देश की आम जनता ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के खिलाफ विद्रोह कर दिया है. इतिहास के बाद पहली बार हुआ कि जिन नायक नायिकाओं को भगवान की तरह पूजा जाता था, आज उन्हीं को लोग ट्रोल कर रहे हैं.
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नई दिल्ली: देश की आम जनता ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के खिलाफ विद्रोह कर दिया है. इतिहास के बाद पहली बार हुआ कि जिन नायक नायिकाओं को भगवान की तरह पूजा जाता था, आज उन्हीं को लोग ट्रोल कर रहे हैं. जया बच्चन का देश की संसद में खड़े होकर यह कहना कि कुछ लोग जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं, लोगों को चुभ गया है.
जया बच्चन इस बात से बहुत नाराज थीं कि बॉलीवुड में ड्रग्स का मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है. जया बच्चन ने जिस तरह से यह बात कही वो बहुत लोगों को चुभ गई है. उनकी बातों में उसी सोच की झलक दिखाई देती है जिसके कारण यह माना जाता है कि बॉलीवुड कुछ परिवारों की निजी संपत्ति है. इसी सोच के कारण सुशांत सिंह राजपूत जैसे किसी बाहरी लेकिन प्रतिभावान अभिनेता को काम मिलना बंद हो जाता है और एक दिन वो अपने घर में लटकता हुआ पाया जाता है. आज आपको एक बार फिर से राज्यसभा में जया बच्चन के उस बयान को सुनना चाहिए.
जया बच्चन के बयान पर अभिनेत्री जयाप्रदा की प्रतिक्रिया सामने आई है. जयाप्रदा जब उत्तर प्रदेश के रामपुर से चुनाव लड़ रही थीं, तब समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने उन्हें लेकर आपत्तिजनक बयान दिए थे. लेकिन तब जया बच्चन ने अपनी पार्टी के नेता के खिलाफ कुछ नहीं बोला था. आज जब वो संसद में बॉलीवुड को बदनाम करने का आरोप लगा रही हैं, तब जयाप्रदा ने जो कुछ कहा है वो आपको सुनना चाहिए.
सामना का संपादकीय
जया बच्चन के बयान से महाराष्ट्र में सरकार चला रही शिवसेना बहुत खुश है. पार्टी के मुखपत्र सामना ने आज जया बच्चन की तारीफ में संपादकीय लेख छापा है.
इसमें लिखा गया है, 'जया बच्चन सच बोलने और अपनी बेबाकी के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों को कभी छुपाकर नहीं रखा. महिलाओं पर अत्याचार के संदर्भ में उन्होंने संसद में बहुत भावुक होकर आवाज उठाई है. ऐसे वक्त में जब फिल्म इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा है अक्सर तांडव करने वाले अच्छे-खासे पांडव भी जुबान बंद किए बैठे हैं.'
-सिनेमा जगत के छोटे-बड़े हर कलाकार मानो 24 घंटे गांजा और चिलम पीते हुए दिन बिता रहे हैं, ऐसा बयान देने वालों का डोप टेस्ट होना चाहिए.
-सामना ने लिखा है कि आमिर, शाहरुख और सलमान जैसे 'खान' लोगों की मदद से बॉक्स ऑफिस को चलाने में मदद मिलती है. क्या ये सारे लोग सिर्फ गटर में लेटते थे और ड्रग्स लेते थे? ऐसा दावा करने वालों का पहले मुंह सूंघना चाहिए. जया बच्चन ने इसी विकृति पर हमला किया है.
-'सामना' ने जया बच्चन और खान अभिनेताओं की तारीफ की है. लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की मौत और ड्रग्स के मामले पर खान अभिनेता भी चुप्पी साधे हुए हैं. अभिताभ बच्चन दिनभर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं, लेकिन उन्होंने भी इस मामले पर अभी तक एक भी शब्द नहीं बोला है.
