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DNA with Sudhir Chaudhary: सिखों के नौवें गुरु.. गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश के नाम संदेश दिया. ये कार्यक्रम लाल किले में इसलिए आयोजित किया गया, क्योंकि गुरु तेग बहादुर की हत्या का आदेश औरंगजेब ने इसी लाल किले से दिया था. सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर का जन्म वर्ष 1621 में पंजाब के अमृतसर में हुआ था. वो सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिन्द सिंह के सबसे छोटे सुपुत्र थे. हालांकि आज अगर हम आपसे ये पूछें कि गुरु तेग बहादुर की हत्या किसने कराई थी? तो आपमें से शायद बहुत सारे लोगों को इसके बारे में पता नहीं होगा.
गुरु तेग बहादुर की हत्या मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर हुई थी. क्योंकि औरंगजेब इस बात से क्रोध में था कि उसके सैनिकों द्वारा कई यातनाएं देने के बाद भी गुरु तेग बहादुर इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए तैयार नहीं हुए थे. वो कश्मीरी पंडितों पर किए जा रहे अत्याचारों का भी पुरजोर विरोध कर रहे थे. यानी उस जमाने में गुरु तेग बहादुर ने इस्लामिक कट्टरपंथ के आगे अपना सिर झुकाने से बेहतर, अपना सिर कलम कराना बेहतर समझा. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि उनकी इस शहादत को इतिहास में उस तरह से याद नहीं किया गया, जिस तरह मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर और औरंगजेब का महिमामंडन किया गया.
31 जुलाई 1658 को जब औरंगजेब मुगल बादशाह बना, तभी से उसने हिन्दुओं पर अत्याचार शुरू कर दिए थे. औरंगजेब ने अपने शासनकाल में गैर मुस्लिम आबादी और खास तौर पर हिन्दुओं पर जजिया टैक्स लगा दिया था. यानी उस समय भारत में जो लोग मुसलमान नहीं थे, सिर्फ उन्हें ही ये टैक्स मुगलों को देना होता था. जो इसका विरोध करता था या ये टैक्स नहीं चुकाता था, उसे भयानक यातनाएं और सजा दी जाती थी. औरंगजेब हिन्दुओं से इतनी नफरत करता था कि उसने अपने शासनकाल में कई मन्दिर तुड़वाए. इनमें वाराणसी का प्राचीन काशी विश्वनाथ मन्दिर और मथुरा का प्रसिद्ध केशव राय मंदिर भी शामिल था. आज काशी में मन्दिर की इस जगह पर ज्ञान वापी मस्जिद मौजूद है जबकि मथुरा में मन्दिर की जगह पर शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है, जिसका निर्माण औरंगजेब के कहने पर ही हुआ था. औरंगजेब ने अपने कार्यकाल में हिन्दुओं पर अनेक जुल्म किए. इस दौरान कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों को भी इस्लाम धर्म अपनाने के लिए जबरन मजबूर किया गया.
उस समय औरंगजेब के विश्वासपात्रों में से एक इफ्तार खान, कश्मीर का सूबेदार था. और औरंगजेब ने इफ्तार खान को ये आदेश दिया था कि कश्मीर में एक भी हिन्दू बचना नहीं चाहिए. यानी पहले तो कश्मीरी हिन्दुओं पर इस्लाम धर्म अपनाने के लिए दबाव डाला जाए और अगर फिर भी वो इसके लिए तैयार नहीं होते हैं तो उनकी हत्या कर दी जाए. ये बात 1674 और 1675 की है. लेकिन कश्मीरी पंडितों ने इसी तरह का दर्द 1990 के दशक में भी देखा, जब इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उन्हें तीन विकल्प दिए थे. पहला वो इस्लाम धर्म अपना लें. दूसरा कश्मीर छोड़ कर भाग जाएं और तीसरा या फिर मरने के लिए तैयार रहें.
