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नई दिल्लीः कर्नाटक में हिजाब पर छिड़े विवाद के मामले में भारत विरोधी ताकतों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भी एंट्री हो गई है, जो खुद को मुसलमानों का ठेकेदार बताते हैं. इस मामले में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई ने भी ट्वीट करके कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं का समर्थन किया है. उन्होंने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि 'कर्नाटक के कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब और पढ़ाई में से एक को चुनने के लिए मजबूर किया जा रहा है.'
इसी ट्वीट में वो आगे लिखती हैं कि मुस्लिम छात्राओं को हिजाब में स्कूल जाने से रोकना भयावह है. कम या ज़्यादा कपड़े पहनने के मामले में महिलाओं को एक वस्तु की तरह समझा जाता है. और मलाला भारत के नेताओं से ये अपील करती हैं कि उन्हें मुस्लिम महिलाओं की उपेक्षा को रोकना चाहिए.
मलाला युसुफ़ज़ई वही सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने तालिबान की कट्टरपंथी सोच के ख़िलाफ़ संघर्ष करते हुए ये कहा था कि मुस्लिम महिलाओं के लिए धर्म से ज्यादा शिक्षा ज़रूरी है. और इसके बाद वर्ष 2012 में तालिबान के आतंकवादियों द्वारा उन पर हमला किया गया था. लेकिन आज वही मामला भारत के मामले में शिक्षा से ज़्यादा हिजाब को ज़रूरी बताती हैं, जिससे उनके दोहरे मापदंडों के बारे में पता चलता है.
वर्ष 2013 में मलाला द्वारा एक पुस्तक लिखी गई थी, जिसका नाम है, I am Malala. इस पुस्तक में वो लिखती हैं कि बुर्का पहन कर चलना ठीक वैसा ही है, जैसे कोई महिला किसी कपड़े की Shuttlecock में कैद हो. और जब बहुत गर्मी होती है तो ऐसा लगता है कि बुर्का पहनी महिला, किसी Oven के अन्दर बैठी है. इस पुस्तक में वो ये भी लिखती हैं कि उन्हें उनके स्कूल की Royal Blue Uniform से बहुत प्यार था लेकिन तालिबान ने उन्हें धार्मिक पोशाक पहनने के लिए मजबूर किया, जिससे वो बहुत दुखी हुईं. लेकिन आज वही मलाला, कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं से कह रही हैं कि स्कूल की Uniform ना पहनना उनका अधिकार है. और उन्हें हिजाब पहन कर पढ़ने देने चाहिए.
एक बड़ा विरोधाभास ये भी है कि जिस Norway ने मलाला युसुफज़ई को उनके कामों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था, उसी Norway में वर्ष 2018 में एक कानून लाया गया था, जिसके तहत वहां के सभी स्कूलों और कॉलेजों में बुर्का पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. यानी Norway में मुस्लिम छात्राएं बुर्का नहीं पहन सकतीं. इसलिए आज हम मलाला से पूछना चाहते हैं कि वो Norway में बुर्के से बैन हटाने की मांग क्यों नहीं करतीं और इसके लिए अपना नोबेल शांति पुरस्कार क्यों नहीं लौटा देतीं?
Tunisia, कोसोवो, Azebejan और Egypt जैसे मुस्लिम देशों में भी स्कूलों में बुर्का पहनने पर प्रतिबंध है. लेकिन मलाला इन देशों पर कोई ट्वीट नहीं करतीं. और ना ही वो अफगानिस्तान की उन मुस्लिम छात्राओं की बात करती हैं, जो हिजाब के विरोध में अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ चुकी हैं. मलाला ने Birmingham के Edgbaston High School और Oxford University में पढ़ते हुए कभी बुर्का या नकाब नहीं पहना. लेकिन वो भारत में लड़किय़ों के बुर्क़ा या हिजाब पहनने की मांग को उनका अधिकार बताती हैं.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने ट्वीट करके कहा है कि भारत में मुस्लिम छात्राओं के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है. और दुनिया को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए. इसी तरह के Tweets पाकिस्तान के दूसरे मंत्रियों ने भी किए हैं. और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरयम नवाज ने तो ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदलते हुए कर्नाटक की मुस्लिम छात्राओं का समर्थन किया है. आज पाकिस्तान से हमारा सवाल ये है कि वो अफगानिस्तान में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात क्यों नहीं करता?
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले 6 महीनों में अफगानिस्तान की 35 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएं इस वजह से अपने स्कूल नहीं गई हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने हिजाब नहीं पहना तो तालिबान के आतंकवादी उन्हें जान से मार देंगे. लेकिन पाकिस्तान कभी अफगानिस्तान की बात नहीं करता. अफगानिस्तान की ही तरह पाकिस्तान, चीन को लेकर भी कभी कुछ नहीं कहता. चीन की कुल आबादी में लगभग ढाई प्रतिशत मुसलमान हैं. यानी वहां लगभग चार करोड़ मुसलमान रहते हैं. लेकिन चीन में मुसलमानों को ना तो ज्यादा लम्बी दाढ़ी रखने का अधिकार है और ना ही वहां मुस्लिम महिलाएं बुर्का या हिजाब पहन सकती हैं.
इसके अलावा चीन के शिनजियांग प्रांत में 10 लाख Uyghur (उइगर) मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर्स में हिरासत में रखा गया है. चीन ने मोहम्मद, जेहाद, कुरान, मक्का, मदीना और इमाम जैसे 20 नामों पर भी प्रतिबंध लगाया हुआ है. यानी अगर वहां कोई परिवार अपने बच्चे का नाम मोहम्मद या जेहाद रखना चाहता है तो उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है. लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान कभी इसके लिए चीन पर कोई सवाल नहीं उठाता.
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