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नई दिल्लीः रामनवमी के मौके पर देश के कई इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा हुई. रामनवमी पर निकाली जा रही शोभायात्राओं पर हमले हुए. अब हमारे ही देश के कई लोग इन हमलों को ये कह कर जायज ठहरा रहे हैं कि रामनवमी की शोभा-यात्राएं मुस्लिम इलाकों से नहीं निकाली जानी चाहिए थीं. इसीलिए हम ये सवाल आप सबसे पूछ रहे हैं कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में कोई भी जगह, हिन्दू इलाका या मुस्लिम इलाका कैसे हो सकता है? क्योंकि ना तो हमारे संविधान में और ना ही हमारे सरकारी Records में किसी स्थान को इस तरह से चिन्हित किया गया है.
इसके साथ ही दिल्ली के JNU में भी रामनवमी के दिन कुछ छात्रों ने Non-Veg खाने की जिद की, जिस पर वहां छात्रों के बीच मारपीट हो गई. लेकिन बड़ी बात ये है कि JNU में Non-Veg खाने को लेकर हुई ये मारपीट हर अखबार के पहले पन्ने पर है. जबकि रामनवमी पर हुए बाकी हमलों का जिक्र मीडिया में नहीं हो रहा है. हम इस बात का विश्लेषण करेंगे कि क्या कश्मीर फाइल्स के बाद अब इंडिया फाइल्स बनाने का भी सही समय आ गया है?
सोचिए, ये कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत जैसे देश में जहां भगवान राम को मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत माना गया है, उसी देश में उनके जन्मदिन के मौके पर पांच से ज्यादा जगहों पर हिंसा की घटनाएं हुईं. ये सारी घटनाएं उस समय हुईं, जब रामनवमी के मौके पर लोग शोभायात्रा और जुलूस निकाल रहे थे. जिन राज्यों में हिंसा हुई, उनमें गुजरात, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड प्रमुख हैं. मध्य प्रदेश के बड़वानी और खरगोन में तो भगवान राम की झांकी निकाल रहे श्रद्धालुओं पर पत्थर बरसाए गए. इस दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हो गई. सोचिए, ये भगवान राम का देश है. यहां उनके जन्मदिन पर पुष्पवर्षा होनी चाहिए थी. लेकिन उन पर पत्थरों की वर्षा की गई.
इसी तरह गुजरात के साबरकांठा में जब 100 से 150 लोग जुलूस निकाल रहे थे, उस समय वहां कुछ लोगों द्वारा पत्थबाजी की गई और इस दौरान कुछ गाड़ियों को भी आग लगा दी गई. अगर आप इन सारी तस्वीरों को ध्यान से देखेंगे तो आपको इनमें कोई अंतर नजर नहीं आएगा. पश्चिम बंगाल से लेकर झारखंड तक, सभी घटनाओं को एक ही तरह से अंजाम दिया गया. पहले पत्थरबाजी हुई, फिर गाड़ियों को आग लगा दी गई और ये सबकुछ इसलिए हुआ ताकि भगवान राम की शोभायात्रा को निकालने से रोका जा सके.
सोशल मीडिया पर इन घटनाओं की तस्वीरें वायरल हो रही हैं, लेकिन हमारे देश के Mainstream Media द्वारा ये तस्वीरें नहीं दिखाई जा रहीं हैं. शायद आपने भी इनमें से बहुत सारी तस्वीरें अब तक नहीं देखी होंगी. इसलिए आपको ये दृश्य देखने चाहिए और समझना चाहिए कि भगवान राम के देश में उनके जन्मदिन पर कैसे साम्प्रदायिक हिंसा हुई. भारतीय संविधान के तीसरे भाग में भगवान राम की तस्वीर छापी गई है. ये भाग, भारत के नागरिकों के Fundamental Rights यानी मौलिक अधिकारों के बारे में बताता है. सोचिए.. देश का संविधान भी अधिकारों की मौलिकता को भगवान राम से जोड़ कर देखता है. इन अधिकारों के लिए उन्हें अपना मार्गदर्शक मानता है. लेकिन फिर इसी देश में उनकी झांकी पर पत्थर बरसाए जाते हैं.
हिंसा की ज्यादातर घटनाओं में पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और मध्य प्रदेश के खरगोन में 10 आरोपियों के घर पर पुलिस ने बुलडोजर चलवा कर उन्हें नीचे गिरा दिया है. मध्य प्रदेश सरकार ने कहा है कि इन हिंसक घटनाओं के पीछे Popular Front of India यानी PFI नाम का संगठन हो सकता है. जिस पर 2020 में दिल्ली दंगों की साजिश रचने के भी आरोप हैं. इसके अलावा इस संगठन पर शाहीन बाग के आन्दोलन को फंडिंग करने के भी आरोप हैं.