हालांकि वर्ष 1674 में जब कश्मीर में हालात काफी बिगड़ने लगे थे. बहुत सारे कश्मीरी पंडितों ने जान बचाने के लिए पलायन करना शुरू कर दिया था. तब कश्मीरी पंडित इतने डरे हुए थे कि उनका एक जत्था आनंदपुर में गुरु तेग बहादुर से उनकी मदद मांगने के लिए पहुंचा. तब इस जत्थे का नेतृत्व पंडित कृपा राम दत्त कर रहे थे. इन लोगों ने उस समय गुरु तेग बहादुर से ये कहा कि, वो उन्हें औरंगजेब के अत्याचारों से बचने का कोई रास्ता बताएं. इस पर गुरु तेग बहादुर ने कहा कि, धर्म की रक्षा तभी की जा सकती है, जब कोई महान पुरुष इस अत्याचार के ख़िलाफ़ अपने प्राणों का बलिदान दे. गुरु तेग बहादुर मानते थे कि बलिदान ही जुल्म सह रहे लोगों को मुगलों से लड़ने का साहस दे सकता है. लेकिन जब गुरु तेग बहादुर ये विचार रख रहे थे, तभी उनके सुपुत्र और सिखों के 10वें और आखिरी गुरु.. गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु तेग बहादुर से कहा कि.. भला उनसे महान पुरुष और कौन हो सकता है.
गुरु गोबिंद सिंह की इस बात को सुन कर गुरु तेग बहादुर काफी खुश हुए. उन्होंने कश्मीरी पंडितों से ये कहा कि वो औरंगजेब को जाकर ये कहें कि अगर वो गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन कराने में सफल रहता है तो कश्मीरी पंडित भी खुशी-खुशी अपना धर्म परिवर्तन कर लेंगे. औरंगजेब इस बात से और क्रोधित हो गया और उसके आदेश पर गुरु तेग बहादुर को गिरफ़्तार करके दिल्ली के मुगल दरबार में पेश किया गया. यहां गुरु तेग बहादुर को धमकी दी गई कि अगर उन्होंने इस्लाम धर्म नहीं अपनाया तो उनका सिर कलम कर दिया जाएगा. लेकिन जब वो इसके लिए तैयार नहीं हुए तो मुगलों के दरबार में ही उनके शिष्यों को उनके सामने ही जिंदा जला कर मार दिया गया. हालांकि इस निर्ममता के बावजूद गुरु तेग बहादुर कमज़ोर नहीं पड़े. उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वो अपनी इच्छा के विरुद्ध इस्लाम धर्म नहीं अपनाएंगे.
गुरु तेग बहादुर का ये साहस.. लम्बी चौड़ी सेना के बीच रहने वाले औरंगज़ेब के मुंह पर करारा तमाचा था और वो इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था. जिसके बाद औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करने का आदेश दे दिया. इस तरह उन्होंने 24 नवम्बर 1675 को कश्मीरी पंडितों के लिए अपनी शहादत दी. उनकी शहादत के बाद संयुक्त पंजाब और जम्मू कश्मीर में मुगलों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया. दिल्ली में जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर का शीश कलम किया गया था, वो जगह अब गुरुद्वारा सीस गंज साहिब के नाम से जानी जाती है. हालांकि ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि कुछ साल पहले तक इस गुरुद्वारे से सिर्फ़ 8 किलोमीटर दूर एक सड़क का नाम, औरंगज़ेब रोड हुआ करता था. जिसे वर्ष 2015 में बदल कर डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया था.
असल में सिख धर्म.. एक ऐसा धर्म है, जिसने हमेशा से धर्म की रक्षा, हिन्दुओं की रक्षा और मानवता के सिद्धांत को सबसे ऊपर रखा है. सिख धर्म की स्थापना 15वीं शताब्दी में हुई थी. सिख शब्द की उत्पत्ति संस्कृति के शिष्य शब्द से माना जाती है. देश के प्रति सिखों के समर्पण को एक और एक कहानी से समझ सकते हैं. और ये कहानी सिखों के 10वें और आखिरी गुरु.. गुरु गोबिंद सिंह की है. गुरु गोबिंद सिंह ने भी धर्म की रक्षा और उसकी स्वतंत्रता के लिए अनेकों कुर्बानियां दी. वर्ष 1675 में गुरु तेग बहादुर की शहादत के बाद मुगलों और सिख समुदाय के बीच टकराव काफ़ी बढ़ गया था और इसके बाद से संयुक्त पंजाब में मुगलों के ख़िलाफ लगातार विद्रोह हो रहा था. सिख समुदाय ने एक एक करके संयुक्त पंजाब के कई इलाक़ों पर कब्जा करना शुरू कर दिया था. इस आन्दोलन के बीच ही वर्ष 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की और सिख पंथ को एक योद्धा के रूप में तब्दील कर दिया. इस दौरान उन्होंने मुगल शासकों को भी चुनौती दी. जिससे औरंगज़ेब और ज्यादा क्रोधित हो गया. उसे सिखों से नफरत होने लगी.
