DNA on Jharkhand Garhwa School Prayer Controversy: क्या जिस इलाके में जिस धर्म के लोगों की तादाद ज्यादा हो, वहां पर वह अपने हिसाब से सरकारी स्कूलों में प्रार्थना का तरीका बदलवा सकता है. झारखंड के एक स्कूल में ऐसा ही वाक्या सामने आया है.
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DNA on Jharkhand Garhwa School Prayer Controversy: जब आप स्कूल में पढ़ते थे, तो आपके किसी साथी ने या आपके किसी दोस्त ने स्कूल के प्रिंसिपल से ये ज़िद की थी कि उसे क्लास में नमाज पढ़ने की इजाज़त दी जाए या पूजा-पाठ करने की इजाजत दी जाए? या वो स्कूल में प्रार्थना के दौरान अपने धर्म के तौर तरीकों का पालन करना चाहता है? जब आप स्कूल में पढ़ते थे, तब क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि डेस्क पर आपके साथ जो दूसरा बच्चा बैठा है, वो किस धर्म का है और किस जाति का है? जहां तक हम सबको याद है, स्कूल में सभी बच्चे एक ही Uniform पहन कर आते हैं और ये Uniform ही उनकी असली पहचान होती है.
झारखंड के गढ़वा जिले में बदला प्रार्थना का तरीका
लेकिन आरोप है कि झारखंड के गढवा जिले में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक सरकारी स्कूल की प्रार्थना और उसके तौर तरीक़ों को ये कहते हुए बदलवा दिया गया कि इस इलाक़े में ज्यादा आबादी मुसलमानों की है इसलिए स्कूल में प्रार्थना के नियम भी उन्हीं के हिसाब से होंगे. हमें लगता है कि ये एक बहुत खतरनाक स्थिति है, जहां एक खास विचारधारा वाले लोग स्कूली बच्चों में भी धार्मिक कट्टरवाद पैदा कर रहे हैं. कल्पना कीजिए अगर देश की पाठशालाएं, धर्म की प्रयोगशालाएं बन गईं तो हमारे समाज में कितना बड़ा विस्फोट होगा.
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— Zee News (@ZeeNews) July 5, 2022
ये ख़बर झारखंड के गढवा ज़िले से आई है, जो देश की राजधानी दिल्ली से लगभग एक हज़ार किलोमीटर दूर है. जिस सरकारी स्कूल पर मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा दबाव बनाने का आरोप है, वो गढवा ज़िले के कोरवा-डीह इलाके में पड़ता है. इस इलाक़े में मुस्लिम आबादी ज्यादा रहती है. आरोप है कि यहां के कुछ स्थानीय लोगों ने स्कूल प्रबंधन पर प्रार्थना को बदलने के लिए काफी दबाव बनाया और ये कहा कि इस स्कूल में जो बच्चे पढ़ते हैं, वो हाथ जोड़कर प्रार्थना नहीं करेंगे बल्कि इसकी जगह वो हाथ बांध कर या हाथ मोड़कर प्रार्थना करेंगे.
मुस्लिमों ने सरकारी स्कूल पर दबाव डालकर करवाया बदलाव
अब बड़ा सवाल यहां ये है कि ये बच्चे हाथ जोड़ कर प्रार्थना क्यों नहीं करना चाहते थे? इसके पीछे आरोप ये लगाया जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इसके लिए दबाव बनाया था. इन लोगों का कहना था कि स्थानीय स्तर पर मुस्लिम समुदाय की आबादी 75 प्रतिशत है. इसलिए स्कूल में जो नियम अपनाए जाएंगे, वो इस्लाम धर्म के हिसाब से ही होंगे. यानी इलाके में मुसलमान ज्यादा रहते हैं तो नियम भी उन्हीं के माने जाएंगे. भारत का संविधान लोगों को सरकार चुनने का तो अधिकार देता है लेकिन वो ये बिल्कुल नहीं कहता कि जिस इलाके में जिस धर्म के लोग ज्यादा रहते हैं, वहां नियम-कानून भी उसी धर्म के अनुरूप होंगे.
140 करोड़ के भारत में 100 करोड़ हिन्दू रहते हैं. लेकिन ये देश हिन्दू धर्म के हिसाब से नहीं बल्कि संविधान के हिसाब से चलता है. लेकिन झारखंड के इस मामले ने कई गम्भीर सवाल खड़े कर दिए हैं. हालांकि जिला शिक्षा विभाग ने इस मामले को गम्भीरता से लिया है और अब यहां बच्चों ने फिर से हाथ जोड़ कर प्रार्थना करनी शुरू कर दी है.