इस पूरे विवाद के केंद्र में हैं कंगना रनौत. न तो जया बच्चन ने उनका नाम लिया था और न ही आज सामना ने एक बार भी उनका नाम लिया. लेकिन कंगना रनौत खुलकर बोल रही हैं. फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद और ड्रग्स के आरोप के बाद आज उन्होंने काम के बदले यौन शोषण यानी कास्टिंग काउच का मामला भी उठा दिया. जया बच्चन के जवाब में कंगना ने लिखा कि
"कौन सी थाली दी है जया जी और उनकी इंडस्ट्री ने? एक थाली मिली थी जिसमें दो मिनट के रोल आइटम नंबर और एक रोमांटिक सीन मिलता था वो भी हीरो के साथ सोने के बाद. मैंने इस इंडस्ट्री को फेमिनिज्म सिखाया. थाली देशभक्ति और नारी प्रधान फिल्मों से सजाई. यह मेरी अपनी थाली है जया जी आपकी नहीं."
इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच का आरोप नया नहीं
कंगना रनौत ने अपने ट्वीट में बहुत बड़ा आरोप लगाया है. पहली बार किसी बड़ी अभिनेत्री ने इस तरह सार्वजनिक तौर पर कहा है कि छोटी भूमिका के लिए भी हीरो के साथ संबंध बनाना होता है. कई तरह के समझौते करने होते हैं. फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच का आरोप नया नहीं है. शक्ति कपूर और अमन वर्मा जैसे बड़े फिल्म कलाकार स्टिंग ऑपरेशन में कास्टिंग काउच के आरोपों में फंस चुके हैं. फिल्म इंडस्ट्री पर अक्सर गंभीर आरोप लगते रहे हैं, लेकिन अक्सर उन पर कोई चर्चा नहीं होती.
बॉलीवुड पर लगने वाले कुछ बड़े आरोपों की सूची हम आपके सामने लेकर आए हैं. ये आरोप हैं-
परिवारवाद
नशाखोरी
कास्टिंग काउच
अंडरवर्ल्ड से दोस्ती
फिल्मों में ब्लैकमनी
प्रतिभा का दमन
गुटबाजी
साहित्यिक चोरी
बॉलीवुड पर नशाखोरी का आरोप
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद परिवारवाद का आरोप सबसे पहले सामने आया. सुशांत की मौत का असली कारण क्या है ये CBI, ED और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जैसी एजेंसियां पता लगा रही हैं. लेकिन यह साफ है कि कोई गॉड फादर न होने के कारण किसी 'मूवी-माफिया' का आशीर्वाद सुशांत सिंह राजपूत के साथ नहीं होने की वजह से उन्हें फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया था. जबकि बड़े फिल्मी घरानों के बेटे-बेटियां बड़े आराम से नई फिल्में मिल रही थीं और मिल रही हैं.
बॉलीवुड पर नशाखोरी का आरोप लगता रहा है. लेकिन पहली बार Zee News पर हमने आपको बड़े फिल्मी कलाकारों के ड्रग्स लेते वीडियो दिखाए हैं. बॉलीवुड का ये एक छिपा हुआ चेहरा था. जिसके बारे में लोग जानते तो थे, लेकिन देखा नहीं था. जया बच्चन कह रही हैं कि ड्रग्स के नाम पर पूरी फिल्म इंडस्ट्री को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है, लेकिन आज उन पर कोई भी विश्वास नहीं कर रहा। क्योंकि लोग देख चुके हैं कि फिल्मी पार्टियों में किस तरह खुलेआम ड्रग्स चलती है.
फिल्मों में डी-कंपनी का पैसा
कास्टिंग काउच का आरोप कंगना रनौत ने बहुत खुलकर लगाया है. लेकिन ये बॉलीवुड का एक ऐसा काला सच है जिसके बारे में कोई भी बोलने को तैयार नहीं होता. कुछ समय पहले जब मी टू कैंपेन चला था तब कई बड़े-बड़े फिल्मकारों के नाम भी सामने आए थे. नाना पाटेकर, आलोकनाथ और डायरेक्टर विकास बहल पर आरोप लगे थे.
अंडरवर्ल्ड से दोस्ती का आरोप हमेशा से फिल्म इंडस्ट्री पर लगता रहा है. एक दौर में दाऊद इब्राहिम की पार्टियों में बड़े-बड़े फिल्म स्टार नाचा करते थे. हालांकि अब ये काफी कम हो गया है. लेकिन आज भी बॉलीवुड की फिल्मों में डी कंपनी का पैसा लगने के आरोप लगते रहते हैं.
