DNA ANALYSIS: कीमतें कम होने के बाद भी भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे?
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DNA ANALYSIS: कीमतें कम होने के बाद भी भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे?

अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि कीमतें कम होने के बाद भी भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे? इसकी वजह ये है कि भारत में पेट्रोल और डीजल पर कई तरह के टैक्स लगते हैं और इन टैक्स में कमी करने का सरकार का फिलहाल कोई इरादा नहीं है.

DNA ANALYSIS: कीमतें कम होने के बाद भी भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे?

आपको ये समझना होगा कि अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी का असर भारत में पेट्रोल या डीजल की कीमत पर नहीं पड़ेगा. दरअसल, अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण WTI crude price के तहत होता है.  WTI का अर्थ है West Texas Intermediate जबकि Organisation of Petroleum Exporting Countries यानी तेल का उत्पादन करने वाले OPEC देश Brent Crude Price के तहत कीमतों का निर्धारण करते हैं.  इस Organisation में 15 देश शामिल हैं, जिनमें सऊदी अरब, UAE और , कतर जैसे बड़े तेल उत्पादक देश भी हैं. 

भारत अपना ज्यादातर कच्चा तेल OPEC देशों से ही खरीदता है.  Brent Crude Price के तहत ये देश अब भी 25 डॉलर्स प्रति बैरल की कीमत पर कच्चा तेल बेच रहे हैं क्योंकि इन देशों के पास अभी कुछ Storage क्षमता बाकी है.  दुनिया में 66 प्रतिशत कच्चे तेल की कीमत Brent Crude Price के तहत ही तय की जाती है..इसलिए अमेरिका में तेल की कीमते गिरने का असर ज्यादातर देशों पर नहीं पड़ेगा. इनमें भारत भी शामिल है. 

कुछ दिनों पहले रूस और सऊदी अरब ने मांग कम होने के बावजूद तेल का उत्पादन बढ़ा दिया था जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में भारी कमी आई है..लेकिन अब अमेरिका के समझाने पर दोनों देशों ने उत्पादन में कुछ कमी की है.  फिर भी पूरी दुनिया में लॉकडाउन की वजह से कच्चे तेल की मांग बहुत कम हो गई है और अगर ये लॉकडाउन लंबे समय तक जारी रहा तो हो सकता है कि अमेरिका की तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल की कीमत में एतिहासिक गिरावट आ जाए. 

अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि कीमतें कम होने के बाद भी भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम कम क्यों नहीं हो रहे? इसकी वजह ये है कि भारत में पेट्रोल और डीजल पर कई तरह के टैक्स लगते हैं और इन टैक्स में कमी करने का सरकार का फिलहाल कोई इरादा नहीं है. इन टैक्स में केंद्र और राज्य सरकार दोनों की हिस्सेदारी होती है.  आज जो पेट्रोल या डीजल आप खरीद रहे हैं वो आपको उस दाम पर मिलेगा जिस पर सरकार ने उसे 20 या 25 दिन पहले खरीदा था.  क्योंकि तेल का उत्पादन करने वाले देशों से तेल भारत तक पहुंचने में इतना समय लग जाता है. 

इसके अलावा डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये की मौजूदा कीमत का असर भी पेट्रोल और डीजल के दाम पर पड़ता है. उदाहरण के लिए अगर आज कच्चे तेल की कीमत 25 डॉलर्स प्रति बैरल है तो भारत को 159 लीटर कच्चे तेल के लिए 1 हजार 921 रुपये चुकाने होंगे. 

यानी एक लीटर कच्चे तेल की कीमत करीब 12 रुपये होगी.  अब कच्चे तेल से डीडल और पेट्रोल निकालने में करीब 10 रुपये प्रति लीटर की लागत आती है.  इसके बाद इसमें कई तरह टैक्स और दूसरी लागत जुड़ जाती है और पेट्रोल का बेसिक प्राइस करीब 22 रुपये और पेट्रोल का करीब 26 रुपये हो जाता है. और फिर पेट्रोल पर करीब 23 रुपये की एक्साइज ड्यूटी लगती है और डीज़ल पर करीब 18 रुपये 83 पैसे का उत्पाद शुल्क लगता है. 

इसके बाद इसमें डीलर्स का कमिशन जुड़ता जो पेट्रोल और डीजल के मामले में अलग अलग होता है. फिर इसमें राज्य सरकारे अपना VAT और सेल्स टैक्स जोड़ देती हैं. कुछ दिनों पहले पेट्रोल पर डीजल पर Special excise duty को भी बढ़ा दिया गया था. इन सबके बाद आपको पेट्रोल और डीजल के लिए एक मोटी कीमत चुकानी पड़ती है. यानी जो पेट्रोल 22 रुपये में रिफाइनरी में तैयार हो जाता है, उस पर आपको 40 रुपये से भी ज्यादा का टैक्स और शुल्क चुकानी पड़ती है. 