औरंगज़ेब गुरु तेग बहादुर की तरह उनके सुपुत्र गुरु गोबिंद सिंह की भी हत्या कर देना चाहता था. इसके लिए उसने वर्ष 1704 में गुरु गोबिंद सिंह के आनंदपुर किले पर अपने हज़ारों सैनिकों की फौज भेज दी थी. हैरानी की बात ये है कि, उस समय छोटी रियासतों के नवाब और कुछ राजाओं ने भी औरंगज़ेब का साथ दिया और गुरु गोबिंद सिंह के आनंदपुर किले को घेर लिया. हालांकि काफ़ी कोशिश के बाद भी औरंगज़ेब की सेना इस किले में दाखिल नहीं हो पाई. उसे 7 महीनों तक किले के बाहर रह कर ही इंतज़ार करना पड़ा. औरंगज़ेब समझ चुका था कि इस तरह वो कभी गुरु गोबिंद सिंह तक नहीं पहुंच पाएगा इसलिए उसने धोखे का रास्ता अपनाया. गुरु गोबिंद सिंह तक ये संदेश पहुंचाया गया कि अगर वो इस किले को छोड़ कर चले जाते हैं तो उन पर और उनके परिवार पर कोई हमला नहीं किया. उनके शिष्यों की जान भी बख्श दी जाएगी.
औरंगज़ेब की तरफ़ से ये भरोसा मिलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह किले से बाहर निकल आए और दूसरी जगह जाने लगे. लेकिन इसी दौरान औरंगज़ेब की सेना ने धोखे से उन पर हमला कर दिया. और इस दौरान उनके दो छोटे बेटे, साहिबज़ादा फतह सिंह और साहिबज़ादा जोरावर सिंह को बंदी बना लिया. इसके अलावा गुरु गोबिंद सिंह की मां गुर्जर कौर को भी बंदी बना लिया गया. इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के दोनों बेटों पर इस्लाम धर्म अपनाने के लिए दबाव बनाया गया और जब वो इसके लिए तैयार नहीं हुए तो उन्हें दीवार में ज़िन्दा चुनवा दिया गया. और आपको पता है, तब गुरु गोबिंद सिंह के बेटों की उम्र कितनी थी. साहिबज़ादा फतह सिंह 6 साल के थे और साहिबज़ादा जोरावर सिंह 9 साल के थे. हालांकि गुरु गोबिंद सिंह उस दिन अपने बाकी दो बेटों और शिष्यों के साथ वहां से निकलने में कामयाब रहे.
सिख धर्म मानवता के सिद्धांत का भी परिचायक है. जहां दूसरों की निस्वार्थ सेवा को ही सबसे बड़ा पुण्य माना गया है . सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक के जीवन में एक कहानी आती है . जिसमें वो एक बार तराजू से कुछ अनाज तौलकर ग्राहक को दे रहे थे . गिनते गिनते जब वो 11, 12 और फिर 13 पर पहुंचे तो उन्हें अचानक कुछ अनुभूति हुई . वो सामान तौलते गए और 13 के बाद ‘तेरा फिर तेरा और सब तेरा ही तेरा’ कहते गए. इस घटना के बाद गुरू नानक मानने लगे थे कि ‘जो कुछ है.. वो परम ब्रह्म का है, मेरा क्या है?’..इस भावना को आगे बढ़ाते हुए सिख धर्म में लंगर की परंपरा शुरू हुई..क्योंकि जो सुविधाएं ऊपर वाले ने हमें दी हैं..उसका उपभोग हम अकेले नहीं कर सकते, उसका एक हिस्सा हमें उन लोगों तक भी पहुंचाना चाहिए जो मजबूर और जरूरतमंद हैं.
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