बॉलीवुड में ब्लैकमनी का आरोप भी लगता रहा है. कहते हैं कि बड़े फिल्म स्टार जितना पैसा व्हाइट मनी के रूप में लेते हैं, उससे कहीं गुना पैसा कैश में लेते हैं.
बॉलीवुड में प्रतिभा का दमन के आरोप भी लगते रहे हैं. इसका सबसे ताजा उदाहरण सुशांत सिंह राजपूत का ही है, जो प्रतिभा के बावजूद काम नहीं पा रहे थे. कई प्रतिभावान एक्टर ऐसे ही फिल्म इंडस्ट्री से बाहर हो जाते हैं.
फिल्म इंडस्ट्री पर एक बड़ा आरोप है- गुटबाजी. यहां कई तरह के कैंप चलते हैं. एक कैंप का एक्टर दूसरे कैंप के लिए काम नहीं करता.
बॉलीवुड पर साहित्यिक चोरी यानी Plagiarism के गंभीर आरोप लगते रहे हैं. कई बड़े संगीतकार और प्रोड्यूसर ऐसे हैं जिनके सुपरहिट गाने और हिट फिल्में चोरी के आइडिया पर बनाई गई हैं.
दरअसल, बॉलीवुड में बड़े फिल्स स्टार्स का जादू धीरे-धीरे कम हो रहा है. इसका सबूत बड़े बजट वाली फिल्मों के बॉक्स ऑफिस पर घटते कलेक्शन से समझा जा सकता है. अखबार सकाल टाइम्स के मुताबिक,
- 2017 में बड़े स्टार्स वाली फिल्मों का टिकट विंडो कलेक्शन 24 करोड़ रुपये था.
- 2018 में ये कम होकर 18 करोड़ हो गया.
- 2019 में इसके और भी कम होने का अनुमान है. हालांकि अभी इसका कारण लॉकडाउन है और इस दौरान सिनेमाघर बंद पड़े हैं.
टिकट बिकने में गिरावट का बड़ा कारण
फिल्मों की टिकट बिकने में इस गिरावट का एक बड़ा कारण Over the top यानी OTT प्लेटफॉर्म्स को माना जाता है. इस पर आने वाली ज्यादातर फिल्मों में छोटे कलाकार बड़ी भूमिकाओं में होते हैं. इनमें अक्सर बहुत बड़े-बड़े स्टार नहीं होते, कई ऐसे एक्टर भी इन फिल्मों में होते हैं, जिनके कुछ समय पहले तक हम नाम भी नहीं जानते थे.
शायद थाली में इसी बंटवारे की बात जया बच्चन कर रही थीं क्योंकि अब लोग जीवन के हर क्षेत्र में परिवारवाद और भाई-भतीजावाद को नकार रहे हैं. ये हम राजनीति में होते हुए देख रहे हैं और बॉलीवुड भी इससे अछूता नहीं रह सकता.
फिल्में हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में बताती हैं
कहते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती हैं. यानी फिल्मों में जो कुछ दिखाया जाता है वही समाज में हो रहा होता है. कई बार फिल्में हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में बताती हैं. आपको याद होगा कि आजादी के बाद जो फिल्में आती थीं, उनमें कोई जमींदार या साहूकार खलनायक के रूप में दिखाया जाता था. ये वो समय था जब बाद में 60 और 70 के दशक में भारत में औद्योगीकरण शुरू हुआ. तब फैक्ट्री के मालिकों को खलनायक के तौर पर देखा जाने लगा. उस दौर की फिल्मों में फैक्ट्री के मालिक विलेन हुआ करते थे. औद्योगीकरण के बाद अंडरवर्ल्ड और अपराध का दौर आया, जिसमें माफिया डॉन जैसे खलनायक दिखाए जाने लगे. इस दौरान डाकुओं की फिल्में भी आती रहीं, जिनमें खलनायक कोई डाकू हुआ करता था. हाल के दौर में फिल्मों में नेताओं को खलनायक के तौर पर दिखाया जाने लगा. लेकिन अब जो फिल्म वाले हमें समाज का आईना दिखाया करते थे, जनता उन्हीं नायक-नायिकाओं को विलेन की तरह देख रही है. यानी ये एक चक्र था जो पूरा होता दिख रहा है.
