं होता, अगर कैश सौ-सौ रुपये के नोट के रूप में है तो नोटों की कुल संख्या 1 लाख हो जाएगी लेकिन अगर सभी नोट 2000 रुपये के हैं तो सिर्फ 5 हजार नोट रखने से काम चल जाएगा. जितना बड़ा नोट होता है उसे कैश के रूप में छिपाकर रखना उतना ही आसान हो जाता है.
आपको बता दें कि भारत में इस समय 50 रुपये के 19 अरब 5 करोड़ नोट चलन में है, 100 रुपये के 10 अरब 95 करोड़ नोट और 2000 रुपये के 2 अरब 45 करोड़ नोट इस समय चलन में हैं. देश में बड़े नोट की वजह से लोग टैक्स चोरी करते हैं, वित्तीय अपराध होते हैं, ड्रग तस्करी में इनका इस्तेमाल होता है, आतंकवादियों की फंडिंग की जाती है और सबसे बड़ी बात ये है कि इससे काले धन को जमा करना आसान हो जाता है. जबकि छोटे नोट रोजमर्रा की जरूरतों के लिए अहम हो जाते हैं, इससे लेन देन में ज्यादा पारदर्शिता रहती है, छोटे ट्रांजेक्शन आसानी से किए जा सकते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यस्था ज्यादातर छोटे नोटों पर निर्भर होती है, इसे काले धन के रूप में जमा करना भी आसान नहीं होता और अगर छोटे नोट कट-फट जाए या नष्ट हो जाए तो बड़े नोटों के मुकाबले नुकसान कम होता है.
नोटबंदी का एक बड़ा फायदा ये हुआ कि अब भारत में पहले के मुकाबले ज्यादा लोग टैक्स चुका रहे हैं और टैक्स चोरी के मामलों में सजा होने की दर 6 गुना बढ़ गई है. इसके अलावा नोटबंदी के बाद से भारत में डिजिटल ट्रांजेक्शन का एक अच्छा-खासा और मजबूत ढांचा तैयार हो चुका है. इस साल सिर्फ अक्बूटर के महीने में ही 7.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की UPI पेमेंट की गई हैं. Harvard University की एक रिपोर्ट के मुताबिक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और ये लोग कैश पेमेंट करने वालों के मुकाबले एक बार खरीदा गया सामान कम वापस करते हैं.
इसके अलावा नोटबंदी के बाद से बाजार में नकली नोटों का चलन हर साल कम हुआ है. 2016 में 7.5 लाख नकली नोट जब्त किए गए थे, जबकि 2020 में सिर्फ 2 लाख नकली नोट पकड़े गए हैं. वहीं पिछले महीने की 29 तारीख तक भारत में 29 लाख करोड़ रुपये कैश के रूप में चलन में थे. लेकिन अगर नोटबंदी नहीं होती तो भारत में इस समय 32.5 लाख करोड़ रुपये कैश के रूप में चलन में होते. बता दें कि साल 2016 में नोटबंदी से पहले भारत में 17.5 लाख करोड़ रुपये कैश के रूप में चलन में थे.
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