स्कूल-कॉलेजों को कट्टरता का अड्डा बनाने की कोशिश
ये इस तरह की पहली घटना नहीं है, जब देश की किसी पाठशाला को धर्म की प्रयोगशाला बनाने की कोशिश हुई है. आपको याद होगा इसी साल 21 जनवरी को कर्नाटक के कोलार ज़िले के एक स्कूल में कुछ बच्चों ने नमाज़ पढ़ी थी. उस समय पता चला था कि ये बच्चे स्कूल प्रबंधन से जुमे की नमाज पढ़ने के लिए इजाजत मांग रहे थे. काफी दबाव के बाद स्कूल के कुछ लोगों ने इस मांग को मान लिया था.
इसके अलावा बहुत सारी मुस्लिम छात्राएं अब भी कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पहनने की ज़िद पर अड़ी हुई हैं. अब झारखंड के एक सरकारी स्कूल में भी इसी तरह का मामला सामने आया है. ये तमाम घटनाक्रम इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि हमारे देश के स्कूलों में धार्मिक कट्टरवाद का जहर घोलने की शुरुआत हो चुकी है और ये बहुत ही खतरनाक बात है.
पिछले वर्ष जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आया था, तब वहां ये आदेश जारी किया गया था कि लड़कियों को बिना हिजाब के स्कूल और कॉलेजों में प्रवेश नहीं दिया जाएगा. तब वहां बहुत सी लड़कियों ने सोशल मीडिया के ज़रिए इसका विरोध किया था. लेकिन, अब आप सोचिए भारत किस दिशा में जा रहा है? एक तरफ़ धर्मनिरपेक्ष भारत में कुछ छात्राएं ये मांग कर रही हैं कि वो हिजाब पहन कर अपने कॉलेज आना चाहती हैं. मुस्लिम छात्र अपने धर्म के हिसाब से प्रार्थना करना चाहते हैं और दूसरी तरफ़ अफगानिस्तान में इस कट्टरता का विरोध हो रहा है. ये दोनों घटनाएं बताती हैं कि भारत की स्कूली व्यवस्था में कैसे जहर घोला जा रहा है.
क्या बहुसंख्यक हिंदू भी बदलवा सकते हैं प्रार्थना
2011 की जनगणता के मुताबिक़ भारत में लगभग 80 प्रतिशत हिन्दू हैं. 14 प्रतिशत मुस्लिम हैं. 2.3 प्रतिशत ईसाई, 1.7 प्रतिशत सिख, 0.7 प्रतिशत बौद्ध धर्म के लोग और जैन धर्म के 0.4 प्रतिशत लोग इस देश में रहते हैं. यानी भारत एक हिन्दू बहुल देश है. लेकिन इसके बावजूद हिन्दू धर्म के लोगों ने कभी ये नहीं कहा कि इस देश में उनकी आबादी ज्यादा है तो व्यवस्था और कानून भी उन्हीं के हिसाब से होने चाहिए.
पूरी दुनिया में 50 से ज़्यादा मुस्लिम देश हैं. लेकिन हिन्दू राष्ट्र एक भी नहीं है. भारत हिन्दू बहुल तो है. लेकिन हमारा देश संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों पर चलता है. ना कि हमारे यहां किसी धर्म का कोई कानून लागू है. लेकिन झारखंड की घटना से कई सवाल खड़े हुए हैं.
Uniform Civil Code में छिपा है समाधान
आज से 72 वर्ष पहले जब भारत का संविधान लागू हुआ था, उस समय डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर ने इस समस्या की जड़ को पहचान लिया था. उन्होंने कहा था कि रूढ़िवादी समाज में धर्म भले ही जीवन के हर पहलू को संचालित करता हो, लेकिन आधुनिक लोकतंत्र में धार्मिक क्षेत्र अधिकार को घटाये बगैर असमानता और भेदभाव को दूर नहीं किया जा सकता है. इसीलिए देश समानता के सिद्धांत को अपनाए, ना कि धर्म पर ज्यादा ज़ोर दे.
वैसे इस समस्या का एक ही समाधान है और वो है Uniform Civil Code, जो ये कहता है कि अगर देश एक है तो कानून भी सभी धर्मों के लिए एक होना चाहिए. संविधान का आर्टिकल 44 खुद ये निर्देश देता है कि उचित समय पर सभी धर्मों के लिए पूरे देश में 'समान नागरिक संहिता' लागू की जानी चाहिए.
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