DNA ANALYSIS: तालिबान चाहता है पंजशीर पर नियंत्रण, चुनौती बना नॉर्दर्न एलायंस
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DNA ANALYSIS: तालिबान चाहता है पंजशीर पर नियंत्रण, चुनौती बना नॉर्दर्न एलायंस

तालिबान पंजशीर पर कब्जा करना चाहता है. लेकिन नॉर्दर्न एलायंस उसके लिए बड़ी चुनौती बन रहा है. तालिबान भी ये बात अच्छे से जानता है कि बंदूक से वो कभी भी पंजशीर नहीं जीत पाएगा, इसलिए वो बातचीत कर समझौता करने पर जोर दे रहा है.   

DNA ANALYSIS: तालिबान चाहता है पंजशीर पर नियंत्रण, चुनौती बना नॉर्दर्न एलायंस

नई दिल्ली: इस समय काबुल से 150 किलोमीटर दूर पंजशीर (Panjshir) में नॉर्दर्न एलायंस तालिबान (Taliban) के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है. हमारे पास ऐसे कई वीडियो आए हैं, जिनमें हजारों तालिबानी पंजशीर की तरफ जाते हुए दिख रहे हैं. तालिबान ने एक बयान जारी करके कहा है कि उसने अब तक नॉर्दर्न एलायंस के लड़ाकों पर हमला नहीं किया है, क्योंकि वो बातचीत से इस मामले को सुलझाना चाहता है. सोचिए जो तालिबानी बंदूक और गोली की बातें करते हैं, वो पंजशीर को अपने नियंत्रण में लेने के लिए बातचीत का सहारा ले रहे हैं.

  1. पंजशीर पर कब्जा करना चाहता है तालिबान
  2. नॉर्दर्न एलायंस बन रहा सबसे बड़ी चुनौती
  3. अब बातचीत के रास्ते मसले का हल चाहता है तालिबान

नॉर्दर्न एलायंस में कौन हैं?

नॉर्दर्न एलायंस के तीन बड़े लीडर हैं. पहले हैं अमरुल्ला सालेह (Amarulla Saleh) जो अशरफ गनी सरकार में उप राष्ट्रपति थे, दूसरे हैं अहमद मसूद (Ahmed Masood), और तीसरे हैं अब्दुल रशीद दोस्तम जो 2014 से 2020 तक अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति थे. ये तीनों नेता, उत्तरी अफगानिस्तान के पंजशीर से तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं.

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पंजशीर नहीं जीत सकता तालिबान

पंजशीर फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पांच शेर. ये इलाका उत्तरी अफगानिस्तान में है और पंजशीर घाटी पहुंचने का एक ही रास्ता है और वो रास्ता पंजशीर नदी से होकर गुजरता है. ये रास्ता इतना ऊबड़ खाबड़ और संकरा है कि यहां से ऊंची चोटियों पर तालिबान के लिए पहुंचना आसान नहीं है. दूसरी बात, इस इलाके में तालिबान के खिलाफ 10 साल के बच्चे भी जंग के लिए तैयार रहते हैं और तालिबान अच्छी तरह जानता है कि वो यहां हथियारों से पंजशीर को नहीं जीत सकता है. इसलिए बातचीत ही उसका पास एक अच्छे विकल्प के रूप में मौजूद है.

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तालिबान विरोधी है ताजिक समुदाय

तालिबान ने अपने जो 3 हजार लड़ाके पंजशीर भेजे हैं, उनका नेतृत्व एक ताजिक कमांडर (Tajik Commander) कर रहा है. पंजशीर में अधिकतर लोग इसी जातीय समूह से हैं. दरअसल, पहले अफगानिस्तान की कोई सीमा नहीं थी, इसलिए ताजिकिस्‍तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के लोग अफगानिस्तान तक फैले हुए थे. सीमा निर्धारित होने के बाद ये लोग अफगानिस्तान के नागरिक बन गए और इस तरह से ये जातीय समूह (Ethnic Groups) भी बने. अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद भी ताजिक समुदाय से आते हैं और इस समुदाय के लोग तालिबान विरोधी होते हैं.

कोई नहीं कर पाया पंजशीर पर कब्जा

पंजशीर की ताकत को आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब 1970 और 1980 के दशक में जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ के समर्थन वाली सरकार का शासन था, तब भी पंजशीर आजाद था. तालिबान की पहली सरकार में भी उसके आतंकवादी कभी पंजशीर पर कब्जा नहीं कर पाए. अमेरिका भी इस इलाके पर कभी कब्जा नहीं कर पाया और इस बार भी इसकी संभावननाएं बहुत कम हैं. शायद यही वजह है कि अमरुल्ला सालेह को पंजशीर घाटी में एक जगह अपने लड़ाकों के साथ वॉलीबॉल खेलते हुए देखा गया. जब तालिबानी पंजशीर की सीमा पर खड़े हुए हैं, उस समय अमरुल्ला सालेह की वो तस्वीरें बता रही हैं कि तालिबान के लिए अफगानिस्तान पर शासन करना आसान नहीं होगा.

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सालेह को अहमद मसूद का समर्थन

अमलरुल्लाह सालेह को अहमद मसूद का भी समर्थन मिल रहा है, जो अहमद शाह मसूद के बेटे हैं. 1996 से 2001 के बीच अहम शाह मसूद ने ही पंजशीर में रहकर नॉर्दन एलायंस का नेतृत्व किया था. उस समय अफगानिस्तान में दो सरकारें थीं, एक कट्टरपंथी तालिबानियों की, जिसे पाकिस्तान, सऊदी अरब और UAE ने मान्यता दी थी. दूसरी सरकार संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से पंजशीर में बनी थी, जिसमें अहमद शाह मसूद रक्षा मंत्री थे. तब भारत ने भी इस सरकार को अपना समर्थन दिया था. लेकिन 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 हमले से दो दिन पहले तालिबान ने अल कायदा की मदद से एक आत्मघाती हमले में अहमद शाह मसूद को मरवा दिया. लेकिन आज उनके बेटे इस लड़ाई को लड़ रहे हैं.

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