सितारे आसमान में होते हैं, लेकिन लगता है फिल्मी दुनिया के सितारे जमीन पर आ गए हैं. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद पूरे देश में जिस तरह का गुस्सा देखने को मिला है उससे हमारे बड़े-बड़े फिल्मी सितारों की चमक भी खतरे में दिखाई दे रही है.
बड़े फिल्मी सितारों को अपनी थाली में छेद होने का डर
जया बच्चन के बयान को सुनकर लगता है कि बड़े फिल्मी सितारों को अपनी थाली में छेद होने का डर है. शायद वो भूल गए कि ये थाली फिल्म स्टार्स की नहीं है. ये थाली देश के लोगों की है जो अपना पैसा खर्च करके फिल्म को देखने जाते हैं और किसी फिल्म को हिट बनाते हैं. भारत वो देश है जो बॉलीवुड के कलाकारों को भगवान की तरह पूजता रहा है. आज भले ही फिल्मों के टिकट ऑनलाइन बिकने लगे हों, लेकिन एक समय वह भी था जब फिल्मों का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने के लिए सिनेमाघरों के बुकिंग विंडो पर लंबी-लंबी लाइनें लगा करती थीं.
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. यह कहना गलत नहीं होगा कि पहली बार आम जनता ने फिल्म इंडस्ट्री के खिलाफ विद्रोह किया है. जनता जिन फिल्मी सितारों को पूजती आ रही है उन्हीं से वो आज सवाल पूछ रही है. जया बच्चन कहती हैं कि ये थाली उनकी है तो जनता को उनकी बात चुभती है. क्योंकि लोग भूले नहीं हैं जब कुली फिल्म की शूटिंग के दौरान उनके पति अमिताभ बच्चन को चोट लग गई थी.
अमिताभ की पूजा करते हैं लोग
जुलाई 1982 में फिल्म कुली की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को एक जानलेवा चोट लग गई थी. अमिताभ बच्चन को दो महीनों तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था. इस दौरान देश में लोगों ने उनके जल्द स्वस्थ होने के लिए प्रार्थनाएं शुरू कर दी थीं. देश के सभी बड़े मंदिरों में अमिताभ बच्चन के स्वास्थ्य के लिए हवन कराए गए थे. मस्जिदों में उनके लिए दुआएं की गई थीं. परिवारों में महिलाओं ने अमिताभ बच्चन के ठीक होने के लिए मन्नतें मांगी थीं. ये वो समय था जब लोग अमिताभ बच्चन को भगवान की तरह पूजा करते थे. फिल्मों में अमिताभ बच्चन जिन किरदार को निभाते थे, उनमें लोग अपने असली जीवन का अक्स देखा करते थे. अभी हाल में जब अमिताभ बच्चन और उनका परिवार कोरोना वायरस से संक्रमित हो गया था तब भी कुछ उसी तरह से पूरे देश में उनके स्वास्थ्य के लिए दुआएं की गईं.
जब अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ा
कुली फिल्म के हादसे के दो साल बाद 1984 में अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ा था. उन दिनों चुनाव प्रचार के दौरान उनकी सभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी. कम से कम उत्तर भारत की राजनीति में किसी उम्मीदवार के लिए ऐसी दीवानगी देश ने इससे पहले कभी नहीं देखी थी. अमिताभ बच्चन तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बचपन के दोस्त हुआ करते थे. राजीव गांधी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा था. अमिताभ बच्चन का स्टारडम ऐसा था कि इलाहाबाद की जनता ने उन्हें 1 लाख 87 हजार वोट से जिता दिया. इस हार के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा का राजनीतिक करियर खत्म हो गया था, जबकि वो भी जनता के बीच बहुत लोकप्रिय थे.
बड़े फिल्म स्टार्स के लिए जनता की दीवानगी आज भी कम नहीं हुई है.
अमिताभ बच्चन के बंगले जलसा पर हर हफ्ते रविवार के दिन वो प्रशंसकों को दर्शन देने के लिए आते हैं, बिल्कुल ऐसे जैसे वो कोई भगवान हों.
सलमान खान के घर के बाहर भी लोगों की भीड़ उनकी एक झलक के लिए खड़ी रहती है. सलमान खान एक बार बालकनी में आकर अपनी झलक दिखला दें, इसके लिए लोग घंटों इंतजार करते हैं.