कोरोना वायरस के दौर में ये टैक्स सरकार के लिए और भी जरूरी हो जाते हैं क्योंकि सस्ता तेल खरीदने से सरकार को फायदा तो हो रहा है लेकिन कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भी सरकार को अच्छा खासा पैसा चाहिए और पेट्रोल और डीजल की बिक्री का इसमें बड़ा हिस्सा है. भारत अमेरिका से भी कच्चा तेल खरीदता है. इसलिए आपको लग सकता है कि मौके का फायदा उठाकर भारत को लगभग मुफ्त में लाखों करोड़ों लीटर कच्चा तेल अमेरिका से खरीद लेना चाहिए लेकिन इसमें भी एक समस्या है और वो समस्या ये है कि भारत के पास भी कच्चा तेल जमा करने के लिए पर्याप्त स्टोरेज नहीं है. 

भारत के पास फिलहाल करीब 85 करोड़ लीटर कच्चा तेल जमा करने की क्षमता है जिससे भारत की 7 से 9 दिन की जरूरत पूरी हो सकती है.  हालांकि भारत इस क्षमता को बढ़ाकर 238 करोड़ लीटर करना चाहता है लेकिन फिलहाल भारत अमेरिका में गिरती तेल की कीमतों का ज्यादा फायदा उठाने की स्थिती में नहीं है. इसलिए आपको अभी अपनी गाड़ी में पेट्रोल या डीजल भरवाते समय पहले जितने पैसे ही खर्च करने होंगे. 

कहा जाता है कि जिस देश के के पास तेल का पर्याप्त भंडार होगा उस देश का भविष्य उज्जवल होगा लेकिन आज एक महामारी ने इन दावों को खोखला साबित कर दिया है और अमेरिका समेत दुनिया के बड़े बड़े देश अपना कच्चा तेल बेचने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.  पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के लिए तो तेल से बढ़कर कुछ नहीं रहा है.  तेल के नाम पर शुरु हुए विवाद के बाद ही 1945 में पहली और आखिरी पर किसी देश के खिलाफ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया गया था.  वजह ये थी कि 1940 में अमेरिका ने जापान की आक्रमकारी नीतियों से नाराज़ होकर उसे तेल की सप्लाई बंद कर दी थी.  जापान पूरे एशिया पर विजय हासिल करना चाहता था लेकिन उसके पास युद्ध जारी रखने के लिए पर्याप्त तेल नहीं था.  उस समय अमेरिका तेल के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक था. 

इसके बाद अमेरिका से बदला लेने के लिए जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हवाई हमला कर दिया था. इस हमले में अमेरिका के 2 हज़ार से ज्यादा नौसैनिक मारे गए थे और इसके बाद ही अमेरिका औपचारिक तौर पर दूसरे विश्व युद्ध में शामिल हो गया था. जापान को सबक सिखाने के लिए ही अमेरिका ने 1945 के जुलाई महीने में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए थे. 

इतना ही नहीं 1991 में इराक ने कुवैत पर हमला किया था और इस युद्ध के केंद्र में भी तेल की कीमते थीं. इराक का आरोप था कि कुवैत तेल की कीमतों के साथ छेड़छाड़ कर रहा है.  और तय मात्रा से ज्यादा तेल का उत्पादन कर रहा है जब इराक ने कुवैत पर हमला किया तो इराक की सेनाओं ने करीब 605 तेल के कुओं में आग लगा दी थी. 

इस युद्ध में अमेरिका और उसके सहयोगी देश भी शामिल हो गए थे क्योंकि अमेरिका नहीं चाहता था कि तेल के उत्पादन में ईराक का हिस्सा बढ़ जाए.  अगर इराक ये युद्ध जीत जाता तो दुनिया के 65 प्रतिशत तेल उत्पादन पर इराक का कब्ज़ा हो जाता और अमेरिका को ये किसी कीमत पर मंजूर नहीं था. माना जाता है कि अमेरिका ने इस युद्ध पर करीब 4 लाख 50 हज़ार करोड़ रुपये खर्च कर दिए थे.  यानी तेल के लिए अमेरिका ने पानी की तरह पैसा बहाया था. लेकिन जिस तेल ने दुनिया को परमाणु युद्ध हमला झेलने पर मजबूर किया, जो तेल बड़े बड़े युद्धों की वजह बना. वो तेल आज पानी से भी सस्ता हो गया है और एक वायरस ने तेल की प्यासी दुनिया को आईना दिखा दिया है. 

पिछले वर्ष के मुकाबले अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में काफी कमी आई है  और इसकी वजह से कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों को इस वक्त करीब 2 हज़ार करोड़ रुपये प्रति दिन का नुकसान हो रहा है। इन देशों में प्रमुख तौर पर सऊदी अरब, इराक, ईरान, यूएई, कुवैत, वेनेजुएला जैसे देश हैं। जब तक दुनिया की अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस से पहले की स्थिति में नहीं आती, तब तक इन देशों को बहुत बड़ा नुकसान सहना होगा। लेकिन ये भारत और चीन जैसे देशों के लिए बड़ा मौका है, जो कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीद-दार देश हैं। भारत में खपत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल बाहर के देशों से खरीदा जाता है. कच्चे तेल के दाम में 1 डॉलर की कमी आती है तो भारत में कच्चे तेल का आयात बिल करीब 12 हज़ार करोड़ रुपये कम हो जाता है. 

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