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नई दिल्लीः राजस्थान के दौसा में एक 42 साल की महिला डॉक्टर ने आत्महत्या कर ली. इस डॉक्टर का नाम अर्चना शर्मा था और जिस अस्पताल में वो काम करती थीं, वहां पिछले दिनों एक गर्भवती महिला की डिलीवरी के दौरान मृत्यु हो गई थी. इसके बाद मृतक के परिवार ने इस डॉक्टर को काफी डराया, धमकाया और इलाके के नेताओं और कुछ पत्रकारों की मदद से पुलिस पर दबाव बनाकर उनके खिलाफ हत्या की FIR दर्ज करा दी. इससे ये डॉक्टर इस कदर आहत हुई कि उसने आत्महत्या कर ली और अपने Suicide Note में ये लिखा कि शायद उसकी मौत उसकी बेगुनाही को साबित कर पाए.
सुसाइड नोट में डॉक्टर ने लिखा था कि उन्होंने कोई गलती नहीं की. उन्होंने किसी को नहीं मारा. यानी जिस महिला की इलाज के दौरान मौत हुई, उसका कारण वो नहीं थी. बल्कि इसके पीछे एक मेडिकल कंडिशन थी, जिसमें खून का अधिक रिसाव होने से गर्भवती महिलाओं की मौत हो जाती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. इसलिए ये डॉक्टर अपने Suicide Note में लिखती हैं कि डॉक्टरों को इसके लिए प्रताड़ित करना बन्द होना चाहिए. वो आखिर में ये भी लिखती हैं कि उनकी मौत शायद उनकी बेगुनाही साबित कर पाए.
पिछले दो वर्षों से पूरी दुनिया कोविड से संघर्ष कर रही है. इन दो वर्षों में हमारे देश के डॉक्टरों ने भी सेना के किसी सिपाही की तरह पहली पंक्ति में खड़े होकर इस महामारी से लड़ाई लड़ी है. आपको उस समय की तस्वीरें जरूर याद होंगी, जब कोविड के दौरान हमारे डॉक्टर 16-16 घंटे अस्पताल में काम करते थे. इस दौरान उन्हें PPE किट में रहना होता था. इस बीमारी में जब बहुत सारे लोग संक्रमण के डर की वजह से अपने मरीजों को छूने से भी डर रहे थे. उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए थे, तब यही डॉक्टर इन मरीजों के साथ खड़े थे और अपनी जान जोखिम में डाल कर उनका इलाज कर रहे थे. इन तस्वीरों को देखने के बाद सबको यही लगता था कि अब हमारे देश के लोग, अपने डॉक्टरों को सम्मान देना सीख जाएंगे और डॉक्टरों के प्रति उनके रवैये में बदलाव आएगा. लेकिन इस घटना ने इन सारी बातों को गलत साबित कर दिया है.
राजस्थान के दौसा में जिस महिला डॉक्टर ने आत्महत्या की, उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वो एक डॉक्टर होने के नाते अपना फर्ज निभा रही थी. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों के द्वारा इस डॉक्टर को प्रताड़ित किया गया, उन्हें उस पर विश्वास नहीं था. जिस महिला की इलाज के दौरान मौत हुई, वो इससे पहले भी यहां एक बार डिलिवरी करा चुकी थी और तब उन्हें दो जुड़वा बच्चे पैदा हुए थे. उस समय इस महिला का परिवार इस डॉक्टर से काफी खुश था. इसीलिए उन्होंने तय किया कि वो इस बार भी डिलीवरी के लिए इस अस्पताल जाएंगे.
27 मार्च को जब ऑपरेशन के दौरान इस महिला की मौत हुई, तब भी परिवार के लोगों को इस डॉक्टर पर कोई संदेह नहीं था. लेकिन जैसे ही वो महिला का शव लेकर अपने घर पहुंचे तो आरोप है कि इलाके के एक पत्रकार ने उन्हें भड़काया कि उन्हें इस मामले में अस्पताल से मुआवजा मांगना चाहिए और अस्पताल के बाहर शव रखकर प्रदर्शन करना चाहिए. इसके बाद नाराज लोगों की भीड़ इस अस्पताल के बाहर धरने पर बैठ गई. इन लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाकर इस डॉक्टर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया. मुआवजे की अपनी मांग भी मनवा ली. इस मुकदमे से ये डॉक्टर इस कदर टूट गई कि उन्होंने आत्महत्या करने का इतना बड़ा फैसला ले लिया. सोचिए, हमारे देश में पत्रकार, आज गिद्ध की तरह हो गए हैं, जो लोगों को जागरुक करने के बजाय, उन्हें भड़काने का काम करते हैं.