शाहरुख खान के बंगले मन्नत के बाहर भी ऐसे ही लोगों का जमावड़ा रहता है. शाहरुख कुछ खास मौकों पर अपने मेन गेट की दीवार पर आकर हाथ हिलाते हैं. बस इतने भर के लिए यहां देशभर से लोग पहुंचते हैं.
राजेश खन्ना के लिए दीवानगी
अमिताभ बच्चन की तरह ही राजेश खन्ना के लिए भी दीवानगी पूरे देश ने देखी है. 1991 के लोकसभा चुनाव में राजेश खन्ना ने नई दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. तब उस सीट से बीजेपी के लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ते थे. राजेश खन्ना के कारण उन्होंने गांधी नगर सीट से भी नामांकन भर दिया. उस चुनाव में लालकृष्ण आडवाणी, राजेश खन्ना को मात्र 1500 वोट से हरा पाए थे.
इतने कम अंतर से जीत के कारण लालकृष्ण आडवाणी ने नई दिल्ली सीट छोड़ दी थी और गांधी नगर सीट अपने पास रखी. उपचुनाव में राजेश खन्ना को दोबारा टिकट मिला और वो चुनाव जीत गए. चुनाव प्रचार के दौरान राजेश खन्ना को देखने के लिए महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती थी. लेकिन चुनाव जीतने के बाद वो अपने क्षेत्र में बहुत कम ही नजर आए.
श्रीदेवी बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्रियों में से एक थीं. फरवरी 2018 में जब उनकी मृत्यु हुई थी तब पूरा देश सदमे में आ गया था. इस समय तक श्रीदेवी का फिल्मी करियर लगभग खत्म हो चुका था. इसके बावजूद उनके लिए जनता का प्यार खत्म नहीं हुआ था. श्रीदेवी की अंतिम यात्रा में मुंबई की सड़कों पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी. उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए देशभर से उनके चाहने वाले मुंबई पहुंचे थे. इसी लोकप्रियता को देखते हुए महाराष्ट्र की तब की सरकार ने श्रीदेवी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ कराया था. जबकि ऐसा सम्मान आम तौर पर जनसेवा से जुड़ी हस्तियों को ही दिया जाता है.
यहां पर एक सवाल आता है कि आप क्यों उम्मीद करते हैं कि बड़े फिल्म स्टार्स किसी मुद्दे पर बोलें. क्या जब ये बोलेंगे तभी आप उस घटना को हुआ मानेंगे? दरअसल ये हमारी ही गलती है कि हम फिल्मी अभिनेताओं को असली नायक मान बैठते हैं.
हम अपने असली नायकों को तो पूछते नहीं...
हम अपने असली नायकों को तो पूछते नहीं हैं. क्या उरी में जिन जवानों ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी उनसे हम कश्मीर समस्या के बारे में उनकी राय जानना चाहते हैं? तो फिर हम क्यों चाहते हैं कि उरी फिल्म में सर्जिकल स्टाइक करने वाले जवान की भूमिका निभाने वाला कोई कलाकार इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बोले?
हम मनोज कुमार को देशभक्ति वाली फिल्मों में देखते हैं तो हमें लगने लगता है कि वो ही सच्चे देशभक्त हैं और उन्हें आकर देश चलाना चाहिए.
सबसे पहले हमें फिल्म स्टार्स को असली नायक समझने वाली सोच बदलनी होगी. अगर हम ऐसा करेंगे तो फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हमारी बहुत सारी शिकायतें खुद ही खत्म होने लगेंगी. फिल्में मनोरंजन के लिए हैं इन्हें मनोरंजन तक सीमित रखिए. जब हम फिल्मी हीरो को Real Life Hero समझने लगते हैं तो समस्या वहीं से पैदा होती है.
फिल्म इंडस्ट्री हो, खेल हो, राजनीति हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र ये सबकी थाली है. इन थालियों में हर किसी के लिए बराबरी का हिस्सा होना चाहिए. ये थाली किसी एक परिवार या ख़ानदान की बपौती नहीं है. बॉलीवुड की थाली पर कुछ खास लोगों का कॉपीराइट नहीं हो सकता कि सिर्फ कुछ ही लोग इस थाली से खाना खाएंगे. ये थाली न तो कलाकारों की है न नेताओं की, ये जनता की है और जनता को ही फैसला करना है कि कौन थाली में छेद कर रहा है और कौन नहीं.
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