धर्मनिरपेक्ष देश वो होता है, जहां सहनशीलता हो. इस्लाम धर्म के लोग दूसरे धर्मों के त्योहारों पर सहनशीलता दिखाएं और हिन्दू धर्म के लोग दूसरे धर्मों के त्योहारों पर सहनशीलता दिखाएं. इस्लाम धर्म में कुर्बानी को पवित्र माना गया है. इसलिए हम अपने मुस्लिम भाइयों से कहना चाहते हैं कि क्या वो हिन्दू त्योहारों पर अपनी पसन्द और नापसन्द की कुर्बानी दे सकते हैं. क्या इसी तरह हिन्दू धर्म के लोग भी सहनशीलता दिखा कर दूसरे धर्मों के त्योहारों पर अपनी पसन्द की कुर्बानी दे सकते हैं. आपको ये भी नहीं भूलना चाहिए कि जब देश में रामनवमी के मौके पर ये सारी हिंसक घटनाएं हो रही थी, उस समय हमारे देश का Mainstream मीडिया क्या कर रहा था? ज्यादातर अखबारों में दो ही खबरों को प्रमुखता से छापा गया. पहली खबर पाकिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन की है. दूसरी खबर दिल्ली की जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी यानी JNU को लेकर है, जहां रविवार रात हिंसा की मामूली घटना हुई. लेकिन इस मामूली सी घटना को हमारे देश के मीडिया ने एक बड़ी खबर बना दिया.
ये घटना JNU के कावेरी हॉस्टल में उस समय हुई, जब वहां रामनवमी के मौके पर धार्मिक अनुष्ठान और हवन किया जा रहा था. यूनिवर्सिटी ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि हॉस्टल के ज्यादातर छात्र इस धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा ले रहे थे और इस दौरान हॉस्टल के नजदीक ही शाम करीब पांच बजे इफ्तार पार्टी का भी आयोजन होना था. इसे लेकर दोनों पक्षों में कोई विवाद नहीं था. लेकिन बाद में लेफ्ट पार्टी के छात्रों द्वारा ये आरोप लगाया गया कि रामनवमी की वजह से वहां की Mess में Nov-Veg खाना नहीं बनने दिया गया. जिससे दोनों गुटों के छात्रों के बीच टकराव बढ़ गया और इस दौरान वहां मारपीट भी हुई. जिसमें कुल 6 लोग घायल हुए हैं.
इस घटना को लेकर सोमवार को भी दिनभर हंगामा होता रहा और दिल्ली के तुगलक रोड थाने और पुलिस मुख्यालय के बाहर लेफ्ट पार्टी के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया. आपमें से जितने भी लोग, जो दिल्ली के बाहर रहते हैं और अपने-अपने राज्यों की यूनिवर्सिटी और कॉलेज में पढ़ते हैं, वहां भी छात्रों के बीच ऐसी घटनाएं होती होंगी. लेकिन सोचिए, आपने ऐसा कितनी बार देखा है कि जब आपकी यूनिवर्सिटी और कॉलेज की इस तरह की घटनाओं को देश के राष्ट्रीय अखबारों ने पहले पन्ने पर छापा हो. ऐसा कभी नहीं होता. ये सिर्फ JNU के मामले में ही देखा जाता है, क्योंकि JNU को हमारे देश के लिबरल्स ने अपनी राजनीति का केन्द्र बना लिया है.
इस हिंसा में घायल हुई एक छात्रा की तस्वीर की काफी चर्चा हो रही है और इस तस्वीर को अखबारों ने भी अपने पहले पन्ने पर छापा है. इस छात्रा का नाम है, अख्तरिस्ता अंसारी.. जो JNU में MA Sociology की छात्रा है. दिलचस्प बात ये है कि.. एक दिन पहले की तस्वीर में ये छात्रा खून में लथपथ दिख रही है और ऐसा लग रहा है कि इसे बुरी तरह मारा गया है. लेकिन सोमवार की तस्वीर में इसके माथे पर मामूली चोट है और ये मुस्कुरा रही है. एक और बात.. ये पहली बार नहीं है, जब इस छात्रा की कोई तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. वर्ष 2019 में जब नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, उस समय भी ये छात्रा वहां मौजूद थी. तब की एक तस्वीर में इसे पुलिस के लाठीचार्ज का विरोध करते हुए देखा गया था. ये छात्रा तब जामिया यूनिवर्सिटी से BA डिग्री की पढ़ाई कर रही थी. इस छात्रा का पक्ष तो हर न्यूज चैनल दिखा रहा है. लेकिन इस हिंसा में एक और छात्रा घायल हुई है, जिसका नाम दिव्या सूर्यवंशी है. ये ABVP की कार्यकर्ता है और इस घटना में उसके दाएं हाथ में चोट आई है. इसलिए आपको इस छात्रा का पक्ष भी सुनना चाहिए. क्योंकि हमें लगता है कि बाकी न्यूज चैनल आपको ये पक्ष नहीं दिखाएंगे.
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी लगभग एक हजार एकड़ के क्षेत्र में फैली हुई है. ये एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, जिसे भारत सरकार द्वारा हर साल करोड़ों रुपये का Grant मिलता है. वर्ष 2012 से 2017 के बीच.. University Grants Commission ने JNU को 215 करोड़ रुपये दिए थे. लेकिन आज हमारे देश की लेफ्ट पार्टियां और लिबरल्स JNU का दुरुपयोग करते हैं. इस यूनिवर्सिटी का इस्तेमाल अपना एजेंडा चलाने के लिए किया जाता है. इसलिए आज बड़ा मुद्दा ये है कि.. अधेड़ उम्र के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को हम छात्र समझ रहे हैं और JNU के जरिए उनकी पढ़ाई का पैसा Taxpayers की जेब से भर रहे हैं.