कमजोर मानसून के बाद ठंड पर भी अल नीनो का ग्रहण ? नापतोल में जुटे वैज्ञानिक
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कमजोर मानसून के बाद ठंड पर भी अल नीनो का ग्रहण ? नापतोल में जुटे वैज्ञानिक

दूर समंदर में हलचल का असर किसी खास इलाके तक सीमित नहीं रहता बल्कि उसके असर से दुनिया के दूसरे मुल्क भी बच नहीं पाते. अगर बात भारत की करें तो कमजोर मानसून के लिए अल नीनो को जिम्मेदार बताया गया वहीं अब अल नीनो का असर ठंड पर भी पड़ सकता है. हालांकि इसे लेकर वैज्ञानिकों की राय बंटी भी हुई है.

कमजोर मानसून के बाद ठंड पर भी अल नीनो का ग्रहण ? नापतोल में जुटे वैज्ञानिक

El Nino Impact on Winter: भारत से हजारों किमी दूर प्रशांत महासागर में हलचल का असर मौसम के मिजाज पर दिखाई देने लगता है. अगर बात इस वर्ष के मानसून की करें तो कुछ राज्यों में जमकर बारिश हुई कुछ राज्य बारिश से अछूते रह गए. उत्तर भारत में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर उत्तराखंड, पश्चिमी यूपी में बारिश तो हुई लेकिन पूर्वी यूपी, बिहार, बंगाल से मानसून रूठ गया था. वजह भी वही जिसके बारे में हम सब सुनते रहते हैं. प्रशांत महासागर में अल निनो जब जोर पकड़ता है तो वायुमंडल में मानसूनी बादल बनने की सिस्टम कमजोर हो जाता है.

अल नीनो की वजह से कमजोर मानसून
कमजोर मानसून के बाद इस साल ठंड में भी  स्ट्रांग अल निनो का असर नजर आ सकता है. इसके नवंबर और दिसंबर में पीक पर रहने की संभावना है. बारिश के सीजन में जब अल निनो का असर होता है तो सूखे की समस्या सामने आ जाती है. अमेरिका के नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्फिरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक 2015-16 और 1997-98 की तुलना में इसका ज्यादा नकारात्मक हो सकता है. इस तरह का पूर्वानुमान डराने वाला है क्योंकि  2015-16 का साल ज्यादा भयावह था. 2014, 2015 में कमजोर मानसून और 2016 में अल नीनो का असर यह हुआ कि कई राज्यों को सूखे का सामना करना पड़ा. इसकी वजह से खेती और किसान अधिक प्रभावित हुए थे.

अल नीनो के मुद्दे पर बंटी राय
वायुमंडल की हरकतों पर नजर रखने वाले डॉ. एम राजीवन के अनुसार बढ़ते तापमान का असर पूरे भारत में महसूस होने की संभावना है. हमने पहले ही अगस्त और सितंबर में पारा को सर्वकालिक रिकॉर्ड तोड़ते देखा है, और 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष बन सकता है। अल नीनो का प्रभाव अगले साल प्री-मॉनसून सीज़न तक संभावित गर्मी लहरों के साथ महसूस किया जा सकता है. लेकिन अभी ऐसा लगता है कि यह दक्षिणी प्रायद्वीप में पूर्वोत्तर मानसून का पक्ष ले सकता है.

जून से सितंबर के ग्रीष्मकालीन मानसून के विपरीत, उत्तर-पूर्व (शीतकालीन) मानसून जो अक्टूबर में शुरू होता है और दक्षिणी राज्यों में बारिश लाता है. उसका अल नीनो के साथ अनुकूल संबंध साझा करता है. हिंद महासागर डिपोल (IOD) एक अन्य मौसम प्रणाली - के साथ मिलकर यह दक्षिण में अत्यधिक बारिश का कारण बन सकता है, जो भारत मौसम विज्ञान विभाग के इस अवधि के दौरान दक्षिणी राज्यों के लिए सामान्य से अधिक बारिश के पूर्वानुमान की तरह है.

भारतीय मौसम पर जलवायु घटना के संभावित प्रभाव की जांच करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि दोनों के बीच कोई सीधा-सीधा संबंध नहीं है। इसका एक उदाहरण चार महीने का दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम है जो इस सितंबर में समाप्त हुआ था. दक्षिण पश्चिम मानसून पर अल नीनो की छाप दिखाई दी जो पूरी तरह से असंतुलित था.अगस्त में कम बारिश के साथ लंबे समय तक सूखे की स्थिति देखी गई, जो सितंबर तक बढ़ी. इसलिए बारिश उम्मीद से कम थी. अल नीनो जल्द ही खत्म नहीं होने वाला है. यह और मजबूत होगा.

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