भारत एक ऐसा देश है, जहां डॉक्टर को कभी डॉक्टर नहीं कहा जाता. बल्कि उन्हें लोग सम्मान से डॉक्टर साहब कहकर बुलाते हैं. हमारे देश में डॉक्टरों को भगवान का रूप माना जाता है. उनकी लिखी हुई दवाइयों को लोग पूरी पाबंदी के साथ खाते हैं. उनकी सलाह पर जो पसंद हैं...उससे परहेज भी करते हैं. क्योंकि हमें इस बात का यकीन होता है कि डॉक्टर जो सलाह दे रहे हैं, वो हमारी भलाई के लिये है. हमारी जिंदगी बचाने के लिये है. इसी यकीन की वजह से कहा जाता है कि डॉक्टर भगवान का रूप हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है, जब भगवान भी साथ नहीं होता. इसी तरह डॉक्टर भी इस बात की गारंटी नहीं दे सकते कि वो सबकी जान बचा सकते हैं. कोई भी डॉक्टर नहीं चाहता कि उसके मरीज की मृत्यु हो जाए. लेकिन कई बार बीमारी इतनी गम्भीर होती है कि डॉक्टरों के हाथ में कुछ नहीं होता. लेकिन सोचिए अगर इसके लिए उन्हें अपराधी माना जाए तो क्या होगा. हमें लगता है कि इस तरह की घटनाएं हमारे डॉक्टरों का दिल तोड़ देंगी और फिर डॉक्टर्स किसी भी ऐसे मरीज को हाथ लगाने से मना कर देंगे, जिसके बचने की उम्मीद कम होगी. इस स्थिति का सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं लोगों को होगा, जो डॉक्टरों को प्रताड़ित करते हैं, उनके साथ मारपीट करते हैं.
140 करोड़ की आबादी वाले भारत में डॉक्टरों की संख्या 13 लाख से भी कम है. यानी हमारे देश में औसतन 1100 लोगों पर सिर्फ एक डॉक्टर है. कल्पना कीजिए अगर ये 13 लाख डॉक्टर किसी दिन अपनी सुरक्षा की वजह से मरीजों का इलाज करने से इनकार कर दें, अपना कामकाज छोड़ कर घर पर बैठ जाएं तो क्या होगा? तो इस देश में हर दिन 40 हजार लोग इलाज नहीं मिलने की वजह से मर जाएंगे और लगभग 12 करोड़ लोग चाह कर भी अपनी बीमारी का इलाज नहीं कर पाएंगे. हर 6 में से एक भारतीय इलाज के लिए हर साल पांच बार डॉक्टरों के पास जाता है. सोचिए जब डॉक्टर काम ही नहीं करेंगे तो ये लोग कहां जाएंगे?
जिस तरह सेना, देश की सीमाओं की सुरक्षा करती है. ठीक उसी तरह डॉक्टर्स, देश के नागरिकों की सुरक्षा करते हैं. उन्हें सही इलाज देकर, उनकी जान बचाते हैं. ऐसा करते समय उन्हें कई बार मारपीट और हिंसा का भी सामना करना पड़ता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 75 प्रतिशत डॉक्टर ऐसे हैं, जिनके खिलाफ कम से कम एक बार हिंसा हो चुकी है. जब इलाज के दौरान किसी मरीज की जान नहीं बच पाती तो उस मरीज के परिवार को लगता है कि इसके लिए डॉक्टर दोषी है और वो डॉक्टरों को अपना दुश्मन समझ कर उनके खिलाफ हिंसा शुरू कर देते हैं. ये एक तरह की मॉब लिंचिंग होती है. क्योंकि इन मामलों में डॉक्टरों पर भीड़ द्वारा हमला किया जाता है. लेकिन दुर्भाग्यवश इस मॉब लिंचिंग में हिन्दू-मुसलमान का कोई ऐंगल नहीं होता, इसलिए हमारे देश में कभी भी डॉक्टरों के खिलाफ इस मॉब लिंचिंग की बात नहीं हो पाती.
पिछले दो वर्षों में हमारे देश के डेढ़ हजार से ज्यादा डॉक्टरों की मौत इसलिए हो गई क्योंकि वो कोविड के मरीजों का इलाज कर रहे थे. यानी इन डॉक्टरों ने कोविड के खिलाफ लड़ते हुए अपनी कुर्बानी दे दी. लेकिन क्या आपने कभी सुना कि इन डॉक्टरों के परिवारों ने, इसके लिए कोविड के मरीजों को जिम्मेदार बताया हो. या अस्पताल पहुंच कर इन मरीजों के साथ मारपीट की हो. ऐसा कभी नहीं हुआ. लेकिन जब कोई मरीज इलाज के दौरान मर जाता है तो हमारे देश के बहुत से लोग डॉक्टरों की कुर्बानियों को भूल जाते हैं. उनके साथ मारपीट करते हैं.