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नई दिल्ली: नेविगेशन सर्विस (Navigation Service) मौजूदा समय में काफी अहम है, जो वैश्वीकरण, लोगों, समाज और संस्कृतियों को मिलाने के अलावा व्यापार और अर्थशास्त्र को फलने-फूलने में मदद करता है. इतिहास ने महान साहसी लोगों को देखा है, जिन्होंने अनजान और काफी दूर तक पहुंचने के लिए समुद्री रास्तों को नेविगेट किया था. वास्को डी गामा, फर्डिनेंड मैगलन, क्रिस्टोफर कोलंबस, झेंग हे और जैक्स कार्टियर जैसे खोजकर्ताओं ने पूर्व-आधुनिक इतिहास में यूरोप के लिए अज्ञात क्षेत्रों का चार्ट बनाया था. हालांकि नेविगेशन के विज्ञान को पूरा तैयार करने और उस बिंदु तक पहुंचने में हजारों साल लग गए.
वास्तव में, नेविगेशन का शुरुआती डॉक्यूमेंटेड इतिहास उन लोगों से आता है, जिन्होंने 5 से 6 हजार साल पहले सिंधु नदी के आसपास अपना रास्ता खोज लिया था. भारतीय समुद्री इतिहास 3 हजार ईसा पूर्व जितना पुराना है. यह सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के साथ शुरू होता है, जिन्होंने मेसोपोटामिया सभ्यता के साथ व्यापार किया था. वैदिक अभिलेखों से पता चलता है कि भारतीय व्यापारियों के सुदूर पूर्व और अरब में व्यापारिक संपर्क थे. मौर्य काल के दौरान मौजूद एक 'नौसेना विभाग' के कुछ प्रमाण हैं.
दुनिया के पहले बंदरगाह (Dock) की खोज हड़प्पावासियों द्वारा लोथल में लगभग 2400 ईसा पूर्व में की गई थी. पानी के बहाव से लाई हुई मिट्टी या रेत (silt) से बचने के लिए लोथल बंदरगाह वैज्ञानिक रूप से ज्वार से दूर स्थित था. आधुनिक समुद्री वैज्ञानिकों का मानना है कि हड़प्पावासियों को ज्वार-भाटा का बहुत ज्ञान था, जैसा कि यहां की जल-सर्वेक्षण और समुद्री इंजीनियरिंग द्वारा प्रदर्शित किया गया है.
भारतीय प्रतिभा का एक अद्भुत नमूना 14वीं शताब्दी का एस्ट्रोलैब (Astrolabe) है, जिसे 'यंत्रराज' या 'यंत्रों का राजा' कहा जाता है. इसे जिनेवा विज्ञान संग्रहालय (Geneva Museum of Science) में रखा गया है. इस उपकरण का उपयोग उच्च-समुद्र में नेविगेट करने के लिए किया गया था और यह संस्कृत शिलालेखों के साथ इंडो-मोरक्कन मूल का है.
कहा जाता है कि 'नेविगेशन (Navigation)' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है और यह संस्कृत शब्द 'नवगतिः' से उत्पन्न हुआ है. वहीं 'नौसेना' शब्द की उत्पति संस्कृत के 'नोव' शब्द से हुई है.
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